बिहार पस्त, एनडीए मस्तः 20 साल राज के बाद भी राज्य हर मामले में पिछड़ा, फिर भी नीतीश विकास पुरुष

बीजेपी और इसके सहयोगी दल केवल सत्ता में बैठना चाहते हैं और इसके बाद जनता की परेशानियां उनको नजर नहीं आतीं। लालू यादव के कार्यकाल में हुए काम उनको जंगलराज नजर आते हैं और नीतीश का जंगलराज प्रधानमंत्री मोदी का विकास है।

बिहार पस्त, एनडीए मस्तः 20 साल राज के बाद भी राज्य हर मामले में पिछड़ा, फिर भी नीतीश विकास पुरुष
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महेन्द्र पांडे

बार बार नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनते जा रहे हैं, बीजेपी उन्हें विकास पुरुष के तौर पर प्रचारित कर रही है। विकास पुरुष के विकास का आलम यह है कि चुनावों से ठीक पहले महिलाओं के खाते में रिश्वत ट्रांसफर की जाती है और भी बहुत कुछ किया जाता है। दिल्ली से लेकर पटना तक चुनावों के नतीजों को बदलने की कवायद की जाती है, फिर भी नीतीश विकास पुरुष हैं।दशकों से मुख्यमंत्री बने रहने के बाद भी बिहार की ग्रामीण जनता हरेक महीने 3670 रुपये और शहरी जनता 5080 रुपये ही खर्च कर पाती है, जबकि देश में आम जनता जो हरेक महीने खर्च करती है, वह ग्रामीण आबादी के लिए औसतन 4122 रुपये और शहरी आबादी के लिए 6996 रुपये है। ये आंकड़े भारत सरकार के राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट, पारिवारिक उपभोग व्यय सर्वेक्षण 2023-24, में बताए गए हैं।

बीजेपी और इसके सहयोगियों का छद्म विकास सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक नहीं होता बल्कि महज सड़कों, पुलों, अडानी, वन्दे भारत और हवाई अड्डों तक सिमटा रहता है। देश की मासिक औसत प्रति व्यक्ति खर्च की तुलना में केवल बिहार ही नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, असम जैसे राज्यों में भी लोग कम कर पाते हैं। नीति आयोग ने अपने वेबसाइट पर सतत विकास लक्ष्य इंडेक्स 2023-24 प्रदर्शित किया है, इस इंडेक्स से बिहार की दुर्दशा स्पष्ट होती है।

देश में राज्यों का इंडेक्स में औसत अंक 71 है, पर इसमें 57 अंकों के साथ बिहार सबसे निचले स्थान पर है। बिहार केवल राज्यों में ही नहीं बल्कि किसी भी केंद्र शासित प्रदेश से भी पीछे है।इसी बलबूते पर नीतीश विकास पुरुष बने बैठे हैं। बिहार की 33.76 प्रतिशत जनता बहुआयामी गरीबी की मार झेल रही है जबकि देश के लिए यह औसत आधे से भी कम, यानि 14.96 प्रतिशत ही है। सरकार द्वारा स्वास्थ्य की सुविधा के संदर्भ में लाभार्थियों की संख्या बिहार में न्यूनतम है और सामाजिक सुरक्षा से संबंधित योजनाओं का लाभ केवल 20.90 प्रतिशत आबादी को मिलता है। यह संख्या किसी भी अन्य राज्य की तुलना में सबसे कम है। गरीबी हटाने से संबंधित लक्ष्य में 39 अंकों के साथ मोदी और नीतीश का बिहार सबसे पीछे है|

भूख और पोषण से संबंधित लक्ष्य में देश का औसत 52 अंक है, पर इसमें महज 24 अंकों के साथ बिहार सबसे निचले स्थान पर है, जबकि यहां की शत-प्रतिशत जनता राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 के अंतर्गत आती है। देश में 15 से 49 वर्ष के बीच की 52.2 प्रतिशत महिलायें खून की कमी, अनिमिया का शिकार है; पर बिहार में महिलाओं की यह संख्या 63.1 प्रतिशत है।देश में 18.5 से भी कम बॉडी-मास इंडेक्स वाली 18.7 प्रतिशत महिलायें हैं, जबकि बिहार में यह संख्या 25.6 प्रतिशत है। बिहार में 5 वर्ष से कम शिशुओं में से 41 प्रतिशत का वजन सामान्य से कम है जबकि देश का औसत 32.1 प्रतिशत है। देश में 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में से 35.5 प्रतिशत की लंबाई सामान्य से कम है, जबकि बिहार में इसका आंकड़ा 42.9 प्रतिशत है।


स्वास्थ्य से संबंधित लक्ष्य में देश का औसत अंक 77 है, पर बिहार के लिए यह 67 ही है और राज्यों के क्रम में केवल 6 राज्य ही बिहार से भी पीछे हैं। देश में मेटर्नल मॉर्टलिटी रेट का औसत 97 है, पर बिहार में यह 118 है। देश में औसत उम्र 70 है, पर बिहार में यह 69.5 वर्ष है। बिहार में औसतन हरेक व्यक्ति पूरे महीने के कुल खर्चे में से 14.5 प्रतिशत खर्च बेहतर स्वास्थ्य के लिए करता है, जबकि पूरे देश का औसत 13 प्रतिशत ही है। यह आंकड़ा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि महीने के प्रति व्यक्ति खर्च के संदर्भ में अन्य राज्यों की तुलना में बिहार बहुत पीछे है। देश में प्रति 10000 आबादी पर 49.45 स्वास्थ्यकर्मी है जबकि बिहार में महज 14.47 स्वास्थ्यकर्मी ही हैं।

सतत विकास लक्ष्य के अन्य पैमाने पर भी बिहार सबसे नीचे के राज्यों में नजर आता है। शिक्षा के संदर्भ में देश का औसत अंक 61 है, जबकि बिहार के अंक इससे आधे, 32, हैं। इस लक्ष्य में बिहार का स्थान अंतिम है। लैंगिक समानता के संदर्भ में बिहार से भी नीचे के स्थानों पर महज 4 राज्य हैं। इस संदर्भ में देश का औसत 49 है, पर बिहार के अंक 44 ही हैं। देश में लैंगिक अनुपात 929 है, पर बिहार में यह 908 ही है।

ऊर्जा के संदर्भ में देश का औसत अंक 96 है, पर बिहार का अंक 81 ही है और यह राज्यों की सूची में अंत से 6ठे स्थान पर है। आर्थिक विकास और सम्मानजनक रोजगार के संदर्भ में बिहार 54 अंकों के साथ अंतिम स्थान पर है। देश का औसत अंक इस संदर्भ में 68 है। असमानता के संदर्भ में देश का औसत अंक 65 है, पर बिहार का अंक 56 ही है। इस संदर्भ में राज्यों की सूची में बिहार नीचे से 5वें स्थान पर है। सतत शहर और समुदाय के संदर्भ में भी बिहार नीचे से पांचवें स्थान पर ही है। इस संदर्भ में देश का औसत अंक 83 है, जबकि बिहार का अंक महज 57 है।जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के संदर्भ में देश का औसत अंक 67 है जबकि 34 अंकों के साथ बिहार अंतिम से एक स्थान ऊपर है।

भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट संख्या, 594, नूट्रिशनल इनटेक इन इंडिया 2022-23 और 2023-24 के अनुसार भोजन के कैलोरी मान के संदर्भ में वर्ष 2022-23 में बिहार पहले स्थान पर था, पर वर्ष 2023-24 तक इसमें गिरावट आने लगी। बिहार के ग्रामीण क्षेत्रों में वर्ष 2022-23 में प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन औसत कैलोरी उपभोग 2432 किलोकैलोरी था, पर वर्ष 2023-24 में यह 2326 किलोकैलोरी तक ही रह गया। शहरी क्षेत्रों में वर्ष 2022-23 में यह मान 2461 किलोकैलोरी था, जबकि अगले वर्ष यह 2453 किलोकैलोरी पर सिमट गया।सबसे अधिक पोषण के बाद भी बिहार में खून की कमी से ग्रस्त महिलाओं की संख्या सबसे अधिक है और साथ ही बहु-आयामी गरीबी से जूझते लोगों की भी।

ये सभी आंकड़े भारत सरकार के विभागों के ही हैं और इसके बाद भी यदि प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह बिहार में विकास की बात करते हैं तब निश्चित तौर पर उनकी विकास की परिभाषा कुछ और होगी। बीजेपी और इसके सहयोगी दल केवल सत्ता में बैठना चाहते हैं और इसके बाद जनता की परेशानियां उनको नजर नहीं आतीं। लालू यादव के कार्यकाल में हुए काम उनको जंगलराज नजर आते हैं और नीतीश का जंगलराज प्रधानमंत्री मोदी का विकास है।

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