खरी-खरीः दमन की राजनीति कर बुरी फंसी सरकार, सवाल बहुत तीखे और जवाब कुछ नहीं

कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार येदियुरप्पा और बोम्मई-जैसे नेता हिजाब मामले से अपना दामन छुड़ा रहे हैं और प्रदेश में अभी से बीजेपी की जो दुर्गति दिख रही है, वह हिन्दुत्व राजनीति के लिए अच्छा संकेत नहीं है।

दमन की राजनीति कर बुरी फंसी सरकार
दमन की राजनीति कर बुरी फंसी सरकार
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ज़फ़र आग़ा

पिछले दो-तीन सप्ताह के भीतर देश की राजनीति ने एक खतरनाक मोड़ ले लिया है। अब देश में प्रधानमंत्री से सवाल करने वाले बड़े-से-बड़े नेता की भी खैर नहीं रही। पहले तो सरकार की निंदा वाले ट्वीट तक पर पत्रकार और सामाजिक कार्यकर्ता पकड़े-धकड़े जा रहे थे। अब स्थिति यह है कि कभी यह समाचार आता है कि कांग्रेस के नेता राहुल गांधी को लोकसभा से बाहर कर दिया गया। और तो और, देखते-देखते उनको सरकारी बंगले से भी निकाल बाहर कर दिया गया।

अभी यह समाचार ठंडा भी नहीं हुआ था कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को सीबीआई ने बुलाकर दिल्ली के शराब घोटाला मामले में नौ घंटों तक रगड़ा। यह चर्चा चल ही रही थी कि समाचार आया कि जम्मू-कश्मीर के पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक को सीबीआई का नोटिस आ गया कि वह पूछताछ के लिए सीबीआई ऑफिस आकर हाजिर हों। इन सब का पाप केवल इतना था कि इन तीनों ने प्रधानमंत्री से जुड़े तीखे सवाल पूछे थे।

राहुल गांधी ने लोकसभा पटल से यह सवाल किया था कि मोदी जी, देश के जाने-माने पूंजीपति अडानी से आपके क्या संबंध हैं। बस, राहुल गांधी लोकसभा की सदस्यता खो बैठे। अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री से यह मांग की थी कि वह अपनी बीए की डिग्री जनता को दिखाएं। सत्यपाल मलिक ने सरकार पर यह आरोप लगाया कि पुलवामा में मारे जाने वाले सीआरपीएफ जवान स्वयं सरकार की कोताही से मारे गए।

एक साक्षात्कार में सत्यपाल मलिक ने यह आरोप लगाया कि सीआरपीएफ जवानों को लेने के लिए गृह मंत्रालय से जो जहाज मांगा गया था, यदि वह जहाज मिल जाता तो जवानों की हत्या नहीं होती। उनका यह भी आरोप है कि जब जवानों की हत्या के बाद यह बात उन्होंने प्रधानमंत्री से कही कि ‘ये जवान तो हमारी गलती से मरे हैं, तो उन्होंने कहा कि बस तुम चुप रहो’। बस, इस साक्षात्कार के प्रसारण के दो दिनों बाद सत्यपाल मलिक को सीबीआई का नोटिस आ गया।


स्पष्ट है कि इन तीनों नेताओं के साथ सरकार की ओर से जिस प्रकार का दुर्व्यवहार हुआ, वह भारतीय राजनीति में एक खतरनाक मोड़ है। जब राहुल गांधी, केजरीवाल और मलिक जैसे बड़े नेता सरकार के विरुद्ध नहीं बोल सकते तो फिर हम और आप जैसों का सरकार से सवाल करने पर क्या हश्र होगा, भगवान ही जाने। लेकिन अब बात केवल इतनी नहीं है कि आखिर सरकार यह क्या कर रही है? इससे भी बड़ा सवाल तो यह है कि आखिर सरकार ऐसा क्यों कर रही है? 

इस संबंध में विपक्ष का यह आरोप है कि सरकार के पास इन तीनों सवालों का कोई जवाब नहीं है और तीनों ही मामलों में सरकार कुछ छिपा रही है। इसलिए सरकार घबराहट में है और विपक्ष के सवालों से डर रही है। तभी तो इन सवालों को उठाने वाले नेताओं को किसी भी प्रकार चुप कराने की कोशिश हो रही है। लेकिन सत्ता पक्ष के लिए भी यह बात अत्यंत चिंताजनक है क्योंकि अभी नहीं तो चुनाव के समय यह सवाल उठेंगे ही। भले अभी तो सरकार गोदी मीडिया को चुप करा सकती है। लेकिन चुनाव में तो विपक्ष जनता के बीच इन्हीं सवालों को उठाएगा, अर्थात सरकार जितना इन सवालों से भागेगी, विपक्ष उतनी ही ताकत से इन सवालों के जवाब मांगेगा।

इस संबंध में यदि यह कहा जाए कि 2024 के लोकसभा चुनाव इन्हीं तीन सवालों के आधार पर ही लड़े जाएंगे, तो गलत नहीं होगा। यह सवाल हैं- पहला, अडानी और मोदी के आपसी संबंध क्या हैं? दूसरा, प्रधानमंत्री के पास बीए की डिग्री है कि नहीं? तीसरा, क्या पुलवामा कांड सरकार की गलती से हुआ? यह तो अब स्पष्ट है कि सरकार के पास अभी तक इन सवालों का कोई जवाब है नहीं और न ही सरकार भविष्य में इनके जवाब दे सकती है। मतलब साफ है कि सरकार बुरी तरह फंसी है।

यह सरकार जब भी फंसती है, तो हिन्दुत्व राजनीति का प्रयोग करती है। इसलिए यह बहुत संभव है कि 2024 तक अल्पसंख्यकों, विशेषतया मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध नफरत की राजनीति और तेज हो जाए। लेकिन यह रणनीति भी कुछ धूमिल पड़ती लग रही है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जिस प्रकार येद्दियुरप्पा और बोम्मई जैसे नेता हिजाब मामले से अपना दामन छुड़ा रहे हैं और प्रदेश में अभी से बीजेपी की जो दुर्गति दिख रही है, वह हिन्दुत्व राजनीति के लिए अच्छा संकेत नहीं है। ऐसी स्थिति में सरकार के पास केवल एक ही उपाय बचेगा और वह यह कि वह विपक्ष के प्रति दमन की रणनीति और तेज कर दे। ऐसे में राहुल गांधी, मलिक और केजरीवाल जैसे सरकार से सवाल करने वाले नेता कब जेल की सलाखों के पीछे हों, पता नहीं।


लेकिन यह रणनीति भी चुनावी राजनीति के लिए बहुत सटीक नहीं है क्योंकि जितना विपक्ष पर दमन बढ़ेगा, उतनी ही विपक्षी एकता तेज होती जाएगी। ऐसा अभी से दिखाई पड़ रहा है। पिछले पखवाड़े जब सरकार राहुल, केजरीवाल और मलिक के खिलाफ सक्रिय थी, तब उसी समय विपक्षी नेताओं की आपस में बैठकें भी चल रही थीं। एक ओर चेन्नई में मुख्यमंत्री स्टालिन द्वारा बुलाई गई विपक्षी नेताओं की बैठक में लगभग सभी मुख्य बीजेपी विरोधी पार्टियों के प्रतिनिधि मौजूद थे, तो दूसरी ओर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की कांग्रेस नेताओं और केजरीवाल और ममता बनर्जी से होने वाली वार्तालाप के नतीजे आशाजनक लग रहे थे।

चुनावी गणित से यह तो स्पष्ट है ही कि यदि 75 प्रतिशत लोकसभा सीटों पर भी बीजेपी और विपक्ष का सीधा मुकाबला हो गया, तो 2024 के लोकसभा चुनाव बीजेपी के लिए भारी पड़ सकते हैं। अब आप समझ गए सरकार को घबराहट किस बात की है। केवल घबराहट ही नहीं बल्कि सरकार डरी-डरी लग रही है।

इसी घबराहट और डर में उससे वह गलतियां हो रही हैं जो चुनाव के समय उस पर भारी पड़ सकती हैं। लेकिन सरकार करे तो करे क्या! सरकार तो बुरी फंसी है। विपक्ष अब तेजी से वे सवाल पूछेगा जिनके जवाब सरकार नहीं दे पा रही है। सवाल की गति बढ़ेगी तो विपक्ष के खिलाफ दमन भी तेज होगा। जितना दमन बढ़ेगा, उतनी ही विपक्षी एकता तेज होगी। बस यूं समझिए कि बुरी फंसी सरकार! 

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