दिल्ली में यमुना की बदहाली पर सियासत: नदी है नहीं और बनाएंगे रिवरफ्रंट
दिल्ली में यमुना लगभग अस्तित्वविहीन है, लेकिन बीजेपी की रेखा गुप्ता सरकार करोड़ों खर्च करने की योजनाओं का ऐलान कर रिवरफ्रंट तक बनाने के दावे-वादे कर रही है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजों की घोषणा 8 फरवरी को की गई। लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर 20 फरवरी को रेखा गुप्ता के शपथ ग्रहण से पहले ही दिल्ली में यमुना की सफाई के लिए ट्रैश स्किमर्स और वीड हार्वेस्टर्स-जैसी मशीनें काम करने लगीं। राजभवन के सौजन्य से इससे संबंधित खबरें और विजुअल अखबारों-टीवी चैनलों पर लोगों को यह भरोसा दिलाने के मकसद से छा गईं कि बीजेपी के सत्ता में आने के साथ ही यमुना की सफाई का अभियान शुरू हो गया है। हालांकि इस तरह की मशीनें दिखावटी ही अधिक होती हैं, लोगों को इस बात पर आश्चर्य भी हुआ कि अगर ऐसी मशीनें वास्तव में उपलब्ध थीं, तो इन्हें पहले क्यों नहीं इस्तेमाल किया गया।
पर्यावरणविदों और विशेषज्ञों को भी यह बात अजीब लग रही है। उनका कहना है कि कचरा और खर-पतवार आम बात है लेकिन अगर नदी का स्वाभाविक बहाव निरंतर कायम रखा जाए, तो नदी अपनी सफाई खुद ही करती रही है। लेकिन केंद्र में 11 साल से सत्ता में रही बीजेपी इस मसले पर सिर्फ आरोप ही लगाती रही और उसने नदी की सफाई के लिए कुछ ठोस नहीं किया। उधर, दिल्ली की सत्ता में रही आम आदमी पार्टी भी इस मसले पर एलजी और केंद्र सरकार को निशाना बनाती रही।

यमुना सफाई के लिए एलजी के नेतृत्व में समिति बनाई गई, तो आम आदमी पार्टी की सरकार ने उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे दी। इसने तर्क दिया कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (एनजीटी) के निर्देश पर बनाई गई समिति की अध्यक्षता विषय विशेषज्ञ से कराई जानी चाहिए थी और इसमें सदस्य भी ऐसे ही लोगों को बनाना चाहिए था। कोर्ट ने इस समिति के कामकाज पर रोक लगा दी और केंद्र से इसका जवाब देने को कहा। लेकिन मशीनें तब नदी सफाई में क्यों नहीं लगाई गईं, इस बात का जवाब कभी नहीं मिल पाया।
सच्चाई तो यह है कि यमुना सफाई को लेकर लोगों ने ही अपनी रुचि धीरे-धीरे खो दी है और इसका ही फायदा राजनीतिक दल उठाते रहे हैं। पिछले कई वर्षों में लोगों और साथ ही साथ पार्टियों की की रुचि तब ही जगती दिखी है जब छठ पर्व आता है- ज्यादा दीपावली के बाद वाले छठ के समय और थोड़ा-बहुत चैती छठ के वक्त। जबकि बीते दो दशकों से दिल्ली में हरियाणा से दिल्ली आने वाली यमुना में साल में कम-से-कम 10 बार अमोनिया की मात्रा बढ़ती है।

साल-दर-साल यमुना में पानी की मात्रा कम हो रही है जबकि उसके किनारे बसे शहरों-बस्तियों की आबादी बढ़ रही है। जाहिर है, वहां से निकलने वाले जल-मल में भी वृद्धि हो रही है क्योंकि कड़वा सच यह है कि यह आधे-अधूरे ट्रीटमेन्ट के बाद यमुना में मिल रहा है। एक तरफ हम यमुना से ज्यादा पानी ले रहे हैं, दूसरा हम इसमें अधिक गंदगी डाल रहे हैं, तीसरा इसमें पानी कम होता जा रहा है।
वैसे, दिल्ली की रेखा गुप्ता सरकार ने इस साल यमुना के मद में 500 करोड़ का प्रावधान रखा है लेकिन उसने कोई ठोस योजना प्रस्तुत नहीं की है, वही पुरानी बातें दोहराई गई हैं जिनके उपयोग के बाद भी यमुना इसी गति को प्राप्त हो गई है। सरकार ने बताया है कि यमुना नदी में गिरने वाले नालों को टैप करके ट्रीट किया जाएगा, 40 नए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाए जाएंगे, सीवेज ट्रीटमेंट के लिए 40 करोड़ की मॉडर्न मशीनें खरीदी जाएंगी और इसने नजफगढ़ ड्रेन के लिए 200 करोड़ रुपये जबकि हरियाणा से दिल्ली आने वाली नहर को पाइपलाइन में बदलने के लिए 200 करोड़ का आवंटन किया है।
लेकिन यमुना की जमीनी हकीकत को परे रखकर जिस तरह अहमदाबाद के साबरमती रिवरफ्रंट की तर्ज पर दिल्ली में यमुना रिवरफ्रंट बनाने की बात की गई है, उससे ही समझ में आता है कि असली मकसद क्या है। दरअसल, सरकार यमुना रिवरफ्रंट बनाकर नदी के निर्मल जल और विशाल जलनिधि को वापस जिंदा करने की जगह नदी के किनारे की जमीन का व्यावसायिक इस्तेमाल करना चाहती है।
एनजीटी सन 2015 में ही दिल्ली के यमुना तटों पर निर्माण पर पाबंदी लगा चुका है लेकिन अभी एक साल के भीतर ही कई आपत्तियों के बावजूद सराय काले खां के पास "बांस घर" के नाम से कैफेटेरिया और अन्य निर्माण हो गए हैं। और अब उसी सराय काले खां के सामने 22 एकड़ का रिवरफ्रंट बनाने की बात है। यह एनजीटी के आदेश की एक और खुली अवहेलना ही है।
अहमदाबाद में साबरमती नदी लगभग गायब ही हो चुकी है। यहां नर्मदा नदी से जो पानी आता दिखता है, उसका और 'विकसित' रिवरफ्रंट का उपयोग, बस, व्यावसायिक तौर पर हो रहा है। साबरमती मूल रूप से मौसमी नदी थी, लेकिन नर्मदा से पानी लाकर इसे साल भर भरा रखा गया। इसका नदी की पारिस्थितिकी (इकोसिस्टम) पर असर पड़ा। नदी के किनारों को कंक्रीट से पक्का करने से जलस्तर और भूजल पुनर्भरण (रिचार्ज) प्रभावित हुआ। प्राकृतिक रूप से बहाव न होने के कारण नदी का पानी ठहरा हुआ रहता है जिससे जल में घुलनशील ऑक्सीजन कम हो गया और प्रदूषण बढ़ गया।
परियोजना से पहले नदी के किनारों पर वनस्पति और जलीय जीवों की विविधता थी। लेकिन कंक्रीट स्ट्रक्चर बनने से यह खत्म हो गई। प्रवासी पक्षियों और स्थानीय जीवों की प्रजातियों में लगातार गिरावट आई है। इस परियोजना के कारण नदी किनारे बसे हजारों गरीब परिवारों को हटाया गया। इनमें से कई लोगों को वैकल्पिक आवास या मुआवजा नहीं मिला जिससे वे बेघर हो गए। नर्मदा का पानी साबरमती को भरा रखने के लिए उपयोग किया जा रहा है, जबकि यह पानी कृषि और पेयजल के लिए ज्यादा जरूरी था। इससे सूखा प्रभावित क्षेत्रों में पानी की समस्या और बढ़ गई। रिवरफ्रंट को पर्यटन और रियल एस्टेट हब के रूप में विकसित किया गया जिससे अमीर वर्ग को फायदा हुआ लेकिन गरीबों के लिए इसका कोई ठोस लाभ नहीं दिखता।
हाल में संसद में पेश की गई संसदीय समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली में यमुना नदी 'लगभग अस्तित्वहीन ही' है और अगर दिल्ली जल बोर्ड अपेक्षित जरूरत के अनुरूप अपने सभी सीवेज को साफ भी करता है, तब भी चूंकि नदी में ताजा पानी की धारा नहीं है, इसलिए वह प्रदूषित ही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अपर्याप्त घुले हुए ऑक्सीजन स्तर की वजह से दिल्ली में यमुना 'वस्तुतः अस्तित्वहीन ही' है जो 'इस बात का सूचक है कि नदी जीवित है या नहीं।'
यमुना की सफाई के लिए यमुना एक्शन प्लान 1993 में शुरू हुआ। केंद्र सरकार ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में एसटीपी बनाने के लिए 1,514.70 करोड़ खर्च किए हैं। समिति ने पाया है कि उचित पर्यावरणीय धारा बनाए रखना जरूरी है लेकिन यही नहीं हो पाया है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यमुना नदी में 33 में से 23 जगहों पर पानी नहाने लायक नहीं है (जिनमें 6-6 जगह हरियाणा और दिल्ली में तथा 11 जगह उत्तर प्रदेश में हैं)।
वैसे, इस एक्शन प्लान पर तीन दशक से भी अधिक समय के दौरान अब तक लगभग 8,000 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। 2017 से 2021 के बीच दिल्ली सरकार ने इस पर 6,500 करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया। दिल्ली में यमुना कोई 52 किलोमीटर का सफर करती है। ऐसे में, इस गुत्थी को कोई सुलझा ही नहीं सकता कि यमुना रीवरफ्रंट से नदी किस तरह साफ हो जाएगी।
हरियाणा की सीमा तक पहुंचने से पहले ही यमुना का जल स्तर काफी कम हो चुका होता है। इसलिए इसका उपयोग सिंचाई और ऊर्जा निर्माण के लिए नहीं हो पा रहा है। यमुनोत्री से निकलने वाली नदी की धारा अतिसंवेदनशील संभावित भूकंप प्रभावित इलाकों से गुजरती है। नदी में पानी कम होने का सीधा असर भूकंप की अधिक आशंका से जुडता है। मतलब, नदी का जितना विस्तार होगा, उससे भूगर्भ जल स्तर अच्छा रहेगा और भूकंप से निरापदता अधिक होगी।
यह विडंबना ही है कि दिल्ली में एक लगभग अस्तित्वविहीन नदी पर ही कराड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं।
(पंकज चतुर्वेदी पर्यावरण विषयों पर नियमित तौर पर लिखते हैं।)Yamuna
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