बीजेपी लगा रही जेडीयू में सेंध, इसीलिए प्रशांत किशोर को सक्रिय किया है नीतीश कुमार ने

नीतीश कुमार के खिलाफ जेडीयू में अंदर ही अंदर विरोध तैयार करने की बीजेपी ने रणनीति बनाई है। इसे भांपते हुए नीतीश कुमार ने प्रशांत कुमार का सहारा लिया है और नागरिकता कानून जैसे मुद्दों पर बीजेपी से अलग नीति अपनाई है।

फोटो : सोशल मीडिया
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सुरुर अहमद

अपने गृह राज्य बिहार में करीब एक साल तक लगभग खामोश रहने के बाद जेडीयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर अचानक से पार्टी प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सबसे विश्वासपात्र प्रवक्ता के रूप में उभर कर सामने आए हैं। 9 दिसंबर को लोकसभा में नागरिकता संशोधन बिल पारित होने के बाद से प्रशांत किशोर लगातार सोशल मीडिया के जरिए और टीवी चैनलों को इंटरव्यू देकर इस नागरिकता कानून पर अपनी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की राय रख रहे हैं।

राजनीतिक विश्लेषक इस पूरी कवायद को नीतीश कुमार की एक रणनीतिक चाल मान रहे हैं जो उन्होंने खुद को एक ऐसे दलदल से निकालने के लिए चली है जिसमें वे खुद ही फंसे हैं।

जेडीयू के अंदरूनी सूत्रों से मिली जानकारी पर भरोसा करें तो, बीजेपी ने नीतीश की पार्टी जेडीयू के ही एक अन्य नेता को बढ़ावा देने की रणनीति तैयार की है। यह नेता नीतीश कुमार को उस समय चुनौती देगा, जब वह खुद को भगवा ब्रिगेड से अलग करने की कोशिश करेंगे। यही कारण है कि खुलेआम नीतीश कुमार की आलोचना करने वाले बीजेपी के गिरिराज सिंह और अश्विनी चौबे जैसे मुंहफट नेता भी 24 अक्टूबर को हरियाणा और महाराष्ट्र चुनाव के नतीजे आने के बाद से खामोश हैं।

इस सबके बीच सबसे हैरानी की बात यह है कि जिस तरह नीतीश कुमार के विश्वासपात्र रहे आर सी पी सिंह उभर कर सामने आ रहे हैं। पूर्व नौकरशाह आर सी पी सिंह तब से नीतीश कुमार के विश्वास पात्र हैं जब वे केंद्र में रेल मंत्री थे।


ध्यान रहे कि कोई 16 महीने पहले जब प्रशांत किशोर ने राजनीति में शामिल होने का फैसला किया और जेडीयू के उपाध्यक्ष बना दिए गए, तो कई विश्लेषकों ने इसे जेडीयू के कई नेतआओं के कद की छंटाई करने के नीतीश कुमार की चाल के रूप में देखा था। इनमें नीतीश कुमार के ही जिले नालंदा से आने वाले कुर्मी आर सी पी सिंह सबसे प्रमुख हैं।

उपाध्यक्ष बनाए जाते ही प्रशांत किशोर को नीतीश कुमार के बगल वाला विशाल सरकारी बंग्ला भी दे दिया गया। प्रशांत किशोर पर पूरे एक्शन में दिखे र उन्होंने बिहार में समाज के अलग-अलग तबकों के साथ बैठकें भी कीं।

पिछले साल दिंसबर में उन्होंने छात्र जेडीयू को पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव में जीत दिलाने में भी भूमिका निभाई थी। इस चुनाव में बीजेपी की छात्र शाखा विद्यार्थी परिषद को हार का सामना करना पड़ा था। गौरतलब है कि पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ चुनाव के दौरान जब प्रशांत किशोर विश्वविद्यालय पहुंचे थे तो उनकी कार पर पथराव हुआ था और नीतीश विरोधी नारेबाजी हुई थी।

लेकिन कुछ ही समय बाद, कुछ ऐसा हुआ कि प्रशांत किशोर अचानक राजनीतिक गतिविधियों से गायब हो गए, और हाशिए पर पहुंच चुके आर सी पी सिंह फिर से सक्रिय नजर आने लगे। 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी प्रशांत किशोर कहीं नजर नहीं आए और नीतीश कुमार ने बीजेपी नेताओं के साथ मिलकर प्रचार किया।

इन दिनों बिहार में यह चर्चा जोरों पर है कि दरअसल प्रशांत किशोर जेडीयू छोड़ चुके हैं और उन्होंने पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए प्रचार करने का मन भी बना लिया है।


इस दौरान महाराष्ट्र और हरियाणा चुनाव से ऐन पहले बीजेपी के कई नेताओं ने यह राग अलापना शुरु कर दिया कि नीतीश कुमार को बिहार के मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए और बीजेपी अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए अपने सीएम उम्मीदवार के नाम का ऐलान करे। लेकिन गृहमंत्री अमित शाह ने ऐलान कर दिया कि अगले चुनाव में भी नीतीश कुमार ही मुख्यमंत्री पद का चेहरा रहेंगे।

पर, हरियाणा और महाराष्ट्र में बीजेपी के मुंह की खाने के बाद नीतीश कुमार ने अपनी रणनीति में बदलाव किया है, और अब उन्होंने बीजेपी को आंखें दिखाना शुरु कर दी हैं। अभी 30 अक्टूबर को ही जेडीयू महासचिव के सी त्यागी ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में जेडीयू की हिस्सेदारी की मांग की थी। और सब जानते हैं कि के सी त्यागी ऐसा अपनी मर्जी ने नहीं बोल रह थे। फिर भी अगले ही दिन नीतीश कुमार ने इस बात से इनकार कर दिया कि उनकी पार्टी ने ऐसी कोई मांग की थी।

बीजेपी कहीं रस्सा न खींच ले, इस भय से ने जेडीयू ने नागरिकता संशोधन बिल का तो समर्थन किया, हालंकि तीन तलाक और अनुच्छेद 370 के मुद्दे पर हुई वोटिंग के दौरान उसने वोटिंग में हिस्सा नहीं लिया।

तो फिर बीते दो-चार महीनों में ऐसा क्या हुआ कि अब वह अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर हो गया है? यह यक्ष प्रश्न इन दिनों बिहार में चर्चा का विषय बना हुआ है।

ऐसे में नीतीश कुमार को अचानक प्रशांत किशोर दिखे हैं जो पार्टी में ही जारी भितरघात का मुकाबला करेंगे। पार्टी के इनसाइर्स का मानना है कि नीतीश कुमार ने भांप लिया है कि बीजेपी धीरे-धीरे आर सी पी सिंह के साथ नजदीकियां बढ़ा रही है। इसीलिए नागरिकता संशोधन बिल संसद से पास होते ही प्रशांत किशोर ने सोशल मीडिया में इस मुद्दे पर पार्टी के रुख की आलोचना की और उनके साथ ही पूर्व राजनयिक पवन वर्मा और पूर्व आईएएस एन के सिंह ने भी सुर में सुर मिलाया।

ये सब होने पर नीतीश ने कोई बयान तो नहीं दिया अलबत्ता प्रशांत किशोर को मिलने के लिए बुला भेजा। और मुलाकात के बाद तो कुछ और ही सामने आ गया। प्रशांत किशोर ने बयान दिया कि उनकी पार्टी एनआरसी के खिलाफ है और इसे लागू करना असंभव है। इसके बाद जब देश भर में नागरिकता कानून और एनारसी का विरोध शुरु हो गया तो नीतीश कुमार ने खुलकर एनआरसी का विरोध किया। उन्हें आशंका है कि अगर इस मुद्दे पर वे चुप रहे तो उन्हें न सिर्फ मुस्लिम बल्कि उदारवादी हिंदू वोटों से भी हाथ धोना पड़ेगा।

बिहार की राजनीति पर नजर रखने वाले जानते हैं कि 2015 के बाद से नीतीश कुमार ने कई बार अहम मुद्दों पर प्रशांत किशोर की मदद ली है। आर सी पी सिंह के नजदीकी एक नेता ने बताया कि नागरिकता संशोधन कानून को लेकर नीतीश कुमार गणित गड़बड़ा गया। उन्हें शायद अनुमान नहीं था कि इसका इतने बड़े पैमाने पर देश भर में विरोध होगा। उन्हें लगा था कि बाबरी मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला, तीन तलाक और नोटबंदी आदि की तरह इसे भी लोग मान लेंगे, लेकिन हालात बदल गए।

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