खरी-खरी: हिंदुत्व की राजनीति खुद हिंदू समाज के लिए खतरा

भारतीय समाज की नींव सदा से उदारवादी मान्यताओं पर रखी गई। इसी उदारवादी मान्यता को आज सैक्युलर कहकर फब्तियां कसी जा रही हैं। लेकिन ऐसे में समझना होगा कि ऐसी राजनीति स्वयं हिंदू समाज और देश के लिए खतरा बनती जा रही है।

फोटो : सोशल मीडिया
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ज़फ़र आग़ा

‘यह कहां आ गए हम यूं ही साथ चलते-चलते...’ यह बॉलीवुड की किसी फिल्म का प्रसिद्ध गीत है जो बहुत हद तक आज के भारतवर्ष पर ठीक बैठता है। भारत पिछले छह वर्षों में कहां पहुंच गया है और कितना बदल गया है, यह देखकर हैरत होती है। बल्कि यूं कहूं कि नरेंद्र मोदी के इस ‘न्यू इंडिया’ के बदलाव को देखकर यकीन नहीं आता कि हमारा देश केवल छह वर्षों में इतना बदल सकता है, तो यह कहना कुछ गलत नहीं होगा। आप स्वयं कल्पना कीजिए कि राज्यपाल-जैसे एक संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति स्वयं संविधान की खिल्ली उड़ाए तो आपको इस बात पर हैरत होगी कि नहीं। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को ‘सेक्युलर’ होने का ताना देकर ‘सेक्युलरिज्म’ की जो खिल्ली उड़ाई है, वह न केवल संविधान के लिए अपमानजनक है बल्कि हैरत अंगेज भी है। हम सभी भली भांति जानते हैं कि संघ और बीजेपी को संविधान में ‘सेक्युलर’ शब्द पर घोर आपत्ति है।

सन 1976 में जब से इंदिरा गांधी ने सेक्युलर और सोशलिस्ट शब्द संविधान में जोड़ा, तब से लेकर आज तक संघ और बीजेपी ने इस शब्द पर अपनी आपत्ति जताई है। संघ और बीजेपी हिंदुत्व पर आधारित भारतवर्ष में विश्वास रखते हैं, अतः उनको इस शब्द पर आपत्ति है। इतना ही नहीं, संघ तो एक मनुवादी भारत के निर्माण के पक्ष में है। और उत्तर प्रदेश में संघ के योगी आदित्यनाथ-जैसे सपूत हाथरस-जैसे कांड पर अपनी मनुवादी मानसिकता का प्रदर्शन कर यह भी जता रहे हैं कि वह संघ के विचारों पर आधारित एक मनुवादी हिंदू राष्ट्र बनाने में अग्रसर हैं।

खैर, यह तो रही संघ, बीजेपी, नरेंद्र मोदी और योगी जैसों की बात जिनका ओढ़ना-बिछाना ही हिंदुत्व विचारधारा है। लेकिन उन करोड़ों भारतवासियों को क्या हो गया है जो सदियों से ‘सर्वधर्म संमभाव’ में आस्था रखते थे। गौतम बुद्ध, राम, कबीर, नानक और चिश्ती की यह भूमि क्याआज वही भूमि है जहां मंदिर की घंटियां, मस्जिद की अजान और गुरुद्वारे के शबद-कीर्तन का स्वर एक साथ मिलकर ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम’ की गवाही देता है। आज के भारत में ‘ईश्वर-अल्लाह’ जिस प्रकार दो अलग संज्ञाएं हो चुकी हैं, उसे देखकर तो यह प्रतीत नहीं होता कि यह गौतम बुद्ध, राम, कबीर और चिश्ती का साझा भारत है। यदि यही होता तो ‘तनिष्क’ के विज्ञापन पर भारत में वह बवंडर नहीं उठता जो उठा। जरा सोचिए, एक विज्ञापन में एक हिंदू बहू और एक मुस्लिम सास के एक साथ होने पर मचे हंगामे के बाद तनिष्क कंपनी को अपना विज्ञापन वापस लेना पड़ा, यह ‘ईश्वर-अल्लाह तेरो नाम’ जैसी साझी सभ्यता वाले भारत में आश्चर्यजनक बात है।


लेकिन आज मोदी और योगी के ‘न्यू इंडिया’ में इस देश की सदियों पुरानी मान्यताएं तथा परंपराएं बदली जा रही हैं। आखिर यह कैसा तूफान है कि जिसने इस देश की मानसिकता को केवल छह वर्षों में बदल दिया। गांधी के देश को यह हुआ क्या है कि आज एक मुस्लिम घर की बहू हिंदू नहीं हो सकती है। जब देश में ‘लव-जिहाद’ जैसी राजनीति का डंका बजेगा तो फिर वही होगा जो तनिष्क के एक छोटे-से विज्ञापन पर हुआ। यदि एक देश में एक कंपनी बगैर हिचक के एक ‘विज्ञापन’ भी नहीं दे सकेगी तो फिर उस देश की उन्नति और विकास कैसे होगा। राहुल गांधी ने ठीक ही कहा है कि यही कारण है कि भारत पिछले छह वर्षों में बांग्लादेश से भी पीछे जाने को तैयार है। अतः यह सोचने और चर्चा करने का विषय है कि संघ का हिंदुत्व क्या स्वयं हिंदू समाज के हित में है!

भारत आदिकाल से ही हिंदू प्रधान देश रहा है। जब यहां मुस्लिम शासक रहे, तब भी उन्होंने इस देश की संस्कृति और सभ्यता को बदलने की चेष्टा नहीं की। भले ही संघ आज मुगल शासकों को कुछ भी कहे लेकिन सच यही है कि केवल एक औरंगजेब को छोड़कर मुगल शासक पूरी तरह से भारत के रंग में रंगे थे। उनकी पत्नियां और माताएं हिंदू थीं और वे एक साझा भारत में विश्वास रखते थे। अपने उस दौर में भी भारत हिंदू प्रधान देश रहा। आजादी के बाद से अब तक इस देश की लगभग 80 प्रतिशत जनसंख्या हिंदू ही है। बेचारा मुसलमान जिसके खिलाफ घृणा फैलाकर बीजेपी अपनी राजनीति चमकाती है, उसकी आबादी का तो 99 प्रतिशत हिस्सा रेहड़ी-पटरी लगाकर और पंचर बनाकर अपनी जीविका चलाता है।

अब आप सोचिए कि संघ और बीजेपी ने पिछले छह वर्षों में जिस प्रकार की व्यवस्था चलाई है, उससे किसको सबसे अधिक क्षति पहुंची। पहले नोटबंदी और फिर कठोर लॉकडाउन से भारतीय अर्थव्यवस्था जिस प्रकार से छिन्न-भिन्न हुई, उससे सबसे अधिक नुकसान हिंदू समाज को ही तो हुआ। यदि सौ दुकानें और काम-धंधे इस लॉकडाउन में बंद हुए तो उनमें से कम-से- कम 80 प्रतिशत दुकानें तथा काम-धंधे हिंदुओं के रहे होंगे। इसी प्रकार कहीं से सौ व्यक्ति नौकरियों से निकाले गए तो उनमें से 80 प्रतिशत व्यक्ति हिंदू ही तो होंगे। लब्बोलुआब यह है कि मोदी और योगी की हिंदुत्व राजनीति वास्तव में हिंदू विरोधी राजनीति है जिसका सबसे अधिक खामियाजा आज स्वयं हिंदू समाज भुगत रहा है। अतः यदि यह कहें कि मोदी वास्तविकता में एक हिंदू विरोधी शासक हैं तो निश्चय ही गलत नहीं होगा।


भाजपा शासन से केवल हिंदू समाज ही नहीं बल्कि देश को भी गहरी क्षति पहुंच रही है। इस वित्तीय वर्ष की पहली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था लगभग 24 प्रतिशत माइनस में चली गई। अर्थशास्त्रियों के अनुसार, अगली तिमाही में भारतीय अर्थव्यवस्था को लगभग दस प्रतिशत की हानि और होगी। इन परिस्थितियों में देश उन्नति की दौड़ में कितना पीछे चला जाएगा यह कहना कठिन है। स्पष्ट है कि संघ की हिंदुत्व और मनुवादी राजनीति से हिंदू समाज और देश- दोनों को ही घोर क्षति पहुंच रही है। हाथरस में एक दलित लड़की के साथ बलात्कार के बाद जिस प्रकार केवल उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि राजस्थान, पंजाब, हरियाणा और मध्यप्रदेश में दलित समाज ने सड़कों पर निकलकर अपना आक्रोश प्रकट किया, वह हिंदू समाज के लिए खतरे की एक घंटी है।

इतिहास का नियम है कि कोई भी सामाजिक व्यवस्था सदा एक समान नहीं बनी रह सकती। इस प्रकार जातीय वर्चस्व पर आधारित सामाजिक संरचना को घोर मनुवाद से जितना खतरा है, इतना खतरा तो उसको मंडल राजनीति से भी उत्पन्न नहीं हुआ। यदि उत्तर प्रदेश में हाथरस-जैसे दस और कांड हो जाएं और उन पर शासन का रवैया वैसा ही रहे जो हाथरस में था तो प्रदेश में जातीय हिंसा भड़क उठेगी। क्या यह हिंदू समाज के हित में होगा!

अतः यह स्पष्ट है कि घोर मनुवाद पर आधारित हिंदुत्व की राजनीति वास्तविकता में हिंदू विरोधी राजनीति है। यही कारण है कि इस देश ने सदा से एक उदार समाज में विश्वास रखा है। हिंदू समाज ने कभी भी धर्म आधारित कट्टर राजनीति का चलन नहीं चलाया। यदि ऐसा न होता तो धर्म से जुड़ा ब्राह्मण समाज स्वयं अपने को राजपाठ से अलग नहीं रखता। यही कारण है कि भारतीय समाज की नींव सदा से उदारवादी मान्यताओं पर रखी गई। उसी उदारवादी मानसिकता को आज सेक्युलरवाद की संज्ञा दी जाती है जो भारतीय परंपरा है। यही कारण है कि भारतीय संविधान में सेक्युलर शब्द का इस्तेमाल किया गया।


भले ही कोश्यारी-जैसे बौने कद के लोग आज राजनीतिक कारणों से इस शब्द पर फब्ती कस रहे हों लेकिन उनको यह भंली भांति समझना चाहिए कि उनकी हिंदुत्व की राजनीति अब किसी और के लिए नहीं बल्कि स्वयं हिंदू समाज और देश के लिए खतरा बनती जा रही है। क्योंकि यदि साझी विरासत से जुड़े तनिष्क का एक शोरूम बंद होगा तो उससे जुड़े कम-से-कम चार या पांच हिंदू परिवारों की रोजी-रोटी पर लात पड़ेगी। अतः इस देश का हित केवल सेक्युलर यानी धर्मनिरपेक्ष राजनीति में ही है। यदि हिंदुत्ववादियों ने भारत की इस परंपरा पर गहरा वार किया तो यह भी संभावना है कि यह लड़ाई सड़कों पर उतर पड़े। यह देश और हिंदू समाज, दोनों के हित में नहीं है। अतः कोश्यारी-जैसे बौनों से सावधान जो देश विरोधी और हिंदू विरोधी राजनीति में विश्वास रखते हैं।

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