गांव, गरीब और किसानों की दुहाई वाले बजट में सबसे ज्यादा गाज उन्हीं पर गिरी

अपने चुनावी घोषणा पत्र में बीजेपी ने करदाताओं को राहत देने का वादा किया था। भारी बहुमत के कारण मोदी सरकार पर कोई राजनीतिक दबाव नहीं, लेकिन मौजूदा आर्थिक स्थिति में यह आवश्यक था। इससे मध्यवर्ग को भी राहत मिलती, जो हिंदुत्व और बीजेपी का सबसे बड़ा समर्थक है।

फोटोः सोशल मीडिया
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राजेश रपरिया

गांवों में 2022 तक हर घर में नल से जल का महत्वाकांक्षीलक्ष्यप्रधानमंत्रीमोदी ने तय किया है। असल में पिछले पांच सालों में राष्ट्रीय ग्रामीण जल मिशन की भारी उपेक्षाकी गई है, इसके जिम्मेदार और कोई नहीं बल्किखुद प्रधानमंत्रीमोदी हैं। सरकारी लक्ष्योंके मुताबिक 2017 में ही 35 फीसदी ग्रामीण घरों में नल से जल की आपूर्ति हो जानी चाहिए थी। लेकिन इस योजना के आवंटन में पिछली मोदी सरकार के कार्यकाल में जबरदस्तकटौती की गई। नतीजा यह है किफिलवक्त18 फीसदी ग्रामीण घरों को नल से जल मिल पाता है।

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का पहला बजट मात्र औपचारिकता का बनकर रह गया। सबको पूरी उम्मीद थी कि बजट के माध्यम से वह अर्थव्यवस्था के कमजोर बुनियादी कारकों को सुधारने के लिए शौर्य और पराक्रम दिखाएंगी, पर पूरे बजट भाषण में गांव, गरीब, किसानों की तकलीफों, मध्यम वर्ग की मांगों और अर्थव्यवस्था की गिरती मांग, खपत, निवेश बचत और बेरोजगारी जैसी बुनियादी चुनौतियों से मुंह छिपाती नजर आईं।

बजट और बही-खाता का नया शिगूफा उनकी गले की फांस बन गया। सरकार की तरफ से बताया गया कि वित्त मंत्री ने लाल रंग के कपड़े में बजट दस्तावेज को रखा है। यह भारतीय परंपरा है। यह ब्रिटिश गुलामी से निकलने का प्रतीक है। यह बजट नहीं, बही-खाता है। लेकिन वित्तमंत्री ने अपना पूरा भाषण अंग्रेजी में दिया और ट्रिलियन, बिलियन, मिलियन की विलायती गिनती को अपनाने में उन्हें कोई हिचक नहीं आई। वैसे, भारतीय जनमानस में बही-खाता गरीबों-किसानों के शोषण के हथियार के रूप में ही बसा हुआ है और उनका बही-खाता भी इस अवधारणा को बदलने में विफल ही रहा है।

वित्तमंत्री सीतारमण और प्रधानमंत्री मोदी ने इस बजट को गांव, गरीब और किसानों पर क्रेंदित बताया है। पर बजट में सबसे ज्यादा गाज उन्हीं पर गिरी है। कृषि, ग्रामीण विकास, सामाजिक कल्याण, शिक्षा और स्वास्थ्य पर अंतरिम बजट के प्रावधानों में महज 1149 करोड़ की वृद्धि की गई है, जबकि उत्पाद और कस्टम शुल्क के माध्यम से तकरीबन 70 हजार करोड़ रुपये का नया बोझ उनपर थोप दिया गया है। पेट्रोल-डीजल, कच्चे तेल पर नई शुल्क वृद्धि से तकरीबन 50 हजार करोड़ रुपये सरकार को अतिरिक्त मिलेंगे। जिसकी सबसे तीखी मार गांव गरीब और किसान पर ही पड़नी है, जिन्हें सबसे ज्यादा फौरी राहत की आवश्यकता थी।


गांवों और गरीबों की सामाजिक योजनाओं और कार्यक्रमों में कोई खास वृद्धि नहीं की गई है, बल्कि कई महत्वपूर्ण सामाजिक कार्यक्रमों का आवंटन या तो घटा दिया गया है या उनमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। मोदी सरकार के महत्वाकांक्षी कार्यक्रम प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के आवंटन को साल 2018-19 के बजट अनुमान 19 हजार करोड़ पर ही स्थिर रखा गया है। प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण में मकान निर्माण का लक्ष्य बढ़ा दिया गया है, पर आवंटन कम कर दिया गया है।

2019-22 की अवधि में 1.95 करोड़ मकान निर्माण का लक्ष्य रखा गया है, जबकि पिछले मोदी सरकार के कार्यकाल में 1.54 करोड़ मकानों का निर्माण इस योजना के तहत किया गया। वित्तमंत्री सीतारमण ने बजट में इस योजना के लिए 19 हजार करोड़ रुपये ही आवंटित किए हैं जो बजट 2018-19 में आवंटित राशि 21 हजार करोड़ रुपये से तकरीबन 10 फीसदी कम है। यह बही-खाते के लेखों की अबूझ पहेली है।

गांवों में 2022 तक हर घर में नल से जल का महत्वाकांक्षी लक्ष्य प्रधानमंत्री मोदी ने तय किया है। असल में पिछले पांच सालों में राष्ट्रीय ग्रामीण जल मिशन की भारी उपेक्षा की गई है, इसके जिम्मेदार और कोई नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री मोदी हैं। सरकारी लक्ष्यों के मुताबिक 2017 में ही 35 फीसदी ग्रामीण घरों में नल से जल की आपूर्ति हो जानी चाहिए थी। लेकिन इस योजना के आवंटन में पिछली मोदी सरकार के कार्यकाल में जबरदस्त कटौती की गई।

नतीजा यह हुआ कि फिलवक्त 18 फीसदी ग्रामीण घरों को नल से जल मिल पाता है। आगामी तीन सालों में 82 फीसदी ग्रामीण घरों में नल से पेय जल मोदी सरकार को पहुंचाना है। लेकिन इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए बजट में महज 10 हजार करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं, जो 2009-10 में इस योजना के लिए आवंटित राशि से कम है।


स्वच्छ भारत अभियान प्रधानमंत्री मोदी की पहचान बन गया है। इस अभियान की अभूतपूर्व उपलब्धियां गिनाने में वित्त मंत्री ने कोई कसर नहीं छोड़ी और कहा कि अब इस योजना का विस्तार कर हर गांव में अपशिष्ट प्रबंधन को भी इसमें शामिल किया जाएगा जो अपेक्षाकृत खर्चीला काम है। पर बही-खाते की त्रासदी देखिए, जो अभियान मोदी सरकार का शुभंकर बन गया है, उसके ही बजट आवंटन पर वित्त मंत्री ने कैंची चला दी और उसके आवंटन में जबरदस्त कटौती कर दी है, जो 2018-19 के बजट प्रावधान से 5 हजार करोड़ रुपये कम है।

मनरेगा का जिक्र तक वित्तमंत्री ने बजट भाषण में नहीं किया। इसीलिए उसका आवंटन बढ़ाना वित्त मंत्री सीतारमण भूल गईं। गांवों, किसानों और गरीबों को समर्पित इस बजट की इससे बड़ी विडंबना क्या होगी। सब जानते हैं कि गांवों-कृषि में पसरे संकट में फौरी राहत देने के लिए मनरेगा सबसे ज्यादा कारगर उपाय है। वित्त मंत्रालय खुद कह चुका है कि गिरती मांग, खपत और स्थिर निर्यातों से अर्थव्यवस्था की रफ्तार धीमी हुई है।

अंतरिम बजट के अनुमान से वस्तु और सेवा कर के राजस्व संग्रह में तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये की कटौती पेश बजट में वित्त मंत्रालय ने की है जो गिरती मांग और खपत की पुष्टि करता है। अर्थव्यवस्था में रोजगार और निवेश का संकट इनकम जोर कारकों का स्वाभाविक नतीजा है। पिछले सालों में निवेश गिरा है और सरकारी और निजी निवेश में खासी गिरावट दर्ज हुई है।

जनवरी से जून 2019 की दो तिमाहियों में निजी और सरकारी नयी निवेश परियोजनाओं में भारी गिरावट चौंकाने वाली है। इस अवधि में निजी निवेश का नयी परियोजनाओं में 84 फीसदी और सरकारी निवेश में 80 फीसदी की भारी गिरावट दर्ज हुई है। इसके अलावा बुनियादी ढांचे की विलंबित और अटकी परियोजनाओं में लाखों-करोड़ रुपये अटके हुए हैं।

सरकारी घाटे दबाव के कारण पूंजी खर्च में कोई कारगर वृद्धि वित्त मंत्री नहीं कर पाई हैं। निवेश के उसके हाल पर ही छोड़ दिया गया है। पिछले पांच सालों में सकल स्थायी पूंजी निर्माण दर में आयी गिरावट चिंताजनक है जिसका सीधा असर रोजगार अवसरों पर पड़ा है। लेकिन निवेश बढ़ाने के लिए साहसिक फैसले लेने में यह बजट विफल रहा है।


राष्ट्रीय बचत में पिछले पांच सालों में काफी गिरावट आयी है, खास कर घरेलू बचत में। लेकिन इस बचत को बढ़ाने की कोई कोशिश इस बजट में नहीं की गयी है। इसे बढ़ाने के लिए आयकर छूट सीमा में पर्याप्त बढ़ोतरी और 80 सी बचत की सीमा डेढ़ लाख से बढ़ाने की सख्त जरुरत थी। लेकिन इसमें कोई बदलाव नहीं किया है। इसमें बदलाव के संकेत अंतरिम बजट में दिये गये थे।

वैसे लोकसभा चुनाव के समय अपने चुनावी घोषणा पत्र में बीजेपी ने कर दाताओं को राहत देने का वायदा किया था। भारी बहुमत के कारण मोदी सरकार पर कोई राजनीतिक दबाव नहीं है। पर मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए यह आवश्यक था। इससे मध्यवर्ग को भी राहत मिलती, जो हिंदुत्व और बीजेपी का सबसे बड़ा हामीदार है। लेकिन राष्ट्रवादी मोदी सरकार ने देश में विदेशी बचत के आने के दरवाजे खोल दिए और मध्यम वर्ग को अंगूठा दिखा दिया है। देश में बढ़ती आर्थिक विषमता से विकास का लाभ अधिसंख्यआबादी को नहीं मिल पा रहा है। इससे सतत विकास दर पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इसके बारे में एक शब्द भी वित्त मंत्री ने बजट भाषण में बोलना उचित नहीं समझा।

प्रधानमंत्री का सपना 2024 तक देश की अर्थव्यवस्था को 5 ट्रिलियन डॉलर (लगभग 350 लाख करोड़ रुपये) तक पहुंचाना है। उनकी आकांक्षा आगामी पांच साल में बुनियादी ढ़ांचे पर 100 लाख करोड़, ग्रामीण विकास पर 25 लाख करोड़ और स्वास्थ्य सेवाओं पर 7 लाख करोड़ रुपये खर्च करने की है। लेकिन इसका कोई खाका इस बजट में नहीं दिया गया है। सब हवा में है।

प्रधानमंत्री मोदी ने दावा किया है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना पर चालू वित्त वर्ष में 87 हजार करोड़ रुपये खर्च किये जाएंगे लेकिन बजट में इसके लिए 75 हजार करोड़ रुपये का ही प्रावधान किया गया है। यह सरकार के पेश बही-खाते उर्फ बजट की गंभीरता बताने को पर्याप्त है। कुल मिला कर इस बजट में हल्ला ज्यादा, गल्ला कम है।

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