आकार पटेल का लेख: यूपीए दौर की पुरानी योजनाओं के नए नाम, मोदी सरकार की छवि बनाने का करते हैं काम

हकीकत यह है कि यूपीए शासन में शुरु की गई योजनाओं के नाम अलग-अलग और ऐसे थे कि उन्हें याद रखना मुश्किल था, हालांकि उनके उद्देश्य और लक्ष्य एक जैसे ही थे। मोदी सरकार की योजनाओं के नाम आकर्षक हैं क्योंकि वह इस तरीके से अपनी छवि चमकाने का काम भी करते हैं।

पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक कार्यक्रम के दौरान (फाइल फोटो : Getty Images)
पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक कार्यक्रम के दौरान (फाइल फोटो : Getty Images)
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आकार पटेल

कांग्रेस नेता शशि थरूर ने जब एक ट्वीट में लिखा था कि बीजेपी सिर्फ कांग्रेस की 23 योजनाओं के नाम भर बदल रही है, और कहा था कि मोदी सरकार सिर्फ ‘नाम बदलने वाली’ सरकार है न कि बदलाव करने वाली सरकार, तो उनके इस दावे की पड़ताल की गई। पड़ताल में सामने आया कि उनका दावा कम से कम 19 योजनाओं को लेकर एकदम सही था।

पता चला कि प्रधानमंत्री जनधन योजना तो यूपीए सरकार की बेसिक सेविंग बैंक डिपाजिट अकाउंट, बेटा बचाव, बेटी पढ़ाओ योजना तो बिल्कुल वैसी ही हैं जैसी कि राष्ट्रीय बालिका दिवस कार्यक्रम था। ऐसे ही दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना तो राजीव ग्रामीण विद्युतीकरण योजना है, अटल मिशन फॉर रिजुविनेशन एंड अर्बन ट्रांसफॉर्मेशन तो जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन का नया नाम है। बीजेपी की नीम-कोटेड यूरिया और स्वाइल हेल्थ कार्ड योजना तो नेशनल प्रोजेक्ट ऑन मैनेजमेंट ऑफ स्वाइल एंड फर्टिलिटी की कॉपी है, अटल पेंशन योजना स्वाभिमान योजना का नया नाम है और यहां तक कि मोदी की प्रमुख योजना मेक इन इंडिया तक नेशनल मैन्यूफैक्चरिंग पॉलिसी (एनएएपी) का नया नाम है।

और पुरानी योजना के सिर्फ नाम ही नहीं बदले गए थे, बल्कि तमाम योजनाओं में नीति मानक तक पुरान योजनाओं के नीति मानकों से कॉपी कर लिए गए थे। इनकी जानकारी तो डिपार्टमेंट ऑफ प्रोमोशन ऑफ इंडस्ट्री एंड इंटरनल ट्रेड के प्रेस नोट (2011) और मेक इन इंडिया की वेबसाइट की तुलना करने से मिल सकती है। यूपीए सरकार की एनएमपी योजना में कहा गया था कि, ‘एक दशक के भीतर राष्ट्रीय जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी को 25 फीसदी तक बढ़ाना और 10 करोड़ नौकरियां पैदा’ लक्ष्य है।

मेक इंडिया में भी कहा गया है कि, ‘देश की जीडीपी में मैन्यूफैक्चरिंग की हिस्सेदारी 25 फीसदी तक बढ़ाना और 2022 तक अतिरिक्त 10 करोड़ नौकरियां पैदा करना’ लक्ष्य है। यूपीए की एनएमप में कहा गया था कि, ‘इससे मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ मध्य अवधि में 12-14 फीसदी की दर से बढ़ेगी।’ मेक इन इंडिया में भी कहा गया है कि, ‘मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ मध्य अवधि में 12-14 फीसदी की दर से बढ़ेगी।’ एनएमपी में कहा गया था कि नीति को 'विकास को समावेशी बनाने के लिए ग्रामीण प्रवासियों और शहरी गरीबों के बीच उचित कौशल के निर्माण' की आवश्यकता है। मेक इन इंडिया का कहना है कि उसे 'समावेशी विकास के लिए ग्रामीण प्रवासियों और शहरी गरीबों के बीच उचित कौशल के निर्माण' की आवश्यकता है।’


यूपीए की एनएमपी नीति कहती है कि इससे 'विनिर्माण में घरेलू मूल्यवर्धन और तकनीकी गहराई बढ़ेगी।' मेक इन इंडिया का कहना है कि इससे 'घरेलू मूल्यवर्धन और तकनीकी गहराई बढ़ेगी।' वास्तव में, मेक इन इंडिया वेबसाइट न केवल कांग्रेस योजना को ही दर्शाती है, बल्कि एक डाउनलोड लिंक के जरिए पाठकों को पुरानी नीति के 2011 दस्तावेज़ तक भी ले जाने की असफल कोशिश करती है।

अन्यत्र देखें तो डिजिटल इंडिया भी पुरानी नेशनल ई-गवर्नेंस प्लान की कॉपी है। स्किल इंडिया पुराने नेशनल स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम की छवि है, मिशन इंद्रधनुष भी यूनिवर्सल इम्यूनाइजेशन प्रोग्राम (सर्वांगीण टीकाकरण कार्यक्रम) की कॉपी है। इसी तरह पहल (PAHAL) भी पुरानी एलपीजी के लिए डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की कॉपी है।

इसी प्रकार राजीव आवास योजना का नाम सरदार पटेल नेशनल अर्बन हाउसिंग मिशन रखा गया तो उस समय के आवास और गरीबी उन्मूलन मंत्री वेंकैया नायडू ने दावा किया कि 2022 तक सबको घर मिलेगा। बाद में पिनाकी मिश्रा की अगुवाई वाली संसदीय कमेटी ने जब सरकार से पूथा कि सिर्फ नाम बदलने से योजना के क्रियान्वयन में तेजी कैसे आएगी। लेकिन इसके बारे में ज्यादा रिपोर्ट सामने नहीं आईं।

हकीकत यह है कि यूपीए शासन में शुरु की गई योजनाओं के नाम अलग-अलग और ऐसे थे कि उन्हें याद रखना मुश्किल था, हालांकि उनके उद्देश्य और लक्ष्य एक जैसे ही थे। मोदी सरकार की योजनाओं के नाम आकर्षक हैं क्योंकि वह इस तरीके से अपनी छवि चमकाने का काम भी करते हैं।

एक मित्र ने इस तरफ ध्यान दिलाया कि मोदी की ऐसी योजनाएं जो अमीरों को आकर्षित करने के लिए हैं उनके अंग्रेजी नाम हैं, जैसे डिजिटल इंडिया, स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया आदि, और इनसे एक आकांक्षा भी झलकती है। लेकिन गरीबों के लिए बनी योजनाओं के नाम हिंदी में हैं, जैसे उज्जवला योजना, स्वच्छ भारत अभियान, बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाव, जनधन, गरीब कल्याण, पीएम किसान, मुद्रा योजना आदि, इनकी ब्रांडिंग में प्राथमिकताओं का ध्यान रखा गया है।

लेकिन सारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर पर्याप्त प्रयास नहीं किए गए हैं। मेक इंडिया का लक्ष्य 2022 से खिसकाकर 2025 कर दिया गया, क्योंकि भारत में मैन्यूफैक्चरिंग की कमर टूट गई है, साथ ही जहां इसे 2014 में 16 फीसदी से बढ़ाकर 2022 तक 25 फीसदी करने का लक्ष्य था, वहीं 2023 में अभी भी यह 13 फीसदी पर ही है। वैसे मेक इन इंडिया का लोगो भी काफी आकर्षक है।


भले ही शशि थरूर ने ईमानदारी और साफ दिल से कहा हो कि योजनाओं की निरंतरता अच्छी बात है (वैसे मनमोहन सिंह ने योजनाओं के नाम बदलने पर कुछ नहीं कहा था), लेकिन बीजेपी तो इन सारी योजनाओं का विरोध तरह-तरह से करती रही है। विशेष रूप से यूपीए सरकार की यूनीक आइडेंटिटी योजना – आधार योजना का तो बीजेपी ने खुला विरोध किया है।

2014 के लोकसभा चुनाव में प्रचार के दौरान 12 मार्च 2014 को टाइम्स ऑफ इंडिया की एक हेडलाइन थी, “आधार एक घोटाला है, सत्ता में आए तो इसकी समीक्षा होगी - बीजेपी” बीजेपी ने आरोप लगाया था कि आधार एक आपराधिक कार्यक्रम है और वह इसकी सीबीआई से जांच कराएगी। बेंग्लोर में कांग्रेस प्रत्याशी और आधार बनाने वाले नंदन निलेकनी के खिलाफ प्रचार के दौरान बीजेपी नेता मीनाक्षी लेखी ने कहा था, “गैरकानूनी प्रवासियों को देश में नियमित करने के लिए यह एक खतरनाक कार्यक्रम है। क्या भारत माता गैरकानूनी घुसपैठियों के लिए इतनी आतुर है? आधार सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का भी उल्लंघन है।” उन्होंने आगे कहा था कि, “जिन लोगों ने इसके लिए रजिस्ट्रेशन कराया है उनका बायोमेट्रिक डेटा देश से बाहर स्टोर किया जा रहा है।” नंदन निलेकनी के प्रतिद्वंदी अनंत कुमार (इनकी जीत हुई थी) ने भी कहा था, “आधार इस देश का सबसे बड़ा घोटाला है।”

अगले ही महीने अनंत कुमार ने कहा था कि बीजेपी आधार खत्म कर देगी। मोदी ने भी खुद आधार के खिलाफ तमाम बयान दिए थे, यहां तक कहा था कि इस पर पैसा बरबाद किया गया। नरेगा के बारे में भी कहा था कि इस योजना को कांग्रेसियों की जेब में पैसा पहुंचाने के लिए शुरु किया गया है। यह भी कहा था कि सूचना के अधिकार का कानून भी बेकार है।

लेकिन अब तथ्य यह है कि मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने न सिर्फ आधार को अपनाया, बल्कि इसे तमाम भारतीयों पर उनकी इच्छा-अनिच्छा के बीच थोपा, इसी तरह एनडीए ने देश की उन कल्याणकारी योजनाओं का विस्तार किया जिसे उन्होंने पिछली सरकार से विरासत में हासिल किया था, बस नाम बदलकर यह दिखाया कि इन्हें तो उनकी सरकार ने शुरु किया है।

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