चीनी औद्योगिक निवेशक देश की वित्तीय और सामरिक स्थिरता के लिए बड़ा खतरा, जल्द सख्त कदम उठाने की जरूरत

सरकार ने बेशक चीनी कंपनियों पर तमाम तरह की रोक लगा रखी हो लेकिन हकीकत तो यह है कि ये तेजी से भारत में अपना विस्तार कर रही हैं जबकि भारतीय व्यवसायों को चीन में पैर जमाने में काफी मुश्किल हो रही है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया
user

नांटू बनर्जी

तथाकथित सरकारी प्रतिबंधों के बावजूद जिस तरह भारत में चीनी निवेश बढ़ता जा रहा है, वह जासूसी गुब्बारों के भारतीय आकाश में उड़ने और भारतीय जल क्षेत्र के करीब चीन के जासूसी जहाजों के मडराने से कहीं ज्यादा खतरनाक है।

ये चीनी औद्योगिक निवेशक देश की वित्तीय और सामरिक स्थिरता के लिए बड़ा खतरा हैं। पाकिस्तान और अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमरा रही है और ऐसे में लगता है कि चीन भारत में अपनी मौजूदगी को मजबूत करने के लिए बेताब है। चीन को भारत से होने वाला लाभ तेजी से बढ़ रहा है। ऐसी तमाम चीनी कंपनियां हैं जो भारत के नियम-कानूनों को धता बता रही हैं जबकि भारतीय कंपनियों को चीन में पैर जमाने में भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। 

भारत सरकार को बताना चाहिए कि चीन में स्वतंत्र रूप से कितनी भारतीय कंपनियां पंजीकृत हैं, चीन में कितनी कंपनियों के निदेशक मंडल में भारतीय हैं और चीन में मौजूद भारतीय कंपनियों की कितनी कमाई हुई और उन्होंने कितने पैसे भारत भेजे। 

भारत में विदेशी कंपनियां लाभांश, शेयर बायबैक, पूंजी भागीदारी घटाकर, तकनीकी सेवाओं की फीस, परामर्श सेवाओं या व्यापार सहायता सेवाओं की फीस और रॉयल्टी के माध्यम से लाभ और अन्य आय को कानूनन अपने गृह देश भेज सकती हैं। चीनी निवेशक इन्हीं प्रावधानों का भरपूर फायदा उठा रहे हैं।

इस साल के शुरू में सरकार ने एक बयान में कहा था कि ऐसी कई भारतीय कंपनियां हैं जिनके निदेशक चीनी हैं। लोकसभा में एक लिखित जवाब में कॉर्पोरेट मामलों के राज्यमंत्री राव इंद्रजीत सिंह ने कहा कि 174 चीनी कंपनियां हैं जो देश में विदेशी कंपनियों के रूप में पंजीकृत हैं और यहां कारोबार कर रही हैं। मंत्री ने बताया कि आधिकारिक डेटाबेस के मुताबिक, ‘भारत में 3,560 कंपनियां हैं जिनमें चीनी निदेशक हैं। चीनी निवेशकों/शेयरधारकों वाली कंपनियों की संख्या बताना संभव नहीं है क्योंकि कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय के सिस्टम में इस तरह की जानकारी अलग से नहीं रखी जाती।’ कॉरपोरेट डेटा मैनेजमेंट (सीडीएम) पोर्टल को मंत्रालय द्वारा इन-हाउस डेटा एनालिटिक्स और बिजनेस इंटेलिजेंस यूनिट के रूप में विकसित किया गया है।


सरकार ने कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत कुछ नियमों और निर्धारित फॉर्म के स्वरूप में संशोधन किया था ताकि कंपनियों के गठन, निदेशकों की नियुक्ति, प्रतिभूतियों के जारी करने और हस्तांतरण को नियमित करने और भारत के साथ जमीनी सीमा लगने वाले चीन जैसे देशों से जुड़े मामलों में समझौतों, सहमति और विलय आदि पर नजर रखी जा सके। 

मंत्री ने कहा कि ‘इन संशोधनों के माध्यम से इन कंपनियों के लिए विदेशी मुद्रा प्रबंधन (गैर-ऋण इंस्ट्रूमेंट) नियम, 2019 के तहत ली गई मंजूरी या भारत सरकार के गृह मंत्रालय से प्राप्त सुरक्षा क्लीयरेंस के बारे में जानकारी देना जरूरी हो गया है।’ हालांकि यह साफ है कि कंपनी अधिनियम में किए गए ये बदलाव वांछित उद्देश्यों (खास तौर पर चीन के संदर्भ में) को पाने में विफल रहे हैं। चीन के व्यवसायी ऐसे नियमों को बड़ी होशियारी से धता बता दे रहे हैं। उन्होंने अपने उद्देश्यों को पूरा करने के लिए भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था और बेईमान बिचौलियों का फायदा उठाया है। 

अधिनियम में संशोधन के बाद उम्मीद तो यह थी कि नए विदेशी निवेश नियमों की अनदेखी करने वाली चीनी कंपनियों, कॉर्पोरेट अधिकारियों और सर्विस प्रफेशनल पर सरकार कड़ी निगरानी रखेगी। सरकार ने कानून प्रवर्तन एजेंसियों और नियामकों को निर्देश दे रखा है कि सुरक्षा कारणों के मद्देनजर भारत में कारोबार करने वाली चीनी कंपनियों से जुड़े कर चोरी या सीमा शुल्क चोरी के मामलों की जांच करते समय एक दूसरे के साथ अपनी जानकारी साझा करें। पिछले साल आयकर अधिकारियों ने हुआवेई की भारत इकाई पर चीन में मूल कंपनी को अपनी कर योग्य आय कम करने के लिए 750 करोड़ रुपये भेजने का आरोप लगाया था। इससे पहले, चीनी फोन निर्माता वीवो पर भारत में टैक्स बचाने के लिए 2017 और 2021 के बीच अपने कारोबार का लगभग 62,476 करोड़ रुपया चीन भेजने का आरोप लगा था।

चीन के व्यापारिक घराने और निवेशक भारत सरकार के नए नियम-कायदों के प्रति अड़ियल रवैया दिखा रहे हैं। वे लालची स्थानीय ग्राहकों और चार्टर्ड एकाउंटेंट सहित बेईमान सेवा प्रदाताओं की मदद से सिस्टम को भ्रष्ट कर रहे हैं। चीनी निवेशक भारत के कई तथाकथित ‘शुद्ध शहद’ बॉटलर्स को सप्लाई करने के लिए भारत में चीनी सिरप इकाइयां स्थापित कर रहे हैं। औद्योगिक क्षेत्र में भी चीनी निवेश बढ़ रहा है। भारत ने 29 जून, 2022 तक चीनी संस्थाओं से जुड़े 80 से अधिक एफडीआई प्रस्तावों को मंजूरी दी थी। भारत द्वारा चीन से एफडीआई पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद से सरकार को चीनियों से संबंधित इकाइयों की ओर से 380 से ज्यादा प्रस्ताव मिले हैं। 

चीनी कंपनियां कथित तौर पर अपनी सरकार और व्यवसाय के फायदे के लिए बड़ी मात्रा में भारतीयों का निजी डेटा इकट्ठा कर रही हैं। कई चीनी कंपनियां हाल ही में कर चोरी और अन्य वित्तीय गैर-अनुपालन के लिए सरकारी जांच के दायरे में आई हैं। अप्रैल, 2022 में सरकार ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, कॉस्ट एंड वर्क्स अकाउंटेंट्स और कंपनी सेक्रेटरीज (संशोधन) विधेयक पारित किया जिसे भारत में चीनी निवेश को रोकने के प्रयास के रूप में देखा गया। 


केन्द्र सरकार ने स्थापित नियमों में हेरफेर करके चीनी शेल कंपनियों को भारत में रजिस्टर होने में मदद करने के लिए करीब 400 चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और कंपनी सेक्रेटरी के खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की है। ऐसी खबर है कि इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया ने 200 से अधिक चार्टर्ड अकाउंटेंट्स को अनुशासनात्मक नोटिस जारी किए हैं जिन्होंने चीनी कंपनियों को अपनी भारतीय सहायक कंपनियों और शेल कंपनियों के जरिये कंपनी अधिनियम 2013 के प्रावधानों को बाईपास करने में मदद की। कॉर्पोरेट मंत्रालय ने दिल्ली और हरियाणा में कंपनी रजिस्ट्रार को करीब 100 चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और कंपनी सचिवों के खिलाफ कार्रवाई का निर्देश दिया है। यह कदम कथित पेशेवर कदाचार और 174 चीनी कंपनियों की गैरकानूनी गतिविधियों से जुड़ा था। अब समय आ गया है कि सरकार को पारस्परिक आधार पर चीन के साथ अपनी निवेश और व्यापार नीतियां तैयार करनी चाहिए। यह याद रखना दिलचस्प है कि भारत में चीनी निर्यात और निवेश का तेजी से बढ़ना 2017 में शुरू हुआ क्योंकि इसी दौरान अमेरिका और यूरोपीय में चीनी सत्तावादी शासन व्यवस्था के कारण चीन का निवेश गिर रहा था। 

आधिकारिक तौर पर, भारत ने 1962 के बाद जून, 2020 में सबसे बुरे सीमा संघर्ष के बाद चीन के साथ रिश्तों को बर्फ में डाल दिया है। संघर्ष के बाद, भारत ने चीन को सरकारी निविदाओं में भाग लेने से रोक दिया, देश में निवेश करने वाली चीनी कंपनियों को मंजूरी लेने के लिए मजबूर किया और दर्जनों चीनी ऐप्स पर प्रतिबंध लगा दिया। 

फिर भी, ऐसा लगता है कि चीन के साथ भारत के बढ़ते आयात और भारत में चीनी व्यावसायिक गतिविधियों पर उनका बहुत कम प्रभाव पड़ा है। इससे पहले कि बहुत देर हो जाए भारत में बढ़ते चीनी व्यापार विस्तार के बारे में चिंतित होना चाहिए। (आईपीए सेवा)

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia