कोरोना वायरसः गोमूत्र से इलाज के दावों से हालात बदतर ही होंगे, सरकार को ईमानदारी से मुकाबले को तैयार होना होगा

कोरोना वायरस की चपेट में 73 से ज्यादा देश हैं और 90 हजार से अधिक लोग इससे संक्रमित हैं। चीन में इससे मरने वालों की संख्या 3,000 पार कर गई है। अब वहां इसका असर घट रहा है, लेकिन भारत समेत दुनिया के दूसरे भागों में इसका प्रसार बढ़ रहा है और संक्रमण फैल रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
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एम सोमशेखर

ऐसे में जब कोरोना वायरस- कोविड-2019 ने ड्रैगन को पानी पिला रखा है और पूरी दुनिया के 70 से अधिक देश इसकी चपेट में हैं, तब भारत ने खानापूर्ति के लिए एक हल्की सी चेतावनी भर जारी करके अपनी जिम्मेदारी निभा दी! सोचने की बात इसलिए है कि चीन ने जहां इससे निपटने में अपनी पूरी ताकत लगा दी है, भारत ने बड़े पैमाने पर एहतियाती कदम उठाने के प्रति भी गंभीरता नहीं दिखाई है। यह निश्चित तौर पर चिंता की बात है, क्योंकि एक तो हमारे यहां अचानक आई किसी महामारी से निपटने का इन्फ्रास्ट्रक्चर नहीं है और दूसरी अहम बात यह है कि जब इटली जैसे देश पर वायरस का प्रकोप बढ़ता जा रहा है, जहां आबादी घनत्व काफी कम है, तो भारत का क्या हाल होगा, जहां आबादी इतनी सघन है।

पहले तो भारत में सोशल मीडिया पर जिस तरह की तस्वीरें और वीडियो धड़ल्ले से शेयर किए जा रहे थे, उन्हें देखकर यही कहा जा सकता है कि लोग भी इसे हल्के में ले रहे थे। लेकिन जैसे-जैसे संक्रमण ने चीन के वुहान से बाहर पैर पसारा और यात्रियों के जरिये दूसरे इलाके के लोगों को चपेट में लेने लगा, भारत में भी लोगों को डर लगने लगा। फरवरी के पहले हफ्ते में 645 भारतीयों को हुबेई और वुहान से निकाला गया। वुहान से निकाले जाने वाले ज्यादातर छात्र थे। एहतियात के तौर पर इन लोगों को अलग रखकर इनके स्वास्थ्य की निगरानी की गई, ताकि इनके साथ अगर संक्रमण आया भी हो तो उसकी चपेट में और लोग न आएं।

केरल के पहले दो मामलों के अलावा संदिग्धों की देखरेख भी अच्छे तरीके से की गई। एहतियात के तौर पर यही सब करना चाहिए था। लेकिन तब की स्थिति और थी और आज की और है। मार्च आते ही वायरस ने विकराल रूप ले लिया है और इसने तमाम महादेशों में खौफ का माहौल बना दिया है। 4 मार्च को यह रिपोर्ट फाइल किए जाने तक कोरोना वायरस की चपेट में 73 देश आ चुके हैं और 90 हजार से ज्यादा लोग इससे संक्रमित हो चुके हैं। दुनिया भर में 3,115 लोगों की इससे मौत हो चुकी है।

दुनिया भर को जिस तरह से वायरस ने गिरफ्त में लिया, उससे भारतीयों में भी खौफ पैदा हुआ है। इसी का नतीजा है कि दिल्ली से सटे नोएडा के दो स्कूलों को गैर-आधिकारिक रूप से एक हफ्ते के लिए बंद करने को मजबूर किया गया। चालीस छात्रों को 28 दिन के लिए अलग रखकर उनके स्वास्थ्य की निगरानी का फैसला किया गया।

वैसे भी, मार्च में कम से कम तीन लोगों में कोरोना वायरस की पुष्टि हो चुकी है। इनमें से एक दुबई से हैदराबाद आया, एक वियना से दिल्ली और एक इटली से जयपुर। इसके अलावा दो दर्जन से ज्यादा संदिग्ध मामले सामने आए हैं। विभिन्न देशों से लौटे कर्मचारियों को कंपनियां फिलहाल अपने घर से ही काम करने को कह रही हैं। संदेह नहीं कि भारत में यह वायरस पैर फैला रहा है और आने वाले दिनों में क्या होगा, इसका अंदाजा ही लगाया जा सकता है।


विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रमुख डॉ. टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने कहा कि संक्रमण नई जगहों को अपनी चपेट में लेता जा रहा है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही है कि आंखों से आंखों मिलाकर खड़ी इस चुनौती का सामना करने के लिए हम कितने तैयार हैं, खास तौर पर उस स्थिति में जब यह महामारी की शक्ल अख्तियार कर लेता है। हमारी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था और सरकारी मशीनरी क्या जरूरी सुरक्षात्मक उपायों से लैस है?

बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी के जाने-माने वायरोलॉजिस्ट प्रोफेसर सुनित सिंह कहते हैं कि कोविड- 2019 की अब तक न तो कोई दवा है और न ही टीका, ऐसे में सबसे अच्छा उपाय ऐहतियात और हेल्थकेयर प्रबंधन ही है। किसी भी वायरस का अध्ययन करना और जल्दी से जल्दी उसकी काट खोजना ही उपाय है। प्रो. सिंह कहते हैं कि एयरोसोल के जरिये संक्रमित होने वाले रोगजनन को समझने के लिए बायोसेफ्टी लेवल- 3 की सुविधा जरूरी है और अभी यह करीब 10 केंद्रों में ही है। पुणे की नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) फिलहाल पीसीआर (पॉलीमरेजचेन रिऐक्शन) किट से परीक्षण करने वाली प्रमुख प्रयोगशाला है।

इसके अलावा गिनती के बड़े सरकारी और कॉरपोरेट अस्पतालों में ही आइसोलेशन वार्ड, स्क्रीनिंग और एहतियाती उपचार की सुविधा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) एनआईवी और अन्य 14 नेटवर्क प्रयोगशालाओं के साथ मिलकर लैब की सुविधा मुहैया करा रही है। अगर जरूरत पड़ी तो इसका विस्तार करके 50 प्रयोगशालाओं को इसमें शामिल किया जा सकता है। केंद्र सरकार का दावा है कि इसके लिए कंट्रोल रूम बनाया गया है, जो चौबीसों घंटे सक्रिय है और यही कॉल सेंटर का भी काम कर रहा है।

जो भी दावा किया जाए, लेकिन भारत की हकीकत किसी से छिपी नहीं है। हेल्थकेयर से जुड़े तमाम विशेषज्ञों का कहना है कि जब डेंगू, चिकनगुनिया, वायरल बुखार फैलता है तो सरकारी और कॉरपोरेट अस्पतालों का दम उसी से फूलने लगता है और ऐसे में समझा जा सकता है कि अगर कोविड-2019 ने महामारी का रूप धरा तो हमारी व्यवस्था उससे निपटने में कितनी कारगर होगी। तब सबसे बड़ी चुनौती होगी संक्रमण की श्रृंखला को तोड़ने की, क्योंकि जब संक्रमण हो रहा हो तो सारी कोशिशों का पहला उद्देश्य यही होता है कि इसे और फैलने से रोका जाए, लक्षणों को लेकर अफवाहों के दुश्चक्र को तोड़ा जाए।


मौजूदा समय में कोरोना वायरस का आरंभिक लक्षण सामान्य सर्दी-जुकाम है। ऐसे में सरकार की पहली जिम्मेदारी है कि वायरस के बारे में लोगों में जागरुकता फैलाए, इसके बचाव के उपायों का प्रचार-प्रसार करे, क्योंकि अगर अफरा-तफरी मची तो सर्दी-जुकाम की शिकायत लेकर जितनी बड़ी संख्या में लोग अस्पतालों का रुख करने लगेंगे, उन्हें संभालना मुश्किल ही नहीं, असंभव हो जाएगा।

एक और बात पर गौर करना चाहिए। इटली और ऑस्ट्रिया जैसे यूरोपीय देशों में भी वायरस बड़ी तेजी से फैला, जबकि वहां आबादी घनत्व बहुत कम है, लेकिन भारत में तो आबादी घनत्व बहुत अधिक है। लिहाजा, अगर भारत में संक्रमण तेजी से फैलने लगा तो क्या होगा इसका अंदाजा सहज ही लगाया जा सकता है। ऐसे वक्त लोगों को जागरुक करना जरूरी है लेकिन कुछ तथाकथित विशेषज्ञों के इस तरह के अपुष्ट दावे से कि इसका गोमूत्र से इलाज होता है, हालात और खराब ही होंगे। उत्तर प्रदेश में कुछ जगहों पर स्वाइन फ्लू फैला हुआ है और इस कारण और अफरातफरी मच सकती है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का भी यह कहना कि यह तो बस एक फ्लू है, अपने-आप में अजीब है।

इस मामले को सुनीता कृष्णन के उदाहरण से समझिए। पद्मश्री से सम्मानित सुनीता प्रज्वला नाम का एनजीओ चलाती हैं। 2 मार्च को वह थाईलैंड से लौटीं तो उन्हें सर्दी-जुकाम था और वह सिकंदराबाद के गांधी अस्पताल गईं। उन्होंने ट्वीट करके जानकारी दी कि उन्हें जरूरी जांच के लिए काफी देर इंतजार करना पड़ा। वह तो अच्छा हुआ कि उन्हें वायरस का संक्रमण नहीं था, अन्यथा सोचिए क्या होता?

संक्रमण फैलने पर एन-75 मास्क, परीक्षण किट और सर्जिकल उपकरणों की भी जबर्दस्त किल्लत होगी। कागजों में हम बेशक सक्षम हो सकते हैं, लेकिन वक्त पड़ने पर भी क्या ये आवश्यक मात्रा में उपलब्ध हों पाएंगे, इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है। 2014 में इबोला वायरस के फैलने पर हम ने उन सभी 21 हवाईअड्डों पर स्क्रीनिंग की व्यवस्था की थी, जहां विदेशी उड़ानें आती थीं। इसके अलावा विभिन्न देशों के जहाजों से भारत की धरती पर उतरने वाले हर व्यक्ति की जांच के लिए छह बंदरगाहों पर भी व्यवस्था थी, लेकिन अगर आज वैसा ही करना चाहें तो हमें सैकड़ों गुना अधिक प्रशिक्षित लोगों की जरूरत होगी, क्योंकि बाहरी देशों से हवाई या समुद्री मार्ग से आने वालों के एंट्री प्वाइंट काफी बढ़ गए हैं ।

स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्द्धन कहते हैं, “हमारे मंत्रालयों के बीच बेहतर समन्वय है, निगरानी व्यवस्था पक्की है, परीक्षण के लिए प्रयोगशालाओं का नेटवर्क है, अब चिकित्सा सुविधा भी पहले से बेहतर है, अब हमारे पास प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी हैं, जो दूर-दराज में भी पहुंच सकते हैं। हमने संक्रमित लोगों के उपचार और वायरस को रोकने की व्यवस्था कर रखी है।”

इसके साथ ही हर्षवर्द्धन ने राज्यों, खास तौर पर केरल की व्यवस्था की तारीफ की। इत्तेफाक से निपाह वायरस के फैलने पर केरल ने इसकी रोकथाम बड़े कारगर तरीके से की थी। गौर करने की बात है कि चीन को गिरफ्त में लेने के बाद कोविड-2019 ने भारत पर एक तरह से रहम ही कर रखी थी लेकिन लगता यही है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाले इस देश की किस्मत भी अब उसका साथ छोड़ रही है। लगभग 134 करोड़ खौफजदा लोगों की नजर आने वाले चंद हफ्तों पर टिकी है कि देखें उनकी किस्मत में क्या बदा है।

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