क्रिकेट को भी तबाह कर सकता है जलवायु परिवर्तन, नहीं कुछ किया गया तो निकर में खेलते दिखेंगे खिलाड़ी 

ब्रिटेन के अनेक खेल विशेषज्ञों और जलवायु परिवर्तन से जुड़े विशेषज्ञों ने कुछ हफ्ते पहले ‘हिट फॉर सिक्स’ नाम से एक रिपोर्ट जारी किया है, जिसमें जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि से क्रिकेट पर पड़ने वाले प्रभावों, भविष्य की चुनौतियों और कई सुझावों का वर्णन है।

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के कारण पूरी दुनिया में बहुत सारी धारणाएं और परंपराएं बदल रहीं हैं। जाहिर है, खेल भी इससे अछूते नहीं रहेंगे। क्रिकेट तो सबसे लंबे समय तक खुले मैदान में खेला जाता है, इसलिए बारिश और तापमान का सीधा असर खिलाड़ियों पर होता है। बारिश के समय तो खेल रोक दिया जाता है, लेकिन अचानक बढ़े तापमान के समय इस खेल को बीच में रोकने की परंपरा नहीं है। ब्रिटेन के अनेक खेल विशेषज्ञों, विचारकों और जलवायु परिवर्तन से संबंधित विशेषज्ञों ने कुछ सप्ताह पहले “हिट फॉर सिक्स” नाम से एक रिपोर्ट पेश किया है। इस रिपोर्ट में जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि से क्रिकेट पर पड़ने वाले प्रभावों, भविष्य की चुनौतियों और अनेक सुझावों का विस्तार से वर्णन है।

इस रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण सुझाव है कि क्रिकेट खिलाड़ियों को भी अन्य खेलों की तरह निकर पहनने की छूट दी जाने चाहिए। क्रिकेट के खेल में अनेक महत्वपूर्ण बदलाव की जरूरत है जिससे खिलाड़ियों के शरीर का ऊष्मीय बोझ कम किया जा सके। इससे खिलाड़ियों की दक्षता में बढ़ोत्तरी होगी। हेल्मेट्स, लेग पैड्स और ग्लव्स में भी ऐसे बदलाव की आवश्यकता है, जिससे खिलाड़ी अतिरिक्त गर्मी से राहत पा सकें।

यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ स्थित एक्सट्रीम एनवायर्नमेंटल लेबोरेटरी में विशेषज्ञ प्रोफेसर माइक तिप्तों के अनुसार क्रिकेटर लंबे समय तक बिना किसी छाया के ही मैदान पर सक्रिय रहते हैं, ऊपर से सूर्य चमकता रहता है। ये खिलाड़ी हमारे अनुमान से अधिक व्यायाम करते हैं और एक घंटे तक पिच पर टिका रहने वाला बल्लेबाज 8 किलोमीटर से अधिक की दौड़ लगा लेता है। लगातार सक्रिय रहने पर शरीर से गर्मी तो निकलती ही है, जिससे खिलाड़ी जूझते रहते हैं, इसके साथ ही ये खिलाड़ी कपडे, पैड, ग्लव्स और हेलमेट की गर्मी की मार भी बर्दाश्त करते रहते हैं।

इस गर्मी से खिलाड़ियों की दक्षता पर तो असर पड़ता ही है, उनका मनोविज्ञान भी बदल जाता है। साल 2017 में इंग्लैंड के कप्तान जो रूट को सिडनी में बल्लेबाजी के बीच में ही अत्यधिक गर्मी के कारण मैदान से बाहर जाना पड़ा था। उस समय मैदान का तापमान 43 डिग्री सेल्सियस से अधिक पहुंच गया था।


रिपोर्ट में बताया गया है कि पूरी दुनिया में जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि का प्रभाव स्पष्ट हो रहा है। अब तो सामान्य नागरिक भी इसके विरुद्ध आवाज बुलंद करने लगे हैं। पर, समस्या यह है कि कोई क्रिकेट खिलाड़ी या फिर किसी देश की क्रिकेट संस्था इस विषय पर बात नहीं कर रही है। ऐसी स्थिति में क्रिकेट में कोई बदलाव हाल फिलहाल में नजर नहीं आ रहा है। दुनिया भर में साल-दर-साल तापक्रम के रिकॉर्ड टूटते जा रहे हैं, गर्मी का समय बढ़ता जा रहा है।

मेलबोर्न में अभी प्रत्येक वर्ष 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक वाले 9 दिन होते हैं, पर अगली शताब्दी तक प्रत्येक वर्ष 26 से अधिक दिन बहुत गर्म होने की संभावना है। एडिलेड और पर्थ में साल 2030 तक 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म दिनों में 60 प्रतिशत की बढ़ोतरी होने का अनुमान है। सिडनी और मेलबोर्न में तो तापमान 50 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक हो जाता है। इंग्लैंड में भी लगातार गर्मी का रिकॉर्ड टूटता जा रहा है। रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण सुझाव यह भी है कि क्रिकेट के मैच केवल सर्दियों में ही आयोजित किये जाएं।

यूनिवर्सिटी ऑफ लीड्स में जलवायु परिवर्तन विशेषज्ञ प्रोफेसर पियर्स फोरस्टर के अनुसार निकर पहन कर क्रिकेट खेलने से दुनिया को यह संदेश मिलेगा की क्रिकेट के प्रबंधक जलवायु परिवर्तन के मसले पर गंभीर हैं। उनका सुझाव यह भी है कि जिस तरह बारिश में खेल को रोक दिया जाता है, ठीक उसी तरह एक निर्धारित तापमान के ऊपर खेल को रोकने का प्रावधान करना चाहिए।

क्रिकेट से जुड़े संस्थाओं और खिलाड़ियों ने अब तक जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया है। ब्रिटेन में महीनों से जलवायु परिवर्तन के विरोध में प्रदर्शन चल रहे हैं और लगभग सभी खेलों के खिलाड़ी इसे समर्थन दे रहे हैं, पर क्रिकेट से जुड़े एक भी खिलाड़ी ने इसके समर्थन से संबंधित कोई बयान नहीं दिया है। संयुक्त राष्ट्र के स्पोर्ट्स फॉर क्लाइमेट एक्शन फ्रेमवर्क से भी अन्य खेलों के संगठन जुड़ते जा रहे हैं, पर क्रिकेट से संबंधित कोई संस्था इसकी सदस्य नहीं है।


क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया दुनिया में क्रिकेट से जुडी ऐसी अकेली संस्था है, जिसने जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि से जुडी व्यापक नीति तैयार की है। भारत के क्रिकेट बोर्ड ने भी संयुक्त राष्ट्र के साथ मिलकर क्रिकेट को पर्यावरण अनुकूल बनाने का समझौता किया है। कुछ क्रिकेट स्टेडियम भी अब अक्षय ऊर्जा से जगमगाने लगे हैं। ब्रिटेन का लॉर्ड्स स्टेडियम तो पूरी तरह से अक्षय ऊर्जा से ही जगमगाता है।

क्रिकेट केवल अत्यधिक गर्मी से बेहाल खिलाड़ियों की समस्या से ही ग्रस्त नहीं है। लगातार सूखे की वजह से दुनिया के अनेक हिस्सों में पानी की कमी हो रही है। क्रिकेट से स्टेडियम अधिक शुष्क हो रहे हैं इसलिए इन्हें अधिक पानी की जरूरत पड़ रही है। क्रिकेट स्टेडियम द्वारा पानी की अत्यधिक खपत के विरुद्ध भारत, दक्षिण अफ्रीका और ऑस्टेलिया में विरोध-प्रदर्शन होते रहते हैं। ब्रिटेन में इस बार बाढ़ से कुछ क्रिकेट स्टेडियम को नुकसान होने की खबर भी है।

तापमान वृद्धि के मुद्दे पर उदासीन रवैया अपनाने वाले इन्हीं क्रिकेट संस्थाओं ने वायुमंडल के समतापमंडल में ओजोन परत को नुकसान से होने वाली समस्याओं पर ध्यान देते हुए केवल दिन के मैचों के बदले दिन-रात के मैचों को शुरू किया था। ऑस्ट्रेलिया से शुरू होकर दिन-रात के मैच तो अब दुनिया भर में क्रिकेट मैचों के अभिन्न अंग हो गए हैं। अब ऐसा ही कुछ जलवायु परिवर्तन के लिए करना पड़ेगा तभी भविष्य में क्रिकेट का खेल और इसके खिलाड़ी बच पाएंगे।

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