मुक्त व्यापार के कारण गहरा हुआ जलवायु परिवर्तन संकट, एक देश के कारण दूसरे देश में हो रहा उत्सर्जन

पेरिस समझौते को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि देशों और दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की सटीक जानकारी हो, पर समस्या यह है कि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के बारे में वैज्ञानिकों को जितनी ठोस जानकारी है, उतनी इसके उत्सर्जन के बारे में नहीं हैI

फोटोः सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

पिछले महीने आयोजित जी-20 समूह की बैठक को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संबोधित करते हुए कहा था कि जलवायु परिवर्तन रोकने के मुद्दे पर हम अपने निर्धारित लक्ष्य से भी अधिक काम कर रहे हैंI इस सन्दर्भ में उदाहरण के तौर पर लगातार नवीनीकृत ऊर्जा क्षेत्र के आंकड़े प्रस्तुत किये जाते हैं, पर उसमें भी पिछले दो वर्षों से मंदी छा गई हैI सौर और पवन ऊर्जा की अनेक कम्पनियां बंद हो चुकी हैं, अनेक परियोजनाएं रोक दी गई हैंI

दूसरी तरफ बड़े देशों में भारत ही एक ऐसा देश है जहां कोयले की मांग और खपत लगातार बढ़ती जा रही है और कोयला आधारित नए बिजलीघर आज भी स्थापित किये जा रहे हैंI भारत के कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन के उत्सर्जन के आंकड़ों पर लगातार देशी-विदेशी वैज्ञानिक प्रश्न चिह्न लगाते रहे हैंI संयुक्त राष्ट्र ने भारत सरकार द्वारा प्रस्तुत वनों के आंकड़ों पर भी सवाल खड़ा किया था और इन्हें फिर से पेश करने को कहा थाI इन सबके बीच, सबसे बड़ा प्रश्न यही है कि क्या भारत जैसा देश ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन या फिर पर्यावरण विनाश के सही आंकड़े प्रस्तुत कर सकता है?

पिछले वर्ष जब भारत सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 370 को हटा दिया और उसके बाद नागरिकता संशोधन कानून लागू किया तब देश-विदेश में तीखी प्रतिक्रया व्यक्त की गई थीI इसके विरोध में मलेशिया के प्रधानमंत्री महाथिर मोहम्मद ने भी तीखे बयान दिए थे। जाहिर है ये बात पीएम मोदी और उनकी सरकार को नागवार गुजरीI सरकारी तौर पर तो इस पर विरोध दर्ज कराया ही गया, पर पर्दे के पीछे से मलेशिया को व्यापारिक तौर पर कमजोर भी किया गयाI

दरअसल भारत पाम आयल का दुनिया में सबसे बड़े उपभोक्ता और आयातक देशों में सम्मिलित हैI परंपरागत तौर पर मलेशिया से भारत में सबसे अधिक पाम आयल का आयात किया जाता हैI जब सरकार ने मलेशिया के प्रधानमंत्री के वक्तव्यों पर विरोध दर्ज किया, तब सरकार को खुश करने के लिए देश के पाम आयल व्यापारी संघ ने अचानक मलेशिया से पाम आयल के आयात को बंद करने का ऐलान कर दिया और महंगे दामों पर इंडोनेशिया से इसका आयात करना शुरू कर दियाI

इंडोनेशिया को जब भारत से बड़े आर्डर मिलने लगे तब वहां इसके उत्पादन को बढाने के तरीके आजमाए जाने लगेI इन तरीकों में एक था, पाम आयल के पौधों को नए क्षेत्र में लगाना और इनका दायरा बढ़ानाI इसके लिए नए क्षेत्र तलाशे गए, जिनमें अधिकतर क्षेत्र वहां के वर्षा वनों को काट कर निकाले गएI इंडोनेशिया के वर्षा वन विशेष हैं और ऐसे जंगल पूरे एशिया में दूसरे नहीं हैंI विशेष वनस्पतियों और वन्यजीवों से भरे ये वन सामान्य वनों की अपेक्षा वायुमंडल में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का अधिक अवशोषण करते हैंI

ऐसे में जब पाम आयल प्लान्टेशन के लिए जंगलों का बड़ा हिस्सा साफ किया गया, तब जाहिर है वनस्पतियों में अवशोषित कार्बन वायुमंडल में मिल गयाI भारत को पाम आयल का निर्यात करने के लिए इंडोनेशिया में जंगल काटे गए और इससे कार्बन डाइऑक्साइड भारी मात्रा में वायुमंडल तक पहुंची, पर इसका उल्लेख हमारे देश के उत्सर्जन में कहीं नहीं होगाI

इन दिनों देश में अधिकतर बड़े ताप बिजली घर गौतम अडानी की कंपनियों के नाम हैं और अनेक नए बड़े बिजलीघर उनकी कंपनी स्थापित भी कर रही हैI समस्या यह है कि अपने देश में कोयला के भंडार तो बहुत हैं पर उनकी गुणवत्ता अच्छी नहीं हैI ऑस्ट्रेलिया के कोयले की गुणवत्ता बहुत अच्छी मानी जाती हैI अडानी की कंपनी ने ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े कोयला खदानों में से एक को खरीदा और अब उस पर काम अंतिम चरण में है और जल्द ही उत्पादन शुरू होगाI इसके लिए बड़े पैमाने पर वनस्पतियों का सफाया किया गया, रेल लाइन बिछाने के लिए जंगल काटे गए और पोर्ट बनाने के लिए कोरल रीफ को बर्बाद किया गयाI जाहिर है, देश के ताप बिजली घरों को चलाने के लिए ऑस्ट्रेलिया में ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बढ़ गयाI

कुछ दिनों पहले की खबर के अनुसार दुनिया भर में बड़ी खान-पान से जुड़ी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां जो चिकेन परोसती हैं, उन मुर्गों/मुर्गियों का मुख्य भोजन सोयाबीन है, जो पहले चीन से मंगाया जाता था, पर अब चीन का बहिष्कार करने के चक्कर में ब्राजाल से मंगाया जाता हैI ब्राजील में सोयाबीन की खेती का क्षेत्र बढाने के नाम पर अमेजन के वर्षा वन काटे जा रहे हैं, जिनसे एक तरफ तो पर्यावरण का विनाश हो रहा है तो दूसरी तरफ ग्रीनहाउस गैसें वायुमंडल में मिल रही हैंI ब्राजील के अमेजन के वर्षा वनों को धरती का फेफड़ा कहा जाता है, क्योंकि हवा को साफ करने में इनका बड़ा योगदान हैI

जाहिर है कि किसी देश द्वारा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बता पाना कठिन काम है, क्योंकि मुक्त व्यापार के इस दौर में हरेक देश के कारण उत्सर्जन दूसरे देशों में भी हो रहा हैI अब, अमेरिका में नवनिर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडेन के निर्वाचन की इलेक्टोरल कॉलेज से स्वीकृति मिलने के बाद से फिर से जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण से संबंधित पेरिस समझौते, जिसके हाल में ही पांच वर्ष पूरे हुए हैं, की चर्चा जोर-शोर से की जा रही हैI जो बाइडेन ने जलवायु परिवर्तन से संबंधित अपनी प्रतिबद्धता को फिर से दुहराया हैI उनके अनुसार राष्ट्रपति पद का जिम्मा संभालते ही पहले दिन वे पेरिस समझौते में वापस शामिल होने की कार्यवाही शुरू कर देंगे और अपने कार्यकाल के 100 दिनों के भीतर ग्रीनहाउस गैसों के प्रमुख उत्सर्जक देशों का सम्मलेन अमेरिका में आयोजित करेंगेI

पेरिस समझौते को सफल बनाने के लिए आवश्यक है कि देशों और दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन की सटीक जानकारी हो, पर समस्या यह है कि जलवायु परिवर्तन और तापमान वृद्धि के बारे में वैज्ञानिकों को जितनी ठोस जानकारी है, उतनी इसके उत्सर्जन के बारे में नहीं हैI नीतियों में भले ही विभिन्न देशों में भिन्नता हो, पर व्यापार के मामले में सभी देश एक दूसरे से मिले हुए हैंI एक देश की मांग दूसरे देश से पूरी हो रही है, ऐसे में दूसरे देश के ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन का जिम्मेदार किसे माना जाएगा, यह भी स्पष्ट नहीं हैI

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