राम पुनियानी का लेखः सांप्रदायिक राष्ट्रवाद और बाबाओं की बारात, RSS-BJP के एजेंडे को फैलाने वाले छिपे खिलाड़ी

इनमें से ज्यादातर बाबा अपनी तरकीबों और क्रियाकलापों के जरिए वैचारिक और सैद्धांतिक स्तर पर हिंदू राष्ट्रवाद को आगे बढ़ा रहे हैं, वह भी ‘संघ परिवार‘ का आधिकारिक हिस्सा बने बिना। उनका समाज पर गहरा प्रभाव है और इन्हें सरकार का संरक्षण बड़े स्तर पर हासिल है।

सांप्रदायिक राष्ट्रवाद और बाबाओं की बारात, RSS-BJP के एजेंडे को फैलाने वाले छिपे खिलाड़ी
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राम पुनियानी

मोहन भागवत पिछले कुछ महीनों से सुर्खियों में हैं। पहले उन्होंने घुमा-फिरा कर कहा कि नेताओं को 75 साल की उम्र में सार्वजनिक जीवन छोड़ देना चाहिए। यह माना गया कि उनका इशारा मोदी की ओर था, जो एक दिन पहले 17 सितंबर 2025 को 75 वर्ष के हो गए। उसके बाद विज्ञान भवन में दिए गए तीन व्याख्यानों में उन्होंने साफ किया कि उनका आशय यह नहीं था। उनकी स्वयं की 75वीं वर्षगांठ 12 सितंबर 2025 को मनाई गई। इससे जुड़ी उल्लेखनीय बात यह थी कि श्री श्री रविशंकर, जिन्हें आध्यात्मिक गुरू माना जाता है और जो बाबाओं की तेजी से बढ़ती जमात के प्रमुख सितारे हैं, इस आयोजन में शामिल हुए।

श्री श्री रविशंकर यह दावा करते रहे हैं कि राजनीति में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है और उनका ध्यान आध्यात्मिक मुद्दों पर केन्द्रित है। उनका ‘आर्ट ऑफ लिविंग‘ नाम से विशाल साम्राज्य है और ज्यादातर बाबाओं की तरह उनके पास भी अथाह दौलत है। यह एक विरोधाभास है। ज्यादातर बाबा यह उपदेश देते हैं कि दौलत और दुनिया सिर्फ भ्रम हैं और हमें इनके पीछे नहीं दौड़ना चाहिए। लेकिन वे स्वयं बड़े पैमाने पर जमीन-जायजाद और अन्य वैभवशाली वस्तुएं जमा करते हैं। श्री श्री ने अपनी शिक्षाओं के मूलाधार के रूप में सुदर्शन क्रिया को प्रस्तुत किया और दसियों लाख अनुयायियों को अपनी ओर खींचा। उन्होंने 'आर्ट ऑफ़ लिविंग‘ की भी स्थापना की जो बहुत से लोगों को पसंद आया।

उन्होंने 2017 में एक सांस्कृतिक उत्सव का आयोजन किया जिससे यमुना नदी को जबरदस्त पर्यावरणीय हानि हुई। एनजीटी ने इसके लिए उन पर करोड़ों रूपये का जुर्माना लगाया, जिसे चुकाने से उन्होंने साफ इंकार कर दिया। जब अन्ना का आंदोलन, जिसे भ्रष्टाचार विरोधी माना जाता था और जो आरएसएस द्वारा प्रायोजित था, शुरू हुआ तो एक ओर श्री श्री ने तो दूसरी ओर बाबा रामदेव ने इसमें सक्रिय भागीदारी की।

बाबा रामदेव भी एक ऐसे बाबा हैं जिनकी बीजेपी-आरएसएस से काफी नजदीकियां हैं। उन्होंने एक योग शिक्षक के रूप में कैरियर शुरू किया और बाद में पतंजलि ब्रांड से विभिन्न उत्पाद बेचने वाले बहुत सफल उद्यमी बन गए। सत्ताधारियों के निकट होने का पूरा फायदा उठाते हुए उन्होंने अपना व्यवसाय आसमानी ऊंचाई तक पहुंचा दिया। उनके योग शिविरों की ओर लाखों लोग आकर्षित हुए। कोविड के दौरान उन्होंने महामारी की आपदा का पूरा फायदा उठाते हुए ‘कोरोनिल‘ नाम से दवाई पेश की जो नई दवाई बाजार में लाने के नियम-कायदों का घोर उल्लंघन था। उन्होंने इसे दो कैबिनेट मंत्रियों की मौजूदगी में बाजार में उतारा।


आधुनिक विज्ञान और एलोपैथी को उन्होंने इस हद तक बुरा-भला कहा कि इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने उनके खिलाफ मुकदमा दायर किया और वे माफी मांगने पर बाध्य हुए। रूह अफ़ज़ा से मिलते-जुलते अपने उत्पाद की मार्केटिंग करते समय उन्होंने मुसलमानों के खिलाफ जो बातें कहीं उससे वे दुबारा मुसीबत में फंसे और उन्हें दुबारा माफी मांगनी पड़ी। सत्ता से उनकी नजदीकियों के चलते वे बिना किसी परेशानी के ढेर सारी दौलत कमा सके और मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने के बाद भी उनका बाल भी बांका नहीं हुआ।

कई अन्य व्यक्ति भी बाबाओं के रंगमंच पर अपनी सशक्त मौजूदगी का एहसास करा रहे हैं। इनमें नवीनतम हैं बागेश्वर धाम धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री, जो केवल 29 साल के हैं। उनका दावा है कि किसी का भी अतीत बता सकते हैं। उनका यह झूठ तब पकड़ा गया जब अंधश्रद्धा विरोधी कार्यकर्ता श्याम मानव ने नागपुर में उन्हें चुनौती दी। चुनौती मिलते ही उन्होंने आनन-फानन में अपना कार्यक्रम समाप्त किया और बागेश्वर भाग खड़े हुए। मोदी उन्हें अपना छोटा भाई कहते हैं। अब वे एक हिंदू गांव बनाने की योजना बना रहे हैं जिसमें केवल हिंदू ही बसेंगे।

यह सच है कि इन बाबाओं और आरएसएस का कोई सीधा संबंध नहीं है। जहां तक आरएसएस के एजेंडे का सवाल है, ये बाबा आरएसएस के सुर में सुर मिलाते हुए हिंदू राष्ट्र और जन्म आधारित जातिगत और लैंगिक ऊंच-नीच के नजरिए से पूरा इत्तेफाक रखते हैं।

ये बाबा पंडा-पुरोहितों के परंपरागत वर्ग से ताल्लुक नहीं रखते। उन्होंने लोगों को अपनी ओर आकर्षित करने की स्वयं की नई-नई तरकीबें ईजाद की हैं। कुछ परंपरागत ज्ञान और कुछ अपनी कल्पनाओं को मिश्रित कर ऐसे विचार प्रस्तुत करते हैं जो उनकी पहचान का केन्द्रीय बिंदु बन जाते हैं। अपने हुनर पर उनका भरोसा वाकई काबिले तारीफ है और वे प्रायः बहुत अच्छे वक्ता होते हैं।

इस जमात के क्रियाकलापों का स्याह पहलू भी है। शंकराचार्य जयेन्द्र सरस्वती के आश्रम में शंकररमन नामक व्यक्ति की हत्या हुई थी और शंकराचार्य पर अपने आश्रम के कार्यकर्ता की हत्या का आरोप लगा था। सत्यसाईं बाबा के प्रशांत निलयम में भी एक हत्या हुई थी। जब जयेन्द्र सरस्वती को हत्या का आरोपी बनाया गया तब अटल बिहारी वाजपेयी और आसाराम बापू इसके खिलाफ धरने पर बैठे थे। गुरमीत राम रहीम ने भी करतूतों का यह सिलसिला जारी रखा और उनके कारनामों को उजागर करने वाले एक पत्रकार राम चंदर छत्रपति की हत्या कर दी गई। काफी मुश्किलों के बाद वे कानून के शिकंजे में फंसे और इस समय जेल में हैं। लेकिन सजा होने के बाद से ज्यादातर समय वे पेरोल पर आजाद ही हैं।


आसाराम बापू के आश्रम में दो लड़कों की हत्या हुई थी। नरेन्द्र मोदी बापू के आश्रम में जा चुके हैं और अटल बिहारी वाजपेयी लखनऊ में उनके साथ नाचे थे। सन् 2014 में हरियाणा के चुनाव में गुरमीत राम रहीम ने अपने अनुयायियों से बीजेपी को वोट देने को कहा था। चुनाव जीतने के बाद मनोहर लाल खट्टर की मंत्रिपरिषद के कई सदस्य उनका आशीर्वाद लेने गए थे। अभी तो वे जेल में हैं, लेकिन ज्यादातर समय पेरोल पर बाहर रहते हैं। दिलचस्प बात यह है कि उन्हें बार-बार पेरोल देने वाले जेलर ने सेवानिवृत्त होते ही बीजेपी की सदस्यता ग्रहण कर ली।

ये तो हमारे यहां के बाबाओं की विशाल दुनिया के कुछ उदाहरण मात्र हैं। पाकिस्तान में भी यही स्थिति है जहां मौलाना टाइप लोगों के प्रति इतना आकर्षण है कि उनके कार्यक्रमों में भक्तों की बड़ी भीड़ उमड़ती है। हम बैनी हिन्न के बारे में जानते हैं जिनके सम्मोहन चिकित्सा शिविरों में हजारों लोग शामिल होते हैं।

बड़ी संख्या में आरएसएस के स्वयंसेवक हिंदू धर्म के प्रचार और उसकी स्थापना का लक्ष्य हासिल करने में जुटे हुए हैं, वहीं दूसरी ओर इनमें से ज्यादातर बाबा अपनी शिक्षाओं और क्रियाकलापों के जरिए वैचारिक और सैद्धांतिक स्तर पर हिंदू राष्ट्रवाद को आगे बढ़ा रहे हैं, वह भी ‘संघ परिवार‘ का आधिकारिक हिस्सा बने बिना। उनका समाज पर गहरा प्रभाव है और समाज में बढ़ते असुरक्षा के भाव के चलते बहुत से लोग इन बाबाओं की शरण में आ जाते हैं। इन्हें सरकार और समाज दोनों का संरक्षण बड़े स्तर पर हासिल है।

इनकी तारीफों के पुल बांधने वाली कई किताबें बाजार में आ चुकी हैं। इन पर बहुत थोड़ा सा गंभीर और गहन अध्ययन उपलब्ध है। निश्चित ही इन बाबाओं और इस प्रवृत्ति पर अधिक गहन अध्ययन आज की आवश्यकता है। हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं जिसमें इस तरह के लोगों का बोलबाला है और डॉ. दाभोलकर, गोविंद पंसारे, एम एम कलबुर्गी और गौरी लंकेश जैसे तर्कसंगत बातें कहने वाले लोगों की हत्याएं हो रही हैं। और ज्यादातर मामलों में इन जुर्मों को अंजाम देने वालों को कोई सजा नहीं भुगतनी पड़ती।

(लेख का अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा) 

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