कई देशों के बीच बढ़ रहा है आपसी तनाव, विध्वंस को रोकने के लिए विश्व शांति स्थापित करने की जरूरत

दुर्भाग्यवश जिस समय विश्व को अमन-शांति की जरूरत सबसे अधिक है, उस समय विश्व नेतृत्व की ओर से अमन-शांति के लिए ऐसी कोई बड़ी पहल नहीं हो रही है जिससे भविष्य के प्रति नई उम्मीद उत्पन्न हो।

फोटो: सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

अमन-शांति की जरूरत दुनिया को सदा रही है, पर इसकी जितनी जरूरत आज है उतनी विश्व इतिहास के पृष्ठों में पहले कभी न थी। इस नई स्थिति के दो प्रमुख कारण हैं। पहली वजह तो यह है कि अब जिस तरह के विध्वंसकारी हथियार उपलब्ध हैं, उससे चंद मिनटों में ऐसा विनाश हो सकता है जिसकी संभावना पहले नहीं थी। पहले महीनों तक चलने वाले युद्ध में जितनी क्षति होती थी, उससे अधिक क्षति अब चंद मिनटों के युद्ध में हो सकती है और वह क्षति भी ऐसी होगी जिसके परिणाम युद्व क्षेत्र से दूर-दूर तक फैलेंगे और आने वाली कई पीढ़ियों को भी इन्हें झेलना पड़ सकता है।

दूसरी वजह यह है कि जिस तरह की अति गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं आज विश्व स्तर पर उत्पन्न हो रही हैं, उनसे तो जीवन का अस्तित्व मात्र ही संकट में पड़ रहा है और समय रहते उनके संतोषजनक समाधान के लिए अमन-शांति की बहुत जरूरत है। इनके समाधान के लिए जिस तरह के विश्व स्तरीय समझौते करने और फिर उनके संतोषजनक क्रियान्वयन की आवश्यकता है, वह केवल अमन-शांति के हालात में ही संभव है।

अमन-शांति की आज सबसे अधिक जरूरत होने के बावजूद हाल के वर्षों में विश्व नेतृत्व का व्यवहार इसके अनुकूल नहीं रहा है। जिस तरह हाल के समय में विश्व व्यापार में टकराव बढ़े हैं, विशेषकर अमेरिका और चीन के बीच और साथ ही कुछ अन्य देशों के बीच भी, वह इस प्रवृत्ति का उदाहरण है कि किस तरह ऐसे समय में नए गंभीर विवाद उत्पन्न किए जा रहे हैं जिस समय विश्व में इनकी सहन क्षमता बहुम कम है। कहने का अर्थ यह नहीं है कि विश्व व्यापार व्यवस्था में बदलाव नहीं चाहिए। इसमें बदलाव तो चाहिए, पर यह बदलाव युद्ध के रास्ते नहीं आएंगे अपितु न्यायसंगत अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए सभी देशों की सामूहिक बातचीत से आएंगे। अमेरिका और चीन का व्यापार युद्ध (या इस तरह के अन्य विवाद) केवल आर्थिक समस्याओं को बढ़ाने वाला नहीं है, अपितु इसे अन्य तनावों के साथ मिलाकर देखा जाए तो यह वास्तविक युद्ध की पृष्ठभूमि तैयार करने का कारण भी बन सकता है।

कुछ लोग यह कहते रहे हैं कि महाविनाशक हथियारों से लैस बड़ी ताकतों में कभी युद्ध नहीं होगा क्योंकि यह दोनों ही पक्षों के लिए इतना विनाशकारी होगा कि इस कारण दोनों पक्ष इस दिशा में अंतिम कदम बढ़ाने से पहले रुक जाएंगे। पर आधुनिक हथियारों की कुछ तकनीकी पेचीदगियां ऐसी हैं कि निरंतर तनाव और युद्ध की तैयारी में रहने वाली दो शक्तियों में अनचाहे भी युद्ध आरंभ हो सकता है और एक बार अतिविध्वंसक हथियार दाग दिए गए तो यह विनाश कब रुकेगा यह कहा नहीं जा सकता है।

इसके अतिरिक्त दो बड़ी ताकतें चाहे प्रत्यक्ष आपसी युद्ध न करें, पर वे ‘प्रॉक्सी’ युद्ध से एक-दूसरे की शक्ति क्षीण करने का प्रयास कर सकती हैं। दूसरे शब्दों में वे एक-दूसरे की धरती पर युद्ध न कर किसी तीसरे देश की धरती को अपने शक्ति परीक्षण का अखाड़ा बना सकती है। उदाहरण के लिए शीत-युद्ध के दौर में संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ ने एक-दूसरे की धरती पर तो युद्ध नहीं किया पर वियतनाम से लेकर अफगानिस्तान तक उन्होंने अनेक देशों में एक-दूसरे से प्रॉक्सी युद्ध किया, हालांकि इन विभिन्न प्रॉक्सी युद्धों की स्थितियां अलग-अलग थीं और महाशक्तियों की भागीदारी भी विभिन्न ‘प्रॉक्सी’ युद्धों में अलग स्तर की थी।

सोवियत संघ के विघटन और शीत युद्ध की समाप्ति के बाद कुछ समय के लिए ऐसा लगा जैसे अब विश्व शान्ति का नया दौर आरंभ हो रहा है। पर किसी औचित्य या आवश्यकता के बिना ही अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने इराक पर दो बार हमला किया जिससे यह संभावना धूमिल हो गई। इस युद्ध से जो नया तनाव और आक्रामकता शुरू हुई, वह मध्य-पूर्व के अन्य तनावों को भी बढ़ाती चली गई। सीरिया हो या यमन अमेरिका और सऊदी अरब का रवैया शान्ति के प्रतिकूल रहा है। उधर ईरान पर यदि अमेरिका हमला हुआ, तो स्थिति बहुत-ही चिंताजनक हो जाएगी। तुर्की का हाल का घटनाक्रम भी नए तनाव उत्पन्न करने वाला रहा है। दुनिया के अन्य भागों को देखें तो अफगानिस्तान, वेनेजुएला और अफ्रीका के अनेक देशों के तनाव बढ़ते जा रहे हैं।

दुर्भाग्यवश जिस समय विश्व को अमन-शांति की जरूरत सबसे अधिक है, उस समय विश्व नेतृत्व की ओर से अमन-शांति के लिए ऐसी कोई बड़ी पहल नहीं हो रही है जिससे भविष्य के प्रति नई उम्मीद उत्पन्न हो। जिस तरह अति आधुनिक और अधिक विध्वंसकारी हथियारों में निवेश बढ़ रहा है, उससे तो लगता है कि बड़ी ताकतें इस होड़ में है कि किसी तरह हथियारों के क्षेत्र में कोई चमत्कारी उपलब्धि प्राप्त कर वे दूसरों पर अधिक हावी हो जाएं। कम से कम इस हथियारों की होड़ में किसी से पीछे न रहें, यही बड़ी ताकतों की सबसे बड़ी प्राथमिकता बनता जा रहा है। इसके साथ बहुत महंगे हथियार दूसरे देशों को बेच कर पूरे विश्व की विध्वंसक क्षमता को भी बढ़ाया जा रहा है, जबकि जरूरत अमन-शान्ति की है। रोबोट हथियारों जैसी नई तकनीकों के आगमन से स्थिति और तेजी से बिगड़ने वाली है।

यदि केवल विभिन्न देशों के आपसी युद्धों को ही न देखें, साथ में विभिन्न देशों की आंतरिक हिंसा और गृह युद्धों को भी देखें तो स्थिति और भी चिंताजनक नजर आती है। इनमें से अनेक हिंसक टकरावों के आर्थिक कारण भी हैं। जलवायु बदलाव के दौर में यह टकराव और बढ़ने की पूरी संभावना है क्योंकि जल और खाद्यों की कमी और बढ़ती आपदाएं नए तनावों को जन्म देंगी और इन्हें स्वार्थी तत्त्व आपसी टकराव का रूप दे सकते हैं।

अतः इस समय यह बहुत जरूरी है कि बढ़ते तनावों को देखते हुए विश्व में अमन-शांति की बड़ी पहलों को समय रहते आरंभ किया जाए। अमन-शान्ति के जन-आंदोलन मजबूत बनें और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों में भी इसके लिए जरूरी और महत्त्वपूर्ण सुधार किए जाएं। दोनों स्तरों पर प्रयास एक-दूसरे के पूरक हैं। अमन-शांति का जन आंदोलन मजबूत होने से ऊपरी स्तरों पर, राष्ट्रीय सरकारों में और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थानों में, अमन-शान्ति की बड़ी पहल करने के लिए दबाव बढ़ेगा।

अतः एक बड़ी जरूरत जमीनी स्तर पर अमन-शान्ति के प्रयास मजबूत करने की है और साथ में विश्व स्तर पर अमन-शांति को मजबूत कर साथ में व्यवहारिक कार्यक्रम तैयार करने की है।

(इस लेख में व्यक्त विचारों से नवजीवन की सहमति अनिवार्य नहीं है।)

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