मध्य प्रदेश में शिवराज सरकार की उल्टी गिनती शुरू 

मध्य प्रदेश की शिवराज सिंह सरकार अपने 12 साल लंबे कार्यकाल के बाद मतदाताओं पर तेजी से अपनी पकड़ खोती नजर आ रही है। उपचुनाव में जीत के बाद कांग्रेस नवंबर के चुनाव के लिए पूरी तरह से उत्साहित है।

फोटोः सोशल मीडिया
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संजीव आचार्य

पिछले 6 महीनों में एक के बाद एक 4 उपचुनावों में लगातार हार के बाद 12 वर्षों से मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज शिवराज सिंह सरकार मतदाताओं पर अपनी पकड़ खोती प्रतीत हो रही है। कांग्रेस ने हाल में मुंगावली और कोलारस विधानसभा सीट के लिए हुए अहम उपचुनाव में जीत दर्ज की है, जिसे इसी साल नवंबर में तय विधानसभा चुनाव से पहले सेमीफाइनल माना जा रहा था। इससे पहले कांग्रेस ने पिछले साल अतेर और चित्रकूट सीट पर भी जीत हासिल की थी। इन नतीजों को लोगों द्वारा शिवराज शासन की अस्वीकार्यता के तौर पर भी देखा जा सकता है, जो किसानों में अशांति और बेरोजगार युवाओं के आंदोलनों के कारण गंभीर आलोचना होती रही है।

सत्तारूढ़ बीजेपी की हाल में हुई हार दो कारणों की वजह से महत्वपूर्ण है। पहला- मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने पूरे मंत्रिमंडल के साथ मिलकर कांग्रेस से सीट छिनने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी, लेकिन उस गांव में भी उनकी हार हुई, जहां उन्होंने मतदाताओं को लुभाने के लिए रात गुजारी थी। उन्होंने सभी संसाधनों का भरपूर इस्तेमाल करते हुए एक अभूतपूर्व स्तर का चुनाव अभियान चलाया, लेकिन ज्योतिरादित्य सिंधिया के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में कोई सेंध नहीं लगा पाए।

दूसरा- ये उपचुनाव बहुत प्रतिष्ठित थे, क्योंकि अपने चुनाव अभियान के दौरान ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा था कि ये मुकाबला दो पार्टियों के बीच नहीं बल्कि उनके और शिवराज सिंह चौहान के बीच है। इसका अर्थ हुआ कि इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले इस सेमीफाइनल में लोगों को इन दोनों नेताओं में से अपना चुनाव तय करना होगा। इसीलिए दो सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता कह रहे हैं कि मध्य प्रदेश की जनता बीजेपी शासन से तंग आ गई है और उन्होंने अगले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को चुनने के लिए अपना मन बना लिया है।

दूसरी ओर, बीजेपी कह रही है कि दोनों सीट कांग्रेस की ही थीं, जो इन दोनों सीटों के निर्वाचित उम्मीदवारों की मौत की वजह से खाली हो गई थीं। इसलिए वे अपनी ही सीट बचाने में कामयाब हुए हैं, ना कि हमारी सीट छीनी है। बीजेपी कार्यकर्ता इस बात स्वीकार करते हैं कि ज्योतिरादित्य सिंधिया ने दिन-रात कड़ी मेहनत की और 73 जनसभा और 15 रोड शो किए और दोनों ही सीटें उनके संसदीय क्षेत्र गुना में ही पड़ती हैं, इसलिए आप इस जीत को शिवराज सरकार पर जनमत संघ्रह नहीं बता सकते हैं।

बीजेपी नेता ये भी कह रहे हैं कि इन सीटों पर जीत का अंतर उतना ज्यादा नहीं है जितना राजस्थान उपचुनाव में था। मुंगावली सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार ब्रिजेंद्र सिंह यादव ने बीजेपी के भाई साहब देशराज सिंह यादव को 2,124 वोटों से हराकर जीत दर्ज की थी। यादव को 70,808 वोट मिले, जबकि बीजेपी को 68,684 वोट मिले। कोलारस में कांग्रेस के महेंद्र सिंह यादव ने बीजेपी के देवेंद्र कुमार जैन को 8,083 वोटों के अंतर से हराया। यहां कांग्रेस को 82,515 वोट जबकि बीजेपी को 74,432 वोट पड़े।

वहीं दूसरी ओर, कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष और ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा इन चुनावों के प्रभारी बनाए गए तुलसीराम सिलावट ने दावा किया कि बीजेपी सरकार ने राज्य की मशीनरी, पैसे की ताकत और बाहुबल का जमकर उपयोग किया, लेकिन मतदाताओं की नजर में वे उजागर हो गए हैं। राज्य में ज्योतिरादित्य सिंधिया मुख्यमंत्री के पद के लिए स्वाभाविक पसंद के तौर पर उभर रहे हैं। इस महत्वपूर्ण जीत के साथ शिवराज सरकार के कुशासन की उलटी गिनती शुरू हो गई है।

यह तथ्य है कि वर्तमान में बीजेपी पार्टी के अंदर गंभीर गुटबाजी और नेताओं के बीच अंतर पार्टी विवादों से घिरी हुई है। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रभात झा, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती और बाबूलाल गौड़, संसद सदस्य और अटल बिहारी वाजपेयी के भतीजा अनूप मिश्रा, प्रहलाद पटेल, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय सहित और भी कई अन्य महत्वपूर्ण पार्टी नेता हैं जो खुलेआम शिवराज सिंह चौहान के खिलाफ हैं। इन नेताओं के अलावा, शिवराज सिंह चौहान की आरएसएस के राज्य प्रभारी और बीजेपी प्रभारी विनय सहस्त्रबुद्धे के साथ भी अच्छे संबंध नहीं हैं।

ऐसी स्थिति में, पार्टी में कोई तालमेल नहीं है। सरकार और संगठन के बीच एक बड़ी खाई बन गई है। व्यापमं घोटाले ने शिवराज सिंह चौहान की छवि को धूमिल किया है। मंदसौर और अन्य स्थानों पर किसानों के ऊपर गोलीबारी ने ग्रामीण मतदाताओं को निराश किया है। दूसरी ओर, कम से कम अभी कांग्रेस अतीत की गुटबाजियों से मुक्त है। दिग्विजय सिंह और कमलनाथ दोनों ही खुले तौर पर अगले चुनाव के चेहरे के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया का समर्थन कर रहे हैं। इस बात का भी उल्लेख किया जाना जरूरी है कि दिग्विजय सिंह की नर्मदा परिक्रमा यात्रा दूरदराज के गांवों में हतोत्साहित पड़े पार्टी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में फिर जोश भरने और उन्हें उत्साहित करने में कामयाब हुई है। धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण दिग्विजय सिंह की इस यात्रा को बड़े पैमाने पर हिंदू मतदाताओं के बीच समर्थन मिल रहा है।

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