लॉकडाउन के चलते आखिरी छोर पर पड़े लोगों के समक्ष जीवन का संकट, भूख और बीमारी में सरकार ने छोड़ा बेसहारा

इस घोर संकट की ओर ध्यान दिलाने के लिए 20 मई को उत्तर प्रदेश के बांदा जिला के मसरी खेरवा गांव में बंदिया समुदाय के लोगों ने सामूहिक उपवास शुरू कर दिया। यहां तक कि बच्चे भी अनशन पर बैठ गए थे। इस समुदाय की शिकायत है कि बड़ी संख्या में लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है और इनके जाॅब कार्ड भी नहीं हैं।

फोटोः भारत डोगरा
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भारत डोगरा

कहने को तो विकास का उद्देश्य यह बताया जाता है कि सबसे निर्धन और सीमांत समुदायों की समस्याओं को सबसे पहले कम किया जाए, पर हाल के समय की कड़वी सच्चाई यह है कि इन सीमांत समुदायों की कठिनाईयां ही सबसे अधिक बढ़ रही हैं।

ऐसी ही दयनीय हालत उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले में नदी कटान से प्रभावित कई परिवारों की है, जो पिछले कुछ वर्षों से बहुत कठिनाईयों में जी रहे हैं। उनके जीवन का एकमात्र सहारा जो जमीन थी, वह नदी के कटाव के कारण उनसे छिन गई। उस समय तो कुछ क्षतिपूर्ति सरकार ने की, पर बाद में उन्हें अपने सहारे पर ही छोड़ दिया।

इस समुदाय से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता प्रेमनाथ गुप्ता ने बताया कि पहले से बहुत कठिनाईयां झेल रहे नदी कटान से प्रभावित सिमराह जैसे गांव के लोगों की समस्याएं लाॅकडाउन के दौरान बहुत बढ़ गई हैं। चूंकि इन परिवारों की आजीविका का सहारा नदी-कटान से छिन गया है, अतः बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रदेश में मजदूरी पर निर्भरता बढ़ गई है। यहां के प्रवासी मजदूर जो कमाते थे, समुदाय की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने में उसकी बहुत अहम भूमिका थी।

लेकिन इस बार लॉकडाउन के कारण ये प्रवासी मजदूर वह भी नहीं कमा सके और संसाधन विहीन हालत में थके-हारे वापस लौट रहे हैं। वे बताते हैं कि राशन कार्ड वालों को राशन और राहत का अनाज मिलना आरंभ हो रहा है या प्रक्रिया शुरू हो चुकी है, पर जिनके पास राशन कार्ड नहीं है, उन्हें अभी तक कुछ नहीं मिला है। उनकी स्थिति सबसे चिंताजनक है।

यहां के एक प्रवासी मजदूर संदीप कुमार हैं जो कुछ समय पहले सूरत से लौट आए हैं। उन्होंने बताया कि दीपावली के बाद वे सूरत में कुछ कमाने चले गए थे। दो-तीन महीने कमाया, पर फिर कमाई कम होने लगी और फिर लाॅकडाउन से बिल्कुल ही बंद हो गई। जब वापस लौटने का सोचा तो कई कठिनाईयां सामने थीं। किसी तरह रेल से वापसी की व्यवस्था की, पर इसके लिए उनको और उनके साथियों को दलालों ने जमकर लूटा, जिससे उनका बहुत सारा पैसा बर्बाद हो गया।

संदीप ने आगे कहा, “ट्रेन के लंबे सफर में कुछ भी खाने को नहीं मिला। ट्रेन ने बनारस में उतारा तो वहां भी केवल बिस्कुट ही मिला। वहां से गाजीपुर किसी तरह बस से पहुंचे। कुछ समय जांच के इंतजार में फुटपाथ पर ही रहना पड़ा। फिर बहुत थकी-टूटी हालत में किसी तरह पैदल अपने गांव पहुंचे।” संदीप ने बताया कि नदी कटान के बाद कभी इधर, कभी उधर आजीविका की तलाश में भटकना पड़ा है, अतः अपने गांव में न राशन कार्ड बन सका न जाॅब कार्ड। इस कारण इस समय कठिनाईयां बहुत बढ़ गई हैं और कोई राह नजर नहीं आ रही है।

यहां तक कि इस समुदाय के शिक्षित युवक भी बहुत निराशा में हैं। संजय कुमार रांची में नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गए थे तो वापसी से पहले ही लाॅकडाउन हो गया। किसी तरह यहां रहने की व्यवस्था करनी पड़ी और इसके लिए घर से पैसा मंगाना पड़ा। बड़ी कठिनाई से अपनी समस्याओं के बीच घर से पैसा भेजा गया तो संजय वहां रांची में जीवित रह सके और फिर जब वहां अटके लोगों के लिए बस की व्यवस्था की गई तो वे लौट सके।

आईए अब ऐसे एक अन्य सीमांत समुदाय की स्थिति को देखें। बुंदेलखंड (उत्तर प्रदेश) के कुछबंदिया (दलित) समुदाय के लोग गांवों में छोटी-मोटी फेरी लगाकर किसी तरह अपना पेट भरते रहे हैं। लाॅकडाउन से कुछ दिन पहले ही उनके गांव प्रवेश पर आपत्ति होने लगी और उनसे भेदभाव बढ़ने लगा। इस कारण रोजगार मंदा हुआ। फिर लाॅकडाउन में तो रोजगार पूरी तरह ठप्प हो गया। पूरी तरह भूखे रहने की स्थिति आ गई।

इस घोर संकट की स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए 20 मई को बांदा जिला के मसरी खेरवा गांव में कुछ बंदिया समुदाय के लोगों ने सामूहिक उपवास शुरू कर दिया। यहां तक कि बच्चे भी अनशन पर बैठ गए थे। इस समुदाय की भी एक बड़ी शिकायत यही है कि बड़ी संख्या में लोगों के पास राशन कार्ड नहीं है और इनके जाॅब कार्ड भी नहीं हैं।

ऐसे परिवारों को न नियमित राशन मिल रहा है और न पैकेज वाला निःशुल्क अनाज। हंगामा होने पर अधिकारियों और स्थानीय विधायक ने यहां आकर 10-15 किग्रा. अनाज प्रति परिवार की व्यवस्था की और शीघ्र राशन कार्ड, जाॅब कार्ड बनाने का आश्वासन दिया तो 23 मई को यह चार दिनों का अनशन समाप्त हुआ।

फोटोः भारत डोगरा
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ऐसे अनेक कुछ बंदिया परिवारों की सहायता के लिए चिंगारी और विद्याधाम समिति जैसी संस्थाएं प्रयासरत रही हैं। लाॅकडाउन के दौरान भी किसी तरह उन्होंने इस समुदाय की खमेरा बस्ती में अनाज पहुंचाया। विद्याधाम समिति के निदेशक राजा भैया ने बताया कि इस बस्ती में अनेक तपेदिक और अन्य गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के मरीज हैं, जिनका पहले प्रतिकूल स्थितियों में किसी तरह कुछ इलाज चल भी रहा था, पर लाॅकडाउन के दौरान वह इलाज भी बंद हो गया। अतः इन्हें तुरंत इलाज की आवश्यकता है।

इस तरह के अनेक उदाहरण हैं जिनसे पता चलता है कि हाल की विशेष स्थितियों के बीच अनेक सीमांत समुदायों की कठिनाईयां बहुत तेजी से बढ़ गई हैं और जो थोड़ा-बहुत सहारा उन्हें पहले उपलब्ध था वह भी उनसे छिन रहा है। इस विकट स्थिति में सीमान्त समुदायों की आजीविका और खाद्य-सुरक्षा के लिए विशेष प्रयास बहुत आवश्यक हो गए हैं।

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Published: 30 May 2020, 7:05 PM