पुण्यतिथि विशेषः राजीव गांधी और मैं

राजीव गांधी को याद करते हुए पूर्व मुख्य सूचना आयुक्त और छात्र जीवन से उनके करीबी रहे वजाहत हबीबुल्ला कहते हैं कि राजीव का पूरा जीवन सौम्य था और उनके भीतर ये तत्व इतनी अच्छी तरह घुले-मिले थे कि प्रकृति खड़ी होकर पूरी दुनिया से कह सकती है, “यही वह आदमी था।”

फोटो : Getty Images
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वजाहत हबीबुल्लाह

उन उथल-पुथल भरे वर्ष में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे, मैं एक ज्वाइंट सेक्रेटरी के रूप में उनके साथ था और आने वाले दो वर्षों के छोटे से वक्त में लिए जाने वाले उन सभी फैसलों से मैं प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा हुआ था, जिनका भारत के भविष्य पर बड़ा प्रभाव पड़ने वाला था। एक सॉफ्टवेयर पावर के रूप में उभरता भारत, एक धड़कता लोकतंत्र जो कि अपने अंतर्निहित तमाम सामाजिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दोषों का न केवल सब्र के साथ बल्कि गर्व के साथ भी सामना करने के लिए ईर्ष्या का विषय था।

और इस बात को समझते हुए मेरा दुख गहराता गया कि राजीव को स्वयं उनके ही लोग इस नई दिशा के आर्किटेक्ट के रूप में तो छोड़ो, ऐसे भी कितना कम समझ पाए थे, वे लोग जिनकी सेवा गहरी प्रतिबद्धता और बलिदान के जज्बे के साथ उनका एकमात्र स्पष्ट उद्देश्य था। यहां तक कि जब दूरदर्शिता ने बताया कि वह गलत हो सकते हैं, तब भी उनकी सच्चाई हमेशा अप्रतिम रही है।

राजीव गांधी बंटवारे के बाद भारत के इतिहास में सबसे अप्रत्याशित हिंसक टकराव के बीच प्रधानमंत्री बने थे। फिर भी वह, स्कूल के दिनों से ही अहिंसा के प्रतीक थे। यह आश्चर्यजनक नहीं है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने स्वयं के लिए एक योगी, विसृजाम्यहम् एक यौगिक अवधारणा (ऐसा ही श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन से कहा भी था- “सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृति यान्ति मामिकाम्, कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्”), का किरदार चुना जिसे यह पूर्ण रूप से स्पष्ट था कि एक चिकित्सक को घाव भरने के लिए स्वयं में बहुत सबल होना पड़ता है।

देश के भीतर इसकी अभिव्यक्ति उन अंसतुष्ट तत्वों के साथ समझौतों के जरिए हुई जो पूर्वोत्तर में म्यांमार की सीमा से लगे मिजोरम और असम से लेकर उत्तर पश्चिम में पंजाब और कश्मीर तक फैले हुए थे। विदेश नीति में भारत का स्थान गुटनिरपेक्ष आंदोलन के लीडर के रूप में देखा गया जो परमाणु निशस्त्रीकरण पर जोर दे रहा था, जिसको साकार होते देखने के लिए वह जीवित नहीं रहे। लेकिन सोवियत संघ के विखंडन के साथ परमाणु प्रसार पर रोक में मदद मिली।


“गुटनिरपेक्ष आंदोलन अंतरराष्ट्रीय संबंधों में लोकतंत्र के विचार का ही विस्तार है।” अपने प्रधानमंत्रित्व काल के शुरू में ही उन्होंने यह घोषित किया था, जब वह अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा था, “भारत ने सैन्य गठबंधनों से दूर रहकर सदैव ही इन सिद्धांतों को बरकरार रखा है। गुटनिरपेक्ष आंदोलन का क्षेत्र बढ़ने से वैश्विक टकराव का खतरा कम हो जाता है। भारत और गुटनिरपेक्ष आंदोलन स्वउत्साह से निशस्त्रीकरण की वकालत करते हैं विशेषकर परमाणु निशस्त्रीकरण। हमारा अंतिम लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय प्रभावपूर्ण पर्यवेक्षण में पूर्ण निशस्त्रीकरण ही होना चाहिए।”

भारत के छठे प्रधानमंत्री के रूप में कार्यभार संभालने पर राजीव मीडिया के ‘मिस्टर क्लीन’ थे। व्यापक ‘इंदिरा लहर’ में चुनाव परिणामों ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को लोकसभा में तीन चौथाई बहुमत दिया। 533 सीटों में से 404 सीटें और करीब पचास प्रतिशत वोट। तब से अब तक भारतीय संसद में कोई पार्टी इन परिणामों को दोहरा नहीं पाई है।

इसमें संदेह नहीं है कि यह गंभीर त्रासदी से शोक में डूबे राष्ट्र की प्रतिक्रिया थी, लेकिन राजीव के अभियान का यह बुनियादी विलाप नहीं था, बल्कि उम्मीद का चमकीलापन था। उन्होंने राष्ट्र को 21वीं सदी में ले जाने के अपने वादे के आधार पर विजय हासिल किया था और राजीव के प्रधानमंत्रित्व काल के इस छोटे से समय का कोई मूल्यांकन, इस प्राचीन भूमि के समय की कड़ी परीक्षा में आशा की किरण, इस पर होना चाहिए कि उन्होंने कितनी दूर तक काम किया।

उन्होंने 18 वर्ष की उम्र के युवाओं को वोट देने का अधिकार दिया, युवाओं की यह पीढ़ी आज चुनावों में निर्णायक तत्व है। मैं निजी रूप से राजीव और उनके भाई संजय को स्कूल के दिनों से जानता था, जब हम देहरादून में वल्हेम और दून स्कूल में साथ-साथ पढ़ते थे। पारिवारिक कारणों की वजह से यह दोस्ती इसके बाद भी बनी रही और जब हम कार्य या पढ़ाई में साथ नहीं थे तब भी हम संपर्क में रहे।

हालांकि मैं यह दावा नहीं कर सकता कि मैं राजीव के मित्रों और सलाहकारों के क्लोज सर्कल में था, लेकिन यह दावा कर सकता हूं कि एक व्यक्ति के रूप में उनके विकास और क्रमागत उन्नति के गवाह के रूप में मैं आगे की कुर्सियों में था। क्योंकि मैं इंदिरा गांधी के पीएमओ में निदेशक था और फिर राजीव गांधी के पीएमओ में ज्वाइंट सेक्रेटरी के रूप में मेरी यह यात्रा बनी रही। मैं नीतियों के विकल्पों पर अत्यधिक बहस और विमर्श का हिस्सेदार था। देश जिन चुनौतियों का सामना कर रहा था उसको लेकर नेतृत्व में मतभेद और लक्ष्यों को लेकर उनके तरीकों और नीतियों तथा दृष्टिकोण में निरंतरता और बदलाव को मैंने अनुभव किया था।

भारतीयों में राष्ट्रीय पहचान को प्रोत्साहित करने के तरीकों के रूप में पर्यावरण और संस्कृति सहित सभी क्षेत्रों में देश के भीतर जागरूकता के लिए लोगों की लामबंदी पर फोकस करने और प्रबंधन की कला में राजीव गांधी का योगदान था। मैं राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में शासन के कुछ महत्वपूर्ण क्षेत्रों में उनके लिए गए कुछ फैसलों का गवाह था, खासकर पंचायती राज मामले में। अपनी मां की विरासत को आगे बढ़ाते हुए उनकी नीतियों में गरीबी उन्मूलन-गरीबी हटाओ शामिल था। इसके अलावा सूखा राहत में उनका असाधारण योगदान, शासन में प्रबंधन पर नीतियों की पहलकदमी, सबसे महत्वपूर्ण कंप्यूटीकरण सहित प्रशासन से आधुनिक तकनीक का परिचय कराना, पांच दिन के कार्य दिवस को लागू करना और सूचना तकनीक का परिचय, आज के डिजिटल इंडिया के प्रारंभ बिंदु के साथ संचार क्रांति भी इसमें शामिल थे।


इन सबको मिशन मोड के जरिए अभिलक्षित किया गया था। जिसके जरिए सरकार ने प्रत्येक मुद्दे को, जिन्हें शासन के लिए सर्वाधिक चुनौती के रूप में चिन्हित किया गया था, संबोधित करने के लिए मिशनों की स्थापना की। दूरसंचार से शुरुआत करते हुए पेयजल की आपूर्ति और आवंटन, साक्षरता और स्वास्थ्य आदि मसलों पर लिया। प्रधानमंत्री के रूप में राजीव की मुख्य चिंताओं में से एक गरीबी उन्मूलन के लिए परिणामी नीतियां शामिल थीं। सोनिया गांधी ने देश के दूर-दराज के इलाकों में राजीव के दौरों का वर्णन किया है, जिनका मैं बार-बार गवाह रहा।

“जहां भी लोग इंतजार करते थे, हम रुक जाते थे। यदि हमें देरी हो जाती तो वे उन्हें देखने के लिए और उनसे बात करने के लिए धैर्य के साथ खड़े रहते थे। देर रात दूर-दराज के इलाके में एक पुरानी लालटेन राजीव के चेहरे के करीब लाई जाती और तब उनकी मुस्कान देखने पर उनकी आंखों में खुशी की एक अद्भुत परिचित चमक दिखाई देती। वे चाहते थे कि वह उनके परिवारों से मिलें, उनके नवजात शिशुओं का नाम रखें, उनके नवविवाहित दंपतियों को आशीर्वाद दें। वह उनका रुखा-सूखा भोजन साझा करते थे, वह उन्हें दिलासा देते थे, वह उनसे सवाल पूछते थे और उनकी कठिनाई से भरे जीवन के बारे में उनके सरल और बिना लाग-लपेट के वर्णन को ध्यानपूर्वक सुनते थे।”

राजीव गांधी के आर्थिक सलाहकार रहे मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने अपनी आने वाली पुस्तक में उनके साथ ओडिशा के कालाहांडी और फूलबनी जिलों के दूर-दराज के आदिवासी इलाकों के दौरे के दौरान गरीबी की नग्न सच्चाई को एकदम सामने से देखने पर राजीव की पीड़ा का वर्णन किया है।

मैं जनता के साथ राजीव के व्यवहार में सक्रिय भागीदार था और लोकतांत्रिकरण और शासन में जनता के सभी हिस्सों के समावेश का गवाह था। यह (समावेश का न होना) उस समय भारत के लोकतांत्रिक कार्य में बहुत अहम दोष था। विवादास्पद मसलों जैसे पड़ोसी देशों और देश के अंदर विभिन्न हिस्सों में अलगाववादी समूहों के साथ समझौतों, बाबरी मस्जिद/राम जन्मभूमि का ताला खुलवाने, शाहबानो संशोधन, सांप्रदायिक दंगों से निपटने, ऑपरेशन ब्रासटैक्स और अन्य पर राजीव की सोच का मैं संसर्गी था।

इनकी जो भी कमियां रही हों, लेकिन इन सभी प्रयासों के अंतिम परिणाम ने भारत के विचार को मजबूत किया था जो तब उदीयमान था। इसीलिए आज प्रत्येक भारतीय खुद के एक भारतीय होने पर गर्व कर सकता है, चाहे उसकी जो भी एथनिक या सांस्कृतिक परंपराएं हों। इसलिए मैं श्रीलंका में आईपीकेएफ की विफलता पर प्रत्येक भारतीय के साथ विलाप कर सकता हूं, लेकिन मालदीव और दक्षेष की पहल पर जीत का जश्न मनाता हूं। युद्ध के दो दशकों के बाद चीन के साथ, जिसने हमारे ऊपर युद्ध थोपा था, रिश्तों की शुरुआत करना राजीव का निजी योगदान था। साथ ही अमेरिका के साथ हमारे रिश्ते के उड़ान भरने के कदम में भी उनका निजी योगदान था। इस कदम ने हाल के धक्कों के बावजूद, हमारे वर्तमान सहयोग का आधार तैयार किया।


लेकिन यह सब 1991 के लोकसभा चुनाव, जिसने राजीव को उनके अधूरे छोड़े गए कार्यों को पूरा करने के लिए वापस लाने का वादा किया था, में अचानक एक फ्लैश में समाप्त होने वाला था। सोमवार 21 मई की रात को तमिलनाडु की स्वास्थ्य सचिव डॉ. चंद्रकांता गरियाली जनरल हॉस्पिटल की तरफ दौड़ती हुई गई थीं। उन्होंने याद किया कि मॉर्चरी के दो लड़के उनके अवशेषों को फोरेंसिक थिएटर की ओर ला रहे थे। वह उनके बिस्तर के पास बैठी थीं। और सर्जन एक क्षत-विक्षत शरीर के साथ जो वे कर सकते थे उसका प्रयत्न कर रहे थे। पूरे समय भगवत् गीता का पाठ किया जा रहा था, “जैसा कि कश्मीरी पंडित के घर में किया जाता है।” जब वह घर से निकली थीं तो उन्होंने इस धर्म-पुस्तक को सहज-ज्ञान से अपनी जेब में डाल लिया था।

गरियाली ने विशेष रूप से फेन एंड कंपनी के ताबूत का आदेश दिया था, राजीव का शव मीनम्बक्कम लाया गया था, जहां आने के लिए दिल्ली से सोनिया गांधी और प्रियंका ने उड़ान भरी थी। गरियाली याद करती हैं कि सोनिया गांधी ने केवल ये शब्द कहे थे, “श्री गुप्ता कहां हैं? मैं श्रीमती गुप्ता का सामना कैसे करूंगी यदि मैं उनके पति को लिए बिना वापस जाऊंगी?” वह डेढ़ घंटे तक इंतजार करती रहीं जब तक गरियाली ने गुप्ता के साथ एम्बुलेंस की वापसी और अन्य जरूरी चीजों का इंतजाम नहीं कर लिया। इसके बाद मां और बेटी ने दिल्ली के लिए दुख से भरी उड़ान भरी।

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