दलीलें कुछ भी  दें मोदी, लेकिन जीएसटी ने ही किया है अर्थव्यवस्था का सत्यानाश

वर्तमान सरकार जिस जीएसटी की चर्चा कर बार-बार अपनी पीठ थपथपाती है, उसके बारे में विशेषज्ञों का मत है कि भारत का जीएसटी विश्व में सर्वाधिक जटिल और सर्वाधिक मंहगा है।

फोटो: Getty Images
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महेन्द्र पांडे

दो दिनों पहले एशियाई विकास बैंक ने वर्ष 2017 के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि का अनुमान 7.4 प्रतिशत से घटाकर 7 प्रतिशत किया है। अगले वर्ष यानी 2018 की अनुमानित वृद्धि को 7.6 प्रतिशत से घटाकर 7.4 प्रतिशत बताया गया है। इसका कारण नोटबंदी और जीएसटी लागू करना है। ऐसा नहीं है कि सभी देशों में या पूरे एशिया में अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर कम हुई है। आर्थिक मंदी के बाद भी एशिया की अनुमानित वृद्धि दर को 5.9 प्रतिशत पर रखा गया है, जबकि पहले का अनुमान 5.7 प्रतिशत था। वर्ष 2018 के लिए भी वृद्धि का पूर्वानुमान 5.7 प्रतिशत था, पर ताजा अनुमान में यह वृद्धि 5.8 प्रतिशत है। इसी तरह चीन के लिए वर्ष 2017 के आकलन को 6.5 प्रतिशत से बढ़ाकर 6.7 प्रतिशत कर दिया गया है, जबकि वर्ष 2018 के लिये पूर्वानुमान 6.2 प्रतिशत था जो अब बढ़कर 6.4 प्रतिशत हो गया है।

आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार पूरे विश्व के संदर्भ में बात की जाए तो अर्थव्यवस्था में 2 प्रतिशत की वृद्धि दर भी अच्छी मानी जाती है। पर, विकसित देशों के संदर्भ में जो अच्छा है, वह भारत के लिए नहीं है। यहां जनसंख्या और गरीबी के हिसाब से वृद्धि दर 7 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए। इसके कई कारण और भी हैं, वर्तमान में गरीबों और अमीरों के बीच की खाई पिछले 92 वर्षों की तुलना में सर्वाधिक है। अनियोजित और अनावश्यक नोटबंदी ने पूरे अर्थव्यवस्था को झकझोर दिया और इससे निपटा भी नहीं गया था तब तक बिना किसी ठोस योजना के जीएसटी को लागू कर दिया गया। वर्तमान सरकार जिस जीएसटी की चर्चा कर बार-बार अपनी पीठ थपथपाती है, उसके बारे में विशेषज्ञों का मत है कि भारत का जीएसटी विश्व में सर्वाधिक जटिल और सर्वाधिक मंहगा है।

फोटो: महेन्द्र पाण्डेय
फोटो: महेन्द्र पाण्डेय

बीबीसी के लिए अर्थशास्त्री विजय जोशी ने वर्ष 2040 तक के लिए सकल घरेलू उत्पाद में अलग-अलग वृद्धि कर का खाका खींचा है। यदि वृद्धि दर 3 प्रतिशत के आसपास रहती है तब वर्ष 2040 तक प्रतिव्यक्ति आय दुगुनी होकर उस स्तर तक पहुंचेगी जहां चीन वर्तमान में है। यदि वृद्धि दर 6 प्रतिशत के आसपास रहती है तब प्रतिव्यक्ति आय चार गुना बढेगी और हमारी अर्थव्यवस्था वर्तमान के चाइल, मलेशिया या पोलैण्ड के बराबर होगी। देश के अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर 9 प्रतिशत होती है तब प्रतिव्यक्ति आय आठ गुना बढ़ेगी और वर्ष 2040 तक हम उस स्तर तक पहुंच जायेंगे जहां विकसित देश आज हैं।

कृषि का जीडीपी में योगदान 15 प्रतिशत है, पर देश के कामगारों की कुल आबादी में से लगभग आधे इस पर निर्भर हैं। वर्ष 2013-14 की तुलना में निर्यात कम हो गया है। प्रतिवर्ष लगभग 1 करोड़ 20 लाख नये युवा काम की तलाश में निकलते हैं। अच्छी शिक्षा के अभाव में इनमें से अधिकतर श्रमिक के तौर पर ही रोजगार ले पाते हैं। निर्माण उद्योग के खस्ता हाल होने के कारण अब तो श्रमिकों की मांग भी घट गई है। जिन उद्योगों में रोजगार पैदा करने की संभावनाएं हैं, उनमें से अधिकतर छोटे पैमाने पर चलाए जाते हैं। वस्त्र उद्योग में रोजगार की असीमित संभावनाएं हैं, पर 85 प्रतिशत से अधिक वस्त्र उद्योगों में कामगारों की संख्या 8 से भी कम है। कुल उद्योगों में से 85 प्रतिशत ऐसे हैं जिनमें 50 से कम कामगार हैं। वर्ष 2015-16 के आंकड़ों के अनुसार देश के 5 बेरोजगारों में से 3 को ही रोजगार मिल पाता है, जबकि ग्रामीण इलाकों में केवल पचास प्रतिशत को ही रोजगार मिलता है।

नोटबंदी के बाद अनेक छोटे उद्योग बंद कर दिये गये क्योंकि वहां सारा काम नगद लेन-देन पर चलता था। भारी संख्या में इनमें काम करने वाले बेरोजगार की श्रेणी में आ गये। बिना तैयारी के जटिल जीएसटी को लागू कर सरकार ने और भी मुसीबतें बढ़ा दी। बैंकों में से 17 में “बैड लोन“ की दर 10 प्रतिशत या अधिक है। इंडियन ओवरसीज बैंक में तो यह 25 प्रतिशत है। सभी ‘बैड लोन‘ में से 22.3 प्रतिशत अकेले बड़े उद्योगों के नाम है।

वाशिंगटन स्थित प्रतिष्ठित हेरिटेज फाउंडेशन हरेक वर्ष आर्थिक आजादी सूचकांक प्रकाशित करता है। वर्ष 2017 के सूचकांक में भारत का स्थान कुल 186 देशों की सूची में 143वां था, जबकि 2016 में यह 123वें स्थान पर था। भारत की अर्थव्यवस्था को अधिकतर मामलों में परतंत्र बताया गया यानी यहां की अर्थव्यवस्था अभी तक सरकारी तंत्र में उलझी है, उन्मुक्त नहीं है। इस सूचकांक के लिये हरेक देश की सम्पदा, अधिकार, सरकार की विश्वसनीयता, कानून, सरकारी खर्च, कर भार, आर्थिक हालात, व्यापार की आजादी, श्रमिकों की आजादी, आर्थिक आजादी और इनसे संबंधित पहलुओं का आकलन किया जाता है।

अपने देश का मंच हो या अंतर्राष्ट्रीय मंच हो, मोदी सरकार ने हरेक जगह अपने आर्थिक सुधारों का जिस तरह से महिमामंडन किया है, वैसा किसी देश ने नहीं किया। फिर भी पाकिस्तान समेत लगभग सभी पड़ोसी देश इस सूचकांक में भारत से आगे हैं। केवल मालदीव, जो 157वें स्थान पर है और 163वें स्थान पर मौजूद अफगानिस्तान आर्थिक आजादी के मामले में हमसे पीछे हैं। पड़ोसी देशों में भूटान 107वें, चीन 111वें, श्रीलंका 112वें, नेपाल 125वें, बांग्लादेश 128वें, और पाकिस्तान 141वें स्थान पर है। आर्थिक आजादी सूचकांक 2017 में सूची के अनुसार अग्रणी देश क्रमशः हांगकांग, सिंगापुर, न्यूजीलैण्ड, स्विटजरलैण्ड और आस्ट्रेलिया हैं।



फोटो: महेन्द्र पाण्डेय
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संयुक्त राष्ट्र की ट्रेड एण्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट 2017 में बताया गया है कि नोटबंदी जीएसटी और व्यापार लागत द्वारा लाभ न उठा पाने के कारण भारत की गिरती हुई अर्थव्यवस्था का और पतन होगा और कुछ समय तक यही स्थिति बनी रही तो इसके उत्थान की संभावनाएं धूमिल हो जायेंगी। रिपोर्ट में बताया गया है कि वर्ष 2016 के दौरान अर्थव्यवस्था में वृद्धि 7 प्रतिशत थी, पर 2017 में यह 6.7 प्रतिशत ही रह जायेगी। सामान्य लोगों को 0.3 प्रतिशत की यह गिरावट मामूली लग सकती है, पर जनसंख्या की दृष्टि से काफी बड़े भारत में यह आंकड़ा बहुत असर डालेगा, और प्रति व्यक्ति आमदनी बहुत प्रभावित होगी। विश्व स्तर पर देखें तो बहुचर्चित आर्थिक मंदी के बाद भी 2016 की तुलना में 2017 के दौरान अनुमान है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में वृद्धि होगी। लगभग सभी बड़े देशों में, जो 2016 की आर्थिक मंदी से बुरी तरह प्रभावित हुए थे और जिन्होंने सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट दर्ज की थी, वर्ष 2017 के दौरान या तो इसे बढ़ाने में सफल रहे या फिर उसी स्तर तक रखने में कामयाब रहे। जबकि हमारे देश में वृद्धि कम होने का अनुमान है।

अप्रैल से जून 2017 की तिमाही के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि 5.7 प्रतिशत तक पहुंच गई जो पिछले तीन वर्षों में सबसे कम है। पहली बार ऐसी स्थिति हुई है जब लगातार 6 तिमाही के दौरान वृद्धि दर कम होती रही है। जनवरी से मार्च 2017 की तिमाही के दौरान वृद्धि दर 6.1 प्रतिशत थी और अक्टूबर से दिसंबर 2016 के दौरान 7 प्रतिशत।

अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई आर्थिक सूचकांकों में भारत की बुरी स्थिति का सबसे बड़ा कारण है। प्रधानमंत्री हरेक भाषण में “अंतिम आदमी“ तक पहुंचने की बातें करें, पर आज का सत्य यह है कि पिछले 92 वर्षों की तुलना में आज यह खाई सबसे गहरी है और जितने भी प्रयास इस खाई को पाटने के नाम पर किये जा रहे हैं, उनसे यह और गहरी होती जा रही है। एक तरफ तो सबसे अधिक खरबपति हमारे देश में हैं तो दूसरी तरफ भूखमरी से तबाह और कुपोषित आबादी हमारे देश में है।

सरकार माने या न माने, इतना तो स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। नतीजा सामने है, अमीर और अमीर बनता जा रहा है और गरीब मर रहा है।

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Published: 01 Oct 2017, 12:17 PM