पर्यावरण संहार की परिभाषा तैयार, नरसंहार जैसी सजा की मांग, इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के दायरे में लाने की कोशिश

स्टॉप एकोसाइड फाउंडेशन परिभाषा के साथ पर्यावरण संहार को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में 5वें जुर्म के तौर पर शामिल कराने के लिए प्रयासरत है। इंटरनेशनल कोर्ट फिलहाल नरसंहार, मानवता के प्रति अपराध, युद्ध अपराध और दूसरे देशों पर बेवजह चढ़ाई को ही जुर्म मानता है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

महेन्द्र पांडे

पिछले 6 महीनों से दुनिया भर के चुनिन्दा कानून विशेषज्ञ और पर्यावरणविद स्टॉप एकोसाइड फाउंडेशन के तहत नरसंहार की तर्ज पर पर्यावरण संहार की परिभाषा तैयार करने में लगे थे। हाल में यह परिभाषा तैयार की गई है और अब इसे इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के तहत एक अंतर्राष्ट्रीय जुर्म के तौर पर शामिल करने की तैयारी की जा रही है। इस परिभाषा के अनुसार ऐसी कोई भी गतिविधि, जिसके बारे में पता है कि इससे पर्यावरण या पारिस्थितिकी तंत्र को गंभीर और दीर्घकालीन नुक्सान होगा या इसकी संभावना है, को पर्यावरण संहार के अंतर्गत रखा जाएगा।

स्टॉप एकोसाइड फाउंडेशन इस परिभाषा के साथ पर्यावरण संहार को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट में पांचवें जुर्म के तौर पर शामिल कराने के लिए प्रयासरत है। इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट फिलहाल नरसंहार, मानवता के प्रति अपराध, युद्ध अपराध और दूसरे देशों पर बेवजह चढ़ाई को ही जुर्म मानता है। इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट एक स्थायी न्यायिक संस्थान है, जिसकी स्थापना वर्ष 1998 के रोम अंतर्राष्ट्रीय समझौते के तहत की गई है। इसका मुख्यालय नीदरलैंड के शहर द हेग में है। इसी शहर में इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस भी स्थित है, जो दो देशों के बीच के मतभेदों को सुलझाता है।

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट का काम उन व्यक्तियों को सजा देना या उनके विरुद्ध निर्णय देना है जो नरसंहार, युद्ध अपराध या मानवता के विरुद्ध अपराधों से जुड़े हैं। इस न्यायालय में दो देशों के बीच मतभेद नहीं सुलझाए जाते बल्कि व्यक्तियों पर मुकदमा चलता है। इस समझौते पर लगभग 120 देशों ने हामी भरी थी और 1 जुलाई 2020 तक इस पर 60 देशों ने हस्ताक्षर कर दिए थे। यह न्यायालय 1 जुलाई 2002 के बाद के ही सामूहिक हिंसा या नरसंहार की सुनवाई कर रहा है। भारत ने अब तक इस समझौते पर हस्ताक्षर नहीं किया है।

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट, उन सामूहिक नरसंहार या मानवता के विरुद्ध अपराध करने वालों के विरुद्ध मुकदमा दायर करने का आखिरी पड़ाव है, जिन पर संबंधित देशों की सरकारें कार्यवाही नहीं करतीं। इस कोर्ट में समझौते में शामिल सभी देशों के विरुद्ध या फिर गैर-सदस्य देशों के उन नागरिको पर मुकदमा दर्ज करने का अधिकार है, जो सदस्य देशों द्वारा किये गए अपराधों में शामिल हैं। इसका उदाहरण अमेरिकी सेना और अधिकारियों के विरुद्ध अफगानिस्तान में नरसंहार का मामला है। अमेरिका रोम समझौते से अलग हो चुका है, पर अफगानिस्तान इसका सदस्य है, इसलिए इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट अफगानिस्तान के मामले में अमेरिका से भी पूछताछ करने को स्वतंत्र है।


यदि पर्यावरण संहार को मान्यता मिल जाती है तब यह कानून वर्ष 1940 के बाद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शामिल किया जाने वाला पहला नया कानून होगा। पर्यावरण संहार की परिभाषा तैयार करने से संबंधित पैनल के सदस्य प्रोफेसर फिलिप सैंड्स के अनुसार अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जितने भी कानून हैं, सभी के केंद्र में व्यक्ति है। पर, यह पहला ऐसा कानून होगा जिसके केंद्र में व्यक्ति नहीं बल्कि पर्यावरण है। हालांकि पर्यावरण विनाश को रोककर हम अपने आप को ही बचाने का प्रयास कर रहे हैं। यह कानून अन्य कानूनों से अधिक मौलिक और अभिनव होगा। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए राजनैतिक और वैज्ञानिक उपायों के साथ ही अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक कानूनी विकल्प भी मौजूद रहेगा।

पर्यावरण संहार कोई नया शब्द नहीं है और न ही इसका पहली बार इस्तेमाल किया जा रहा है। 1972 के बहुचर्चित स्टॉकहोम सम्मलेन के दौरान इसका उपयोग स्वीडन के तत्कालीन प्रधानमंत्री ओलोफ पाल्मे ने किया था। वर्ष 1998 में इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट की स्थापना से संबंधित रोम सम्मलेन में भी इसका जिक्र किया गया था, पर बाद में इसे एजेंडा से बाहर कर दिया गया था। स्कॉटलैंड की बैरिस्टर पौली हिग्गिंस ने पर्यावरण संहार के सन्दर्भ में एक मुहीम चलाई थी।

1970 के दशक से पूरी दुनिया पर्यावरण संरक्षण पर चर्चा कर रही है, पर तापमान बढ़ रहा है, हरेक तरह का प्रदूषण भी लगातार बढ़ रहा है और जैव सम्पदा का लगातार नाश हो रहा है। अब एक नए अध्ययन के अनुसार पृथ्वी के केवल 3 प्रतिशत हिस्से में ही पारिस्थितिकी तंत्र अपने मौलिक स्वरुप में बचा है, यानि केवल 3 प्रतिशत पृथ्वी पर ही मनुष्यों का प्रभाव नहीं पड़ा है। यह निश्चित तौर पर एक गंभीर समस्या है क्योंकि अब तक के आकलन 20 से 40 प्रतिशत पृथ्वी को मानव के हस्तक्षेप से आजाद बताते रहे हैं। जिन हिस्सों में पर्यावरण अभी सुरक्षित है, वे हैं– अमेजन के घने हिस्से, कांगो के जंगल, पूर्वी साइबेरिया, उत्तरी कनाडा के जंगल और घास के मैदान, और सहारा का रेगिस्तान।

इस अध्ययन के मुख्य लेखक कैंब्रिज यूनिवर्सिटी स्थित प्रमुख जैव-विविधता क्षेत्र सेक्रेटेरिएट के निदेशक डॉ एंड्रू प्लुमप्त्रे हैं और इस अध्ययन को फ्रंटियर्स इन फॉरेस्ट्स एंड ग्लोबल चेंज नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। डॉ एंड्रू प्लुमप्त्रे के अनुसार पहले के सभी अध्ययन पृथ्वी के 20 से 40 प्रतिशत क्षेत्र को मनुष्यों के प्रभाव से परे इसलिए बताते रहे हैं, क्योंकि पिछले सभी अध्ययन उपग्रह के चित्रों पर आधारित थे और आसमान से जंगल या घास के मैदान भरे-पूरे लगते हैं पर जमीन पर वास्तविक स्थिति अलग रहती है। आसमान से बहुत घने जो जंगल नजर आते हैं, जरूरी नहीं कि उसमें मिलने वाले सभी जानवर पर्याप्त संख्या में बचे हों, या फिर उनका पारिस्थितिकी तंत्र पूरी तरह सुरक्षित हो। इस अध्ययन को जानवरों की वास्तविक संख्या के आधार पर किया गया है, जिससे सुरक्षित या फिर असुरक्षित पारिस्थितिकी तंत्र का बेहतर तरीके से पता लगाया जा सकता है।


दूसरी तरफ तापमान वृद्धि का आलम यह है कि कनाडा के कुछ क्षेत्रों में इन दिनों तापमान 50 डिग्री सेल्सियस के पार पहुंच गया है और 500 से अधिक व्यक्तियों की मृत्यु अत्यधिक गर्मी के कारण हो चुकी है। अमेरिका के कुछ क्षेत्रों में भी तापमान 46 डिग्री सेल्सियस पार कर गया है। यूरोप के भी अनेक क्षेत्रों में तापमान 45 डिग्री सेल्सियस पार कर रहा है। इटली के कुछ क्षेत्रों में गर्मी से कुछ किसानों की मौत होने के बाद अब सरकारी आदेश दिया गया है कि किसान अपने खेतों में दोपहर में ना जाएं। अमेरिका और यूरोप में तापमान के सभी रिकॉर्ड ध्वस्त होते जा रहे हैं।

पर्यावरण संहार को कानूनी मान्यता दिलवाने में सबसे मजबूती से फ्रांस के राष्ट्रपति इम्मानुएल मैक्रॉन खड़े हैं और अनेक दूसरे यूरोपीय देश और प्रशांत महासागर के देश इसका व्यापक समर्थन कर रहे हैं। अनेक मौकों पर पोप ने भी ऐसे कानून का समर्थन किया है।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia