न्याय के इंतजार में विकलांगता प्रभावित व्यक्ति, मोदी काल में कटौतियों का दौर जारी

स्पष्ट है कि विकलांगता प्रभावित व्यक्तियों को न्याय नहीं मिल रहा है और उनके लिए उपलब्ध संसाधनों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होनी चाहिए। जहां एक ओर सरकार की जिम्मेदारियों में वृद्धि हो रही है वहां दूसरी ओर वह जिम्मेदारियों के अनुकूल संसाधन को नहीं बढ़ा रही है।

प्रतीकात्मक तस्वीर
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भारत डोगरा

विकलांगता प्रभावित व्यक्तियों की स्थिति में बहुपक्षीय सुधार के लिए वर्ष 2016 में विकलांगता प्रभावित व्यक्तियों के अधिकारों का कानून पास किया गया जिससे कई स्तरों पर नई उम्मीद उत्पन्न हुई थी। पर इन उम्मीदों को पूरा करने के लिए बेहतर संसाधनों की जरूरत है। हालांकि इस कानून के क्रियान्वयन के लिए कुछ संसाधनों की व्यवस्था अलग से की गई है, पर यह आवश्यकता की तुलना में बहुत कम होने के कारण अभी बड़ी राहत मिल नहीं पाई है।

वर्ष 2011 की जनगणना के समय विकलांगता की पहचान के मात्र 7 आधार थे पर वर्ष 2016 के कानून में इस कमी को दूर करने का प्रयास किया गया और विकलांगता की पहचान का आधार अधिक व्यापक बन सका। 21 तरह की विकलांगता को मान्यता मिली। इस तरह विकलांगता प्रभावित का प्रमाण पत्र प्राप्त करने वाले व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि हुई है और इसके अनुकूल संसाधन भी बढ़ने चाहिए थे।


पर सहायता के कुछ महत्त्वपूर्ण पक्षों के लिए पर्याप्त संसाधन न होने के कारण वास्तव में यह देखा गया है कि उनकी भलाई के कुछ कार्यों का बजट बढ़ता है तो कुछ का कम हो जाता है। इसके अतिरिक्त कई मामलों में यह भी देखा गया है कि मूल आवंटन (बजट एस्टीमेट) में बजट बढ़ता है पर संशोधित आवंटन (रिवाईज्ड एस्टीमेट) में इसे कम कर दिया जाता है।

वर्ष 2020 में सहायता उपकरण देने की स्कीम का बजट 230 करोड़ रखा गया था जिसे बाद में 189 करोड़ रुपए कर दिया गया। अगले वर्ष 2021-22 में कटौती 220 करोड़ रुपए से 180 करोड़ रुपए कर दी गई। दीन दयाल पुनर्वास स्कीम के लिए वर्ष 2020-21 के बजट में 130 करोड़ रुपए का प्रावधान था पर वास्तविक खर्च 83 करोड़ रुपए पर सिमट गया। इसके अगले वर्ष भी कटौती हुई।

वर्ष 2016 में विकलांगता प्रभावित व्यक्तियों के अधिकारों का कानून बनने के बाद इसके क्रियान्वयन के लिए एक स्कीम बनाई गई जिसके लिए वर्ष 2020-21 में 252 करोड़ रुपए का बजट रखा गया जो संशोधित अनुमान में 103 करोड़ रुपए पर सिमट गया। अगले वर्ष 210 करोड़ रुपए का बजट 147 करोड़ रुपए पर सिमट गया।

स्वाययत्त संस्थानों के लिए वर्ष 2020-21 में 466 करोड़ का बजट रखा गया पर बाद में हुई कटौती में यह 281 करोड़ रुपए पर सिमट गया। स्कॉलरशिप के बजट में पिछले तीन वर्षों से निरंतर कटौती हुई। इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विकलांगता पेंशन में भी कटौती हुई है।

वर्ष 2018-19 में बजट आवंटन की तुलना में गैर-प्रयुक्त संसाधनों का प्रतिशत 4.90 था जबकि वर्ष 2019-20 में यह बढ़कर 15.66 प्रतिशत हो गया और वर्ष 2020-21 में यह और आगे बढ़कर 34.99 प्रतिशत तक पंहुच गया।


कुल बजट के प्रतिशत हिस्से के रूप में देखें तो विकलांगता प्रभावित व्यक्तियों के विभाग के लिए वर्ष 2020-21 में 0.0097 प्रतिशत बजट आवंटित हुआ पर वर्ष 2022-23 में यह कम होकर 0.0084 प्रतिशत पर सिमट गया। 2022-23 में महत्त्वपूर्ण स्कीमों के लिए कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई। स्कॉलरशिप के लिए बजट में पहले के आवंटन की तुलना में कमी हुई है।

स्पष्ट है कि विकलांगता प्रभावित व्यक्तियों को न्याय नहीं मिल रहा है और उनके लिए उपलब्ध संसाधनों में महत्त्वपूर्ण वृद्धि होनी चाहिए। जहां एक ओर सरकार की जिम्मेदारियों में वृद्धि हो रही है वहां दूसरी ओर वह जिम्मेदारियों के अनुकूल संसाधन को नहीं बढ़ा रही है। इन बढ़ती जिम्मेदारियों के कारण पिछले कुछ वर्ष में बजट में बड़ी वृद्धि का इंतजार था पर बार-बार इस संदर्भ में निराश ही होना पड़ा है। आज भी विकलांगता प्रभावित व्यक्ति न्याय के इंतजार में हैं।

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