विष्णु नागर का व्यंग्य: पीएम मोदी का कालाधन खत्म करने वाला जुमला आपको याद है न!

पीएम मोदी ने तो उस दिन कह दिया कि सवा अरब लोगों ने कालेधन के खिलाफ लड़ाई जीत ली। कौन सी लड़ाई और कौन सी जीत? क्या मोदीजी आपके रहते इतनी बड़ी बात पता नहीं चली।

फोटो: सोशल मीडिया 
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विष्णु नागर

मोदी जी तो भई देश के प्रधानमंत्री हैं। वे जो भी कहते हैं, 125 करोड़ लोगों की ओर से ही कहते हैं। इसमें न एक संख्या कम करते हैं, न एक बढ़ाते हैं। उनका एक ही आंकड़ा अभी तक फिक्स रहा है और वह है सवा सौ करोड़ आबादी, बाकी तो मौसम और माहौल के हिसाब से परिवर्तनशील होते हैं।

प्रधानमंत्री को ऐसा सर्वाधिकार हमने कब दिया कि वह हमारे मत्थे मढ़कर कुछ भी, कहीं भी कह दें, मुझे नहीं मालूम। हमसे तो आज तक किसी ने नहीं पूछा कि क्यों बे उल्लू के पट्ठे, प्रधानमंत्री जी जो कहते हैं, उस सबसे तू सहमत है न? बोल, नहीं तो साले का अभी भुर्ता बनाता हूं। न किसी ने इस तरह पूछा, न उस तरह पूछा। कम से कम एक बार पूछ तो लेते मोदीजी। ठीक है आप हमारे प्रधानमंत्री हो, मगर आप चाहें जो हमारी ओर से बोलें,यह अधिकार तो हमने आपको कभी दिया नहीं। मैं इतना तो कह सकता हूं कि यह हक मैंने उन्हें क्या किसी को नहीं दिया। हां सरकार की ओर से जी चाहे, जहां चाहें, जितना बोलें, पार्टी की ओर से भी बोलें, मगर हमारी ओर से तो न बोलें।

उन्होंने तो उस दिन कह दिया कि सवा अरब लोगों ने कालेधन के खिलाफ लड़ाई जीत ली। कौन सी लड़ाई और कौन सी जीत? इसका मतलब तो यह हुआ कि देश के किसानों-मजदूरों के साथ ही काले धनवाले भी यह लड़ाई लड़ रहे थे, लेकिन वे किसके खिलाफ लड़ रहे थे, क्या अपने खिलाफ? ऐसा भी होने लगा है क्या इस देश में? यह कलयुग है या सतयुग आ चुका है? कहीं रामराज्य ही तो साक्षात नहीं आ गया? क्या मोदीजी आपके रहते इतनी बड़ी बात पता नहीं चली। अरे मन की बात में ही बता देते। इतनी बड़ी घोषणा और आपने आज तक नहीं की, लगता है एकाएक चमत्कार हो गया है। आप क्या यकायक बेहद संकोची हो गए हैं? अपने मुंह मियां मिट्ठू बनना आपने कबसे छोड़ दिया? आपमें इतना बड़ा परिवर्तन आ गया, मगर क्यों भाई? आपका स्वास्थ्य तो ठीक है ना या हृदय परिवर्तन जैसा कुछ हो गया है आपके साथ,जबकि लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि आप हृदय जैसी फालतू चीज नहीं रखते। चलिए हमारा भ्रम टूटा, बधाई।

वैसे गुजरात चुनाव के दौरान तो आपका वही चिरपरिचित रूप दिखा था। यह रातोंरात क्या हो गया आपको? इतना बड़ा परिवर्तन और इतनी जल्दी? ऐसा तो बुद्ध और गांधी के साथ भी नहीं हुआ था, उन्हें भी समय लगा था। चलो जो होना था, हो चुका है, मगर अब तो यह बता दो कि कालेधन की यह लड़ाई मैंने कब और कहां लड़ी थी और कब जीत ली? सच बताऊं कि सपने तक में मैंने ऐसी लड़ाई नहीं लड़ी। मैं जानता हूं प्रधानमंत्री तो आनेजाने हैं, मगर कालाधन तो परमानेंट है। उससे क्या और क्यों बैर? जितना घाटा मंत्री से लड़ाई करने में नहीं होता, उससे ज्यादा नुकसान क्लर्क से लड़ाई करने में हो जाता है, इसलिए ऐसी गलती मैं नहीं करता और आपके नेतृत्व में क्या तो लड़ना और क्या जीतना। वैसे मुझे न तो आज तक किसी ने बताया और न कहीं दिखा कि देश से कालाधन फना हो चुका है। उसका ही परचम चारों ओर लहरा रहा है।

अब तो इस परचम को और ऊंचा लहराने के लिए आपने पार्टियों को कालाधन लेकर चुनाव लड़ने के सारे रास्ते खोल दिये हैं। हां याद आया कि रिजर्व बैंक ने कुछ समय पहले संकेत में कहा था कि नोटबंदी के बावजूद एक पैसे का कालाधन खत्म नहीं हुआ है। सारे पुराने नोटों की जगह नये नोटों ने ले ली है। यह भी मालूम हुआ था कि नोटबंदी का ड्रामा देश को हर तरह से बहुत महंगा पड़ा है। मगर कालाधन खत्म होने की खबर आप ही ने सुनाई है। रिजर्व बैंक ने अपने मुंह से तो आज तक ऐसा नहीं कहा, जरा उससे भी कहलवा दो। कहलवाकर देख लो, सरकार भी आपकी, रिजर्व बैंक के गवर्नर भी आपके, प्लीज बस एक बार उनसे भी कहलवा दो। आप पर तो हम हंसते ही रहते हैं, जरा उन पर भी हंसने का मौका दे दो। गवर्नर साहब शायद जानते है कि उन्हें प्रधानमंत्री जैसा नहीं बनना है। आपको फर्क नहीं पड़ता अपनी प्रतिष्ठा से, शायद उन्हें पड़ता हो। आप 56 इंच के सीने के बावजूद यह सब सह कैसे रहे हैं। यह अच्छी बात नहीं है।

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