आकार पटेल का लेख: अपनी ही पोल खोलती मोदी सरकार के सात साल की 'विकास यात्रा' जुमलों से अधिक कुछ नहीं

मोदी सरकार ने शासन में 7 साल पर विकास यात्रा नाम से जो दस्तावेज जारी किया है, उसे गौर से पढ़ने और वास्तविकता से तुलना करने पर सरकारी दावों की पोल खुद ही खुल जाती है। इन दावों को जुमलों से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता।

फोटो : सोशल मीडिया
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आकार पटेल

नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने बीते महीने अपनी सातवीं सालगिरह मनाई। हालांकि कोरोना महामारी से मौतों और बीमारियों केसाथ ही हमारे ऊपर जो दिक्कतें और मुसीबतें आ पड़ी हैं उसे देखते हुए सरकार ने सालगिरह का जश्न नहीं मनाया। लेकिन फिर भी प्रधानमंत्री ने अपनी उपलब्धियों का एक दस्तावेज जारी किया। इसे विकास यात्रा कहा गया है और इसमें मुख्यत: 15 बिंदु हैं।

पहला बिंदु है, ईज ऑफ डूइंग बिजनेस, यानी कारोबार करना आसान बनाना। विश्व बैंक की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में ईज ऑफ डूइंग बिजनेस की रैंकिंग 142 से घटकर 63 पर पहुंच गई है। निस्संदेह यह एक अच्छी बात है। लेकिन इसका अर्थ क्या है? यह बहुत ही सीमित और छोटे आकारा का एक सर्वे है जिसमें देखा जाता है कि दो शहरों (दिल्ली और मुंबई) में काम शुरु करने के लिए लाइसेंस मिलने में कितनी आसानी होती है। विकास यात्रा दस्तावेज में यह नहीं बताया गया है कि इस इंडेक्स में भारत ऊपर कैसे गया है। जाहिर है अगर ऐसा है तो बिजनेस में निवेश भी बढ़ना चाहिए। लेकिन भारत में निवेश कम हुआ है। मोदी के सत्ता में आने से पहले यह 38 फीसदी जो आज 28 फीसदी है।

दूसरा बिंदु है ईज ऑफ लिविंग यानी जीवन आसान होना। यह कोई ऐसा सूचकांक नहीं है जिसके विश्व मापता रहा हो और यह भी स्पष्ट नहीं है कि इसका अर्थ क्या है, इसलिए इसे छोड़ ही देते हैं। तीसरा बिंदु है भ्रष्टाचार का खात्मा। इसमें कहा गया है कि, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ एक ऐतिहासिक युद्ध का नेतृत्व किया है। अब ईमानदारी का सम्मान होता है और पारदर्शिता एक नियम बन चुका है।”

यहां ध्यान देने की बात है कि वैश्विक भ्रष्टाचार नजरिए का इंडेक्स बताने वाली ट्रांस्पेरेंसी इंटरनेशनल की रैंकिंग में भारत 2015 के 76वें स्थान से गिरकर इस साल 86वें स्थान पर पहुंच गया है।

चौथा बिंदु है, जिसे युवाओं को अवसर देकर सशक्त बनाना। इसमें कहा गया है कि, “बीते सात साल मेंमोदी सरकार ने युवाओं के रास्ते में आने वाले अवरोधों को खत्म किया है और विभिन्न क्षेत्रों में उनके लिए अवसर पैदा किए हैं।”

लेकिन मोदी सरकार द्वारा ही हाल में पेश किए गए लेबर फोर्स सर्वे यानी श्रमबल सर्वेक्षण में सामने आया है कि भारत में युवा बेरोजगारी की दर 23 फीसदी है। दूसरे मायनों में कहें तो देस का हर चौथा युवा काम की तलाश तो कर रहा है लेकिन उसे काम नहीं मिल पा रहा। यह दर भारत में इस समय सर्वाधिक है जो इससे पहले कभी नहीं रही।

पांचवां बिंद पेश किया गया है, हेल्थ फॉर ऑल, यानी सबके लिए स्वास्थ्य – इसे समझने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है, बस इस समय हमारे आसपास जो कुछ घटित हो रहा है उसे ही देखना काफी है।


भारत कई मायनों में विश्व से काफी अलग और अनोखा है। सबसे पहले तो यह कि भारत में वैक्सीनेशन सबसे ज्यादा महंगा है। दूसरा यह कि यहां तीन तरीके से वैक्सीन खरीदी जा रही है, केंद्र सरकार द्वारा, राज्य सरकार द्वारा और निजी कंपनियों द्वारा। तीसरी बात यह कि भारत विश्व को वैक्सीन देने के अपने वादे को पूरा नहीं कर पाया है। आज हम इसी सबकी बात करेंगे। जहां तक सबके लिए स्वास्थ्य का मुद्दा है तो अभी कुछ दिन पहले तक ही दिल्ली में ऑक्सीजन का एक सिलेंडर 60,000 रुपए तक में बिक रहा था, जो सिर्फ चंद घंटे ही चल पाता था और ऑक्सीजन या अन्य जरूरी दवाएं हासिल करने के लिए कोई नेशनल हेल्पलाइन तक नहीं थी।

छठा बिंदु जो पीएम ने बताय है वह है इंफ्रा फॉर ग्रोथ यानी तरक्की के लिए बुनियादी ढांचा। यहां ध्यान रखना होगा कि भारत की जीडीपी जनवरी 2018 से लगातार गिर रही है, और यह सरकार के अपने ही आंकड़ों से साफ है। यह 8 फीसदी से गिरकर 7 फीसदी, वहां से 6 फीसदी, फिर 4 फीदी और महामारी आने से पहले 3 फीसदी पर पहुंच चुकी थी। पिछले साल महामारी के दौर में यह ऐतिहासिक पतन का सामना कर चुकी है।

सातवां बिंदु जो सामने रखा गया है वह है, मोबिलिटी फॉर मिडिल क्लास, यानी मध्य वर्ग की गतिशीलता...इसमें कहा गया है कि “इस वर्ग के लिए मोदी सरकार ने जितना किया है उतना किसी भी पूर्ववर्ती सरकार ने नहीं किया…।” यहां भी ध्यान देना होगा कि पिछले महीने अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि महामारी के दौरान 27 करोड़ भारतीय गरीबी में धकेल दिए गए। इसका सीधा अर्थ है कि इससे पहले सरकारी गरीबी की रेखा के नीचे वे गरीब नहीं थे, लेकिन अब गरीब हो चुके हैं।

विकास यात्रा के 8वें बिंदु को नए भारत के लिए नारी शक्ति कहा गया है। देखना जरूरी है कि आज भारत के श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी 10 फीसदी के आसपास है, जो कि इतिहास में सबसे कम है। थॉमसन रॉयटर्स की एक 2018 की एक स्टडी के मुताबिक महिलाओं के काम करने की जगहों में भारत सबसे खराब स्थान माना गया है। 2020 की जॉर्जटाउन इंस्टीट्यूट की वीमेन, पीस एंड सिक्यूरिटी इंडेक्स (महिला, शांति और सुरक्षा सूचकांक) में भारत 133वें नंबर पर है जबकि 2017 में यह 131वें नंबर पर था।

बिंदु नंबर 9 को समृद्ध भारत के लिए समृद्ध किसान का शीर्षक दिया गया है। इसमें दावा किया गया है कि, “किसान कल्याण मोदी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता है।” लेकिन वास्तविकता यह है कि हजारों किसान बीते कई महीनों से दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे हैं और उन्हें आतंकवादी, खालिस्तानी और एंटी नेशनल जैसे शब्दों का इस्तेमाल कर अपमानित किया गया है।

दसवें बिंदु में कहा गया है, पुटिंह इंडिया फर्स्ट...सर्वप्रथम भारत। इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर दावे किए गए हैं। लेकिन हमें आज तक नहीं बताया गया कि देपसांग में भारतीय पेट्रोलिंग की क्या स्थिति है, और अगर विशेषज्ञों की मानें तो हमने काफी जमीन चीन को दे दी है।


नंबर 11, 12, 13 और 14 को उत्तरपूर्व पर नया फोकस, सामाजिक सशक्तीकरण, गरीबों तक विकास ले जाना और आर्थिक तरक्की में आमूल चूल परिवर्तन नाम दिया गया है। ये सारे के सारे एकदम ऐसे शब्द हैं जो सिर्फ दिखावे के हैं लेकिन फिर भी हम मान लेते हैं कि इन पर काम हुआ है।

आखिरी बिंदु है कोरोना से युद्ध। यह देखना काफी रोचक होगा कि इस बयान को दुनिया कैसे देखती है। आंकड़ों को छिपाने और मौतों की संख्या काफी कम बताए जाने के बावजूद तथ्य यही है कि भारत कोरोना मौतों के मामले में दुनिया में तीसरे नंबर पर है और कोरोना केसों के मामले में दूसरे नंबर पर है। अनुमान तो कहते हैं कि असल में कोरोना की दूसरी लहर में भारत में 10 लाख के के आसपास लोगों की मौत हुई है।

कुल मिलाकर स्थिति यह है कि जब देश मोदी शासन के आठवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है तो देश और सरकार की हालत सबके सामने है।

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