खरी-खरीः चीन विवाद को बिहार चुनाव के लिए ‘बालाकोट’ ना बनाएं, चुनावी हित छोड़, राष्ट्रहित में करें समाधान

जिस तरह बिहार रेजिमेंट के जवानों की शहादत को बिहार के विधानसभा चुनाव को देखते हुए इस्तेमाल किया गया, उससे साफ है कि मोदी चीन-भारत विवाद का उपयोग बिहार चुनाव जीतने के लिए करना चाहते हैं। लेकिन उन्हें समझना होगा कि राष्ट्रवाद राष्ट्र के हितों की रक्षा का नाम है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया
user

ज़फ़र आग़ा

काले को सफेद और सफेद को काला करने की कला कोई प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सीखे। अरे साहब, मोदी जी के लिए खुले आम झूठ बोल देना कोई बात ही नहीं है। दूर की बात तो जाने दीजिए, अभी पिछले सप्ताह चीन की लद्दाख में घुसपैठ के मामले में प्रधानमंत्री ने झूठा बयान दे दिया। यह बात जगजाहिर है कि चीनी सेना ने लद्दाख में हमारी सीमा में घुसकर गलवान घाटी पर अपना कब्जा जमा लिया। इस बात को स्वयं हमारे रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भारतीय सेना के मुखिया स्वीकार कर चुके हैं।

फिर भी, पिछले सप्ताह सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री इससे मुकर गए। बोले, चीनी सेना ने भारत की एक इंच जमीन पर भी कब्जा नहीं किया है और न ही किसी जगह पर अपनी चौकी स्थापित की है। जाहिर है, इस बात पर हो-हल्ला होना था, सो वह हुआ। दूसरे दिन प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने दूसरा झूठ बोल दिया कि लोगों ने बिना वजह प्रधानमंत्री के बयान के गलत मायने निकाल लिए। लीजिए, झूठ आप बोलिए और झूठलाइये दूसरों को। यह कोई बात हुई।

लेकिन प्रधानमंत्री के यहां ऐसी ही बेबात को बात बना दिया जाता है। न जाने कितने अवसर पर झूठ पकड़ा गया, परंतु वहां माथे पर शिकन ही नहीं। अरे, लोगों के खाते में पंद्रह लाख काले धन का माल विदेश से सन 2014 में आने वाला था। अब इस झूठ को छह वर्ष बीत गए, पर वहां कोई फर्क नहीं पड़ता। ऐसे ही नोटबंदी के मामले में न जाने कितने सफेद झूठ बोले गए। अरे भाई, झूठ का हिसाब लेने वाला तो कोई है नहीं। इसलिए जो चाहिए, वह कहिए। फिर टीवी एंकर प्रधानमंत्री के हर झूठ पर पर्दा डालने को मौजूद हैं, तो फिर डर काहे का।

परंतु लद्दाख में चीनी सेना ने घुसकर जो किया, वह कोई चुनावी अभियान का मामला नहीं। वह तो देश की अखंडता और हमारी सीमाओं का मामला है। चीनी सेना ने बहुत ही महत्वपूर्ण गलवान घाटी पर कब्जा जमा लिया है। चीन उसको अपनी जमीन कह रहा है। केवल इतना ही नहीं, उसी के निकट चीनी सेना ने ‘फिंगर 4 और फिंगर 8’ के बीच घुसकर अपनी चौकियां बना ली हैं। इसी क्षेत्र में हमारे 20 जवान वीर गति को प्राप्त हुए हैं।

यह अत्यंत गंभीर स्थिति है। यह देश की अखंडता और संप्रभुता का मामला है। ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री का खुला झूठ बोलना उचित बात नहीं है। चीन का देश पर खुले आक्रमण के खिलाफ संपूर्ण राष्ट्र प्रधानमंत्री के साथ है। हर भारतवासी की यह कामना है कि लद्दाख में हमारी एक-एक इंच भूमि चीन के कब्जे से वापस ली जाए। हमारे जवानों का जो खनू बहा है, उसका बदला लिया जाए। इस संबंध में प्रधानमंत्री जो भी कदम उठाएं, हर राजनीतिक दल और हर देशवासी उसके लिए उनके साथ है।

देश हमारी और आपकी जान से भी प्रिय है। अतः इस संबंध में किसी प्रकार की ओछी राजनीति और चुनावी हित से ऊपर उठकर देश को साथ लेकर इस समस्या के समाधान के लिए गंभीरता से कदम उठाने की आवश्यकता है। इस संबंध में झूठे बयानों से नहीं, ठोस कदम उठाने से ही काम निकलेगा। अतः इस संबंध में गलतबयानी से कतई परहेज करने की आवश्यकता है।

अब सवाल यह है कि चीन और भारत की सीमा पर जो स्थिति उत्पन्न हो गई है, उसका क्या समाधान हो सकता है! यह एक टेढ़ा प्रश्न है जिसका कोई सीधा उत्तर प्रधानमंत्री अथवा हमारी सेना या किसी और के पास नहीं है। कारण यह है कि चीन पाकिस्तान नहीं कि एक बम धमाके के बदले हमारी सेना जब चाहे पाकिस्तान को घुसकर चपत लगा आए। यह एक जमीनी हकीकत है कि चीन, चीन है और उसकी सेना से केवल दो-दो हाथ करने से काम नहीं चलने वाला है। पिछले सप्ताह ऐसा कुछ हुआ भी परंतु उसमें हमारे 20 जवान शहीद हुए और हल कुछ नहीं निकला।

दूसरी बात यह है कि हमारी सेना हर प्रकार की कुर्बानी देने को तैयार है, परंतु देश इस स्थिति में नहीं है कि वह इस समय किसी लंबे युद्ध का बोझ सह सके। और अगर इस समय फौजी ‘ऑप्शन’ का इस्तेमाल होता है तो फिर चीन युद्ध को फैला देगा और सैकड़ों मील लंबी भारत-चीन सीमा को संभालना कठिन होगा। फिर देश की अर्थव्यवस्था की इस समय दुर्दशा है। एक बड़े युद्ध का खर्च देश इस समय नहीं झेल सकता है। नोटबंदी पहले ही देश की आर्थिक दुर्दशा कर चुकी है। जो कुछ बची-खुची कसर थी, वह लॉकडाउन ने पूरी कर दी।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि एक जंग के पश्चात तो सरकार के पास वेतन बांटने के लाले पड़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में युद्ध ‘ऑप्शन’ का इस्तेमाल एक मूर्खता होगी। सरकार को यह बात समझ में आ रही है, तब ही तो गलवान घाटी में चीनी घुसपैठ के बावजूद हमारे फौजी कमांडर चीनी सेना से लगातार बातचीत कर रहे हैं। यह अत्यंत उचित रणनीति है। और सारे देश को फौज के इस कदम का साथ देना चाहिए।

परंतु समस्या गलवान घाटी को वापस लेने की है। यह एक टेढ़ी खीर है। क्योंकि चीन ने इस संबंध में बहुत चतुराई से काम लिया है। चीनी फौज ने केवल गलवान घाटी पर ही कब्जा नहीं किया है, अपितु उसके आसपास कुछ और घाटियों पर भी अपना कब्जा जमा लिया है। चीन की रणनीति स्पष्ट है। वह लेनिन की दो कदम आगे और एक कदम पीछे हटने की पुरानी रणनीति पर काम कर रहा है।

अर्थात चीनी फौज का मुख्य मुद्दा गलवान पर अपना कब्जा जमाना था। और वहां से वह हटने को तैयार नहीं है। इसके लिए उसने आसपास के कुछ ‘और इलाकों’ पर भी अपना कब्जा जमा लिया। चीनी फौज की मंशा यह है कि बातचीत जब हो तो वह गलवान छोड़ दूसरी जगहों से हटने को तैयार हो जाए। यह दो कदम आगे बढ़कर एक कदम पीछे हटने की रणनीति है, जिसके तहत एक कदम हटकर एक कदम तो अपने कब्जे में बना ही रहेगा।

अब इस संगीन स्थिति से कैसे निपटा जाए? आर्थिक कारणों से लंबा युद्ध हो नहीं सकता है। और छोटी-मोटी फौजी प्रतिक्रिया में बेवजह जवानों की मौतें हो सकती हैं। तो फिर हो तो और क्या हो! ऐसे संकट में भारत के पास केवल एक ही ऑप्शन बचा है, वह है आर्थिक ऑप्शन। वह क्या है? भारत चीन के लिए एक अत्यंत महत्वपूर्ण बाजार है। चीनी माल इन दिनों घर-घर पटा पड़ा है। चाहे दीवाली पर बत्तियों की लड़ियां हों अथवा गणेश और लक्ष्मी जी की मूर्तियां- यह सब कुछ चीन का बना माल है। सस्ते चीनी मोबाइल फोन करोड़ों की तादाद में बिक रहे हैं। चाहे वह इलेक्ट्राॅनिक माल ही क्यों न हो, भारत के घर-घर में कुछ-न-कुछ चीनी माल मिल ही जाएगा। सड़कों की फुटपाथ पर बिकने वाले सस्ते जूते-चप्पल से लेकर कार, ट्रक एवं ट्रैक्टरों के टायर तक सब कुछ चीनी माल है।

चीन के साथ भारत का कारोबार पिछले वर्ष लाखों हजार करोड़ का था। क्या चीन आठ-दस किलोमीटर जमीन के लिए हजारों करोड़ का भारतीय मार्केट बंद कर सकता है? अतः हमारे पास चीनी सामान की भारत में नाकेबंदी करने का ऑप्शन है और इस दबाव में चीन के साथ समस्या का समाधान निकल सकता है।

परंतु मोदी सरकार को यह बात भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि चीन के साथ समस्या का हल राष्ट्रहित में हो, चुनावी हित में न हो। जिस प्रकार बिहार रेजिमेंट के मारे गए जवानों की शहादत को बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर इस्तेमाल किया गया, उससे यह प्रतीत हो रहा है कि मोदी चीन-भारत समस्या का इस्तेमाल बिहार का चुनाव जीतने के लिए करना चाहते हैं।

साफ है कि जिस प्रकार ‘बालाकोट कांड’ का इस्तेमाल कर मोदी सरकार ने 2019 का लोकसभा चुनाव जीता, उसी प्रकार वह बिहार चुनाव जीतने के लिए चीन के परिप्रेक्ष्य में राष्ट्रवाद का उपयोग कर सकती है। यह बात उचित नहीं होगी। राष्ट्रवाद राष्ट्र के हितों की रक्षा का नाम है। राष्ट्रवाद का उपयोग किसी एक पार्टी के हित में करना उचित नहीं होगा।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia