व्यापक एकता के जरिये किये जाएं विश्व शान्ति के प्रयास

युद्ध से बढ़ते विनाश को रोकने के लिए विश्व में कई रुपों में और कई स्तरों पर एक शान्ति आंदोलन उभर रहा है। यह कोई संगठित आंदोलन नहीं है, बल्कि विभिन्न स्थानों पर अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार लोग तनाव और युद्ध को रोकने के लिए संगठित होते रहे हैं।

फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

वह दिन दूर नहीं गए जब शीत युद्ध के बादल छंटते हुए लगे थे और इसकी वजह से विश्व में वास्तविक युद्ध की संभावना कम होने की भी उम्मीद की गई थी। लेकिन उसके बाद कभी अफगानिस्तान, तो कभी सीरिया, कभी इराक तो कभी यमन में बेहद हिंसक युद्ध होते रहे जिनमें लाखों लोग मारे गए। खतरनाक शस्त्रों का भंडार भी पहले से निरंतर बढ़ता ही गया है। इस स्थिति में यह बहुत जरूरी हो गया है कि जमीनी स्तर पर विश्व शान्ति के प्रयास जनसाधारण के स्तर पर मजबूत किये जाएं, जिससे विश्व शांति के पक्ष में एक व्यापक माहौल टिकाऊ तौर पर बन सके।

इसका एक उपाय यह है कि विश्व में जगह-जगह पर शांति आंदोलन, महिला आंदोलनों और पर्यावरण आंदोलनों जैसे अन्य जन आंदोलनों से नजदीकी संबंध बनाए।

युद्ध से बढ़ते विनाश को रोकने के लिए विश्व में कई रुपों में और कई स्तरों पर एक शान्ति आंदोलन उभर रहा है। यह विश्व स्तर पर संगठित कोई एक आंदोलन नहीं है, बल्कि विभिन्न स्थानों पर अपने-अपने क्षेत्र की परिस्थितियों के अनुसार लोग तनाव और युद्ध को रोकने के लिए संगठित होते रहे हैं।

दक्षिण एशिया में जहां इसकी विशेष जरूरत है, वहां यह काफी कमजोर है। इसके रास्ते में अनेक कठिनाईयां हैं। अतः अपने प्रभाव क्षेत्र को बढ़ाने के लिए इसे अन्य सार्थक आंदोलनों से संबंध बनाने चाहिए और आपसी सहयोग की संभावनाएं तलाशनी चाहिए। इतना तो स्पष्ट है कि विश्व में युद्ध का खतरा और सैन्य खर्च कम होने से लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए अधिक धन उपलब्ध होगा, लेकिन इसके अतिरिक्त युद्ध की संभावना कम होने के और भी अनेक लाभ होंगे जिनके आधार पर अन्य सार्थक आंदोलनों और शान्ति आंदोलन में परस्पर गहरा सहयोग स्थापित किया जा सकता है।

शान्ति आंदोलन का महिला आंदोलन से नजदीकी सहयोग हो सकता है, क्योंकि महिलाओं पर यौन अत्याचार सबसे बड़े पैमाने पर युद्ध और आंतरिक कलह के दौरान ही होते हैं। बंगलादेश की स्वाधीनता के युद्ध के समय प्रमुख समाचार पत्रों में प्रकाशित आंकड़ो के अनुसार लगभग 2 लाख से 4 लाख तक महिलाओं से पाकिस्तानी सेना और उनके सहयोगियों द्वारा बलात्कार किया गया। इसकी वजह से लगभग 25000 महिलाएं गर्भवती हो गयीं और बहुत बड़ी संख्या में महिलाएं यौन रोगों से पीड़ित हुईं। बहुत सी महिलाएं बाद में अपने समाज में स्वीकृति प्राप्त नहीं कर सकीं और उनमें से अनेक ने आत्महत्या कर ली। यह युद्ध आतंक फैलाने के लिए बलात्कार को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने का एक ऐतिहासिक उदाहरण है।

लेकिन युद्ध के समय बलात्कार का एक दूसरा रूप भी देखा गया है। कई जगहों पर जीत का जश्न मनाने के लिए बलात्कार किया गया। सन् 1937-38 में जापान के सैनिकों ने चीन के नानकिंग नगर पर कब्जा कर लिया। उन्हें आतंक फैलाने की तो अब कोई जरुरत नहीं थी, लेकिन जीत का जश्न मनाने के लिए उन्होंने बलात्कार और यौन अपराधों का अंतहीन सिलसिला आरंभ कर दिया। इस एक ही शहर में जापानी आधिपत्य होने के एक माह के भीतर ही 20000 बलात्कार होने के आरोप की पुष्टि एक जांच ट्रिब्यूनल ने की है। उनमें से अनेक महिलाओं से पहले निशुल्क मजदूरी करवाई गई, फिर बेहद बर्बर व्यवहार किया गया और अंत में इनमें से कुछ की विकृत ढंग से हत्या भी की गई।

द्वितीय विश्व युद्ध में आतंक फैलाने के लिए और जीत का जश्न मनाने के लिए दोनों तरह के बलात्कार के अनगिनत उदाहरण हैं। दोनों ओर की सेनाओं ने यह जुल्म किया, लेकिन सबसे अधिक जर्मनी और जापान की सेनाओं ने किया। वियतनाम के युद्ध में अमरीकी सैनिकों के लिए व्यभिचार के बहुत बड़े अड्डे खोले गए, लेकिन यह उनके लिए पर्याप्त सिद्ध नहीं हुआ और उन्होंने बहुत बडे़ पैमाने पर और बर्बर तरीके से यौन अपराध किये। कड़वी सच्चाई यह है कि ज्यादातर युद्धों में कम हो या ज्यादा महिलाओं पर यौन अत्याचार हुए हैं।

हाल ही में युद्ध के रूप में कुछ ऐसे बदलाव आए हैं जिससे महिलाओं के पीड़ित होने की संभावना पहले से बढ़ गई है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आंकड़ों के अनुसार युद्ध में सैनिकों की अपेक्षा जनसाधारण के अधिक संख्या में मरने की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ रही है और अब तो स्थिति यह है कि युद्ध में होने वाली 90 प्रतिशत मौतें आम नागरिकों की होती हैं। युद्ध के इस बदलते रूप में महिलाओं के उत्पीड़न की संभावना कहीं अधिक हो गई है। विश्व में शरणार्थियों की कुल संख्या में से अधिकांश महिलाएं और बच्चे थे। अतः निश्चय ही शान्ति आंदोलन और महिला आंदोलन में सहयोग की संभावनाएं सदा से रही हैं और निरंतर बढ़ रही हैं।

सामाजिक बिखराव, परिवार की टूटन और अपराधों को रोकने के प्रयास भी इन समस्याओं के बढ़ने के साथ एक अभियान या आंदोलन का रुप अनेक देशों में ले रहे हैं। इस अभियान के शान्ति आंदोलन से सामंजस्य करने और सहयोग करने की बहुत संभावनाएं हैं। युद्ध अपने आप में सामाजिक बिखराव का एक बहुत बड़ा कारण है। युद्ध ऐसी परिस्थितियां पैदा करता है, जिससे कितने ही परिवारों को अलग होना पड़ता है। युद्ध और आंतरिक कलह के कारण जब भी किसी देश का बंटवारा हुआ (चाहे वह जर्मनी हो, यूगोस्लाविया या भारत) तो इसकी वजह से लाखों परिवार भी टूट गए।

सामान्य परिस्थितियों में भी सेना के सदस्यों को प्रायः परिवार से काफी समय के लिए दूर रहना पड़ता है। विशेषकर जिन देशों की सेनाओं ने दमनकारी और जुल्म की कार्यवाहियों में ज्यादाहिस्सा लिया है, उनके सदस्यों के घरेलू जीवन में भी हिंसक प्रवृत्तियां या अन्य विकृतियां आने की संभावना रहती है। टाईम पत्रिका में प्रकाशित आंकड़ो के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में पत्नी के प्रति हिंसा की जो दर अन्य परिवारों में है, उससे दुगुनी दर अमरीकी सैनिको के परिवारों में है। इसी पत्रिका के अनुसार खाड़ी युद्ध के एक तथाकथित ‘हीरो’ (नायक) ने देश लौटकर कुछ समय बाद अपनी पत्नी और पांच वर्षीय बेटी की हत्या कर दी। वियतनाम पर भयानक बमबारी करनेवाले एक अमरीकी वायुसेना के पायलट के बारे में बाद मे रीडर्स डाईजेस्ट के एक लेख ने लिखा कि इस याद को भुलाने के लिए वह बहुत शराब पीने लगा और उसका पारिवारिक जीवन टूटने लगा।

युद्ध, आंतरिक कलह और दंगो से जो अराजकता फैलती है, उसमें अपराधी तत्वों को आगे आने और नेतृत्व की भूमिका संभालने का मौका मिलता है। जैसा भारत में सांप्रदायिक हिंसा के फैलाव के समय बार-बार देखा गया है। युद्ध के समय जिन हिंसक प्रवृत्तियों को उकसाया जाता है, वे बाद में अपराधों को बढ़ाने का कार्य कर सकती हैं।

यह संबंध एकतरफा भी नहीं है। जिस समाज में अपराध बढ़ते हैं, परिवार टूटते हैं, महिलाओं पर आधिपत्य और उन पर होने वाले अपराधों में वृद्धि होती है, उस समाज में वे मनोवैज्ञानिक रुझान और प्रवृत्तियां बढ़ती जाती हैं जिनसे युद्ध के अनुकूल परिस्थितियों को हवा मिलती है। इन कारणों से सामाजिक बिखराव को रोकने के अभियान और विश्व शान्ति आंदोलन में आपसी सहयोग लाजमी हैं। ये दोनों एक दूसरे को बहुत सहायता पहुंचा सकते हैं।

इसी तरह शान्ति आंदोलन और पर्यावरण आंदोलन का परस्पर सहयोग बहुत सार्थक और उपयोगी सिद्ध हो सकता है। मथियास फिंगर ने युद्ध और सैन्य गतिविधियों संबंधित पर्यावरणीय विनाश पर अपने बहुचर्चित शोध पत्र में बताया है कि विश्व में 10 से 30 प्रतिशत तक पर्यावरणीय विनाश के लिए सैन्य गतिविधियां जिम्मेदार हैं। 6 से 10 प्रतिशत तक वायु प्रदूषण की जिम्मेदारी उनकी है। खतरनाक रसायनिक और नाभिकीय अवशेषों का तो सबसे अधिक उत्पादन विश्व की सेनाओं द्वारा ही होता है। संयुक्त राज्य अमरीका में पांच सबसे बड़ी रसायनिक कंपनियों से भी अधिक खतरनाक उत्पाद और अवशेष पेंटागन के कार्याें से उत्पन्न हुए। 99 प्रतिशत उच्च स्तरीय रेडियोधर्मी अवशेष और 75 प्रतिशत मध्यम स्तरीय नाभिकीय अवशेष उन नाभिकीय संयत्रों से प्राप्त हुए जिन्हें सैन्य गतिविधियों के लिए संचालित किया गया। इसी देश के रक्षा विभाग ने पर्याप्त खोजबीन के बाद पता लगाया कि 1600 सैनिक अड्डों के 15000 स्थान बहुत प्रदूषित हो चुके हैं।

वियतनाम में 50000 एकड़ मैनग्रोव वनों से लगभग 20 लाख लोगों को किसी न किसी तरह का वन-उत्पाद मिलता था। अमरीकी विमानों ने इन पर जहरीले रसायन गिराकर 90 प्रतिशत वृक्षों का विनाश कर दिया। इस युद्ध के दौरान वियतनामी लोगों और वहां के पर्यावरण पर 1 करोड़ 30 लाख टन बमों के साथ 7 करोड़ 20 लाख लिटर वनस्पतिनाशक भी गिराये गए। इस कारण युद्ध के बाद भी अनेक गंभीर बीमारियां और स्वास्थ्य समस्याएं फैलती रहीं।

खाड़ी युद्ध (1991) के दौरान तेल के कुओं में भयंकर अग्निकांड हुए। इस कारण उस समय एक दिन में 50000 टन सल्फर डाईऑक्साईड वायुमंडल में छोड़ी जा रही थी, जो कि एसिड रेन की एक प्रमुख वजह है। यहां का धुआं वायुमंडल में 7 किमी ऊपर तक देखा गया और इस स्थान से 2000 किमी दूर तक इसका फैलाव हुआ। वैज्ञानिकों ने बताया कि इसका दुष्परिणाम भारत तक पहुंच सकता है।

अतः यह स्पष्ट है कि युद्ध एक बहुत बड़ा प्रदूषक है, लेकिन दूसरी ओर यह भी सच है कि जहां पर्यावरण का विनाश बढ़ता है और इसके कारण खाद्य संकट, जल संकट आदि उत्पन्न होते हैं, वहां युद्ध और हिंसा की संभावना बढ़ जाती है। खाड़ी क्षेत्र में तेल के लिए युद्ध होते रहें है, लेकिन अब पीने के पानी के लिए युद्ध होने की संभावना भी बढ़ रही है। अरब राज्यों में 55 प्रतिशत लोग गंभीर जल संकट से ग्रस्त हैं। एक देश से दूसरे देश में (या एक ही देश के एक प्रान्त से दूसरे प्रान्त में) बांध बनाकर पानी रोका जाता है तो इस कारण तनाव उत्पन्न हो सकते हैं। एक देश से दूसरे देश में जल और वायु प्रदूषण पहुंचता है तो इस कारण भी तनाव बढ़ सकता है। स्पष्ट है कि पर्यावरण आंदोलन और शांति आंदोलन में परस्पर सहयोग की बहुत संभावना है।

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