आकार पटेल / इंसानी हकों पर बढ़ते हमलों की लंबी होती फेहरिस्त और संयुक्त राष्ट्र की चिंता पर भारत की प्रतिक्रिया

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने ऐसे मामलों का दस्तावेज तैयार किया है, जिससे पता चलता है कि भारत में मानवाधिकार उल्लंघन के मामलों की फेहरिस्त कितनी लंबी हो चुकी है। और अभी तो साल के तीन महीने बाकी हैं, फिर भी संयुक्त राष्ट्र ने इस पर गहरी चिंता जताई है।

सांकेतिक तस्वीर
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आकार पटेल

मैं जिन संगठन का प्रतिनिधित्व करता हूं, वह हर साल के अंत में भारत में मानवाधिकारों पर एक रिपोर्ट जारी करता है। यह एमनेस्टी इंटरनेशनल के वैश्विक मूल्यांकन का एक हिस्सा है, जो दुनिया भर के देशों द्वारा किए गए मानवाधिकारों के उल्लंघनों (हालांकि पूरी तरह नहीं) पर केंद्रित होता है।

इस साल की रिपोर्ट का मसौदा पढ़ रहा था, जिसे सितंबर तक अपडेट किया गया है। तो मैने सोचा कि पाठकों को यह जानने में दिलचस्पी होगी कि इस मोर्चे पर हम कहां खड़े हैं। यह कुछ मुख्य बातों की सूची है, या यूं कहें कि कमियों की सूची है।

जनवरी में उत्तराखंड ने समान नागरिक संहिता लागू करने वाले नियम पारित किए। इसके तहत, लिव-इन रिलेशनशिप का सरकार के पास पंजीकरण कराना अनिवार्य है, और जाहिर तौर पर इसका उद्देश्य धोखाधड़ी से होने वाले विवाहों के ज़रिए धर्मांतरण को रोकना है। ये नियम सरकार द्वारा गठित नौ सदस्यीय समिति की रिपोर्ट पर विचार किए बिना ही पारित कर दिए गए।

इसी तरह फरवरी में, राजस्थान ने एक विधेयक पेश किया जिसमें सहमति से होने वाले अंतर-धार्मिक विवाहों को अपराध घोषित किया गया है। इसके तहत मुसलमानों द्वारा हिंदुओं से विवाह करने वालों के लिए दस साल की जेल और हिंदुओं द्वारा मुसलमानों से विवाह करने वालों के लिए भी दस साल की जेल का प्रस्ताव रखा गया। महाराष्ट्र ने भी अंतर-धार्मिक विवाहों को रोकने के मकसद से एक प्रस्ताव पारित किया।

इसी महीने मालवण नगर निगम ने एक ऐसे नाबालिग लड़के के पिता की कबाड़ की दुकान को ध्वस्त कर दिया, जिसपर चैंपियंस ट्रॉफी क्रिकेट मैच में पाकिस्तान के खिलाफ भारत की जीत के बाद कुछ बोलने का आरोप था।

मार्च में, महाराष्ट्र पुलिस ने स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा के खिलाफ उनके शो 'नया भारत' के सिलसिले में एक एफआईआर दर्ज की। इसके बाद कार्यक्रम स्थल पर हिंसा भड़क उठी। यह ऐसी घटनाओं की एक कड़ी का हिस्सा थी जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को रोकने के लिए राज्य ने अपनी शक्ति का दुरुपयोग किया।

पिछले महीने, दिल्ली पुलिस ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के ऐसे बारह छात्रों को हिरासत में लिया था, जो 2024 में “विश्वविद्यालय अधिकारियों की अनुमति या सूचना के बिना” कथित तौर पर नारेबाजी करने के लिए दो पीएचडी छात्रों को जारी किए गए कारण बताओ नोटिस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे।

मार्च में ही, असम पुलिस ने पत्रकार दिलवर हुसैन मजूमदार को राज्य सरकार द्वारा संचालित एक बैंक में हुई कथित धोखाधड़ी के खिलाफ हो रहे विरोध प्रदर्शन की रिपोर्टिंग करने के लिए गिरफ्तार कर लिया था। उन्होंने उस बैंक में वित्तीय समस्याओं पर लगातार रिपोर्टिंग की थी, जिसके निदेशक राज्य के मुख्यमंत्री हैं।


अप्रैल में लोक गायिका नेहा सिंह राठौर के खिलाफ लखनऊ में एफआईआर दर्ज की गई थी, क्योंकि उन्होंने पहलगाम में हुए आतंकवादी हमलों पर टिप्पणी की थी। पहलगाम हमले में 26 लोग मारे गए थे।

मई में, भारत ने ब्रिटिश-कश्मीरी शिक्षाविद निताशा कौल की ओवरसीज़ सिटिज़न्स ऑफ़ इंडिया (OCI) का दर्जा रद्द कर दिया था। वह भारत में बढ़ते अधिनायकवाद के ख़िलाफ़ नियमित रूप से बोलती रही हैं।

मई में ही, नागपुर पुलिस ने दिवंगत कार्यकर्ता वीरा साथीदार की पत्नी पुष्पा साथीदार सहित तीन लोगों के खिलाफ फैज़ अहमद फैज़ की कविता "हम देखेंगे" पढ़ने के आरोप में एफआईआर दर्ज की थी। हरियाणा पुलिस ने "ऑपरेशन सिंदूर" पर सोशल मीडिया पोस्ट को लेकर अशोका विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद के खिलाफ दो एफआईआर दर्ज कीं। नागपुर पुलिस ने 26 वर्षीय रेजाज़ एम सिद्दीकी को इंस्टाग्राम पर ऑपरेशन सिंदूर का कथित तौर पर अपमान करने के आरोप में गिरफ्तार किया। बाद में उस पर गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम-यूएपीए के तहत आरोप लगाए गए।

 22 अप्रैल से 8 मई के बीच, नागरिक अधिकार संरक्षण संघ (एपीसीआर) ने पहलगाम हमले के बाद मुसलमानों को निशाना बनाकर किए गए कम से कम 184 घृणा अपराधों का ब्योरा दर्ज किया।

जून में, भारत ने द अनियन से प्रेरित व्यंग्यात्मक मीम पेज, द सवाला वडा, के इंस्टाग्राम अकाउंट को बंद कर दिया। इसके बाद, मुंबई पुलिस ने फिलिस्तीनियों के समर्थन में एक रैली में शामिल होने के लिए आज़ाद मैदान में इकट्ठा हुए 19 लोगों को हिरासत में लिया। जुलाई में, भारत ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) को 2,000 से ज़्यादा अकाउंट ब्लॉक करने का आदेश दिया, जिनमें रॉयटर्स न्यूज़ के दो अकाउंट भी शामिल थे।

जुलाई में, महाराष्ट्र विशेष जन सुरक्षा अधिनियम लागू हुआ, जो जन सुरक्षा की आड़ में असहमति को अपराध मानता है।

अगस्त में, कश्मीर ने पत्रकारों, इतिहासकारों, नारीवादियों और शांति विद्वानों द्वारा लिखी गई 25 पुस्तकों पर प्रतिबंध लगा दिया, उन पर 'आतंकवाद का महिमामंडन करने और हिंसा भड़काने' का आरोप लगाया गया। अगस्त में ही, गुवाहाटी पुलिस ने पत्रकार सिद्धार्थ वरदराजन और करण थापर को राजद्रोह के एक मामले में बिना कोई और जानकारी दिए तलब किया।

इसके अगले महीने, गांधीनगर की एक अदालत ने पत्रकार अभिसार शर्मा और राजू पारुलेकर को असम में अडानी समूह को बहुत कम कीमत पर जमीन के एक बड़े क्षेत्र की बिक्री की रिपोर्टिंग के लिए नोटिस जारी किया।


इसके साथ ही कमज़ोर लोगों पर अत्याचार करने के मामले भी तेजी से बढ़े हैं। मई में, 40 रोहिंग्याओं की आंखों पर पट्टी बांधकर उन्हें अंडमान और निकोबार द्वीप ले जाया गया और फिर समुद्र में फेंक दिया गया और उन्हें तैरकर म्यांमार के एक द्वीप तक पहुँचने के लिए मजबूर किया गया। और पहलगाम हमले के बाद, कम से कम 300 मुसलमानों को असम से बांग्लादेश 'धकेल दिया गया'।

मई में, असम सरकार ने ऐलान किया कि वह लोगों को, खासकर मुस्लिम बहुल ज़िलों में, हथियार लाइसेंस देगी। जुलाई के पहले पखवाड़े में, असम सरकार ने ग्वालपाड़ा में बेदखली अभियान चलाया जिसके चलते लगभग 1800 परिवार बेघर हो गए थे। प्रभावित लोगों में ज़्यादातर मुसलमान थे।

जुलाई के उत्तरार्ध में, असम ने उरियमघाट में, जहाँ मुख्यतः मुस्लिम आबादी है, 11,000 बीघा से ज़्यादा वन भूमि पर कब्ज़ा करने के लिए बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान चलाया। कई प्रक्रियाओं के उल्लंघन के कारण सर्वोच्च न्यायालय ने इस अभियान पर रोक लगा दी थी।

जुलाई के दूसरे पखवाड़े में असम सरकार ने मुस्लिम आबादी वाले उरियमघाट में, 11,000 बीघे से ज़्यादा वन भूमि पर कब्ज़ा करने के लिए बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान चलाया। कई प्रक्रियाओं के उल्लंघन के कारण सुप्रीम कोर्ट ने इस अभियान पर रोक लगाई थी।

सितंबर में, भारत ने चार पुराने कानूनों को निरस्त कर दिया और अब शरणार्थियों को "अवैध प्रवासी" के रूप में वर्गीकृत किया गया है।

और अभी तो अक्टूबर का महीना शुरु ही हुआ है, और तय है कि ऐसा ही बहुत कुछ और भी होगा।

उमर खालिद और अन्य मुस्लिम स्टूडेंट्स एक्टिविस्ट फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा में कथित तौर पर शामिल होने के आरोपों में बिन मुकदमे के ही जेल में हैं। इस हिंसा में 53 लोगों की जान गई थी - जिनमें से 38 मुस्लिम थे।

संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त ने भी एक रिपोर्ट जारी की है और उन्होंने कहा है:

"मैं मानवाधिकार रक्षकों और स्वतंत्र पत्रकारों के उत्पीड़न और उनके खिलाफ ऐसे प्रतिबंधात्मक कानूनों के इस्तेमाल से चिंतित हूं, जिसके नतीजे में लोगों को मनमाने ढंग से हिरासत में लिया जा रहा है और कश्मीर सहित अन्य जगहों पर नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है। मैं अपील करता हूं कि मणिपुर में हिंसा और उजाड़े जाने की समस्या से निपटने के लिए संवाद, शांति स्थापना और मानवाधिकारों के आधार पर और अधिक कोशिशें की जानी चाहिए।"

संयुक्त राष्ट्र आयोग की इस चिंता पर भारत ने दूरदर्शन पर एक खबर प्रसारित कर अपनी प्रतिक्रिया जताई। इस खबर का शीर्षक था, 'भारत ने कश्मीर और मणिपुर पर निराधार और आधारहीन टिप्पणी के लिए संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार की निंदा की'।

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