जी20 देशों की देन है अत्यधिक गरीबी और आर्थिक असमानता, इनकी नीतियां खुले आम देती हैं अरबपतियों को बढ़ावा

जी20 की नीतियां केवल वैश्विक स्तर पर ही आर्थिक असमानता नहीं बढ़ातीं, बल्कि अपने देशों में भी इसे बढ़ाती हैं। जी20 की आर्थिक नीतियां खुले आम अरबपतियों को बढ़ावा देती हैं और सामान्य आबादी को आर्थिक तौर पर कुचलती हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

भारत की अध्यक्षता में जी20 नई दिल्ली घोषणापत्र में कहा गया है, “हम ऐसे विकास मॉडल अपनाएंगे जिससे वैश्विक स्तर पर सतत, समावेशी और न्यायसंगत बदलाव देखने को मिलेंगे, और कोई भी इससे वंचित नहीं रहेगा”। इस घोषणा पत्र की सत्ता के गलियारों और मीडिया में खूब तारीफ़ की गयी और अब तो इसे चुनावी तमाशों में भी सुनाया जा रहा है। देश की बर्बादी का आलम तो देखिये - वर्ष 2022 में देश के अरबपतियों की अर्थव्यवस्था में 46 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गयी, तो दूसरी तरफ देश में परिवारों की बचत पिछले 50 वर्षों के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गयी और 25 वर्ष तक की उम्र के स्नातकों के बीच बेरोजगारी दर 42.3 प्रतिशत पहुंच गयी।

प्रधानमंत्री जी के तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था और 5 ख़रब वाली अर्थव्यवस्था के दावों के बीच आर्थिक असमानता का इससे बड़ा उदाहरण और क्या होगा कि देश की आबादी में सबसे अमीर लोगों की महज 5 प्रतिशत आबादी के पास देश की 60 प्रतिशत संपदा है, तो दूसरी तरफ सामान्य आबादी वाले घरों की बचत वर्ष 2022-2023 में देश की कुल जीडीपी के 5.1 प्रतिशत तक सिमट गयी है, जो वर्ष 2021-2022 में 7.2 प्रतिशत और वर्ष 2020-2021 में 11.5 प्रतिशत थी।

जैसी उम्मीद थी, इस शिखर सम्मेलन में सबकुछ नाटकीय था। तीन खण्डों में वार्ता और चर्चा होने की बात कही गयी थी, जाहिर है इसके बाद ही कोई साझा घोषणापत्र आना था, पर पहले अधिवेशन के बीच में ही बड़े तामझाम और प्रचार के साथ साझा घोषणापत्र जनता और मीडिया के बीच में आ गया। प्रकाशित घोषणापत्र में कहा गया है कि जी20 राष्ट्राध्यक्षों की बैठक 9 और 10 सितम्बर को आयोजित की गयी, वहीं प्रेस इनफार्मेशन ब्यूरो ने 9 सितम्बर को शाम 4.49 बजे ही घोषणापत्र प्रकाशित भी कर दिया था।

खैर साझा घोषणापत्र जारी कर दिया गया– इसमें दुनिया में शांति की बात कही गयी है, सबके विकास की बात कही गयी है, आर्थिक और पर्यावरणीय विकास की बात कही गयी है और लैंगिक समानता की बात भी है। यह घोषणापत्र ठीक श्री मदभागवत गीता की तरह है, जिसका नाम और उद्धरण हर कोई लेता है, पर इसका पालन कोई नहीं करता है। घोषणापत्र में कुछ भी लिखा हो पर तथ्य यह है कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक असमानता का सबसे कारण जी20 समूह ही है। जी20 समूह की तारीफ़ करते हुए, इसकी महानता बताते हुए हमेशा कहा जाता है कि वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद में जी20 समूह के देशों की सम्मिलित भागीदारी लगभग 85 प्रतिशत है। सरल शब्दों में पूरे दुनिया की अर्थव्यवस्था में से 85 प्रतिशत हिस्सेदारी इन देशों की है। दुनिया में 200 से अधिक देश हैं, जाहिर है 180 से अधिक देशों की वैश्विक अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी महज 15 प्रतिशत है। दुनिया की आर्थिक असमानता यहीं से शुरू होती है।


जी20 की नीतियां केवल वैश्विक स्तर पर ही आर्थिक असमानता नहीं बढ़ातीं, बल्कि अपने देशों में भी इसे बढ़ाती हैं। जी20 की आर्थिक नीतियां खुले आम अरबपतियों को बढ़ावा देती हैं और सामान्य आबादी को आर्थिक तौर पर कुचलती हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण तो प्रधानमंत्री मोदी का भारत है। हमारे देश में सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी की सम्मिलित सम्पदा की तुलना में सबसे समृद्ध 1 प्रतिशत आबादी के पास 13 गुना अधिक आर्थिक सम्पदा है। देश की सबसे समृद्ध 5 प्रतिशत आबादी के पास देश की 60 प्रतिशत से अधिक सम्पदा है। पर, दुखद यह है कि इस आर्थिक असमानता पर भी सत्ता और मीडिया इतराती है, इसे प्रधानमंत्री मोदी की सफलता बताती है। पिछले कुछ वर्षों से अडानी और अम्बानी की संपत्ति में साल-दर-साल कई गुना इजाफा हो जाता है तो दूसरी तरफ देश की 81 करोड़ आबादी 5 किलो मुफ्त अनाज पर ज़िंदा है। वर्ल्ड इकोनॉमिक्स द्वारा प्रकाशित आर्थिक असमानता रैंकिंग से ही इन देशों में असमानता की स्थिति का पता लग जाता है। केवल यूरोपियन यूनियन के कुछ देश ही इस रैंकिंग में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। वर्ष 2023 की रैंकिंग में दक्षिण अफ्रीका 155वें स्थान पर है, भारत का स्थान 147वां है, सऊदी अरब 141वें स्थान पर और ब्राज़ील 129वें स्थान पर है। इस सूचि में मेक्सिको 92वें स्थान पर, तुर्किये 89वें स्थान, जापान 87वें पर, चीन 82वें स्थान पर, अर्जेंटीना 74वें, अमेरिका 66वें, कनाडा 59वें स्थान पर, इंडोनेशिया 53वें, रूस 46वें, इटली 44वें, और जर्मनी 41वें स्थान पर है। सूचि में सबसे बेहतर प्रदर्शन वाले देश हैं – यूनाइटेड किंगडम 31वें स्थान पर, ऑस्ट्रेलिया 30वें स्थान पर और फ्रांस 27वें स्थान पर।

ऑस्ट्रेलिया में सबसे समृद्ध 10 प्रतिशत आबादी के पास 46 प्रतिशत सम्पदा है, जबकि सबसे गरीब 60 प्रतिशत आबादी की सम्मिलित सम्पदा महज 17 प्रतिशत है। दक्षिण अमेरिका में सबसे अधिक आर्थिक समानता वाले देश, अर्जेंटीना में सबसे समृद्ध 20 प्रतिशत आबादी के पास देश की लगभग 48 प्रतिशत संपत्ति है, दूसरी तरफ ब्राज़ील में देश की आधी सम्पदा सबसे समृद्ध 1 प्रतिशत आबादी के पास ही केन्द्रित है। कनाडा में सबसे समृद्ध 20 प्रतिशत आबादी के पास 68 प्रतिशत संपत्ति है, जबकि सबसे गरीब 40 प्रतिशत आबादी के

हिस्से में महज 2.6 प्रतिशत संपत्ति है। फ्रांस, जर्मनी, इंडोनेशिया, इटली, जापान, और दक्षिण कोरिया की सबसे समृद्ध 10 प्रतिशत आबादी के पास क्रम से 47%, 37%, 52%, 37%, 40% और 35 प्रतिशत सम्पदा है।


मेक्सिको, रूस, सऊदी अरब और अफ्रीकन यूनियन के देशों में समृद्ध 10 प्रतिशत आबादी के पास क्रम से 79%, 87%, 80% और 47% सम्पदा है। तुर्किये में सबसे समृद्ध 10 प्रतिशत आबादी की कमाई सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी की सम्मिलित आय की तुलना में 23 गुना अधिक है। दक्षिण अफ्रीका और यूरोपियन यूनियन के देशों में कुल राष्ट्रीय सम्पदा में से सबसे समृद्ध 20 प्रतिशत आबादी का हिस्सा क्रमशः 70 प्रतिशत और 38 प्रतिशत है। भारत के तथाकथित दामाद ऋषि सुनक के देश यूनाइटेड किंगडम में सबसे समृद्ध 20 प्रतिशत आबादी के पास 37 प्रतिशत सम्पदा है जबकि सबसे गरीब 20 प्रतिशत आबादी के पास महज 8 प्रतिशत सम्पदा है। दुनिया को समानता का पाठ पढ़ाते अमेरिका में सबसे समृद्ध 1 प्रतिशत आबादी के पास 33 प्रतिशत सम्पदा है, जबकि सबसे गरीब 50 प्रतिशत आबादी के हिस्से में महज 3 प्रतिशत है।

लन्दन स्थित इन्टरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट ने एक रिपोर्ट प्रकाशित कर बताया है कि दुनिया के 58 सबसे गरीब देश और छोटे द्वीपीय देश कोविड 19 महामारी के दौर से अबतक जी20 के देशों और इनके वित्तीय संस्थानों को व्याज के तौर पर 50 अरब डॉलर से अधिक का भुगतान कर चुके हैं। विश्व बैंक के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गयी इस रिपोर्ट के अनुसार गरीब देशों पर व्याज का बोझ साल-दर-साल बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2020 में इन देशों ने जी20 देशों को व्याज के तौर पर 13 अरब डॉलर का भुगतान किया, जो वर्ष 2021 में बढ़कर 14 अरब डॉलर हो गया। वर्ष 2022 में गरीब देशों ने व्याज के तौर पर 21 अरब डॉलर का भुगतान किया।

इन्टरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर एनवायरनमेंट एंड डेवलपमेंट के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर डॉ टॉम मिशेल के अनुसार जी20 समूह की मूल भावना वर्ष 1940 से पहले के औपनिवेशवाद से अलग नहीं है और इन अमीर देशों की समृद्धि का आधार ही गरीब देशों से की जाने वाली लूट है। जी20 समूह के सभी देश या तो ऐतिहासिक तौर पर या फिर हाल के दशकों में तापमान वृद्धि के लिए जिम्मेदार कार्बन डाइऑक्साइड के सबसे बड़े उत्सर्जक हैं, जबकि गरीब देशों का यह योगदान नगण्य है। पर, तापमान बुद्धि और जलवायु परिवर्तन की सबसे अधिक मार यही गरीब देश झेल रहे हैं। गरीब देश एक तरफ तो तापमान वृद्धि के प्रभावों से जूझ रहे हैं तो दूसरी तरफ इसके लिए जिम्मेदार देशों और बड़े बैंकों का खजाना भी भर रहे हैं। इन गरीब देशों के साथ अन्याय किया जा रहा है। सम्मेलन से पहले दुनिया के 300 से अधिक अरबपतियों, अर्थशास्त्रियों और प्रबुद्ध व्यक्तियों ने जी20 देशों के राष्ट्राध्यक्षों के नाम एक खुला पत्र लिखा था, जिसमें कहा गया था कि दुनिया में आर्थिक समानता, पारिस्थिकीतंत्र संरक्षण, मानवाधिकार और राजनैतिक स्थिरता के लिए आवश्यक है कि अमीरों पर करों का दायरा बढाया जाए और उनसे संपत्ति कर वसूला जाए। इससे वैश्विक स्तर पर अत्यधिक गरीबों की संख्या में कमी और खतरनाक स्तर तक पहुँच चुकी असमानता को कम करने में मदद मिलेगी। पर, अरबपतियों के बल पर चलती भारत समेत दूसरे अमीर देशों के राष्ट्राध्यक्षों ने इस पत्र को कचरे में फेंक दिया।


हाल में ही जर्मनी में किये गए एक अध्ययन में कहा गया है कि लोकलुभावनवादी सत्ता देश की अर्थव्यवस्था को कमजोर करती है। इस अध्ययन में वर्ष 1900 से 2020 तक 50 देशों के सत्ता पर काबिज 51 राष्ट्रपतियों या प्रधानमंत्रियों के अर्थव्यवस्था संबंधित नीतियों का बारीकी से अध्ययन किया गया। इस अध्ययन से इतना स्पष्ट होता है कि लोकलुभावनवादी सत्ता भले ही राजनैतिक तौर पर सफल हो पर 15 वर्षों के भीतर ही देश की अर्थव्यवस्था को 10 प्रतिशत से अधिक पीछे धकेल देती है। अध्ययन का दुखद पहलू यह है कि इस समय पूरी दुनिया के 25 प्रतिशत से अधिक देशों में ऐसी सत्ता है और यह संख्या इतिहास के किसी भी दौर की तुलना में अधिक है। दूसरा निष्कर्ष यह भी है कि ऐसी सत्ता सामान्य सत्ता की तुलना में दुगुने समय तक शासन पर काबिज रहती है। लोकलुभावनवादी सत्ता हमेशा संवैधानिक और वित्त संस्थाओं की उपेक्षा करती है। इस अध्ययन के अनुसार ऐसी सत्ता जनता के लिए सिगरेट की तरह काम करती है – शुरू में यह लत अच्छी लगती है, जोश भरती है, पर बाद में यही लत जान ले लेती है।

जी20 की बैठकों पर भले ही वैश्विक अर्थव्यवस्था और समस्याओं की चर्चा का नाटक किया जाता हो पर हरेक अगली बैठक तक जी20 के देश गरीब देशों को लूटकर पहले से अधिक समृद्ध हो चुके होते हैं और गरीब देश पहले से भी अधिक बदहाल हो जाते हैं।

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