बच्चों के लिए जानलेवा है अत्यधिक तापमान,चरम तापमान की विभीषिका झेल रहे 82 करोड़ बच्चे

वैज्ञानिकों के अनुसार अत्यधिक गर्मी पूरी आबादी को प्रभावित करती है, पर गर्भवती महिलाएं, शिशु, बच्चे, कुपोषित आबादी और बुजुर्ग इससे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इस वर्ष दक्षिण एशिया में शुरुआती चरम गर्मी के दौर के बाद से बारिश और बाढ़ की आपदा है।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशिया– जिसमें भारत, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान शामिल हैं – के तीन-चौथाई से अधिक, यानि 76 प्रतिशत, बच्चे अत्यधिक गर्मी की चपेट में हैं। अत्यधिक गर्मी से प्रभावित बच्चों की यह संख्या दुनिया के किसी भी क्षेत्र से अधिक है। अत्यधिक गर्मी बच्चों की बीमार कर रही है, उनकी गतिविधियों और शिक्षा का दायरा संकुचित कर रही है, और अनेक बच्चों के लिए जानलेवा भी साबित हो रही है। वयस्कों के मुकाबले बच्चों में गर्मी का अत्यधिक घातक प्रभाव होता है। यह रिपोर्ट वर्ष 2020 में तापमान के आंकड़ों के आधार पर तैयार की गयी है। इस रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक स्तर पर लगभग एक-तिहाई, यानि 32 प्रतिशत बच्चे अत्यधिक तापमान की चपेट में हैं।

जब किसी वर्ष में 83 दिनों से अधिक औसत तापमान 35 डिग्री सेल्सियस से अधिक तहत है, तब उसे मौसम वैज्ञानिक एक्सट्रीम टेम्परेचर, यानि अत्यधिक तापमान कहते हैं। यह स्थिति साल-दर-साल दक्षिण एशिया में देखी जा रही है और तापमान वृद्धि के कारण आने वाले वर्षों में यह स्थिति पहले से अधिक भयानक होती जायेगी। इस वर्ष वैश्विक स्तर पर जुलाई का महीना किसी भी वर्ष के किसी भी महीने से अधिक गर्म था और 4 जुलाई को वैश्विक औसत तापमान इतिहास के किसी भी दिन से अधिक था। दक्षिण एशिया में वैश्विक स्तर पर सर्वाधिक तापमान नहीं रहता, पर अधिकांश गरीब आबादी के कारण बढ़ाते तापमान का प्रभाव व्यापक रहता है। दक्षिण एशिया के देशों में 28 प्रतिशत से अधिक बच्चे वार्षिक स्तर पर औसतन 4.5 दिनों से अधिक लू का सामना करते हैं, जबकि वैश्विक स्तर लू झेलने वाले बच्चों की संख्या 24 प्रतिशत से कम है।

वैज्ञानिकों के अनुसार अत्यधिक गर्मी पूरी आबादी को प्रभावित करती है, पर गर्भवती महिलाएं, शिशु, बच्चे, कुपोषित आबादी और बुजुर्ग इससे सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। इस वर्ष दक्षिण एशिया में शुरुआती चरम गर्मी के दौर के बाद से बारिश और बाढ़ की आपदा है। बारिश से गर्मी के स्वास्थ्य पर प्रभावों में बढ़ोतरी हो जाती है क्योंकि इस समय बढ़े तापमान के साथ हवा में बढ़ती आर्द्रता तापमान का असर बढ़ा देती है। इस वर्ष जून के महीने में भी दक्षिण एशिया के अनेक हिस्सों में बाढ़ की विभीषिका थी और इन क्षेत्रों में 8 लाख से अधिक बच्चे चरम गर्मी से प्रभावित थे। बच्चों में अत्यधिक तापमान का असर केवल शारीरिक ही नहीं होता बल्कि इसका मानसिक असर भी होता है। अत्यधिक गर्मी में गर्भवती महिलाएं भी प्रभावित होती हैं और ऐसी अवस्था में मरे बच्चे या फिर समय से पहले बच्चे पैदा होने की संभावना बढ़ जाती है।


इससे पहले वर्ष 2022 में यूनिसेफ ने एक रिपोर्ट में बताया था कि दुनिया में हरेक वर्ष 5 लाख से अधिक बच्चों की मौत का कारण अत्यधिक तापमान है। वर्ष 2020 में एशिया और अफ्रीका के 23 देशों में 74 करोड़ बच्चे अत्यधिक गर्मी से प्रभावित हुए, पर अगले ही वर्ष यह प्रभाव 36 देशों के 82 करोड़ बच्चों पर पड़ा। इससे यह तो स्पष्ट है कि हरेक आने वाले वर्ष में पिछले वर्ष की तुलना में अत्यधिक तापमान का दायरा बढ़ता जा रहा है, और साथ ही इससे प्रभावित होने वाली आबादी की संख्या भी।

इस रिपोर्ट के अनुसार जलवायु परिवर्तन और इससे होने वाली तापमान वृद्धि से केवल बच्चों का स्वास्थ्य ही नहीं प्रभावित होता है, बल्कि इससे बच्चों के अधिकारों का भी हनन होता है। अनुमान है कि वर्ष 2050 तक दुनिया का हरेक बच्चा अत्यधिक तापमान से प्रभावित होने लगेगा, जबकि वर्तमान में प्रभावित बच्चों की संख्या एक-चौथाई है। तापमान वृद्धि के कारण सूखा और अकाल का दायरा बढ़ता जा रहा है, और इससे प्रभावित जनसंख्या दूसरे स्थानों पर पलायन कर रही है। बच्चे सूखा और पलायन का दंश भी झेल रहे हैं।

कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने वर्ष 2022 में भारत में अत्यधिक गर्मी के प्रभावों का आकलन किया है। इन वैज्ञानिकों ने गर्मी के प्रभावों से संबंधित एक हेल्थ इंडेक्स विकसित किया है, जिसमें तापमान के साथ ही आर्द्रता और वायु प्रदूषण के स्तर को भी शामिल किया गया था। इस आकलन के अनुसार पिछले वर्ष हमारे देश की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी अत्यधिक गर्मी से प्रभावित हुई और इससे पोषण और आय प्रभावित हुई और लोगों की मौतें भी हुईं। इससे खाद्यान्न सुरक्षा और लैंगिक समानता प्रभावित होती है। वर्ष 1992 के बाद से हमारे देश में केवल अत्यधिक गर्मी के प्रभावों के कारण 24000 से अधिक लोगों की अकाल मृत्यु हो चुकी है। इस आकलन के अनुसार अत्यधिक गर्मी केवल स्वास्थ्य को ही प्रभावित नहीं करती बल्कि अर्थव्यवस्था को भी प्रभावित करती है। अनुमान है कि केवल अत्यधिक गर्मी के कारण वर्ष 2050 तक जीडीपी में 2.8 प्रतिशत का और वर्ष 2100 तक 8.7 प्रतिशत का नुकसान होगा। जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक गर्मी वाले वर्षों की आवृत्ति बढ़ती जा रही है। पहले ऐसे वर्ष औसतन 30 वर्ष के अंतराल पर आते थे, पर अब तो हरेक वर्ष तापमान के मामले में पिछले वर्ष के रिकॉर्ड को ध्वस्त करता जा रहा है। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार तापमान वृद्धि का असर जल्दी ही हमारे देश की 90 प्रतिशत से अधिक आबादी, कृषि, वन्यजीवों और श्रमिकों पर पड़ने लगेगा।


यूनिसेफ ने अगस्त 2021 में चिल्ड्रेन्स क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स प्रकाशित किया था, जिसका शीर्षक था – द क्लाइमेट क्राइसिस इज अ चाइल्ड राइट्स क्राइसिस। इसमें दुनिया के 163 देशों में बच्चों पर जलवायु परिवर्तन के असर के आधार पर देशों को इंडेक्स में क्रम दिया गया था – जहाँ बच्चों पर सबसे अधिक खतरे हैं वे देश इंडेक्स में सबसे आगे हैं और जहाँ कम खतरे हैं वे देश इंडेक्स के अंत में रखे गए हैं। इस इंडेक्स में सिएरे लियॉन और यमन के साथ भारत संयुक्त रूप से 26वें स्थान पर है। भारत के पड़ोसी देशों में 14वें स्थान पर पाकिस्तान और 15वें स्थान पर संयुक्त रूप से बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान हैं, जाहिर है इन तीनों देशों के बच्चों पर जलवायु परिवर्तन कके खतरे भारत से भी अधिक हैं। शेष पड़ोसी देश हमसे बेहतर स्थित में हैं – म्यांमार 31वें स्थान पर, चाइना 40वें स्थान पर, नेपाल 51वें स्थान पर, श्रीलंका 61वें स्थान पर और भूटान 111वें स्थान पर है।

इस इंडेक्स के अनुसार सबसे बच्चों की सबसे खराब स्थिति, यानि इंडेक्स में पहले स्थान पर सेंट्रल अफ्रीकन रिपब्लिक है। इसके बाद के देश क्रम से चाड, नाइजीरिया, गिनी, गिनी बिस्साऊ, सोमालिया, नाइजर, साउथ सूडान, कांगो और अंगोला है। इंडेक्स में अंतिम स्थान पर, यानि जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से मुक्त बच्चों का देश आइसलैंड है। इससे पहले के देश क्रम से लक्सेम्बर्ग, न्यूज़ीलैण्ड, फ़िनलैंड, एस्तोनिया, स्वीडन, नॉर्वे, माल्टा, आयरलैंड और ऑस्ट्रिया हैं।

इस इंडेक्स के अनुसार दुनिया के करीब एक-तिहाई बच्चे, यानि 82 करोड़ बच्चे चरम तापमान की विभीषिका झेल रहे हैं, जबकि 40 करोड़ बच्चे चक्रावातों से प्रभावित हो रहे हैं। लगभग 30 करोड़ बच्चे नदियों की बाढ़ से और 24 करोड़ बच्चे सागर-तटीय बाढ़ से प्रभावित हो रहे हैं। दुनिया के 92 करोड़ से अधिक बच्चे साफ़ पानी की कमी का सामना कर रहे हैं और 60 करोड़ से अधिक बच्चे वेक्टर-जनित रोगों से प्रभावित हैं। दुनिया के 2 अरब से अधिक बच्चे वायु प्रदूषण की चपेट में हैं। 

हमारे देश में आबादी को अत्यधिक गर्मी से बचाने के उपायों पर सरकारें खूब वाहवाही लूटती हैं पर सच तो यही है कि यहाँ जनता को गर्मी से मरने के लिए छोड़ दिया जाता है। गर्मी से सबसे अधिक प्रभावित गरीब आबादी होती है। खेतों में काम करते किसान और श्रमिक, खुले में काम करते श्रमिक और सडकों पर रिक्शा चलाकर या फिर सामान बेचकर गुजारा करते

लोग सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। बाढ़ और चक्रवात के समय तो आपदा प्रबंधन की टीमें सक्रिय रहती है और राहत और बचाव का कार्य किया जाता है, पर अत्यधिक तापमान के समय ऐसा कुछ नहीं किया जाता और ना ही इससे मरने वालों को कोई मुवावजा दिया जाता है। जाहिर है, कोई भी योजना गरीबों के लिए नहीं बनती और उन्हें गर्मी, सर्दी, बाढ़, रोग और भूख से मरने को छोड़ दिया जाता है।  

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