किस्से काशी के चौकीदारों केः प्राचीन काल में भी काशी के चौकीदार रिश्वत लेकर छोड़ते रहे हैं कसूरवारों को

7वीं-8वीं सदी तक काशी एक समृद्ध शहर बन गया था। शहर का कोतवाल चोर डाकुओं की पकड़-धकड़ और अमीरों की चौकीदारी करता था। वाराणसी की वेश्याओं की भी बड़ी ख्याति थी। इनमें से सामा नामक गणिका ने कोतवाल को 1000 कार्षापण की घूस देकर अपने एक डाकू प्रेमी को छुड़वाया।

फोटोः सोशल मीडिया
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मृणाल पाण्डे

काशी हिंदुस्तान की प्राचीनतम नगरियों से एक है। बौद्ध जातक कथाओं में बताया जाता है कि बहुत पहले यहां यक्ष पूजे जाते थे। इस नगरी के पुराने चौकीदार भी यक्ष हुआ करते थे। निश्चल आंखों वाले यह यक्ष निडर, क्रूर और तबीयतन घुमक्कड जीव थे। भेस बदलने में माहिर और अक्सर पीछे से घात लगा कर हमला करने की वजह से इनका एक नाम गुह्यक भी था। जनता उनसे खौफ खाती थी।

जैन ग्रंथ उत्तराध्ययन एक गंडि तिडुंग नाम के यक्ष चौकीदार की बात बताता है जो मातंग ॠषि के आश्रम का चौकीदार था और संदिग्ध चरित्र वाली महिलाओं की पकड़-धकड़ करता रहता था। बदला लेना उसकी फितरत में था, यहां तक कि कई बार वह नाखुश हो गया तो जैन यतियों को रात में खाना खिला कर उनका व्रत भंग करा देता था।

बाद को यक्ष पूजकों और शैव मत में गठजोड़ होने पर, मत्स्यपुराण में जिक्र है कि हरिकेश नाम के एक यक्ष की भक्ति से खुश शिव जी ने उसे काशी क्षेत्र का चौकीदार बना दिया था। हरसू बरम नाम से आज भी भूत या पिशाच से बचने को आम जन उसकी पूजा करते हैं। शिव मंदिरों के बाहर अब हाथ में मुद्गर लिए (मुद्गरपाणि) चौकीदारों की मूर्तियां भी लगाई जाने लगी हैं।

7वीं-8वीं सदी तक वाराणसी बहुत समृद्ध शहर बन गया था। शहर का कोतवाल (नगरगुत्तिक) चोर डाकुओं की पकड़-धकड़ तथा नगर के अमीर लोगों की चौकीदारी करता था। वाराणसी की वेश्याओं की बड़ी ख्याति थी। उनमें से एक प्रति रात्रि 1000 कार्षापण की फीस लेने वाली सामा नामक गणिका ने अपने एक डाकू प्रेमी को नगरगुत्तिक को 1000 कार्षापण की घूस देकर छुड़वाया था।

18वीं सदी में काशी में अराजकता बहुत बढ गई थी। राजा चेत सिंह की ईस्ट इंडिया कंपनी से ठनी हुई थी और गुंडों, पंडों, चोरों, बटमारों, उचक्कों की बन आई थी। जब गांवों से लोग पलायन करने लगे तो 1781 में कंपनी अफसर वारेन हेस्टि्स ने दीवानी और फौजदारी मामलात के दो विभाग बनवाए और रेसिडेंट की मार्फत हर गांव में चौकी बिठा कर वहां कंपनी के ‘अपने’ चौकीदार बिठवाए थे।

कोतवाल मिर्जा बांके बेग खां को हुकुम मिला कि वारणसी में 5 चबूतरे बनें। हर चबूतरे पर कुछ हथियारबंद जांनशीन, कुछ चपरासी और एक भौंपे वाला हो। हर रात सदर मुसद्दी में सारे मुसद्दी चौकीदार जमा होकर फिर अलग-अलग गलियों में गश्त को निकलें। इन मुसद्दियों का काम था कि वे अपराधियों की पकड़-धकड़ के अलावा सराय मालिकान से शहर में आने जाने वालों की बाबत सरकार हुजूर के लिए जानकारियां इकट्ठी करें। दिन में जुए और शराब के अड्डों पर छापे मारें और इलाके में जनम-मृत्यु का हिसाब रखें।

लेकिन लगता है यह व्यवस्था भी शहर के अमीर वर्ग के लिए पर्याप्त नहीं थी। लिहाजा इसी बीच उनके लिए भाड़े पर रक्षा और मारपीट की सेवाएं देने को उपलब्ध हथियारबंद बांकों के चौकीदार दलों का उदय हुआ जो जरूरत हुई तो जमींदारों रजवाड़ों के लिए लूटपाट भी कर देते थे।

इनमें हर जाति के नौजवान थे जो सजीली पोशाकें पहिने अकड़ कर चलते थे और खूनखराबे को तत्पर रहते थे। शहर के महाजन उनके निशाने पर रहते थे जिनको डरा-धमका कर वे वसूली करते थे। उनका एक नेता शिवनाथ बड़ा मशहूर हुआ। कोई मिर्जा पांचू थे जो कंपनी के अमले और बांकों के बीच का पुल थे। एक लावणी उनके नाम की भी बनी :

दो कंपनी, पांच सौ चपरासी चढ़ कर आया, गली-गली कूचे से बांकों को बंधवाया,

मिर्ज़ा पांचू कसम खाय कुरआन उठाया, पैगंबर औलिया बीच उनको समझाया..

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