अडानी गाथा: आरोपों की पुष्टि करते तथ्य पब्लिक डोमेन में, फिर भी गाढ़े समय की दोस्ती की खातिर ओढ़ रखी है खामोशी

बांग्लादेश के लिए बिजली सप्लाई का प्लांट झारखंड में, नियमों के खिलाफ और सरकारी महकमे की आपत्ति के बावजूद हवाई अड्डों का ठेका और मुंद्रा पोर्ट पर लगे जुर्माने की माफी। इन सबके तथ्य मौजूद हैं, फिर भी दावा कि सरकार ने अडानी को कोई फायदा नहीं पहुंचाया।

फोटो : सोशल मीडिया
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रवि नायर

हाल ही में एक टीवी समाचार चैनल के साथ इंटरव्यू में अडानी समूह के चेयरमैन गौतम अडानी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पार्टी की ओर से उन्हें फायदा पहुंचाने के आरोपों पर बात की। अडानी ने कहा, ‘ इस तरह के आरोप निराधार हैं...सच्चाई यह है कि मेरी व्यावसायिक सफलता किसी भी नेता की वजह से नहीं है।’ एक माह पहले भी एक हिंदी समाचार चैनल के साथ बातचीत में अडानी ने कहा था, ‘...मैं आपसे यही कहना चाहूंगा कि आप उनसे (मोदी से) कोई व्यक्तिगत फायदा ले ही नहीं सकते। आप उनसे (मोदी से) नीतियों पर बात कर सकते हैं, देशहित पर चर्चा कर सकते हैं लेकिन जो नीति बनती है, वह सबके लिए होती है, अकेले अडानी समूह के लिए नहीं।’

जब कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने संसद में अपने संबोधन के दौरान ‘क्रोनिइज्म’ का मुद्दा उठाया- उनकी टिप्पणियों को सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया- राहुल गांधी ने अपने भाषण में सदन का ध्यान इस ओर खींचा कि कैसे सरकार ने अडानी को फायदा पहुंचाया, इस दौरान सत्ता पक्ष लगातार टोका-टाकी करता रहा और मांग की कि वह ‘कागजी सबूत’ दें।

अडानी समूह की आसमानी सफलता को लेकर और हाल के समय में अडानी समूह के आकाशी उभार को लेकर जो दावे-प्रतिदावे, आरोपों-प्रत्यारोपों और खंडन वगैरह किए जा रहे हैं, उन्हें समझने के लिए कुछ बातें संक्षेप में दोहरानी होंगी। अगर आपको पता हो कि देखना कहां है तो आपको पब्लिक डोमेन में ऐसी तमाम चीजें मिल जाएंगी जो इन आरोपों की पुष्टि करती दिखती हैं और अडानी के उन दावों को गलत ठहराती हैं जिसमें कहा जा रहा है कि सरकार ने उन्हें अलग से कोई फायदा नहीं पहुंचाया। वैसे भारत के महालेखा परीक्षक (कैग) ने भी इस बात का जिक्र किया है कि कैसे बीजेपी सरकारों के समय अडानी समूह को फायदा मिला।

आइए एक-एक कर देखते हैं कुछ मामले-


अडानी पावर झारखंड लिमिटेड

जून, 2015 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बांग्लादेश की अपनी पहली सरकारी यात्रा पर गए तो उस दौरान दो भारतीय निजी कंपनियों- अडानी पावर लिमिटेड (एपीएल) और रिलायंस पावर लिमिटेड ने बांग्लादेश पावर डेवलपमेंट बोर्ड (बीपीडीबी) के साथ दो अलग-अलग एमओयू पर दस्तखत किए। इसके तहत 5.5 अरब डॉलर के कुल निवेश से बांग्लादेश में बिजली संयंत्र लगाए जाने थे। लेकिन 11 अगस्त, 2015 को अडानी पावर लिमिटेड ने बीपीडीबी (बांग्लादेश पॉवर डेवलेपमेंट बोर्ड) के साथ एमओयू किया, जिसके तहत भारत में किसी भी उपयुक्त जगह पर 1,600 मेगावाट का थर्मल पावर प्रोजेक्ट लगाकर बांग्लादेश को बिजली देनी थी।

अडानी ग्रुप के अनुरोध पर झारखंड में 2016 में तब की बीजेपी सरकार ने गोड्डा जिले की 917 एकड़ जमीन का इस पॉवर प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहण किया। आरोप हैं कि इसके लिए सरकार ने न सिर्फ मानदंडों का उल्लंघन किया, नियमों को तोड़ा-मरोड़ा, बल्कि अमानवीय शक्ति का भी उपयोग किया। राज्य सरकार ने इस प्रोजेक्ट के लिए 2016 में अपनी इस नीति को बदल दिया कि राज्य के किसी बिजली उत्पादक को कम से कम 25 प्रतिशत बिजली राज्य को देनी होगी।

इससे अडानी के लिए सौ फीसद बिजली बांग्लादेश को भेजने का रास्ता साफ हो गया। अडानी समूह ने चिरु नदी से पावर प्लांट के लिए पानी लेने की पर्यावरण मंत्रालय से अनुमति हासिल कर ली। लेकिन इसने पर्यावरण-संबंधी नई रिपोर्ट जमा किए बिना ही चिरु नदी की जगह गंगा नदी से पानी लेने के लिए आवेदन किया और फिर भी उसे अनुमति मिल गई। इसके खिलाफ दिल्ली के एक ऐक्टिविस्ट द्वारा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल में दायर याचिका को जुलाई, 2022 में इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि वह एक प्रभावित व्यक्ति नहीं था। एनजीटी ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता को मंजूरी के 30 दिनों के भीतर याचिका दायर करनी चाहिए थी।

इसी तरह 2019 में आम चुनावों की घोषणा से ठीक पहले मोदी सरकार ने विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) के नियमों को बदल दिया। तीन साल पहले जारी उन दिशानिर्देशों में एसईजेड के अंदर स्टैंड-अलोन बिजली परियोजना को प्रतिबंधित किया गया था। इससे अडानी की गोड्डा परियोजना को एसईजेड में भारत की पहली स्टैंड-अलोन बिजली परियोजना बनने का मौका मिला। इसका लाभ यह हुआ कि यह परियोजना शून्य-कर के काबिल हो गई।

इस तरह के अजीब कदमों से यह सुनिश्चित हो गया कि झारखंड में पर्यावरण को लेकर नुकसान होंगे जबकि अडानी समूह यहां बिना कोई टैक्स दिए बांग्लादेश को बिजली बेचकर मोटी कमाई करेगा। फरवरी के दूसरे सप्ताह में बांग्लादेश ने अडानी समूह द्वारा मांग की गई बिजली की ऊंची कीमत पर आपत्ति प्रकट की है।


श्रीलंका से सिफारिश

श्रीलंकाई संसद में 2021 में पेश कैबिनेट नोट में पुष्टि की गई कि कोलंबो पोर्ट पर ईस्टर्न कंटेनर टर्मिनल (ईसीटी) को विकसित करने के लिए भारत सरकार ने भारतीय कंपनी के तौर पर अडानी समूह को ‘चुना था।’

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वहां के श्रमिकों ने मांग की थी कि टर्मिनल का विकास या तो श्रीलंका स्वयं करे या फिर कर्मचारियों को सौंप दे, वे खुद इसके लिए पैसे इकट्ठे कर लेंगे। इन श्रमिकों ने अडानी समूह द्वारा पहले मानवाधिकार हनन करने का आरोप लगाया था।

एक रिकॉर्ड किए गए टेलीफोन साक्षात्कार में, श्रीलंका इंडिपेंडेंट पोर्ट्स एम्प्लॉइज एसोसिएशन (एसएलआईपीईए) के अध्यक्ष प्रसन्ना कलुथरागे ने इस लेखक से कहाः ‘... यह आपके नेता नरेंद्र मोदी का दबाव है। आपके नेता चाहते हैं कि श्रीलंका ईसीटी उनके मित्र को सौंप दे। लेकिन हम अपनी राष्ट्रीय संपत्ति को अडानी या किसी भी दूसरी निजी कंपनी के हाथ नहीं जाने देंगे।’

इंटरनेशनल ट्रांसपोर्ट वर्कर्स फेडरेशन (आईटीएफ) से जुड़े ट्रेड यूनियन नेशनल यूनियन ऑफ सीफर्स श्रीलंका के अध्यक्ष पलिथा अथुकोरला ने भी आरोप लगाया कि ‘मोदी भारत के भू-राजनीतिक और सुरक्षा हितों की आड़ में श्रीलंका में अडानी के व्यापारिक हितों को बढ़ावा देना चाहते हैं।’

जून, 2022 में को सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (सीईबी) के पूर्व प्रमुख एम. एम. सी. फर्डिनैन्डो ने दावा किया कि ‘राष्ट्रपति ने एक बैठक के बाद मुझे बुलाया और कहा कि भारत के प्रधानमंत्री मोदी उन पर अडानी समूह को (उत्तरी श्रीलंका में अक्षय उर्जा परियोजना) सौंपने का दबाव बना रहे हैं। मैंने कहा, यह मामला मुझसे या सीलोन बिजली बोर्ड से संबंधित नहीं है और यह निवेश बोर्ड (से संबंधित) है। उन्होंने जोर देकर कहा कि मैं इसे देखूं।’ हालांकि श्रीलंका मीडिया में इस बारे में काफी रिपोर्ट किया गया लेकिन कुछ दिनों बाद उन्होंने बयान ‘वापस ले लिया’, साफ तौर पर दबाव की वजह से।


हवाई अड्डे का कारोबार

2006 में यूपीए सरकार ने 30 साल की अवधि के लिए दिल्ली और मुंबई हवाई अड्डों को ऑपरेट करने के लिए क्रमशः जीएमआर और समूहों को छूट दी। सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त पर निजीकरण को जारी रहने दिया कि हर निविदा डालने वाले को किसी अनुभवी एयरपोर्ट ऑपरेटर के साथ भागीदारी करनी होगी। हालांकि दोनों मामलों में जीएमआर ने सबसे ऊंची बोली लगाई थी, फिर भी प्रतिस्पर्धा के हितों में किसी एक फर्म को दोनों हवाई अड्डों का ठेका नहीं देने का फैसला हुआ।

लेकिन 2019 में अहमदाबाद, लखनऊ, मैंगलोर, जयपुर, गुवाहाटी और तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डों के ठेके अडानी समूह को 50 साल की अवधि के लिए दे दिए गए जबकि उसके पास हवाई अड्डों को ऑपरेट करने का कोई अनुभव नहीं था।

दिसंबर, 2018 में नीति आयोग के एक मेमो में तर्क दिया गया कि ‘पर्याप्त तकनीकी क्षमता के अभाव वाला बोली लगाने वाला’ ‘परियोजना को जोखिम में डाल सकता है और सेवाओं की गुणवत्ता के साथ समझौता कर’ सकता है’ जिसके लिए सरकार प्रतिबद्ध है।’ केंद्र सरकार की सभी पीपीपी योजनाओं को मंजूरी देने वाली सार्वजनिक निजी भागीदारी मूल्यांकन समिति (पीपीपीएसी) ने यह बात उठाई कि हवाई अड्डा विकास परियाजनाएं ‘बड़ी पूंजी का लेकर संवेदनशील’ है और इसमें बड़े वित्तीय जोखिम हैं।

नोट में कहा गया कि किसी एक बोली लगाने वाले को छह हवाई अड्डे सौंपने की सलाह नहीं दी जा सकती। आर्थिक मामलों के विभाग (डीईए) ने भी यह कहा कि अगर कहीं ‘योजना विफल’ हो जाती है, तो विफल परियोजनाओं को लेने के लिए कई अन्य क्षमता वाले उपलब्ध हो जाएंगे, अगर उन्हें हवाई अड्डों को ऑपरेट करने की अनुमति दी जाती है।

लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय और सचिवों के अधिकार प्राप्त समूह का नेतृत्व करने वाले नीति आयोग अध्यक्ष ने इन चेतावनियों के खिलाफ निर्णय दिया और गैरअनुभवी अडानी समूह को छह हवाई अड्डों को ऑपरेट करने की सुविधा दे दी। आर्थिक मामलों के विभाग और नीति आयोग की इन आपत्तियों को किनारे कर दिया गया कि ऐसे उद्यमों में बड़ा जोखिम होने की वजह से किसी एक बोली लगाने वाले को दो हवाई अड्डों को ऑपरेट करने की अनुमति नहीं देने की पहले की नीति का पालन किया जाना चाहिए। 24 महीने से कम अवधि में ही अडानी समूह मुंद्रा में एक निजी हवाई पट्टी को ऑपरेट करने वाले से एयरपोर्ट सेक्टर में प्रमुख प्लेयर के तौर पर उभरा।


नीति आयोग ने अपने आकलन में डीईए द्वारा दिए गए कई सुझावों से सहमति जताई थी। उसने कहाः ‘जबकि अन्य क्षेत्रों के लोगों को शामिल करके बोली लगाने वालों के दायरे को बढ़ाना महत्वपूर्ण है, यह सुनिश्चित करना भी महत्वपूर्ण है कि इस प्रस्तावित परियोजना का काम हाथ में लेने के लिए जरूरी तकनीकी क्षमताओं के संदर्भ में गुणवत्तापूर्ण अनुभव भी हो।’

इसने ‘प्रति यात्री’ के आधार पर एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एएआई) को ऑपरेटर द्वारा भुगतान पर आपत्ति भी जताई थी। ‘यह बात सही है कि सकल राजस्व साझा मॉडल के मामले में कुल राजस्व की निगरानी और इसे तय करने में चुनौतियां हैं,  लेकिन प्रस्तावित मानदंड के मामले में पेश आने वाली चुनौतियों का भी मूल्यांकन करने की जरूरत है। यह ध्यान देने की जरूरत है कि प्राधिकरण को कितना राजस्व आता है, यह हर माह/वर्ष वास्तविक यात्री की संख्या के आधार पर तय होगा। इसलिए यात्रियों की कम संख्या की अवधि के दौरान राजस्व पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। ठेका लेना वाली कंपनी के नजरिये से देखें तो अगर यात्रियों की संख्या कम होगी तो उसकी आय में केवल उतने ही हिस्से की कमी आएगी जबकि अन्य आय में कोई अंतर नहीं आएगा।’

नीलामी दस्तावेज में न तो डीईए और न नीति आयोग की सिफारिशें शामिल की गईं। क्या यह बताने के लिए और प्रमाण की जरूरत है कि अडानी समूह को किस तरह तवज्जो दी गई?

200 करोड़ का जुर्माना रद्द

वर्ष 2013 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार के दौरान पर्यावरण मंत्रालय ने गुजरात के मुंद्रा में अडानी पोर्ट्स और एसईजेड लिमिटेड की तटवर्ती विकास परियोजना पर 200 करोड़ रुपये या परियोजना लागत का एक प्रतिशत (जो भी अधिक हो) का जुर्माना लगाया था। यह जुर्माना कानून को तोड़ने और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने के लिए लगाया गया था। हालांकि 2015 में जब भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सत्ता में था, पर्यावरण मंत्रालय ने यह कहते हुए यू-टर्न ले लिया कि सरकार इस तरह का जुर्माना नहीं लगा सकती है। इसके बजाय, मंत्रालय ने क्षति की लागत का अनुमान लगाने के लिए अध्ययन का आदेश दिया और कहा कि अध्ययन समाप्त होने के बाद कंपनी किसी भी क्षति की भरपाई के लिए भुगतान करेगी। कानून के उल्लंघनों से बाद में अलग से निपटा जाएगा।

यूपीए सरकार ने पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के मकसद से कंपनी के लिए 200 करोड़ रुपये का एक कोष बनाना अनिवार्य किया था लेकिन बीजेपी की अगुवाई वाली नई सरकार ने इसे कानूनी रूप से गलत घोषित कर दिया और परियोजना के कारण होने वाली पर्यावरणीय क्षति और लागत को निर्धारित करने के लिए अध्ययन कराने का फैसला किया। इसके साथ ही सरकार ने परियोजना पर अन्य तमाम तरह के दंड नहीं लगाने का भी फैसला किया। हालांकि, रुख में आए इस बदलाव को सार्वजनिक नहीं किया गया था।

2017 में, मोदी सरकार ने अडानी पोर्ट्स और एसईजेड लिमिटेड के इस तर्क को स्वीकार कर लिया कि कंपनी ने किसी कानून का उल्लंघन नहीं किया है और कोई पर्यावरणीय क्षति नहीं हुई है और 200 करोड़ रुपये का जुर्माना माफ कर दिया।

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