शोध अध्ययन का दावा, तेजी से फैलता है झूठ और लोग उस पर जल्दी करते हैं भरोसा

झूठी खबरें तेजी से अधिक लोगों के पास पहुंचती हैं, उस पर लोग यकीन ज्यादा करते हैं और उसके समर्थक अधिक होते हैं। इसका सीधा सा मतलब है, जितना अधिक झूठ बोलेंगें उतने अधिक समर्थक आपके पास होंगे। सरसरी तौर पर यह तथ्य एक मजाक लग सकता है, पर आज अधिकतर देशों में ऐसा ही हो रहा है।

फोटो: सोश ल मीडिया 
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महेन्द्र पांडे

हर कोई चाहता है कि वह जो भी कहे उसे ज्यादातर लोग मानें, इसी तरह हरेक राजनीतिक पार्टी बहुमत के साथ सत्ता में आना चाहती है। पर, यह अबूझ पहेली है कि कितने प्रतिशत लोगों तक पहुंच कर और उन्हें अपनी बात मनवाकर बहुमत पाया जा सकता है। अनेक समाज विज्ञानी समय-समय पर इस सन्दर्भ में अपनी राय देते रहे हैं, और प्रतिशत का आंकड़ा 10 से 40 प्रतिशत के बीच बताया गया है। दो महीने पहले प्रतिष्ठित जर्नल ‘साइंस’ में प्रकाशित एक शोध-पत्र के अनुसार किसी भी भीड़ में यदि आप 25 प्रतिशत लोगों से अपनी बात मनवाने में कामयाब होते हैं, तब आप की राय बहुमत में बदल जायेगी।

इस अध्ययन को अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया के समाज वैज्ञानिक डामों सेन्टोला ने किया है। अध्ययन के लिए उन्होंने 200-200 लोगों का दल बनाया और हरेक दल को एक अनजान पुरुष/महिला की तस्वीर दिखाकर उसका नाम रखने को कहा गया। पहली बार सबने अलग-अलग नाम दिया। फिर सबको वह नाम दिखाए गए। दूसरे राउंड में 14 प्रतिशत लोगों ने उस तस्वीर को एक ही नाम दिया, तीसरे राउंड में 31 प्रतिशत लोगों ने एक ही नाम दिया। इसी तरह सातवें-आठवें राउंड तक जाने-अनजाने अधिकतर लोगों ने उस चित्र का नाम एक ही दिया। डामों सेन्टोला का निष्कर्ष है, बस 25 प्रतिशत लोगों को आप अपनी बात से सहमत कर लीजिये, फिर आपकी राय बहुमत में होगी। निश्चित तौर पर यह अध्ययन दुनिया भर की राजनीतिक पार्टियों के लिए बड़े काम का है, क्योंकि हरेक पार्टी बहुमत चाहती है जिससे सत्ता पर काबिज हुआ जा सके।

पर, राजनीतिक पार्टियों के काम का यह इकलौता अध्ययन नहीं है। तापमान वृद्धि और जलवायु परिवर्तन के बारे में अमेरिका में डोनाल्ड ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी के विरोधी राय से सभी वाकिफ हैं। हाल में एक अध्ययन में यह स्पष्ट हुआ कि सत्ता में बैठे लोगों द्वारा प्रचारित झूठ अधिकतर जनता सच मानती है, और फिर वैज्ञानिक कितने भी तथ्य देकर तापमान वृद्धि को साबित करें, जनता आपनी राय नहीं बदलती। हालांकि यह अध्ययन तापमान वृद्धि के मामले में किया गया था पर यह निष्कर्ष हरेक मामले में दुनिया भर में सटीक बैठता है।

हाल में एक वैज्ञानिक अध्ययन से भी यह स्पष्ट होता है कि झूठी खबरें जल्दी और ज्यादा लोगों तक पहुंचतीं हैं। यह अध्ययन सोरौश वोसौघी की अगुवाई में वैज्ञानिकों के एक दल ने किया है। सोरौश वोसौघी एक डाटा साइंटिस्ट हैं और कैंब्रिज स्थित मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी में कार्यरत हैं। वर्ष 2013 में अमेरिका के बोस्टन मैराथन के दौरान बम फेंके गए थे, जिसमें अनेक लोग घायल हुए थे और कुछ मारे भी गए थे। उस दौरान सोरौश वोसौघी उसी संस्थान में शोध कर रहे थे और सोशल मीडिया, विशेष तौर पर ट्विटर पर, इससे सम्बंधित हरेक समाचार पर ध्यान दे रहे थे। कुछ दिनों बाद ही उन्हें स्पष्ट हो गया कि सही खबरों से अधिक झूठी खबरों को लोग अधिक फॉलो कर रहे हैं और ऐसी खबरें तेजी से फैलती हैं।

इंग्लैंड में किये गए एक ऐसे ही दूसरे अध्ययन में पाया गया कि सोशल मीडिया पर लोग स्वयं झूठी खबरें भेजते हैं। इस अध्ययन में 13 लोंगो के एक दल में पहले सदस्य को ट्विटर पर एक सही खबर भेजी गयी। उस खबर को पढ़कर उसे अपने शब्दों में फिर से लिखकर दूसरे को भेजना था, दूसरा इसी तरह तीसरे को, इसी तरह तेरहवें सदस्य तक खबर जानी थी। देखा गया कि छठे सदस्य तक आते-आते सही खबर लगभग गलत हो चुकी थी। चौथे सदस्य को एक बार फिर सही खबर भेजी गयी और पांचवे सदस्य द्वारा परिवर्तित खबर भी। हैरानी की बात यह थी कि हरेक समूह में छठे सदस्य ने सही खबर के बदले परिवर्तित खबर को प्रमुख मानते हुए इसे आगे भेजा। लगभग हरेक बार अंतिम खबर में सही खबर के कोई तथ्य नहीं मिले।

इन सारे अध्ययनों को एक साथ जोड़ कर देखिये, झूठी खबरें तेजी से अधिक लोगों के पास पहुंचती हैं, उस पर लोग यकीन ज्यादा करते हैं और उसके समर्थक अधिक होते हैं। इसका सीधा सा मतलब है, जितना अधिक झूठ बोलेंगें उतने अधिक समर्थक आपके पास होंगे। सरसरी तौर पर यह तथ्य एक मजाक लग सकता है, पर आज अधिकतर देशों में ऐसा ही हो रहा है। हाल में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित एक वर्किंग पेपर के अनुसार दुनिया में कम से कम 34 देशों की सरकारें, जिनमे अमेरिका और भारत शामिल हैं, सोशल मीडिया पर अरबों रुपये खर्च कर रही हैं जिससे उनके गलत और भ्रामक विचार अधिक लोगों तक पहुंचें और इनके समर्थकों की संख्या बढ़े। इस रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि अपने पक्ष में झूठी खबरें फैलाने वाली ऐसी सरकारें झूठी खबरें दबाने का नाटक भी खूब करती हैं। ऐसी सरकारें झूठी खबरें ऐसी खबरों को मानती है जिसमें उनका विरोध किया गया हो।

इतना तो तय है कि वर्त्तमान में झूठ से ही सत्ता पर काबिज हुआ जा सकता है, और अधिकतर देशों का उदाहरण हमारे सामने है।

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