जल-संकट से जूझते दूर-दूर के गांव, पानी के लिए बहाने पड़ते हैं पसीने
वर्षा के जल-संरक्षण की उच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए क्योंकि पानी के अभाव में बहुत से अन्य विकास कार्य अपने में सार्थक और महत्त्वपूर्ण होते होते हुए भी अपेक्षित प्रगति प्राप्त नहीं कर पाते हैं।

हमारे देश में अनेक गांव ऐसे हैं जहां वर्ष में कुछ महीने पानी के भीषण अभाव से समस्त जन-जीवन बुरी तरह संकटग्रस्त रहता है। प्रतापगढ़ जिले (राजस्थान) का चित्तैड़िया गांव भी ऐसा ही एक गांव है जहां के लगभग 80 मीणा आदिवासी परिवार इस समय केवल एक हैंडपंप से पीने का पानी प्राप्त कर रहे हैं। विभिन्न घरों से महिलाएं प्रतिदिन लगभग एक किमी. चलकर यहां दिन में पांच छः बार पानी भरने आती हैं।
कुछ महिलाएं तो तेज गर्मी में एक या दो गगरी पानी सिर पर ले जाते हुए ही अपना आधा दिन बिता देती हैं। कभी-कभी यह हैंडपंप भी रुकने लगता है और हैंडपंप पर लंबी लाईन लग जाती है। फरवरी से जल संकट बढ़ता हुआ जून तक जारी रहता है। पशुओं के लिए टैंकर से 400 रुपए का पानी मंगवाते हैं तो वह केवल चार दिन चलता है। पशुओं का जीवन बचाने के लिए वह भी उधारी में खरीदना पड़ता है और फिर दूर-दूर प्रवासी मजदूर के रूप में भटकते हुए उधार चुकाने के लिए कुछ कमाना पड़ता है।
पानी के कारण खेती बहुत कम है, तो दूर-दूर लोग प्रवासी मजदूरी के लिए जाते हैं जहां कई तरह के शोषण का शिकार भी होते हैं। यहां के अनेक मजदूर दुर्घटनाग्रस्त भी हुए हैं। महिला फसल कटाई के समय अधिक समृद्ध गांवों में जाने के लिए सुबह बहुत लदे-फदे वाहनों में निकलती है और देर रात घर लौटती हैं।
गांववासियों ने बताया कि यहां जल संकट कम करने के लिए एक एनीकट को नए सिरे से ठीक से बनाना पड़ेगा ताकि वर्षा के पानी को रोका जा सके। इसका खर्च लगभग आठ लाख रुपया आएगा। गांववासी इसके लिए कुछ श्रमदान भी करने को तैयार हैं। यदि यह एनीकट बन जाए तो पशुओं को पानी मिल जाएगा। कुछ खेतों की स्थिति सुधरेगी और गांव के कुंओं और हैंडपंप का जल-स्तर सुधरेगा। इस गांव में सृजन संस्था ने बहुत प्रयास कर जिन बगीचों को पनपाया है और जिससे गांववासियों को बहुत उम्मीदें हैं, उनकी रक्षा के लिए भी ऐसे जल-सरंक्षण प्रयास करने जरूरी हैं। सृजन ने यहां अनेक कुंओं को गहरा करने का कार्य पहले ही किया है और आगे उसका प्रयास है कि एनीकट के काम का भी आगे बढ़ाया जाए।
जिस सुहागपुरा प्रखंड में यह गांव स्थित है, वहां कुछ अन्य गांवों की स्थिति भी इससे मिलती-जुलती है। बड़ी अंबेली एक ऐसा ही गांव है। यहां लगभग 200 परिवार हैं और लगभग सभी पानी के संकट से परेशान हैं। हर घर नल जैसी योजनाएं अभी जल पंहुचाने के लिए न तो चित्तौड़िया गांव में पहुंची हैं और न बड़ी अंबेली में। यहां भी महिलाओं को भीषण गर्मी में दूर से पानी लाना पड़ता है, गांववासी बताते हैं कि सिमलिया नाले को एनीकट से रोक कर वर्षा के पानी का संरक्षण कर लिया जाए तो इस गांव के जल-संकट को दूर करने के साथ पास के चार-पांच अन्य गांवों को भी राहत मिलेगी। यह कार्य कुछ बड़ा और महंगा जरूर है पर इसका लाभ तो इसके खर्च से कहीं अधिक है। गांववासी चाहते हैं कि सरकार प्राथमिकता देते हुए इस कार्य को शीघ्र अपना ले।
इसी प्रखंड का एक अन्य गांव है कनपुरिया जिससे पता चलता है कि जल संरक्षण कार्य बहुत उपयोगी हो सकते हैं। यहां नए एनीकट बनाने व मरम्मत करने के दोनों कार्य हुए। यह कार्य सृजन संस्था ने करवाए और गांववासियों का इसमें अच्छा सहयोग भी रहा। इसके कुछ सथानों पर जल संकट कम करने में उल्लेखनीय सफलता मिली। इसके अतिरिक्त अनेक कुंओं को गहरा करने का प्रयास भी चल रहा है। इसके बावजूद चूंकि यह गांव बड़ा विस्तार लिए है, अभी इसके ऊंचाई के भाग में भी नाले पर एनीकट बनना शेष है। यह अधिक बड़ा कार्य है, पर इसे कर लिया जाए तो इस गांव में जो जल संरक्षण की शुरुआत हो चुकी है वह पूर्णता की ओर बढ़ सकेगी व यह गांव वर्षा के जल-संरक्षण के एक अच्छे मॉडल के रूप में स्थापित हो सकेगा।
इन कार्यों के लिए गांववासियों की भागेदारी से वे योजनाएं बननी चाहिए जिनमें विभिन्न संभावनाओं और प्राथमिकताओं पर गहराई से विचार करते हुए प्रमाणिक दस्तावेज तैयार किए जाएं व इनके आधार पर ही जल-संरक्षण के कार्य को तेजी से आगे बढ़ाया जाए। इस क्षेत्र में वर्षा की मात्रा ठीकठाक है पर इस वर्षा के जल को संरक्षित करना बहुत जरूरी है।
वर्षा के जल-संरक्षण की उच्च प्राथमिकता मिलनी चाहिए क्योंकि पानी के अभाव में बहुत से अन्य विकास कार्य अपने में सार्थक और महत्त्वपूर्ण होते होते हुए भी अपेक्षित प्रगति प्राप्त नहीं कर पाते हैं। यह केवल इन गांवों का अनुभव नहीं है अपितु एक व्यापक सच्चाई भी है।
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