विष्णु नागर का व्यंग्यः सम्राटों की प्राथमिकता में किसान नहीं आते, वे तो गधे को चुपड़ी रोटी खिलाते हैं!

तुम शेर बनने की कोशिश करोगे तो भई सम्राट भी तो सम्राट है। वह शेर का शिकार करना जानता है। वह खुद शिकार नहीं भी कर सकता तो किसी और से करवाएगा, मगर शेर के पास खड़े होकर फोटो वही खिंचवाएगा। दुनिया यही समझेगी कि शेर उसी ने मारा है!

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

देखो भाई किसानों, एक बात अच्छी तरह समझ लो कि तुम्हारा वास्ता देश के प्रधानमंत्री से नहीं पड़ा है। दरअसल तुम भारत के चक्रवर्ती सम्राट को प्रधानमंत्री समझ बैठे हो! अब बताओ कोई सम्राट को, सम्राट न समझकर, उसे अदना-सा प्रधानमंत्री समझ बैठे तो सम्राट कभी इसे माफ कर सकता है?

सम्राट अशोक के समय भी किसानों ने ऐसी गलती की होती तो क्या वे माफ करते? अकबर जरूर रहे होंगे महान, पर उनके सामने भी तुमने यह भूल की होती तो क्या वह क्षमा करते? कहते कि कोई बात नहीं मितरों, तुम तो अपनी समस्याएं बताओ। तो बताओ, हमारा ये सम्राट ऐसी उदारता कैसे बरत सकता था? कोई उदाहरण तो होता, हालांकि इस सम्राट को किसी उदाहरण से अंतर नहीं पड़ता। वह स्वयं में एक उदाहरण है।

तुमसे कहा जा रहा है कि किसान तुम भ्रमित हो, तो वह भ्रम दरअसल यही है। तुम्हें बार-बार समझाया जा रहा है कि तुम उन्हें प्रधानमंत्री समझने की भूल मत करो, मगर तुम हो कि मानते नहीं। तो उन्हें लगता है कि तुम जानबूझकर, गुजरात के इस 'सुपुत्र' को बदनाम करने की साजिश कर रहे हो, तो ठीक है, मैं भी तुम्हें देख लूंगा। तुम्हारा उद्देश्य केवल सम्राट को बदनाम करना है। मेरी टोपी उछालना है, जो मैं पहनता नहींं!

तो असली पेंच यह है। कोई सम्राट प्रजा को अपना विरोध करने का हक नहीं देता। यह भी नहीं दे रहा है। सम्राटों की 'उज्ज्वल परंपरा' का पालन कर रहा है! हां राजा के सामने प्रजा जैसे जाया करती थी, वैसे तुम जाते तो शायद वह विचार करता। मतलब वह खुद विचार करता, जो उसके लिए दुनिया का सबसे विकट काम है। सम्राट अक्सर क्रूर और सनकी हुए हैं, मगर प्रजा झुककर उसके सामने दोहरी हो जाए तो वे कुछ-कुछ दयालु भी हो जाते हैं। मगर तुम आदत से लाचार हो। उनके सामने तुम आंदोलन करने आए हो। उन्हें चुनौती देने आए हो। उनके हुक्म की तामील करने की जगह उनसे भिड़ने आए हो। तो ऐसे में वह बर्दाश्त कैसे करें?

वह चाहते थे कि तुम बढ़िया सा, उम्दा सा, दस लाख की पोशाक जैसा कोई तोहफा लेकर आते, कोर्निश बजाते, दंडवत करते। वह पूछते कि मेरी प्यारी प्रजा, तुम्हें क्या कष्ट है तो तुम कहते कि सम्राट वैसे तो आपके राज में सारी प्रजा सुखी है। आपको लाख-लाख दुआएं देती है। सरकार हम भी आपकी गरीब प्रजा हैं, आपकी ही दया पर आज तक जीते आए हैं। आगे भी युगों-युगों तक आपकी छत्रछाया में ही जीना चाहते हैं, मगर आपने जो हुक्मनामा जारी किया है, उससे हम बर्बाद हो जाएंगे, मर जाएंगे। ऐसा मत होने दीजिए दयालु, परमपिता परमेश्वर के परमावतार। हमारे बाल बच्चों को बचा लीजिए दयावतार।

तो यह सुनकर उनमें दया की भावना प्रवेश  कर सकती थी। कर जाती तो कहते कि सुनो, एक बार तो तुम पर दया कर रहा हूं, मगर खबरदार बार-बार मत रोते हुए आए तो। सिर कलम करवा दूंगा, हंटरों से  चमड़ी उधड़वा दूंगा। जाओ अब, दफा हो जाओ मेरी आंखों के सामने से!

उधर तुम हो कि समझते हो, यह इक्कीसवीं सदी है। इसके भी दो दशक लगभग बीत चुके हैं। 1947 में देश आजाद हो चुका है, इसका संविधान बन चुका है, 26 जनवरी 1950 से आज तक यह लागू है। यहां संसद है, न्यायपालिका है, मीडिया है, तो यहां सम्राट कैसे हो सकता है! लोकतंत्र में सम्राट का क्या काम! आज तक तो जो भी हुआ है, प्रधानमंत्री ही हुआ है। यह सम्राट कहां से आन टपका? हम तो इसे देश का प्रधानमंत्री ही मानेंगे और इसे लोगों की बातें सुननी ही पड़ेगी। तो अब अपनी इस समझ का दंड भुगतो! ठंड में, खुले में पड़े कंपकंपाते रहो!

अरे यह तो सम्राट की कृपा है कि उन्होंंने जैसे-तैसे तुम्हें यहां तक आने दिया, तुम्हारी मर्जी से डेरा तुम्हें जमाने दिया। इसके लिए तो कम से कम उनका शुक्रिया अदा करते! तुमने तो यह भी नहीं किया। अन्नदाता होने का इतना अधिक गर्व है तुम्हें। अपने बाजुओं पर इतना ज्यादा भरोसा है तुम्हेंं।तुम शेर बनने की कोशिश करोगे तो भई सम्राट भी तो सम्राट है। वह शेर का शिकार करना जानता है। वह खुद शिकार नहीं भी कर सकता तो किसी और से करवाएगा, मगर शेर के पास खड़े होकर फोटो वही खिंचवाएगा। दुनिया यही समझेगी कि शेर उसी ने मारा है!

वैसे भी तुम सम्राट की प्राथमिकता में कहीं नहीं आते, तुम क्या कोई मेहनतकश नहीं आता। सम्राटों की प्राथमिकताएं अलग होती हैं। वे गधे को चुपड़ी रोटी खिलाते हैं और आदमी को घास खिलाकर भी अहसान जताते हैं। अर्थव्यवस्था जाए भाड़ में, उन्हें बीस हजार करोड़ में सेंट्रल विस्टा बनवाना है तो बनवाना है। बुलेट ट्रेन चलवाना है तो चलवाना है। राम मंदिर बनवाना ही है। भारत  के कोने- कोने में ऑनलाइन उद्घाटन भी करना है। अपनी इमेज बनाते रहना है। बढ़िया-बढ़िया चीजें खाते-चबाते-निगलते रहना है। बढ़िया-बढ़िया कपड़े पहनते रहना है। कभी मोर, कभी तोते के साथ खेलना ही है। अडाणी-अंबानी की सेवा में नित्य प्रति रहना ही है। महीने में दस दिन विदेश यात्राएं करना है, जो अभी नहीं हो रही है।

अभी वह वैसे ही इस गुस्से से भरे हुए हैं। और तुम अपना राग लेकर उनके सिर पर आन बैठे! उन्हें अमर होना है और तुम न मरने पर तुले हुए हो! है कोई मेल, तुम्हारे और उनके बीच! बताओ इस मामले में तुम्हारी चलेगी या उनकी? सम्राट से ऊपर होती है क्या प्रजा, किसान और मजदूर? सम्राट की अपनी समस्याओं से क्या ज्यादा बड़ी होती हैं अवाम की समस्याएं? बेहतर है घर जाओ, सद्गुरु का भजन करो और मौज करो। हां चाहो तो सम्राट फिटनेस की टिप्स और लंबे-चौड़े भाषण तुम्हें मुफ्त देते रह सकते हैं। तुम फिट रहो, वह भी फिट रहें। तो अब बोलो सम्राट की.....।

भाई मैंने तो तुमसे उनकी जय बोलने के लिए कहा था और तुम....!

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