किसान आंदोलनः अमेरिकी किसान भी गौर से भारत की ओर देख रहे हैं, अफसोस में हैं कि पहले क्यों चुप रह गए

अमेरिका और अन्य धनी देशों में किसानों की आबादी काफी कम हो गई है। वहां सिर्फ एक फीसद आबादी खेती में है और उनके लिए भी यह फायदे का पेशा नहीं है। धनी देशों में कृषि क्षेत्र भारी सरकारी सब्सिडी पर चल रहा है। लेकिन यह सब्सिडी भी बड़े-बड़े लोगों को मिल रही है।

फोटोः संडे नवजीवन
फोटोः संडे नवजीवन
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संयुक्ता बासु

सरकार यह तर्क देते नहीं अघा रही कि वह भारत के किसानों को भी अमेरिकी-यूरोपीय किसानों की तरह समृद्ध बनाने के प्रयास में है, जिसे आंदोलन के जरिये रोकने की कोशिश की जा रही है। इसलिए नवजीवन ने कैलिफोर्निया में बेदब्रत पेन और चंडीगढ़ में देविंदर शर्मा से वहां की असली हालत जानने-समझने की कोशिश की। बातचीत करीब ढाई घंटे तक चली।

बेदब्रत पेन फिल्म निर्माता और वैज्ञानिक हैं। उन्होंने अमेरिका में छोटे किसानों की व्यथा-कथा बताती डॉक्यूमेंटरी फिल्म ‘डेजा व्यू’ हाल में ही बनाई है। वह नासा और कैलटेक में करीब 15 साल तक वैज्ञानिक थे। वह अमेरिकी स्पेस टेक्नोल़ॉजी हॉल ऑफ फेम में भी शामिल रहे। उनके नाम 90 से अधिक पेटेन्ट हैं। वह डिजिटल कैमरा क्रांति को संभव बनाने वाले सीएमओएस डिजिटल सेंसर टेक्नोलॉजी के आविष्कारकों में से एक हैं। फिल्म निर्माता बनने के लिए उन्होंने वैज्ञानिक की नौकरी छोड़ दी।

देविंदर शर्मा कई पुरस्कारों से सम्मानित पत्रकार, लेखक, विचारक और प्रमुख खाद्य तथा व्यापार नीति विश्लेषक हैं। उन्होंने प्लांट ब्रीडिंग और जेनेटिक्स में मास्टर्स डिग्री ली है और कृषि वैज्ञानिक का प्रशिक्षण प्राप्त किया है। वह इंडियन एक्सप्रेस में पत्रकार थे लेकिन सस्टेनेबल (संधारणीय) कृषि, जैव विविधता, खाद्य सुरक्षा और गरीबी से जुड़ी नीति-संबंधी मुद्दों पर शोध के लिए उन्होंने नौकरी छोड़ दी। कृषि क्षेत्र और किसानों के मुद्दों पर टीवी चैनलों पर होने वाली बहसों के दौरान आपने उन्हें काफी ठोस स्वर में बातें करते सुना होगा। पेश है दोनों विशेषज्ञों से बातचीत के प्रमुख अंशः

बेदब्रत पेन

हम यहां सिर्फ किसानों के मुद्दे पर बात नहीं कर रहे क्योंकि खाद्य सिर्फ किसानों का मुद्दा नहीं हो सकता। यह हर व्यक्ति का मुद्दा है। पिछले कुछ माह के दौरान जब भारत में किसानों का आंदोलन शुरू हुआ, तो मैं इन मुद्दों पर अध्ययन करने लगा। एक बात पर जाकर मैं अटक गया कि मुक्त बाजार के लिए कृषि को ‘खोलने’, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के अमेरिकी प्रारूप ‘मूल्य समरूपता का अंत’, न्यूनतम सरकारी नियंत्रण आदि के बारे में बातें लगभग वैसी ही हैं, जो करीब चार दशक पहले अमेरिका में हो रही थीं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस तरह की बातें कर रहे हैं कि कैसे बड़ी कंपनियां ‘अच्छे नागरिक’ हैं, वह ठीक उसी तरह की हैं जैसी अमेरिका में तब के राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन कर रहे थे। मुक्त व्यापार, कम नियंत्रण, मूल्य समरूपता को लेकर उसी तरह की बातें हो चुकी हैं। और इसीलिए हमने अपनी फिल्म का नाम डेजा व्यू (पूर्वानुभव) रखा।

आज भारत जिन बातों पर विचार कर रहा है, अमेरिका उस दौर से गुजर चुका है। और तब क्या हुआ? छोटे किसानों के साथ क्या हुआ? हमने सोचा कि इससे बेहतर क्या हो सकता है कि हम अमेरिकी किसानों का हाल बताएं और इसके जरिये तुलनात्मक दृष्टि प्रस्तुत करें। हम चार भूरे लोगों ने श्वेतों में सबसे श्वेत अमेरिका में लोवा, कंसास, विस्कोंसिन में जनवरी और फरवरी के ठंडे महीनों में यात्राएं की। हम कई किसानों से मिले। उन लोगों ने बताया कि बड़ी कंपनियों ने किस तरह छोटे किसानों को बदहाल कर दिया है।

ये लोग अपनी व्यथा-कथा बताने को बेचैन थे। ऐसा लगा कि उन्हें बोलने के लिए मंच की कमी है और उन्हें लग रहा था कि उनकी आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। जिस एक बात ने मुझे सबसे अधिक चौंकाया, वह थी अमेरिका में किसानों की आत्महत्या की बढ़ती संख्या। यहां हम तो सोच रहे थे कि अमेरिका अवसरों, दूध और शहद की जगह है; किसने सोचा होगा कि अमेरकी किसान भी आत्महत्या कर रहे हैं, क्योंकि वे कर्ज नहीं चुका पा रहे हैं।

अमेरिकी किसान अच्छी तरह जानते हैं कि भारत में क्या कुछ हो रहा है और वे वहां होने वाली घटनाओं पर नजर रख रहे हैं। उन्होंने भारतीय किसानों के लिए हमारे पास संदेश भेजे जिन्हें हम फिल्म में दिखा रहे हैं। यह फिल्म अभी संपादन की प्रक्रिया से गुजर रही है। उन्हें अफसोस है कि जब यहां बड़े बदलाव हो रहे थे, तब उन्होंने ऐसा नहीं किया था। उन लोगों ने कहा कि वे भारतीय किसान आंदोलन से काफी प्रभावित हैं और भारतीय किसानों से सीख रहे हैं। हमारे पास विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ), संयुक्त राष्ट्र और पहली दुनिया के संस्थान पहले से थे जो बताते रहते थे कि भारत को क्या करना चाहिए लेकिन पहली दुनिया के समुदाय अब भारतीय किसानों से सीख रहे हैं। और यह दिल को आह्लादित करने वाला अनुभव है।

देविंदर शर्मा

1980 के दशक के मध्य में मैं सब्सिडी की उस राशि के बारे में जानने को उत्सुक होने लगा जो धनी विकसित देश अपने किसानों को देते हैं। हमें यह समझने को कहा जाता है कि धनी देश इतने संपन्न हैं और उनके किसान इतनी अच्छी हालत में हैं कि हमें उनके मॉडल को अपनाने और अपने कृषि क्षेत्र को मुक्त बाजार के लिए खोलने की जरूरत है। सच्चाई यह है कि अमेरिका और कई अन्य धनी देशों में मुक्त बाजार ने किसानों, खास तौर से छोटे किसानों को लाभ नहीं पहुंचाया है। किसानों की आबादी भी काफी कम हो गई है। अमेरिका की सिर्फ एक प्रतिशत आबादी खेती-किसानी में है और उनके लिए भी फायदे का पेशा नहीं है। धनी देशों में कृषि क्षेत्र भारी सरकारी सब्सिडी पर चल रहा है।

दो साल पहले अमेरिका के कृषि विभाग के मुख्य अर्थशास्त्री ने कहा कि अगर आप मुद्रास्फीति के साथ समायोजित करें, तो कृषि आय 1960 के दशक से ही तेजी से गिरती रही है। दूसरी तरफ, भारत में हमें कहा जाता है कि मुक्त बाजार से कृषि की आय बढ़ेगी। मैं समझ नहीं पाता कि यह अमेरिका में क्यों नहीं बढ़ी है? पहली दुनिया के देशों में खेती में लागत भी क्यों नहीं निकल पाई? अमेरिका में औसतन 40 प्रतिशत कृषि आय वस्तुतः सब्सिडी से आती है। यह बात इस तर्क को पूरी तरह खंडित कर देती है कि बाजार की वजह से बेहतर कीमतें मिलेंगी।

कपास का उदाहरण लें। 2005 में अमेरिकी किसान 3.9 बिलियन डॉलर की फसल पैदा करने के लिए 4.7 बिलियन डॉलर की सब्सिडी हासिल कर रहे थे। और इस वजह से वैश्विक कीमतें कम थीं। इससे अफ्रीका, भारत और अन्य देशों के किसानों की कीमतें अधिक थीं। ऊपर से, अमेरिका सब्सिडी वाले इस कपास को खरीदने के लिए वस्त्र उद्योग को 180 मिलियन डॉलर सब्सिडी देता था। यूरोपीय यूनियन हर साल 100 बिलियन डॉलर की सब्सिडी की मदद उपलब्ध कराता है, जो यूरोपीय यूनियन के किसानों की कृषि आय को 57 प्रतिशत कर देता है। कल्पना करें कि अगर यह सब्सिडी वापस ले ली जाती है, तो यूरोपीय यूनियन के किसानों का क्या होगा। और यूरोप में कृषि क्षेत्र में इस तरह की भारी सब्सिडी देने के बावजूद वहां हर मिनट एक किसान कृषि कार्य त्याग देता है।

लेकिन बड़े खिलाड़ियों ने सब्सिडी पर कब्जा कर रखा है। अमेरिका और यूरोप द्वारा उपलब्ध कराई जाने वाली 80 प्रतिशत सब्सिडी अरबों-खरबों डॉलर वाले निगम और सरकारी एजेंसियां ले लेती हैं। बची हुई 20 प्रतिशत सब्सिडी बड़े और अन्य किसानों को चली जाती हैं और वह भी बड़े किसानों को ज्यादा। अमेरिका में सबसे अधिक सब्सिडी टेड टर्नर को मिलती है। वह अमेरिका के 25वें सबसे धनी-मानी व्यक्ति हैं। वह 6.2 बिलियन डॉलर के स्वामी बताए जाते हैं। तेल के बड़े उद्योगपति रहे जॉन डी रॉकफेलर के पोते डेविड रॉकफेलर सब्सिडी के अन्य बड़े लाभार्थी हैं। वह न्यूयार्क के ह्यूडसन में मक्का, गेहूं और सोयाबीन उपजाते हैं। यूरोप में क्वीन एलिजाबेथ सबसे बड़ी सब्सिडी लाभार्थी हैं क्योंकि काफी बड़े क्षेत्र की खेती वाली जमीन उनके नाम से है। यही हाल प्रिंस चार्ल्स, और डेनमार्क, हॉलैंड, स्पेन वगैर के किंग और क्वीन का है।

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Published: 10 Apr 2021, 7:07 PM