देश का खेत-किसान बदहाल, फिर कैसे बजट में कटौती कर सम्मान दिलाएंगे पीएम मोदी

मोदी सरकार में किसानों के लिए सबसे ज्यादा चर्चित की गई योजना- प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि रही है। लेकिन सच ये है कि इसमें और अन्य अनेक चर्चित और महत्त्वपूर्ण योजनाओं का संशोधित अनुमान पिछले वित्त वर्ष में मूल अनुमान से काफी कम कर दिया गया।

फोटोः सोशल मीडिया
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भारत डोगरा

केंद्र की सत्ता में दूसरा कार्यकाल प्राप्त कर चुकी मोदी सरकार में लगातार दावा किया जाता रहा है कि किसानों की भलाई पर अधिक ध्यान दिया जाएगा और उन्हें सम्मान दिलाया जाएगा। लेकिन दूसरी तरफ यदि हम कृषि और पशुपालन मंत्रालयों के लिए पिछले वित्त वर्ष 2019-20 के मूल आवंटन को ध्यान से देखें तो स्पष्ट होता है कि पिछले वर्ष के मूल आवंटन में बाद में संशोधित अनुमान तैयार करते समय बड़ी कटौती कर दी गई।

इस स्थिति को इस तरह समझा जा सकता है कि वित्त वर्ष 2019-2020 के बजट में कृषि व पशुपालन के लिए कृषि व किसान-कल्याण मंत्रालय को 1,38,564 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था, लेकिन संशोधित अनुमान में इसे घटाकर 1,09,750 करोड़ रुपए कर दिया गया। वहीं, वित्त वर्ष 2019-2020 के मूल बजट में मतस्य, पशुपालन व डेयरी मंत्रालय के लिए 3,737 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ था, लेकिन संशोधित आवंटन में इसे 3,490 करोड़ कर दिया गया।

मोदी सरकार में सबसे चर्चित योजना प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि रही है। इसमें और अनेक अन्य चर्चित और महत्त्वपूर्ण योजनाओं का भी संशोधित अनुमान पिछले वित्त वर्ष में मूल अनुमान से काफी कम रहा। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के लिए मूल आवंटन 75,000 करोड़ रुपये था, लेकिन संशोधित आवंटन 54,370 करोड़ कर दिया गया।

इसी तरह राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का 3,745 करोड़ से 2,760 करोड़, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन का 2,000 करोड़ से 1,777 करोड़, परंपरागत कृषि विकास योजना का 325 करोड़ से 299 करोड़, राष्ट्रीय बागवानी मिशन का 2,225 करोड़ से 1,584 करोड़, श्वेत क्रांति के लिए बजट आवंटन 2,240 करोड़ को 1,799 करोड़ और बाजार-हस्तक्षेप स्कीम और कीमत समर्थन स्कीम के लिए आवंटन को 3,000 करोड़ से घटाकर 2,010 करोड़ रुपये कर दिया गया।


प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना विभिन्न मंत्रालयों में बंटी हुई है। इन सभी मंत्रालयों की इस योजना का योग करें तो इस स्कीम के लिए कुल मूल अनुमान वित्त वर्ष 2019-20 में 9,843 करोड़ रुपए था जबकि 2019-20 के संशोधित अनुमान में इसे 7,958 करोड़ रुपए कर दिया गया।

सरकार का यह कदम किसी कोण से किसानों के हितों में नहीं है। ये भी सवाल उठता है कि जो मूल आवंटन किया जाता है, उसे बिना किसी स्पष्टीकरण के महत्त्वपूर्ण हद तक कैसे कम कर दिया जा रहा है। वाकई सरकार गंभीर है तो उसे इस प्रवृत्ति से बचना चाहिए और मूल आवंटन में कटौती नहीं करनी चाहिए।

यदि 30 नवंबर 2019 तक के वास्तविक खर्च के आंकड़ों को देखा जाए तो कृषि और किसान मंत्रालय के लिए वित्त वर्ष के कुल बजट का मात्र 49 प्रतिशत हिस्सा ही उस समय तक खर्च हुआ था। इस आंकड़े से भी पता चलता है कि काफी बड़ी कटौतियां हो रही हैं। यह एक चिंताजनक प्रवृत्ति है और इसके दुष्परिणामों को कम करने के लिए निकट भविष्य में किसानों और खेती-किसानी के हित में अधिक संसाधन उपलब्ध होने चाहिए।

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