जम्मू और कश्मीर में डर भी है, नफरत भी
पहलगाम के बाद व्यापक सुरक्षा इंतजामों में जैसी तेजी आई है, स्थानीय आबादी के अलग-थलग पड़ जाने का खतरा है।

22 अप्रैल को पहलगाम के बैसरन में हुए भयावह नरसंहार के बाद सुरक्षा एजेंसियों ने घाटी में आतंकवाद का इको सिस्टम खत्म करने का व्यापक अभियान छेड़ दिया है। नरसंहार में 25 पर्यटकों और एक स्थानीय टट्टू संचालक की जान चली गई और 16 अन्य घायल हुए थे। ‘व्यापक अभियान’ के तहत पहचाने गए स्थानीय आतंकवादियों के पारिवारिक घर ध्वस्त करने के साथ लगभग 2,000 लोगों को हिरासत में लिया गया है, जिनके बारे में पुलिस का आरोप है कि वे मुख्य रूप से दक्षिण कश्मीर में आतंकवादी समूहों के सहयोगी या समर्थक हैं।
पहचाने जा चुके स्थानीय आतंकवादियों के घर ध्वस्त करने की शुरुआत हत्याकांड के दो दिन बाद 24 अप्रैल की रात दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग जिले में बिजबेहरा के गुर्रे गांव से हुई। सबसे पहले लश्कर-ए-तैयबा के आदिल अहमद थोकर का पारिवारिक घर ध्वस्त किया गया, जो बकौल पुलिस पहलगाम हत्याकांड में शामिल था। एक अन्य संदिग्ध और लश्कर-ए-तैयबा सदस्य आसिफ शेख का पारिवारिक घर पड़ोसी पुलवामा जिले के त्राल में उड़ा दिया गया।
लेख लिखे जाने तक दक्षिण कश्मीर के अनंतनाग, पुलवामा, शोपियां और कुलगाम जिलों में ऐसे ही दस घर विस्फोटों से उड़ाए जा चुके थे। पाक कब्जे वाले कश्मीर की सीमा से सटे कुपवाड़ा के कलारूस में फारूक तेवड़ा के परिवार का घर भी ध्वस्त किया गया, जो 1990 के दशक की शुरुआत में पाकिस्तान गया, फिर कभी नहीं लौटा। तेवड़ा के परिवार का दावा है कि उन्हें गलत तरीके से निशाना बनाया गया, जबकि अब उनका फारूक से कोई संबंध नहीं है। उनके एक रिश्तेदार ने ‘संडे नवजीवन’ से कहा, “फारूक को घर छोड़े 35 साल हो गए। हमारे लिए तो वह मर चुका है। यहां तक कि जिस घर को उड़ाया गया, वह भी अब उसका नहीं है।”
जो घर ध्वस्त किए गए, नुकसान उससे कहीं आगे भी हुआ है। कई मामलों में तो विस्फोट से पड़ोसी घर भी दरक गए। पुलवामा के मुर्रान गांव के निवासी ने कहा, “विस्फोट से हमारा घर भी क्षतिग्रस्त हो गया। दरारें आ गईं और खिड़कियों के शीशे टूट गए।”
26 अप्रैल की देर रात सक्रिय आतंकवादी अहसान-उल-हक शेख का घर इसी गांव में नष्ट कर दिया गया था। पुलिस के अनुसार, शेख 2018 में पाकिस्तान गया था और हाल ही में घाटी में घुसपैठ की थी। गांव के एक अन्य बाशिंदे ने कहा, “पर्यटकों पर हुए हमले के दोषियों को हर सूरत पकड़ा जाना चाहिए, उन्हें न्याय के कटघरे में लाना चाहिए। लेकिन जिस घर में महिलाओं-बच्चों समेत पूरा परिवार रहता हो, उसे इस तरह से कैसे नष्ट कर सकते हैं। अगर परिवार के किसी सदस्य ने हिंसा का रास्ता चुना है, तो उसे कानून का सामना करना ही होगा, लेकिन उसके परिवार को दंडित करना उचित नहीं है।”
कई प्रमुख नेताओं ने आतंकवादियों के पारिवारिक घर नष्ट किए जाने पर चिंता जताई। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने “लोगों को अलग-थलग करने वाली किसी भी गलत कार्रवाई” के प्रति चेतावनी दी है। उन्होंने कहा, “दोषियों को दंडित करें, उन पर कोई दया न दिखाएं, लेकिन निर्दोष लोगों को नुकसान न होने दें।”
पूर्व मुख्यमंत्री और पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) नेता महबूबा मुफ़्ती ने आतंकवादियों और नागरिकों के बीच “सतर्कता के साथ अंतर” बरतने का आग्रह किया। एक्स पर उनकी पोस्ट में लिखा है: “भारत सरकार को सावधानी से काम करना चाहिए तथा आतंकवादियों और नागरिकों के बीच अंतर करना चाहिए… यह सब निर्दोष लोगों, खासकर आतंक का विरोध करने वालों को कहीं अलग-थलग न कर दे।”
अलगाववादी नेता और मुस्लिम धर्मगुरु मीरवाइज उमर फारूक ने भी सरकार से “निर्दोष कश्मीरी परिवारों को दंडित न करने” का आग्रह किया है। उन्होंने एक्स पर लिखा- “जब कश्मीरी सामूहिक रूप से पहलगाम में हुए जघन्य अपराध की निंदा कर रहे हैं, इसके अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाना जरूरी है। लेकिन अंधाधुंध गिरफ्तारियां तथा घर और मोहल्ले ध्वस्त करने के सोशल मीडिया पर चल रहे वीडियो परेशान करने वाले हैं। मैं निर्दोष पीड़ितों के लिए न्याय की मांग करते हुए अधिकारियों से निर्दोष कश्मीरी परिवारों को दंडित न करने का आग्रह करता हूं।”
तोड़फोड़ की वैधानिकता पर भी लोग सवाल उठा रहे हैं। जाने-माने वकील सैयद रियाज खावर ने कहा: “कानून के तहत, राज्य किसी भी आरोपी या दोषी का घर नहीं गिरा सकता।" सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि सर्वोच्च अदालत ने ‘बुलडोजर न्याय’ पर रोक लगाई है। खावर ने फेसबुक पर लिखा: “राज्य गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम के तहत किसी आरोपी की संपत्ति, अगर वह उसके नाम पर है तो जब्त कर सकता है, लेकिन उचित कानूनी प्रक्रिया के बाद।”
खावर ने ‘संडे नवजीवन’ से कहा, “पहलगाम में जो कुछ हुआ, वाकई दिल दहला देने वाला और बेहद दर्दनाक है। कश्मीरियों ने इन मासूमों की मौत पर दुख जताया है। वे सड़कों पर उतरे और इस बर्बर कृत्य के लिए जिम्मेदार आतंकवादियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया। अपराधियों को न्याय के कटघरे में लाना ही चाहिए, लेकिन न्याय कश्मीरी लोगों को भी मिलना चाहिए। उन्हें सामूहिक रूप से दंडित या नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए। यह केन्द्र सरकार को सुनिश्चित करना है कि देश में कहीं भी घाटी के किसी भी नागरिक को नुकसान न पहुंचे। लेकिन अफ़सोस, कि सरकार कश्मीर से बाहर हमारे छात्रों और व्यापारियों की सुरक्षा करने में विफल रही है।”
देश के विभिन्न भागों- खासतौर से उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र से आ रही खबरों और वीडियो से पता चलता है कि कश्मीरी छात्रों, व्यापारियों और पेशेवरों को किस तरह परेशान किया और धमकाया जा रहा है। उन पर शारीरिक हमले भी किए जा रहे हैं।
श्रीनगर स्थित जम्मू और कश्मीर छात्र संघ के राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुएहमी ने ‘संडे नवजीवन’ से कहा: “ऐसे हालात को दक्षिणपंथी समूहों और कुछ राष्ट्रीय समाचार चैनलों ने हवा दी, जो पहलगाम त्रासदी के बाद से लगातार खासतौर पर कश्मीरियों और सामान्यत: मुसलमानों के खिलाफ नफरत फैलाने में जुटे थे। कश्मीरी छात्रों पर हमले हुए, जिससे डर और दहशत का माहौल बन गया। हमले के एक सप्ताह के भीतर पांच सौ से अधिक छात्र घर लौट आए।”
उत्तराखंड के मसूरी में कश्मीरी शॉल विक्रेताओं पर हुए हमलों ने कश्मीरी व्यापारियों में भय पैदा कर दिया है। खबरों के अनुसार, 16 अन्य कश्मीरी व्यापारियों को धमकाया गया और उन्हें उनके किराये के मकानों से जबरन निकाल बाहर किया गया। शॉल विक्रेताओं पर हमले का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद घाटी में नाराजगी है। पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के नेता और विधायक सज्जाद लोन ने एक्स पर लिखा: “यह बहुत आगे चला गया है। कश्मीरियों पर हमले के वीडियो सोशल मीडिया पर हैं। मुझे आश्चर्य है कि इन राज्यों की पुलिस क्या कर रही है। कायर गुंडे कश्मीरी शॉल विक्रेताओं को थप्पड़ मारते देखे जा सकते हैं। यह घटना मसूरी में हुई है। @AmitShah से अनुरोध है कि कृपया हस्तक्षेप करें।”
खुएहमी के नेतृत्व में छात्रों का एक प्रतिनिधिमंडल लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी से उनकी श्रीनगर यात्रा के दौरान मिला। खुएहमी ने कहा, “हमने राहुल गांधी को देश के विभिन्न हिस्सों में कश्मीरी छात्रों के उत्पीड़न, धमकी और धमकी भरे फोन कॉल की बढ़ती घटनाओं के बारे में बताया। उन्होंने हमारी बात ध्यान से सुनी और आश्वासन दिया कि यह सब प्रधानमंत्री और केन्द्रीय गृह मंत्री के संज्ञान में लाएंगे।”
बेचैनी का एक और कारण हाल ही में ऐसी 60 महिलाओं को निर्वासित किया जाना है, जिनमें से ज्यादातर पाक अधिकृत कश्मीर से हैं और जिनकी शादी कश्मीरी पुरुषों से हुई थीं। ये लोग 1990 के दशक की शुरुआत में हथियार चलाने की ट्रेनिंग के लिए पाकिस्तान या मुज़फ़्फ़राबाद गए थे, और वहीं बस गए।
अधिकारियों ने इन महिलाओं को श्रीनगर, बारामुल्ला, कुपवाड़ा, बडगाम और शोपियां जिलों से उठाया और पाकिस्तानी अधिकारियों को सौंपने के इरादे से बसों में भरकर पंजाब ले गए। पीओके की महिलाओं के अलावा, अधिकारियों ने 11 पाकिस्तानी नागरिकों को भी निर्वासित किया, जो लगभग 45 साल पहले वैध वीजा पर भारत आए लेकिन मेंढर और पुंछ में अवैध रूप से बस गए थे।
प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता रजा मुजफ्फर भट्ट ने कहा, “मेरा मानना है कि इन महिलाओं के साथ घोर अन्याय हुआ है, जो अब कश्मीर के सामाजिक ताने-बाने का अभिन्न अंग हैं। वे विवाह की कड़ी में यहां से जुड़ी हुई हैं और उनके बच्चे यहीं पले और बड़े हुए। वे अपने पतियों और बच्चों के साथ दशकों से शांतिपूर्वक रह रही हैं। उन्हें निर्वासित नहीं किया जाना चाहिए था।” उन्होंने कहा कि “इनमें से ज्यादातर महिलाएं पीओके से थीं, जो हमारे संविधान के अनुसार भारतीय क्षेत्र है। हमारी संसद ने एक प्रस्ताव पारित किया है जिसमें पुष्टि की गई है कि पीओके भारत का हिस्सा है। इसके अलावा, जम्मू और कश्मीर विधानसभा ने पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर के लिए सीटें आरक्षित की हैं। ज्यादातर महिलाएं पूर्व आतंकवादियों के लिए 2010 की पुनर्वास नीति के तहत कश्मीर में दाखिल हुई थीं। उस समय उन्हें जम्मू-कश्मीर में दाखिल होने, यहां रहने की अनुमति दी गई। इसलिए, इन्हें पाकिस्तानी नागरिक नहीं माना जा सकता और उन्हें निर्वासित नहीं किया जाना चाहिए था।”
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पहलगाम नरसंहार के बाद लागू ‘व्यापक इंतजाम’ स्थानीय आबादी को अलग-थलग कर सकते हैं, जिससे जम्मू-कश्मीर के लोगों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में एकीकृत करने के प्रयासों को संभावित रूप से नुकसान पहुंच सकता है।
कश्मीर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के प्रमुख के रूप में काम कर चुके प्रमुख राजनीतिक टिप्पणीकार और लेखक प्रो. नूर अहमद बाबा ने ‘संडे नवजीवन’ से कहा: “भारत सरकार के लिए असल चुनौती जम्मू और कश्मीर के लोगों को राष्ट्रीय मुख्यधारा में भावनात्मक रूप से एकीकृत करना है। यह एकीकरण सभी स्तरों पर होना चाहिए। जम्मू और कश्मीर के लोगों (खासकर घाटी में) ने पहलगाम में इस आतंकी हमले से पीड़ित परिवारों के साथ एकजुटता दिखाई है। हत्यारों के खिलाफ प्रदर्शन के लिए लोग सड़कों पर उतरे हैं। भारत सरकार को इन जन भावनाओं का लाभ उठाते हुए ऐसी किसी कार्रवाई से बचना चाहिए जिसमें लोगों के इस प्रक्रिया से अलग-थलग हो जाने का जोखिम हो।”
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