नेत्रहीनों के लिए “कर्तव्य पथ” नहीं बल्कि आज भी “राजपथ”, वैसे भी अंधभक्तों की आंखें होती ही कहां हैं?

पहले जहां राजपथ की पूरी लंबाई तक लोग अपनी गाड़ियों से सैर कर सकते थे, अब तमाम बैरीकेडिंग के बाद भी केवल पैदल जाया जा सकता है। जाहिर है, राजपथ के कर्तव्य पथ में परिवर्तित होते ही यह बुजुर्गों और अशक्त लोगों की पहुँच से दूर हो गया।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

प्रधानमंत्री मोदी की महत्वाकांक्षी परियोजना, नई दिल्ली स्थित सेंट्रल विस्टा परियोजना के उद्घाटन से पहले ही सितम्बर 2022 में नई दिल्ली नगर निगम ने ऐतिहासिक राजपथ का नाम बदल कर कर्तव्य पथ कर दिया था। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इसकी घोषणा गुलामी से मुक्ति के तौर पर की थी। इसके बाद यहाँ नए-नए बोर्ड लगाए गए और साथ ही राजपथ वाली आजादी पर अंकुश लगा दिया गया। पहले जहां राजपथ की पूरी लंबाई तक लोग अपनी गाड़ियों से सैर कर सकते थे, अब तमाम बैरीकेडिंग के बाद भी केवल पैदल जाया जा सकता है। जाहिर है, राजपथ के कर्तव्य पथ में परिवर्तित होते ही यह बुजुर्गों और अशक्त लोगों की पहुँच से दूर हो गया।

 यही नहीं, नेत्रहीनों के लिए यह आज भी राजपथ ही है। कर्तव्य पथ पर नेत्रहीनों के लिए ब्रेल में कुछ बोर्ड लगाए गए हैं। पता नहीं, कोने में लगे इन बोर्डों तक नेत्रहीन कैसे पहुंचते होंगें, और यदि वे बोर्ड तक पहुँच गए तब जाहिर है वे कर्तव्य पथ पर ही खड़े हैं। पर, एक आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि तथाकथित गुलामी के प्रतीक राजपथ का नाम आज भी उस सड़क पर लिखा है, जिसे गर्व से सत्ता कर्तव्य पथ कहती है और अंग्रेजों से मुक्ति का प्रतीक बताती है। सत्ता और नई दिल्ली नगर निगम को यह जरूर बताना चाहिए कि नेत्रहीनों के लिए कर्तव्य पथ आज भी राजपथ ही क्यों है? वैसे भी अंधभक्तों की आँखें होती ही कहाँ हैं?

सरकारी और नगर निगमों द्वारा बहुत सारी भ्रामक जानकारियाँ दी जाती हैं। दिल्ली में, विशेष तौर पर नई दिल्ली क्षेत्र में पिछले वर्ष जी20 के भारत की अध्यक्षता के समय लगाए गए पोस्टर, बैनर और बोर्ड आज तक नहीं हटाये गए हैं। इनमें से अधिकतर पर प्रधानमंत्री मोदी की फोटो भी है और भारत के अध्यक्षता की सूचना भी। एक बार अध्यक्षता ख़त्म होने के बाद इन बोर्डों को क्यों रखा गया है, शायद ही किसी को पता होगा। भारत केवल जी20 का ही सदस्य नहीं है बल्कि अनेकों ऐसे समूहों का सदस्य है – इस हिसाब से अध्यक्षता के बाद भी यदि जी20 का प्रचार किया जा रहा है तो फिर अन्य बहुराष्ट्रीय समूहों का भी प्रचार किया जाना चाहिए।

जी20 के साथ तो केंद्र सरकार का भी बहुत लगाव रहा है। जनवरी के मध्य तक अधिकतर सरकारी विज्ञापनों में जी20 का लोगो प्रदर्शित किया गया था, जबकि 9 सितम्बर 2023 को भारत ने आधिकारिक तौर पर ब्राज़ील को अध्यक्षता सौंप दी थी और 30 नवम्बर के बाद अध्यक्षता पूरी तरह ख़त्म हो चुकी थी। यही हाल, आजादी के अमृत महोत्सव के प्रतीक चिह्न का भी है। आजादी के अमृत महोत्सव को आधिकारिक तौर पर 15 अगस्त 2023 को समाप्त कर दिया गया, पर 10 फरवरी 2024 को तमाम समाचार पत्रों में प्रकाशित भारतीय तटरक्षक बल के एक विज्ञापन में इसके प्रतीक चिह्न का इस्तेमाल किया गया था। अभी 15 फरवरी को प्रकाशित मध्यम एंड स्माल इंडस्ट्रीज से संबंधित विज्ञापन में तो जी20 और आजादी के अमृत महोत्सव, दोनों के लोगों का इस्तेमाल है।


भारत सरकार के विज्ञापनों में कुछ चीजें हास्यास्पद भी प्रतीत होती हैं। लगभग हरेक विज्ञापन या प्रचार सामग्री गवर्नमेंट ऑफ़ इंडिया के अंग्रेजी लोगो से शुरू होती है, पर फिर आगे के विषय में हिन्दी में या अंग्रेरजी में – इंडिया कहीं लिखा नहीं मिलेगा, अंग्रेरजी में भी भारत ही रहता है। दूसरी तरफ, विषय कुछ भी हो पर विषय से अधिक जरूरी प्रधानमंत्री मोदी की बड़ी तस्वीर और बड़े अक्षरों में लिखे गए नाम हैं। दिल्ली में अयोध्या जलसे के तमाम पोस्टर आज भी लगे हैं – हरेक में राम की फोटो लगी हो या न हो पर मोदी जी की फोटो हरेक में लगी है। कुछ पोस्टरों में मोदी जी की बड़ी फोटो और राम की अपेक्षाकृत छोटी फोटो भी है। दिल्ली में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस की जयंती, पराक्रम दिवस, के कार्यक्रमों के पोस्टर आज भी लगे हैं – हरेक में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस से कई गुना बड़ा नाम नरेंद्र मोदी का है।

केवल विज्ञापनों में ही नहीं बल्कि वक्तव्यों में भी प्रधानमंत्री का दोहरा आयाम झलकता है। पांच दिनों पहले ही चौधरी चरण सिंह और एम एस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिए जाने की घोषणा के समय प्रधानमंत्री ने किसानों की और किसानों के अधिकारों की बातें की थीं। इसके साथ ही हरित क्रांति और एमएसपी पर स्वामीनाथन फार्मूला की बात की। अब जब किसान अपने अधिकार मांग रहे हैं और स्वामीनाथन फोर्मुले से एमएसपी की गारंटी चाहते हैं तो उनके साथ आतंकवादियों जैसा व्यवहार किया जा रहा है, उन्हें पूरी शिद्दत से खालिस्तानी घोषित करने की कोशिश जारी है। इन सबसे दूर, प्रधानमंत्री जी अभी हिन्दू धर्म के प्रचार में व्यस्त है। महीनों से मणिपुर जल रहा है और प्रधानमंत्री विकसित भारत का राग अलाप रहे हैं, सामान नागरिक संहिता की बात कर रहे हैं। एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिए जाने का जश्न मनाने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान में मंगलवार को एक समारोह में स्वामीनाथन की अर्थशास्त्री बेटी मधुरा स्वामीनाथन ने आंदोलनकारी किसानों को दिल्ली पहुंचने से रोके जाने की खबरों का जिक्र किया और कहा कि देश के वैज्ञानिकों को किसानों से परामर्श करना चाहिए, उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार नहीं करना चाहिए। मधुरा ने कहा- “पंजाब के किसान आज दिल्ली की ओर मार्च कर रहे हैं। अखबार की रिपोर्टों के अनुसार, हरियाणा में उनके लिए जेलें तैयार की जा रही हैं, बैरिकेड्स हैं, उन्हें रोकने के लिए हर तरह की चीजें की जा रही हैं। ये किसान हैं, वे अपराधी नहीं हैं।“ “मुझे लगता है कि अगर हमें एम.एस. स्वामीनाथन को सम्मान देना है और उनका सम्मान करना है, तो भविष्य के लिए हम जो भी रणनीति बना रहे हैं उसमें हमें किसानों को अपने साथ लेना होगा।''

इतना तो निश्चित है कि यदि आज चौधरी चरण सिंह और स्वामीनाथन जिन्दा होते तो आन्दोलनकारी किसानों का समर्थन करने के जुर्म में कोई सजा काट रहे होते। हमारे देश में वर्ष 2014 के बाद से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हुआ है – हाँ समस्याएं मीडिया से गायब हो जाती हैं, और कोई दूसरी समस्या मीडिया में छा जाती है। हाल फिलहाल में भी मीडिया और सत्ता के समाचार देखिये – पहले केवल राम मंदिर के समाचार थे, उसके बाद उत्तराखंड में बड़े तामझाम से सामान नागरिक संहिता का डंका पीटा गया, फिर हल्द्वानी में मदरसे पर बुलडोज़र का समाचार आया और अब हल्द्वानी किसी को नहीं पता क्योंकि अब मोदी जी के मंदिर उद्घाटन के समाचार हैं। इसके बाद मीडिया में कई दिनों तक यह बताया जाएगा कि कैसे विदेशों में मोदी जी का डंका बज रहा है। तब तक सत्ता कुछ और नाटक करेगी और मीडिया वही दिखाएगा। इस बीच किसानों के आंदोलन और सर्वोच्च न्यायालय की इलेक्टोरल बांड पर की गयी टिप्पणी मीडिया छुपा चुका होगा। मार्च से पहले मोदी सरकार इलेक्टोरल बांड पर कुछ ऐसा निर्णय लेगी जिससे देश और बर्बाद होगा पर मीडिया उसे विकास और जनता के हित में लिया कदम बतायेगी।

पीएम मोदी ने हाल में ही यूएई में वर्ल्ड गवर्नमेंट समिट को संबोधित करते हुए कहा कि “आज विश्व को ऐसी सरकारों की जरूरत है जो सबको साथ लेकर चले, जो स्मार्ट हो, जो टेक्नोलॉजी को बड़े बदलाव का माध्यम बनाए। जो साफ-सुथरी हो, जो करप्शन से दूर हो, जो ट्रांसपेरेंट हो। जो ग्रीन हो, जो पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों को लेकर गंभीर हो।” “सबका साथ-सबका विकास' के मंत्र पर चलते हुए हम उसे अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने और सैचुरेशन की अप्रोच पर बल दे रहे हैं। सैचुरेशन की अप्रोच, यानी सरकार की योजनाओं के लाभ से कोई भी लाभार्थी छूटे नहीं, सरकार खुद उस तक पहुंचे। गवर्नेस के इस मॉडल में भेदभाव और भ्रष्टाचार दोनों की ही गुंजाइश समाप्त हो जाती है।”


प्रधानमंत्री के सबको साथ लेकर चलना, साफ़-सुथरी, भेदभाव और भ्रष्टाचार मुक्त सरकार के दावों को खोलती रिपोर्ट हाल में ही एमनेस्टी इन्टरनेशनल ने प्रकाशित की है। इसके अनुसार भारत में एक धर्म विशेष के नागरिकों की आवाज और आकांक्षाओं को कुचलने के लिए बुलडोज़रों का हथियारों की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है और इनके घरों, दूकानों और प्रार्थना स्थानों को बिना कानूनी प्रक्रिया का पालन किए ही बुलडोज़र से ढहाया जा रहा है। यह एक अघोषित सरकारी नीति बन गयी है और क़ानून के दायरे से बाहर विरोध की आवाजों को कुचलने का एक नया तरीका बन गया है। एमनेस्टी इन्टरनेशनल के सेक्रेटरी जनरल अगनेस कोलामार्ड (Agnes Collamard, Secretary General) के अनुसार यह सब क्रूर और घिनौना कृत्य है। यह पूरी तरीके से अमानवीय, गैर-कानूनी और पक्षपातपूर्ण है।

पूरी दिल्ली में घूमने के बाद हमारे प्रधानमंत्री का चेहरा एक बड़े मॉडल जैसा प्रतीत होता है, जो कहीं लटक कर, कहीं चिपक कर, कहीं कट-आउट बनकर, तो कहीं छपकर और कहीं फटकर भी तमाम उत्पादों का प्रचार कर रहा हो, यही “हमारा संकल्प- विकसित भारत” की तथाकथित गारंटी है– कम से कम नंगी मीडिया को यही लगता है।

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