विष्णु नागर का व्यंग्यः गंगा-यमुना का बहना रुक सकता है, हिमालय पिघल सकता है, लेकिन देश में फ्रॉड नहीं रुक सकता!

फ्रॉड हमारे यहांं अविरत-अविराम-अविकल होते रहते हैं। गंगा और यमुना बहना बंद कर सकती हैं, हिमालय पिघलकर गायब हो सकता है, आक्सीजन भारत से लुप्त हो सकती है, लेकिन धर्म, पाखंड, झूठ और फ्रॉड इस देश में एक दिन, एक घंटे, एक मिनट भी रुक जाए, यह हो नहीं सकता।

फोटोः सोशल मीडिया
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विष्णु नागर

हमारे महान देश को हिंदुस्तान कहने की बजाय कई बार 'फ्रॉडिस्तान' कहने की प्रबल इच्छा होती है, मगर नहीं कहता। फिर इच्छा होती है, फिर नहीं कहता। कहता इसलिए नहीं कि देश तो अपना है। खैर न कहो तो भी इच्छा होती रहती है। इसका कारण है। फ्रॉड हमारे यहांं अविरत-अविराम-अविकल होते रहते हैं। गंगा और यमुना बहना बंद कर सकती हैं, हिमालय पिघलकर गायब हो सकता है, आक्सीजन भारत से लुप्त हो सकती है, लेकिन धर्म, पाखंड, झूठ और फ्रॉड इस देश में एक दिन, एक घंटे, एक मिनट भी रुक जाए, यह हो नहीं सकता।

कई बार लगता है हमारे देश में नित्यप्रति कुछ और हो न हो मगर फ्रॉड अवश्य होते हैं। भरोसा न हो तो किसी भी दिन का कोई भी अखबार उठाकर देख लीजिए। और तो और किसी विख्यात फ्रॉड द्वारा प्रकाशित सुविख्यात अखबार उठाकर देख लीजिए। उसमें भी उस फ्रॉड-विशेष को छोड़कर बाकी उसके सभी फ्रॉड भाई-बहनों के बारे में भरपूर खबरें मिलेंगी। मसलन किसी अंतरराष्ट्रीय -राष्ट्रीय-प्रादेशिक-स्थानीय नीरव मोदी, किसी मेहुल चोकसी, किसी चंदा कोचर के बारे में खबर अवश्य मिलेगी।

अखबार फ्रॉड की खबरों के बगैर चल नहीं सकते और पाठक उन्हें पढ़ने के काबिल मान नहीं सकते। खबर छपने से अक्सर होता-हवाता कुछ नहीं है। एक-दो दिन-दस दिन तक पाठक को सनसनी का फालतू-पठनीय सुख मिलता है। जिस देश की राष्ट्रीय राजधानी में बैठे बलात्कारी बाबा की तमाम जांचों-अदालती आदेशों के बावजूद एक साल बाद भी गिरफ्तारी नहीं हो सकती, वहां और हो भी क्या हो सकता है- सिवाय फ्रॉड के!

फ्रॉड अब सर्वव्यापी ईश्वर की तरह है। सब जगह, सब रूपों, सब रंगों में यह पाया जाता है। जहां फ्रॉड न हो, समझो वह जगह, वह देश भारत का अभिन्न अंग नहीं। जिसके साथ कभी फ्रॉड नहीं हुआ और जिस फ्रॉड के साथ भी फ्रॉड नहीं हुआ, समझो वह इस धरती पर जनमा ही नहीं। इस बात को तो प्रधानमंत्री भी मानेंगे, जिस सरकार के होते पांच साल की अवधि में एक फ्रॉड तक नहीं हुआ और हुआ तो चर्चित नहीं हुआ, वह सरकार भी भला कोई सरकार है! जिस मुखिया ने फ्रॉड किया नहीं, वह मुखिया सक्षम प्रशासक नहींं, वह मजबूत-स्थिर सरकार दे नहीं सकता। इस बात को डायरी में कहीं नीति-वचन के रूप में चाहें तो लिख लीजिए।


जिस देश में प्रधानमंत्री के नाम पर लोग फ्रॉड कर ले जाते हों, जहां आर एम लोढ़ा जैसे सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तक के साथ फ्रॉड हो जाता है, ठीक वही का वही भारत देश है मेरा। पहले वकील और फिर जज के रूप में जिन लोढ़ा साहब ने न जाने कितने फ्रॉड के केस निबटाए होंगे, एक साइबर फ्रॉड उनके एक साथी के नाम पर उन्हें एक लाख रुपये का चूना लगा गया। आपने यह भी पढ़ा होगा कि सुप्रीम कोर्ट के जज साहेबान निर्णय कुछ और देते हैं, कोर्ट की रजिस्ट्री उसे कुछ और रंग देकर जारी कर देती है। यानी फ्रॉडों ने वर्तमान न्यायाधीशों को भी नहीं छोड़ा।

कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के सांसदों को दिल्ली के फ्रॉडों से सावधान रहने के टिप्स देते पाए गए थे। हालांकि वहां भी टॉप से बॉटम और बॉटम से टॉप तक अनेकानेक फ्रॉड पाए जाते हैं, मतलब फ्राडों से भी फ्रॉड कर जाएं, ऐसी प्रतिभाएं इस देश में उपलब्ध हैं। और बेचारी दिल्ली कोई अपवाद थोड़े है। अन्य महानगर, शहर, कस्बे भी अपवाद नहीं हैं, गांव-मोहल्ला सब जगह सब रूपों में किसिम-किसिम के फ्रॉड रेडिली एवेलेबल हैं।

फ्रॉडों को बड़े से और बड़ा बनने की जितनी सुविधाएं हमारे यहां हैं, दुनिया में शायद कहीं और नहीं। नीरव मोदी और विजय माल्या टाइप बड़े फ्रॉडों को देश से बच निकलने की सुविधा तो मिली ही, उनके प्रत्यर्पण की संभावना मात्र होने पर फॉरेन रिटर्न इन फ्रॉडों को बंबई जेल में बढ़िया से बढ़िया सुविधा कैसे मिले, इसकी चिंता गृह मंत्रालय को सताने लग गई थी। वैसे जो जितना बड़ा फ्रॉड है, वह गलती से ही कभी फंसता है, वरना ताजिंदगी राज करता है। फंसता है तो उसके साफ बच निकलने की गारंटी हमारे यहां सर्वाधिक है। समय के साथ इसमें सुविधा बढ़ती गई है। जितनी सुविधा आज है, आप मान लीजिए, उससे अधिक सुविधा 2024 में होगी और सरकार, टैक्नोलॉजी-टैक्नोलॉजी करती रहेगी।

धर्म का नाम लो तो वहां एक से एक जबर्दस्त फ्रॉड हैं, जो करोड़ों-अरबों में खेल रहे हैं। माया-मोह का त्याग करने के बारे में जो सबसे अधिक प्रवचन दे, समझो वह फ्रॉडेश्वर है। इनका धंधा जब तक चलता है, खूब चलता है और अधिकतर का आजीवन चलता है। जो जितना बड़ा आसाराम है, रामरहीम है, उतना अधिक वह मौज करता है, जेल गया भी तो वहां मौज मारता है। फंसने पर नेता इन्हें बचाने के लिए जान की तो नहीं, प्रतिष्ठा की भी नहीं (वह तो होती नहीं इनकी) अपनी राजकीय-प्रशासनिक ताकत की बाजी लगा देते हैं। फिर भी कोई वीर इन्हें जेल की हवा खिला दे तो जरूर नेता को सखेद पीछे हट जाना पड़ता है।


ऐसे फ्रॉड हर क्षेत्र में मिलेंगे। सच तो यह है कि हमारे देश में फ्रॉड करने के इतने आविष्कार प्रतिवर्ष होते रहते हैं कि अगर ऐसी प्रतिभाओं के लिए हमारे सौभाग्य से कोई नोबल पुरस्कार हुआ होता तो दस में से पांच तो हमारे पास होते ही होते।

तो भाइयों-बहनों हिंदुस्तान को फ्रॉडिस्तान कहने का ख्याल कभी-कभी मुझे आ जाता है, इसका बुरा न मानें। कभी-कभी सच भी स्वीकार कर लेना चाहिए। और यह मत समझना कि मैं बड़ा सतर्क-समझदार हूं। मैं भी फ्रॉडों का मारा हुआ हूं और कभी भी फिर से मारा जा सकता हूं।

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