पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकार के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा वैश्विक नाटक, चलता रहता है दमन का सिलसिला!

पूंजीवादी दुनिया में मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण जैसे शब्द पूरी तरह से विलुप्तीकरण के कगार पर पहुंच गए हैं, और इसमें संयुक्त राष्ट्र और तथाकथित प्रजातांत्रिक देशों का भी भरपूर योगदान है।

फोटो: सोशल मीडिया
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महेन्द्र पांडे

पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकार, आम आदमी के मौलिक अधिकार हैं और पूरे विश्व में दोनों का हनन किया जा रहा है। इस हनन में और आम आदमी को कुचलने में संयुक्त राष्ट्र के साथ ही पर्यावरण संरक्षण और मानवाधिकार पर प्रवचन देने वाले सभी देश सम्मिलित हैं। इसी वर्ष जुलाई में संयुक्त राष्ट्र सामान्य सभा ने पर्यावरण संरक्षण को मानवाधिकार में शामिल किया है – और दूसरी तरफ पर्यावरण विनाश और मानवाधिकार हनन के सन्दर्भ में अग्रणी देश, ईजिप्ट, में संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित जलवायु परिवर्तन से सम्बंधित कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज का 27 वां अधिवेशन आयोजित किया जा रहा है।

इजिप्ट में 65000 से अधिक राजनैतिक विरोधी, मानवाधिकार और पर्यावरण कार्यकर्ता लम्बे समय से जेल में बंद हैं। कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज के अधिवेशन से पहले भी अनेक पर्यावरण कार्यकर्ताओं को जेल में बंद कर दिया गया है। दूसरी तरफ संयुक्त राष्ट्र के महासचिव अपने हरेक भाषण में पर्यावरण कार्यकर्ताओं की सराहना करते हैं और उन्हें पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी बताते हैं, पर संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण के अधिवेशन पिछले कुछ वर्षों से लगातार ऐसे देशों में आयोजित किये जा रहे हैं जहां पर्यावरण संरक्षण के लिए आवाज उठाने पर अर्बन नक्सल, आतंकवादी या देशद्रोही का खिताब दिया जाता है। इस अधिवेशन के शुरू होने के दो सप्ताह पहले ही सैकड़ों पर्यावरण और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को इजिप्ट सरकार ने जेल में डाल दिया, क्योंकि ये कार्यकर्ता जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के संदर्भ में वैश्विक विफलता के विरुद्ध अधिवेशन के दौरान प्रदर्शन करना चाहते थे।

कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज अधिवेशन स्थल पर आधिकारिक वाईफाई ने ह्यूमन राइट्स वाच जैसे मानवाधिकार संस्थाओं और अनेक प्रतिष्ठित स्वतंत्र मीडिया संस्थानों को ब्लाक कर दिया है, यानि आप वहां इन वेबसाइट्स को नहीं देख पायेंगे। जाहिर है, कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज का सचिवालय, संयुक्त राष्ट्र और इजिप्ट सरकार जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के मुद्दे को मानवाधिकार के मसले से पूरी तरह अलग करना चाहते हैं। इजिप्ट में वर्ष 2017 से लगातार स्वतंत्र वेबसाइट्स को निषिद्ध करने की कवायद चल रही है। सबसे पहले मीडिया संस्थानों - अल जजीरा और मदा मसर – के वेबसाईट पर प्रतिबन्ध लगाया गया था, और फिर सितम्बर 2020 तक 628 वेबसाइट्स को प्रतिबंधित कर दिया गया – इनमें 116 साइट्स अंतर्राष्ट्रीय मीडिया संस्थानों की, 15 साइट्स मानवाधिकार संगठनों की और 27 साइट्स राजनैतिक विरोधियों की हैं।


कुछ दिनों पहले ही इजिप्ट में एक भारतीय पर्यावरण कार्यकर्ता को जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के लिए जागरूकता के उद्देश्य से किए जा रहे पदयात्रा के दौरान पुलिस ने हवालात में बंद कर दिया था। केरल के अजित राजगोपाल इजिप्ट में कैरो से अधिवेशन स्थल शर्म अल-शेख तक की पदयात्रा कर रहे थे, और उनके हाथ में गिरफ्तार किये जाने के समय एक तख्ती थी, जिसपर जलवायु परिवर्तन रोकने को कहा गया था। अजित राजगोपाल को पांच दिन हिरासत में रखा गया। इस पदयात्रा में शामिल 67 पर्यावरण कार्यकर्ताओं को पुलिस ने गिरफ्तार किया था, उनमें से कुछ कार्यकर्ता अभी तक हिरासत में ही हैं।

इजिप्ट में अला अब्द अल फतह सबसे चर्चित गिरफ्तार पर्यावरण और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। उन्हें पिछले अनेक वर्षों से जेल में बंद रखा गया है। पिछले सात महीनों से उन्होंने जेल में भूख हड़ताल की है और केवल पानी के सहारे जिन्दा हैं। भूख हड़ताल के बाद से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें पहचान मिली है, पर एक ऐसी दुनिया में जहां रूस यूक्रेन पर 250 से अधिक दिनों से हमले कर रहा हो और दुनिया तमाशा देख रही हो, वहां किसी पर्यावरण कार्यकर्ता की कैद कोई मायने नहीं रखती। अला अब्द अल फतह ने घोषणा की है कि कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज के अधिवेशन के पहले दिन से वे पानी भी छोड़ देंगे। आशंका यह है कि यदि उन्होंने पहले दिन से पानी छोड़ दिया तब दो सप्ताह तक चलने वाले इस अधिवेशन के दौरान ही कहीं उनकी मौत नहीं हो जाए।

जलवायु परिवर्तन और मानवाधिकार जैसे शब्द आज की पूंजीवादी दुनिया में महत्व खो चुके हैं पर बड़े देश और संयुक्त राष्ट्र इनका जाप करता रहता है। वर्ष 2019 में जब संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के 75 वर्ष पूरे हुए थे, तब दुनियाभर की मीडिया ने संयुक्त राष्ट्र की लुप्त हो चुकी गरिमा और स्थापना के उद्देश्य पर लम्बे लेख प्रकाशित किया था। पर, संयुक्त राष्ट्र की हालत लगातार खराब होती रही और अब इसके हरेक कमेटी और अंग पर भारत, रूस, चीन, दौड़ी अरब और इजिप्ट जैसे देशों का कब्जा है, जहां मानवाधिकार शून्य हो चुका है। हमारे देश में भी आजादी का अमृत महोत्सव वही नेता मना रहे हैं जो मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण के समर्थन की आवाज को नक्सली आवाज बताते हैं।

जहां तक कांफ्रेंस ऑफ पार्टीज का सवाल है, तो यह वैश्विक नेताओं के लिए एक वार्षिक जलसे का अड्डा बन चुका है। जहां हरेक बड़ा देश जलवायु परिवर्तन नियंत्रण के लिए प्रतिबद्ध होने का दावा करता है, और फिर अगले कांफ्रेंस तक जलवायु परिवर्तन पहले से भी अधिक घातक हो चुका होता है। इजिप्ट में अधिवेशन में पंजीकरण के लिए ऑफिसियल एप्प है, जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे डाउनलोड करने के बाद आप अपनी लोकेशन, फोटो एल्बम और ईमेल तक पहुंचने का अधिकार एप्प के संचालकों को दे देते हैं। जाहिर है, इस एप्प को डाउनलोड करने के बाद आप पूरी तरह इजिप्ट की निरंकुश सरकार के नियंत्रण में आ जाते हैं।


निरंकुश शासकों और तानाशाहों के लिए कोई भी अंतर्राष्ट्रीय आयोजन अपनी निरंकुशता और मानवाधिकार हनन को ढकने का एक मौका होता है, और इस मौके का फायदा ऐसी सरकारें अपने विरोधियों के दमन के लिए करती हैं। हमारे देश में भी अगले वर्ष सितम्बर में आयोजित किये जाने वाले जी-20 सम्मलेन की तैयारियां जोर-शोर से की जा रही हैं, और उस समय तक इस सम्मेलन को सुचारू रूप से आयोजित करने के नाम पर सरकार की नीतियों के विरोधी और मानवाधिकार कार्यकर्ता अलग-अलग बहानों से खामोश किये जा चुके होंगे।

हाल में ही अमेरिकन पोलिटिकल साइंस रिव्यु नामक जर्नल में इसी विषय से सम्बंधित यूनिवर्सिटी ऑफ कोपेनहेगेन और कार्नेगी मेलों यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों के एक संयुक्त दल द्वारा किया गया अध्ययन प्रकाशित किया गया है। इसके अनुसार निरंकुश शासक अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों की आड़ में अपने राजनैतिक विरोधियों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या और दमन करते हैं। यह दमन ऐसे आयोजनों से पहले, आयोजनों के समय और आयोजनों के बाद भी किया जाता है। दुखद तथ्य यह है कि शीत युद्ध का दौर खत्म होने के बाद से निरंकुश शासकों वाले देशों में ऐसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों में चार-गुना वृद्धि हो गयी है।

इन आयोजनों से पहले आयोजक सरकार का विरोध करने वाले हजारों कार्यकर्ता रातों-रात अगवा कर लिए जाते हैं और इनमें से अनेकों की हत्या कर दी जाती है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के दमन के लिए सबसे निरंकुश शासक की नजर में सबसे अच्छा समय अंतर्राष्ट्रीय अधिवेशनों के दौरान होता है, इस समय पूरी दुनिया के मीडिया की निगाहें चर्चाओं, संबोधनों और नेताओं के वक्तव्यों पर होती हैं और इस दौरान की जाने वाली दमन-कार्यवाही की भनक किसी को नहीं होती।

अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों के दौरान निरंकुश शासक विदेशी मीडिया का भरपूर लाभ उठाते हुए उदारवादी, सत्कारी और मानवाधिकार समर्थक वाली छवि प्रस्तुत करता है। दूसरी तरफ ऐसे समय ही विदेशी मीडिया की उपस्थिति में मानवाधिकार कार्यकर्ता मानवाधिकार हनन और सत्ता द्वारा जनता के दमन की आवाज बुलंद करते हैं। इसीलिए अधिवेशनों के दौरान निरंकुश शासक अपने विरोधियों की हत्या करते हैं, जेलों में डालते हैं या फिर उनका दमन करते हैं। ऐसे आयोजनों के बाद, जब सभी विदेशी पत्रकार अपने देशों में वापस चले जाते हैं, तब फिर एक बार दमन का सिलसिला चलता है।

जाहिर है निरंकुश शासक केवल अपनी छवि सुधारने के लिए बड़े अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों का इस्तेमाल करते हैं, और इसके लिए वे जिम्मेदार संस्थाओं और व्यक्तियों को भारी-भरकम रिश्वत और सुविधाएं भी देते हैं। भारत में वर्ष 2023 का जी-20 का शिखर सम्मलेन आयोजित किया जाएगा, वर्ष 2020 में जी-20 का सम्मलेन सऊदी अरब में आयोजित किया गया था। जाहिर है ऐसे आयोजन अब निरंकुश शासक एक रणनीति के तहत महज अपनी छवि सुधारने के लिए कराते हैं, और दुनिया के सभी देश जनता के दमन और मानवाधिकार हनन में अपनी भूमिका निभाते हैं। पूंजीवादी दुनिया में मानवाधिकार और पर्यावरण संरक्षण जैसे शब्द पूरी तरह से विलुप्तीकरण के कगार पर पहुंच गए हैं, और इसमें संयुक्त राष्ट्र और तथाकथित प्रजातांत्रिक देशों का भी भरपूर योगदान है।

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