सागर तल के बढ़ने से खतरे में वैश्विक शांति और सुरक्षा! महासागरों से जमीन छीनकर अपना व्यापार बढ़ा रहे अमीर

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एन्टोनियो गुतेर्रेस ने कहा कि वर्तमान में सागर तल के बढ़ने की दर पिछले 3000 वर्षों की तुलना में सबसे अधिक है, और इसके प्रभाव से आबादी का बहुत बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा।

प्रतीकात्मक तस्वीर
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महेन्द्र पांडे

पिछले कुछ वर्षों से लगातार तापमान वृद्धि के कारण तेजी से बढ़ते औसत सागर तल और इसके प्रभाव से डूबते सागर तट, शहरों और देशों की चर्चा की जा रही है, पर इसी बीच हाल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2000 से 2022 के बीच दुनियाभर के शहरों ने सागरों और महासागरों के किनारे की 2530 वर्ग किलोमीटर यानी 253000 हेक्टेयर भूमि विकास परियोजनाओं के लिए हड़प ली हैं। इनमें से 70 प्रतिशत भूमि ऐसे क्षेत्रों में है जहां औसत सागर तल तेजी से बढ़ रहा है।

हाल में ही संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को संबोधित करते हुए संयुक्त राष्ट्र महासचिव एन्टोनियो गुतेर्रेस ने कहा कि वर्तमान में सागर तल के बढ़ने की दर पिछले 3000 वर्षों की तुलना में सबसे अधिक है, और इसके प्रभाव से आबादी का बहुत बड़े पैमाने पर विस्थापन होगा। यह वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा होगा क्योंकि एक बड़ी आबादी का घर और व्यवसाय छूट जाएगा, ठिकाना बदल जाएगा। इसके प्रभाव से अनेक देश भी डूब जायेंगे, जिससे एक बड़ी आबादी ऐसी होगी, जिसका कोई देश नहीं होगा।

इस समस्या के समाधान के लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करने के साथ ही एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने की जरूरत भी है जिससे गरीबों, बेघर और बिना देश वाले लोगों को पर्याप्त सुरक्षा दी जा सके। इतने बड़े पैमाने पर विस्थापन के बाद साफ पानी, भूमि और प्राकृतिक संसाधनों के लिए प्रतिस्पर्धा और तेज हो जाएगी। वर्ल्ड मेटेरियोलोजिकल आर्गेनाईजेशन ने हाल में ही बताया है कि दुनियाभर में सागर तल बढ़ रहा है और दूसरी तरफ पिछले 11000 वर्षों की तुलना में महासागरों का पाने अधिक गर्म भी हो रहा है। यदि इस शताब्दी के अंत तक तापमान वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रोक भी दिया गया गया, जिसकी संभावना दूर-दूर तक नजर नहीं आती, तब भी औसत सागर तल में वर्ष 2100 तक 50 सेंटीमीटर की और अगले 2000 वर्षों के दौरान 2 से 3 मीटर की वृद्धि तय है। वर्ष 2015 के आकलन के अनुसार दुनिया में लगभग 1.1 अरब आबादी सागर तट के पास बसती है और इस आबादी में वर्ष 2050 तक 71 प्रतिशत की वृद्धि होगी।


महासागरों का औसत तल वर्ष 1993 के बाद से 3.2 मिलीमीटर प्रतिवर्ष की दर से बढ़ चुका है। वर्ष 2015 से 2019 के बीच तो यह बढ़ोत्तरी 5 मिलीमीटर प्रतिवर्ष तक रही है जबकि वर्ष 2007 से बढ़ोतरी का औसत 4 मिलीमीटर प्रतिवर्ष रहा है। इसका सीधा सा मतलब है कि साल-दर-साल महासागरों के औसत तल में पहले से अधिक बढ़ोत्तरी होती जा रही है। आईपीसीसी के अनुसार महासागरों से संबंधित भयानक आपदाएं जो अबतक एक शताब्दी में एक बार आती थीं, अब वैसी आपदाएं वर्ष 2050 के बाद से वार्षिक घटनाएं हो जाएंगी। विश्व के महासागरों और ग्लेशियर पर जलवायु परिवर्तन के असर से संबंधित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अनेक असर तो अभी ही स्पष्ट हो रहे हैं।

खतरनाक चक्रवातों और तूफानों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है और दूसरी तरफ पृथ्वी के दोनों ध्रुवों पर जमी बर्फ लगातार तेजी से पिघलती जा रही है। इससे महासागरों की सतह की ऊंचाई बढ़ती जा रही है, पानी अधिक गर्म होता जा रहा है और पानी में आक्सीजन की कमी हो रही है। कार्बन डाइऑक्साइड की सांद्रता बढ़ रही है जिससे महासागरों का पानी अधिक अम्लीय हो रहा है। इन सबसे समुद्री जीवन खतरे में है और अनेक समुद्री प्रजातियां विलुप्त भी हो चुकी हैं।

प्रायः माना जाता है कि सागरों और महासागरों के ठीक आसपास रहने वाले लोगों पर ही सागर तल के बढ़ने का असर पड़ेगा या फिर चक्रवात प्रभावित करेगा। पर, वैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया में जीवन के हरेक पहलू पर महासागरों का असर होता है क्योंकि जलवायु परिवर्तन में इनकी भूमिका प्रमुख है। दुनिया के अधिकतर महानगर महासागरों के किनारे स्थित हैं और जैसे-जैसे महासागरों का तल बढ़ रहा है, पृथ्वी का भूगोल भी बदल रहा है - पानी का क्षेत्र बढ़ता जा रहा है और भूमि का क्षेत्र कम होता जा रहा है। भूमि के क्षेत्र के कम होने से एक बड़ी आबादी लगातार विस्थापित होती जा रही है, जाहिर है इसका सीधा असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा।

तापमान वृद्धि के इन प्रभावों के बीच हाल में ही अर्थ्स फ्यूचर नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वैश्विक स्तर पर दस लाख से अधिक आबादी वाले 135 शहरों ने महासागरों और सागरों के किनारे की 253000 हेक्टेयर भूमि पर विकास परियोजनाएं खड़ी कर ली हैं। यह सब वर्ष 2000 से 2022 के बीच हुआ है। इसका सीधा सा मतलब है कि पिछले 22 वर्षों के दौरान पृथ्वी पर भू-क्षेत्र में 253000 हेक्टेयर की वृद्धि हो गई है। यह अपने तरीके का पहला अध्ययन है। इन 135 शहरों में से 78 प्रतिशत यानि 106 शहरों ने अपने समुद्री तट का विस्तार किया है। ऐसे विस्तार में से अधिकतर विस्तार एशिया में, 248550 हेक्टेयर किया गया है, इसके बाद अफ्रीका में 2277 हेक्टेयर और यूरोप में 2233 हेक्टेयर विस्तार है। इस अध्ययन को लैंडसैट सॅटॅलाइट द्वारा प्राप्त चित्रों के माध्यम से किया गया है।


एशिया में भी अकेले पूर्वी एशिया में महासागरों से 225290 हेक्टेयर भूमि हड़पी गई है, जब कि पश्चिमी एशिया में यह क्षेत्र 14998 हेक्टेयर और दक्षिण पूर्व एशिया में 7477 हेक्टेयर है। दुनियाभर में महासागरों से जितनी भूमि निकाली गयी है उसमें से 90 प्रतिशत चीन, यूनाइटेड अरब एमिरात और इंडोनेशिया में है। अकेले चीन के शंघाई शहर में यह विस्तार 34978 हेक्टेयर है। कुल 78 शहरों में महासागरों से निकाली गयी जमीन पर बंदरगाह का निर्माण किया गया है, 31 शहरों में आवास और व्यवसाय के लिए भूमि पर कब्जा किया गया है और 19 शहरों में यह उद्योगों के विस्तार के लिए किया गया है। हालांकि इस अध्ययन को दस लाख से अधिक आबादी वाले शहरों पर किया गया है, पर इसके अनुसार कुछ छोटे शहर भी महासागरों की जमीन हड़प रहे हैं। इसे शहरों की लिस्ट में गुजरात में गौतम अडानी के पोर्ट शहर मुंद्रा का नाम भी शामिल है।

महासागरों के बढ़ते तल से सबसे अधिक प्रभावित गरीब और सामान्य आबादी होने वाली है, पर महासागरों की तरफ विस्तार पूरे तरफ से पूंजीवाद का प्रतीक है। महासागरों की तरफ फैलते पोर्ट, अत्यधिक महंगे लक्ज़री विला, व्यापारिक केंद्र और मनोरंजन के साधन – सभी पूंजीपतियों के लिए हैं। यह वैश्विक स्तर पर आर्थिक असमानता ही है जिसके कारण जिस महासागर के कारण गरीब विस्थापित हो रहे हैं, उसी महासागर से जमीन छीनकर अमीर अपना व्यापार और मनोरंजन बढ़ा रहे हैं।

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