हरिद्वार: स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद  के उपवास के जरिये सामने आए गंगा की उपेक्षा से जुड़े मुद्दे

24 फरवरी 2018 को स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर गंगा रक्षा के कार्य में समुचित प्रगति न होने पर गहरा दुख प्रकट किया। उनकी मांगें पूरी नहीं होने के बाद उन्होंने 22 जून से उपवास करने का फैसला लिया।

फोटो: सोशल मीडिया 
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भारत डोगरा

22 जून को हरिद्वार में आरंभ हुए केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के पूर्व मेम्बर सेक्रेटरी के उपवास से गंगा नदी की रक्षा के कुछ उपेक्षित पक्षों की ओर देश का ध्यान आकर्षित हुआ है। इस संदर्भ में ध्यान में रखने की बात है कि गंगा नदी की रक्षा से संबंधित मुद्दों की सबसे गहरी जानकारी रखने वाले वैज्ञानिकों और विद्वानों में प्रो जीडी अग्रवाल का नाम लिया जाता है। वे देश में पहली पंक्ति के पर्यावरणीय इंजीनियर माने जाते हैं। देश के अनेक विख्यात पर्यावरणविदों ने उनसे ही शिक्षा और प्रेरणा प्राप्त की। आईआईटी कानपुर में सिविल और पर्यावरणीय इंजीनियरिंग के विभागाध्यक्ष रहे तो वहां के छात्रों ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ अध्यापक के रूप में सम्मानित किया। रुड़की आईआईटी में भी उन्होंने पढ़ाया। फिर वे केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के मेम्बर सेक्रेटरी नियुक्त हुए और इस पद पर उनका कार्य बहुत महत्त्वपूर्ण माना गया।

कुछ समय बाद उन्होंने अपना जीवन पूरी तरह गंगा नदी की रक्षा के लिए समर्पित कर दिया। साल 2011 में संन्यास ग्रहण करने के बाद वे स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद के रूप में जाने गए और गंगा रक्षा के कार्यों में लगे रहे। 24 फरवरी 2018 को उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर गंगा रक्षा के कार्य में समुचित प्रगति न होने पर गहरा दुख प्रकट किया। उन्होंने कुछ विशिष्ट मांगें भी इस पत्र में रखीं और इनके पूरा न होने पर 22 जून से उपवास आरंभ करने का अपना निश्चय प्रकट किया।

उन्होंने पहली मांग यह रखी कि हिमालय में गंगा की सहायक नदियों पर प्रस्तावित कुछ परियोजनाओं पर संसद में शीघ्र चर्चा हो और तब तक इन पर कार्य बंद कर दिया जाए। दूसरी मांग उन्होंने यह रखी कि गंगा रक्षा पर गठित न्यायमूर्ति गिरधर मालवीय समिति की रिपोर्ट द्वारा प्रस्तावित गंगाजी संरक्षण विधेयक पर व्यापक चर्चा संसद में करवाई जाए और विधेयक को पास करवाने का हर न्यायोचित प्रयास किया जाए। उनकी तीसरी मांग गंगा रक्षा के जुड़े नागरिकों की एक परिषद के गठन की है जिसे गंगा रक्षा से जुडे़ मुद्दों के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण भूमिका दी जाए।

इनमें से कोई भी मांग ऐसी नहीं है जिन्हें स्वीकार करना बहुत कठिन हो। इसके बावजूद जब उन्हें पत्र का कोई उत्तर नहीं मिला तो 13 जून को उन्होंने एक अन्य पत्र लिखा और 22 जून से उपवास आरंभ किया। उपवास आरंभ होने के बाद उन्हें 30 जून और 1 जुलाई को केन्द्रीय मंत्रियों नितिन गडकरी और उमा भारती के पत्र मिले जिसमें उपवास समाप्त करने की अपील की गई है।

स्वामी सानंद का उपवास मातृ सदन से आरंभ हुआ। यह संस्थान गंगा नदी में और आसपास होने वाले निर्मम खनन को रुकवाने के अपने समर्पित कार्य के लिए बहुत सम्मान प्राप्त कर चुका है। गंगा रक्षा के प्रति सबसे निष्ठावान संस्थानों में इसका नाम लिया जाता है। इन प्रयासों से गंगा रक्षा के प्रयासों की विफलता सामने आई है। अब सीएजी की उस रिपोर्ट में भी चर्चा बढ़ रही है जिसमें गंगा रक्षा के लिए स्वीकृत धनराशि का बहुत कम उपयोग होने का सवाल उठाया गया है। स्वामी सानंद ने जो सवाल उठाए हैं वे इस संदर्भ में बुनियादी सवाल हैं कि किस तरह के प्रयास गंगा की रक्षा के लिए जरूरी हैं और इसके लिए मूलतः विकास संबंधी सोच में भी बदलाव जरूरी हैं।

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