बाल विवाह के नाम पर गरीब मुस्लिमों पर कहर, नेक नहीं हिमंत सरकार के इरादे!

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा इस तथ्य को भी नहीं छिपाते कि बाल विवाह के खिलाफ मौजूदा कार्रवाई चुनावों को ध्यान में रखकर शुरू की गई है और यह अभियान 2026 तक जारी रहेगा जब अगला विधानसभा चुनाव होगा।

फोटो: IANS
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दिनकर कुमार

बीजेपी-आरएसएस पूरे देश में मुस्लिम विद्वेष और सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के जिस एजेंडे पर काम करते रहे हैं, उसी का अनुसरण करते हुए असम में भाजपाई मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने बाल विवाह के खिलाफ कार्रवाई करते हुए इस साल की शुरुआत में ही अपनी मंशा को उजागर कर दिया था। इसी क्रम में असम पुलिस ने 3 अक्तूबर को बाल विवाह के खिलाफ एक अभियान के दौरान 1,039 लोगों को गिरफ्तार किया। राज्य के पश्चिमी, मध्य और दक्षिणी हिस्सों में की गई यह दूसरी ऐसी कार्रवाई थी।

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एक्स पर पोस्ट किया कि "बाल विवाह के खिलाफ बड़े पैमाने पर कार्रवाई में असम पुलिस ने तड़के शुरू हुए एक विशेष अभियान में 800 से अधिक आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार किया। गिरफ्तारियों की संख्या बढ़ने की संभावना है।" उन्होंने एक अन्य पोस्ट में गिरफ्तारी का आंकड़ा 1,039 बताया। छापे बड़े पैमाने पर प्रवासी मुस्लिम बहुल इलाकों में मारे गए। फरवरी में बाल विवाह के खिलाफ अभियान शुरू होने पर कुल 3,907 लोग गिरफ्तार किए गए थे। उनमें से 62 को बाद में अदालत ने दोषी ठहराया।

 11 सितंबर को सरमा ने 126 सदस्यीय राज्य विधानसभा को बताया कि बाल विवाह के खिलाफ अभियान के दूसरे चरण में 3,000 पुरुषों को गिरफ्तार किया जाएगा। उन्होंने कहा कि "अगर बाल विवाह का खतरा जारी रहा तो लड़कियां कभी आगे नहीं बढ़ सकतीं और उनका शोषण होता रहेगा।"


कांग्रेस विधायक शर्मन अली अहमद ने कहा कि बाल विवाह एक सामाजिक बुराई है और इससे लड़ना चाहिए लेकिन इस तरीके से नहीं। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि "जिन लोगों की 5-10 साल पहले शादी हुई थी और उनके बच्चे भी हैं, उनके खिलाफ कार्रवाई करके हमें कुछ हासिल नहीं होगा। यह अभियान हाल ही में शादी करने वाले लोगों के खिलाफ होना चाहिए।"

 इससे पहले 3 फरवरी, 2023 को असम की बीजेपी सरकार ने राज्य में कम उम्र में विवाह के खिलाफ कार्रवाई शुरू की। इसके कारण 3,000 से अधिक लोगों को अचानक गिरफ्तार कर लिया गया। राज्य में कम उम्र में विवाह पर कार्रवाई ने राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरी थीं जबकि परेशान पत्नियां और अलग हुए परिवार न्याय की गुहार लगा रहे थे।

मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने इस तथ्य को छिपाया नहीं है कि बाल विवाह के खिलाफ मौजूदा कार्रवाई चुनावों को ध्यान में रखकर शुरू की गई है। उन्होंने कहा था कि "हमारा अभियान 2026 तक जारी रहेगा जब अगला विधानसभा चुनाव होगा। हमें उम्मीद है कि तब तक राज्य में बाल विवाह का कोई मामला नहीं होगा।"

 यह कोई संयोग नहीं है कि गिरफ्तार किए गए अधिकांश लोग समाज के सबसे गरीब तबके के मुस्लिम पुरुष हैं जो असम के कुछ सबसे पिछड़े क्षेत्रों में रहते हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अधिकांश बाल विवाह उन जिलों में रिपोर्ट किए गए जहां मुस्लिम या तो बहुसंख्यक हैं या आबादी का एक बड़ा हिस्सा उनका है। असम की आबादी में मुसलमानों की संख्या लगभग 34 प्रतिशत है।


भारत में बाल विवाह अवैध है; लड़कियों के लिए विवाह की कानूनी उम्र 18 वर्ष और लड़कों के लिए 21 वर्ष है। बाल विवाह पर अंकुश लगाना अत्यावश्यक है। लेकिन असम सरकार इस प्रथा के प्रति अपनी "शून्य सहनशीलता" नीति के साथ राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अल्पसंख्यकों को कैद करने के लिए इसे एक उपकरण के रूप में उपयोग कर रही है।

 असम सरकार ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) डेटा के हालिया निष्कर्षों का उल्लेख कर अपनी कार्रवाई का बचाव किया है जिसके अनुसार, असम में 20-24 वर्ष आयु वर्ग के 31.8 प्रतिशत लोगों की शादी तब हुई थी जब वे नाबालिग थे। यह राष्ट्रीय औसत 23.3 प्रतिशत से अधिक है। सरमा ने राज्य में 16.8 प्रतिशत की उच्च किशोर गर्भावस्था दर का भी हवाला दिया।

5 फरवरी, 2023 को सरकार ने निर्देश दिया कि आरोपी पुरुषों पर न केवल बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत बल्कि यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पोस्को) अधिनियम के तहत भी मामला दर्ज किया जाए। इसलिए आरोपी पर नाबालिगों के साथ बलात्कार या यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया जाएगा जिसमें 20 साल की जेल की सजा हो सकती है।

 यहां तक कि गौहाटी उच्च न्यायालय ने भी हाल ही में कम उम्र में विवाह के मामलों में पोस्को कानून की जरूरत पर सवाल उठाया। न्यायमूर्ति सुमन श्याम ने कहा, "जाहिर तौर पर यह (बाल विवाह) एक बुरा विचार है। हम अपनी राय देंगे लेकिन फिलहाल मुद्दा यह है कि क्या उन सभी को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया जाना चाहिए।"


बाल विवाह पर अंकुश लगाने के लिए दशकों से काम करने वाले बाल अधिकार कार्यकर्ताओं ने एक सामाजिक समस्या के प्रति असम सरकार के कानून और व्यवस्था के दृष्टिकोण की आलोचना की है। बाल विवाह पर सख्त कार्रवाई के इस्तेमाल से असहमति जताते हुए एचएक्यू सेंटर फॉर चाइल्ड राइट्स की सह-संस्थापक एनाक्षी गांगुली ठुकराल ने मीडिया को बताया कि असम सरकार का दंडात्मक तरीके से एक कानून का इस्तेमाल एक स्पष्ट राजनीतिक एजेंडा को प्रदर्शित करता है। उन्होंने कहा, "दंडात्मक उपायों के बजाय एक निवारक रणनीति की आवश्यकता है। शिक्षा, स्वास्थ्य और नौकरियों तक पहुंच के माध्यम से लड़कियों को सशक्त बनाने से बाल विवाह की घटनाओं में कमी आएगी।"

 वैसे, असम सरकार ने बहुविवाह को खत्म करने के खयाल से बहुविवाह विरोधी कानून का मसौदा तैयार करने के लिए कुछ सप्ताह पहले तीन सदस्यीय पैनल का भी गठन किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि यह कानून 2023 के अंत तक बन सकता है।

दिनकर कुमार स्वतंत्र पत्रकार हैं और सेंटिनल के संपादक रहे हैं। (साभारः जनचौक)

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