देश भर में चिन्मयानंदों के हवाले उच्च शिक्षा, सरकारी व्यवस्था ध्वस्त होने से ऐसे महंतों की चल निकली

देश में निजी विश्वविद्यालयों की बाढ़ आ गई है। हाल में खुले विश्वविद्यालयों में अधिकांश निजी हैं। देश में 48 केंद्रीय, 400 राज्य, 126 डीम्ड विश्वविद्यालय और 337 निजी विश्वविद्यालय हैं। निजी विश्वविद्यालयों की संख्या 2015 में 227 थी, जो अब 340 है।

फोटोः सोशल मीडिया
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गुंजन सिन्हा

तो भारत के विश्वगुरु बनने का ख्वाब देख रहे हैं? देखते रहिए। फिलहाल यह है कि विश्व के तीन सौ टॉप विश्वविद्यालयों में भारत का एक भी नहीं है, जबकि देश में 900 से ज्यादा विश्वविद्यालय हैं। लेकिन ये जरूर है कि बीजेपी के पूर्व सांसद चिन्मयानंद हमारे शिक्षा संस्थानों को अंतरराष्ट्रीय पहचान जरूर दिला रहे हैं।

इसको लेकर अंतरराष्ट्रीय मीडिया ‘अल-जजीरा’ में खबर कुछ यूं छपी है, “भारत की संघीय सरकार के एक पूर्व मंत्री और सत्तारूढ़ दक्षिणपंथी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पूर्व नेता को एक छात्रा के यौन शोषण के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। 73 साल के स्वामी चिन्मयानंद, 1999 से 2004 तक भाजपाई नेतृत्व की गठबंधन सरकार में आंतरिक मामलों के मंत्री थे। गिरफ्तारी के बाद अदालत ने उन्हें 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में भेज दिया। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, चिन्मयानंद बीजेपी शासित उत्तरी राज्य उत्तर प्रदेश में कई शैक्षणिक संस्थान चलाते हैं। पीड़ित छात्रा 23 वर्ष की है।”

तो इस तरह शिक्षाविद् संत और शिक्षण संस्थान को अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हो गई! स्वामीजी जेल गए, तो शिक्षा जगत को उनके ‘महान अवदान’ पर चर्चा भी नेपथ्य में चली गई। जब तक खबरों में सेक्स का चटपटा स्वाद था, लोगों ने स्वाद लिया। चिन्मयानंद की गिरफ्तारी और जुर्म स्वीकारने के बाद भी उनके शिक्षण संस्थानों से कोई आवाज नहीं आई। कोई उद्वेलित नहीं हुआ। न पक्ष में, न प्रतिरोध में। रीढ़हीनता का इससे बेहतर उदाहरण क्या होगा? एकदम सन्नाटा! कोई आंदोलन नहीं।

साल 1974 के बाद शिक्षा के सवाल पर कोई आंदोलन नहीं हुआ। शिक्षकों की कमी, उनकी अयोग्यता, पुस्तकालय, प्रयोगशालाओं की कमी को लेकर आंदोलन नहीं हुए। शिक्षकों के सैकड़ों पद खाली हैं, मगर यह न विद्यार्थियों की चिंता का विषय है और न ही अभिभावकों की। हाल में एक फर्जी मेडिकल कॉलेज के छात्र टीवी पर रो रहे थे कि उनसे प्रति छात्र चालीस लाख रुपये मेडिकल पढ़ाने के नाम पर लिए गए। दो वर्ष धोखेबाजी, तीसरे वर्ष में संचालक नदारद। सरकार मौन। ये छात्र भूल गए कि इस व्यवस्था में बाघ को हिरणों का शिकार करने की आजादी है।


सरकारी कॉलेजों में शिक्षकों के अभाव ने निजी कोचिंग संस्थान पैदा किए। उनका जाल पूरे देश में है। बिहार के बच्चे कोचिंग लेने कोटा, हैदराबाद, दिल्ली और कर्नाटक तक जाते हैं। अपने कॉलेज में सिर्फ नाम लिखा रखा है। उसमें जाते नहीं। लेकिन हाजिरी सबकी टंच। प्रयोगशालाओं में ताला बंद है। न प्रयोग-सामग्री है, न शिक्षक, मगर हर साल छात्र पास हो जाते हैं। यह गजब का तिलिस्म सबने राजी-खुशी स्वीकार कर लिया है।

अब एक और नई व्यवस्था बनी है, अतिथि शिक्षक की। शिक्षक दिहाड़ी मजदूरों की तरह रखे जाते हैं। उन्हें तनख्वाह नहीं, दिहाड़ी मिलती है, जिसमें कमीशन भी देना है। बेरोजगारी में जो मिले, गनीमत है। सरकारी व्यवस्था के ध्वस्त होने के साथ शिक्षा में चिन्मयानंद जैसों की महंती चल निकली। ऐसे चिन्मयानंद हर शहर में हैं। कॉलेज खोलने से छात्रों को हो न हो, संचालकों को पूरा फायदा होता है। सरकार से जमीन, सुविधाएं और अनुदान मिलता है। हाथ में दो-चार सौ लोग हो जाते हैं, जो गुंडागर्दी से लेकर चुनाव-प्रचार और तेल मालिश तक काम आते हैं।

जब कभी शाहजहांपुर के संत टाइप की घटना प्रकाश में आती है, मीडिया और समाज का सारा ध्यान सेक्स, दुष्कर्म जैसे चटपटे विषयों तक रह जाता है। समस्या की जड़ पर ध्यान नहीं जाता कि आखिर ऐसा होता क्यों है? चिन्मयानंद कांड न तो पहला है और न आखिरी। अधिकतर शिक्षण संस्थानों में शोषण, भ्रष्टाचार और जातिवाद है। निजी संस्थानों में और ज्यादा है। वहां संचालक ही खुदा है।

विख्यात विश्वविद्यालयों में एक है काशी हिंदू विश्वविद्यालय जिसे अंग्रेजी में बीएचयू कहते हैं। महामना मदन मोहन मालवीय द्वारा स्थापित यह महान विश्वविद्यालय आरएसएस का गढ़ है। यह अभी खबरों में था कि छात्राएं प्रोफेसर द्वारा यौन शोषण के खिलाफ धरना दे रही थीं। महामना स्त्री शिक्षा के हिमायती थे। उनके इस विश्वविद्यालय को सौ वर्षों में एक भी महिला या दलित कुलपति नहीं मिला। ब्राह्मणवादी मानसिकता से यह विश्वविद्यालय भी नहीं उबर सका, तो औरों की क्या बात। इसके अधीन चार संबद्ध कॉलेज हैं। यूजीसी उन्हें धन देता है, लेकिन प्रबंधन निजी हाथों में है। क्यों? आप समझते रहिए।


मोदी सरकार ने शिक्षा और शोध पर खर्च घटा दिया है। जिसमें उच्च शिक्षा पर एक प्रतिशत ही है। शिक्षा मंत्रालय उसे भी खर्च नहीं कर पाता। समाज की रीढ़ होती है शिक्षा। अबुल कलाम आजाद, हुमायूं कबीर, एमसी छागला, डॉ. कर्ण सिंह, केसी पंत, नरसिम्हा राव, वीपी सिंह और मुरली मनोहर जोशी जैसे विद्वान शिक्षामंत्री होते थे। इधर इस कुर्सी की शोभा बढ़ा रहे हैं रमेश पोखरियाल ‘निशंक’। हालिया विवाद यह है कि उन्हीं की डिग्री फर्जी है।

भारत की किसी यूनिवर्सिटी ने इस लायक नहीं समझा, मगर श्रीलंका की एक ही यूनिवर्सिटी ने उन्हें दो बार डीलिट दे दिया। वह यूनिवर्सिटी न श्रीलंका में मान्यता प्राप्त है, न भारत में। यानी पूरी तरह फर्जी । हमारे शिक्षा मंत्री को प्रसिद्धि मिली उनके अपने बयानों से, जिनमें उन्होंने “ज्योतिष को वि ज्ञान से महान” बताया और कहा कि “कणाद मुनि ने एक लाख बरस पहले परमाणु परीक्षण कर लिया था।”

मगर आप कुछ मत बोलि ए, शिक्षा मंत्री को श्रीलंका से डीलिट मिला है “वि ज्ञान में महान योगदान के लिए”। भारत में चिन्मय स्वा मी के हाथों में शि क्षा और शिक्षार्थी सुरक्षित हैं।

(नवजीवन के लिए गुंजन सिन्हा का लेख)

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