ज्यादा धूमधड़ाका तो हिंदू पर्वों और उत्सवों में ही होता है, तो फिर क्यों हो रही है 'शोर की विवेकहीन राजनीति'

भले ही कोई स्वीकार न करना चाहे लेकिन धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर होने वाले शोर पर पाबंदी की बात हो, तो मुस्लिमों से अधिक हिन्दू दोषी हैं। पहला कारण तो यही है कि अल्पसंख्यक समुदाय जितने उत्सव मनाता है, उससे कहीं अधिक मेरा समुदाय मनाता है।

फोटो : सोशल मीडिया
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अरुण शर्मा

राज ठाकरे ने धमकी दी है कि अगर मुंबई में मस्जिदों के परिसरों से लाउडस्पीकर नहीं हटाए जाते हैं, तो वह और उनके समर्थक 3 मई को उनके सामने हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की टीमें राज्य की मस्जिदों से उठने वाली आवाज के स्तर की जांच के लिए निकली हुई हैं। जब मैं ये रिपोर्टें देख रहा हूं, तो मेरे घर से 300 मीटर दूर की गली से एक जुलूस गुजर रहा है जिसमें तेज आवाज में संगीत बज रहा है और वह आवाज मेरे कमरे और शीशे से बंद उसकी खिड़कियों से आ रही है।

कई अध्ययनों से यह बात सामने आई है कि भारतीय दुनिया में सबसे अधिक शोर करने वाले लोग हैं। घर, ऑफिस या सड़कों पर फोन पर बात करते हुए हमारी आवाज ऊंची होती है। हम तेज आवाज में ही अपने दरवाजे बंद करते हैं। अगर यह हमारी संतुष्टि के अनुरूप बंद नहीं हुआ लगता है, तो हम और तेज आवाज में इसे बंद करते हैं। हमारे रेलवे स्टेशन, हमारे बाजार, रहने के हमारे कमरे, यहां तक कि अस्पताल की लॉबी भी इस ग्रह पर सबसे शोर वाली जगहें हैं। तो यह सब गुलकपाड़ा क्यों और किसी खास समुदाय को क्यों चुना जा रहा?

बाइबल के सूत्र से उधार लें, तो मुझे लगता है, इसका कारण यह है कि हमें अपने भाई-बंदों की आंख का तिनका तक क्यों दिखाई देता है जबकि हमें अपनी आंख का लट्ठा भी दिखाई नहीं देता, मतलब कि हमें अपना दोष तो दिखाई नहीं देता, हम दूसरों के बारे में न्याय करते रहते हैं।

Getty Images
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Sanjeev Verma

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि महाराष्ट्र के दो अनाम राजनीतिज्ञ- निर्दलीय सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा मुंबई में मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के आवास के सामने हनुमान चालीसा का पाठ करने की दौड़ में कूद पड़े। वे इस वक्त न्यायिक हिरासत में हैं। महाराष्ट्र में भगवान गणेश प्रधान देवता हैं और वहां घरों में शायद ही हनुमान चालीसा का पाठ होता हो। अगर पांच प्रतिशत मराठी घरों में भी हनुमान चालीसा मिल जाए, तो मैं यह सब लिखना-पढ़ना छोड़ दूंगा। उत्तर भारत में लोकप्रिय रामचरितमानस से भी महाराष्ट्र के लोग बहुत परिचित नहीं हैं। मुझे याद है, पड़ोस के घर में अखंड रामायण पाठ में शरीक हुई महाराष्ट्र की एक हिन्दू महिला इस पुस्तक के बारे में कुछ नहीं जानती थी। बाद में उसने मुझसे पूछा, वह आपलोगों की पूजा थी न!' वस्तुतः, 'नव-हिन्दू' जितना हमें विश्वास दिलाना चाहते हैं, हिन्दू धर्म उससे अधिक विविधतापूर्ण है। इसलिए हनुमान चालीसा के पाठ का लक्ष्य साफ तौर पर मुसलमानों को परेशान करना और उद्धव ठाकरे की सरकार को उलझन में डालना है। एक अतिरिक्त लक्ष्य महा विकास आघाड़ी (एमवीए) सरकार को अस्थिर करना और आसन्न नगर निगम चुनावों में कुछ जीत हासिल करना हो सकता है।


भले ही कोई स्वीकार न करना चाहे लेकिन धार्मिक और सामाजिक अवसरों पर डिसाइबल लेवल या आवाज प्रतिबंध की बात हो, तो हिन्दू मुसलमानों से अधिक दोषी हैं। पहला कारण तो यही है कि अल्पसंख्यक समुदाय जितने उत्सव मनाता है, उससे कहीं अधिक मेरा समुदाय मनाता है। कोई भी इसे गिन सकता है और देख सकता है। इसके अतिरिक्त स्थानीय देवताओं की संख्या सैकड़ों बल्कि हजारों में है। इसके बाद, कई संत-महात्मा और उनके अनुयायी हैं। शादी-विवाह भी बड़े समारोह हैं जो नियमित तौर पर हमारी श्रवण भावना और संवेदनशीलताओं पर कुठाराघात करते रहते हैं।

इनकी तुलना में मुस्लिम समुदाय के दो ही पर्व हैं- ईद-उल-फितर और ईद-उल-अधा। पैगंबर मुहम्मद साहब का जन्मदिन मुसलमान नहीं मनाते क्योंकि इसी दिन वह इस दुनिया से गए थे। इन दो ईद उत्सवों के अलावा शिया मुसलमान मुहर्रम के दसवें दिन पैगंबर मुहम्मद के परिवार की शहादत की याद में आशुरा मनाते हैं। दोनों ईद में नमाज पढ़ी जाती हैं, अपनी इच्छा के अनुरूप खैरात बांटी जाती है, इमाम साहब खुत्बा देते हैं। लोग शाम में एक-दूसरे के यहां जाते हैं, खाते-पीते हैं और उपहार देते हैं। इन उत्सवों के दौरान सार्वजनिक जुलूस नहीं निकलते, गाना-बजाना नहीं होता या पटाखे नहीं छुड़ाए जाते। इनमें लाउडस्पीकर कतई गैरमौजूद रहते हैं। शिया मुसलमान ताजिया जरूर निकालते हैं। उस दौरान जुलूस में लोग जरूर भीड़ में चलते हैं। यह साल में एक बार होता है और करीब तीन-चार घंटे चलता है।


यह जरूर है कि मस्जिद के गुंबद पर लगे लाउडस्पीकरों से अजान दी जाती है। यह जानना हममें से कई लोगों के लिए आश्चर्यजनक हो सकता है कि यह बमुश्किल डेढ़ मिनट का होता है। कुछ मस्जिदों से शुक्रवार की नमाज लाउडस्पीकरों पर प्रसारित की जाती है। यह ईद उत्सवों के दौरान तीन या चार दिन होती है।

अगर बीजेपी और इसके नेता बेरोजगारी, कीमतों में बढ़ोतरी और बढ़ते सामाजिक विभेद की समस्याओं की तुलना में इसे ही ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं जैसा कि हनुमान चालीसा को उनके समर्थन से लगता है, तो वे मुसलमानों तथा हिन्दुओं द्वारा पैदा किए जाने वाले शोर के डेसिबल लेवल की जांच करने के लिए साउंड रिकॉर्डिस्टों और फिजिसिस्टों को शामिल कर एक जांच आयोग बना सकते हैं। यह विवेकहीन नौटंकी और ''शोर की राजनीति' को समाप्त कर देगा।

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