आकार पटेल / बीजेपी के जगजाहिर 'इरादों' पर भी बेपरवाह रहना आखिर कब तक!
खतरनाक इरादे पीछे नहीं हटेंगे, क्योंकि उनका इरादा कुछ हासिल करना चाहता है; जबकि बेपरवाही या उदासीनता चाहती है कि आखिर इस सबसे क्यों परेशान हुआ जाए।

बेपरवाही या उदासीनता इरादे का साथ देती है। इरादा आगे बढ़ना चाहता है; बेपरवाही इसे आराम से स्वीकार लेगी। इरादा भारतीय जनता पार्टी का अपनी विचारधारा को लागू करने का पक्का संकल्प है। पार्टी के पास सरकार की ताकत है और बड़ी संख्या में ऐसे भारतीयों का समर्थन है जो इस विचारधारा को लागू करवाना चाहते हैं। पर, असल में यह संख्या अल्पसंख्यक है, जैसा कि हर चुनाव ने साफ होता है। लेकिन इसमें मजबूत इरादा शामिल है।
बेपरवाही हम ऐसे बाकी लोगों की विरोध करने की अक्षमता है, जो दरअसल बहुमत में हैं। जो लोग सच्चाई और उसके खतरों को मानते हैं, उनसे भी यही उम्मीद है कि सरकार द्वारा पैदा की गई समस्याओं को ‘चेक एंड बैलेंस’ से यानी जांच कर और संतुलित बनाकर हल किया जाएगा। यानी विपक्ष, संसद और न्याय व्यवस्था इस समस्या का सामना कर लेंगे। लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है और यह नया साल जिसमें हम प्रवेश कर रहे हैं, वह फिर से दिखाएगा कि ऐसा नहीं हो सकता।
जो लोग इस बारे नहीं जानते हैं, उनके लिए बता दें कि: बीजेपी की विचारधारा क्या चाहती है? यह अल्पसंख्यक भारतीयों, मुसलमानों और ईसाइयों को परेशान करना और नुकसान पहुंचाना चाहती है, और बस यही इसकी विचारधारा है। इस विचारधारा का कोई बड़ा मकसद नहीं है और यह साथी भारतीयों को निशाना बनाने के अलावा कुछ भी सार्थक नहीं करती। यह नफ़रत के रूप में मौजूद है और खुद को नफ़रत के रूप में ही ज़ाहिर करती है। इसकी यह भावना कभी खत्म नहीं होती और बार-बार खुद को इसी का साबित करने के लिए फिर से तैयार कर सकती है और अपने इस ‘युद्ध’ के लिए हमेशा नई ज़मीन ढूंढ लेती है। नया साल, 2026, भी हमें यही दिखाएगा।
2025 के दौरान हम उसी रास्ते पर चलते रहे जिस पर हमने एक दशक से भी पहले चलना शुरू किया था। राजस्थान हिंदुओं और मुसलमानों के बीच शादी पर बैन लगाने वाला आठवां राज्य बन गया। ऐसा तीन महीने पहले सितंबर में हुआ। बताते चलें कि सितंबर 1935 में, जर्मनी ने यहूदियों और ईसाइयों के बीच शादी पर पाबंदी लगा दी थी। दुनिया को हैरान करते हुए इन रिश्तों को "नस्लीय अपवित्रता" (रैसेनशांडे) कहा गया था। भारत ने भी चालाकी से बनाए गए कानूनों के ज़रिए यही काम किया है। यह कानून एक नौकरशाह को यह तय करने का अधिकार देता है कि कोई वयस्क अपना धर्म बदल सकता है या नहीं। कानून के दूसरे प्रावधान पिछले कुछ सालों में बीजेपी द्वारा लाए गए इसी तरह के कानूनों में किए गए प्रावधानों को दोहराते हैं या उन्हें और सख्त करते हैं।
बीजेपी के यह इरादे सबसे पहले 2018 के उत्तराखंड धर्म की स्वतंत्रता अधिनियम में नजर आए थे। इस कानून में एक नई बात थी। इसका मकसद धर्म परिवर्तन को अपराध बनाकर अलग-अलग धर्मों में शादी को रोकना है, लेकिन यह लोगों को अपने 'पुश्तैनी धर्म' में लौटने यानी ‘घर वापसी’ की छूट देता है। इस शब्द को परिभाषित नहीं किया गया था, लेकिन पाठकों को यह बताने की ज़रूरत नहीं होगी कि इसका क्या मतलब है।
यह कानून पास हुआ और लागू कर दिया गया। अदालतों से कोई विरोध नहीं हुआ। इसमें साफ दिखा कि इरादा क्या है और कैसे इसे विस्तार दिया गया है। ऐसे ही कानून 2019 में हिमाचल प्रदेश, 2020 में उत्तर प्रदेश, 2021 में मध्य प्रदेश और गुजरात, 2022 में हरियाणा और कर्नाटक में आए। ध्यान दें कि कर्नाटक में सरकार बदल गई, लेकिन कानून वैसा ही रहा। साफ है कि इरादा हमेशा बेपरवाही या उदासीनता पर जीत हासिल करेगा। और अब राजस्थान आठवां राज्य बन गया है और यह आखिरी नहीं होगा।
समझदार पाठकों ने देखा होगा कि कुछ ही सालों में ये सब कितनी तेजी से फैला है, जबकि इसे कहीं भी दुरुस्त नहीं किया गया है। बीफ़ के मुद्दे पर भी यही कहानी दोहराई जा रही है। बीफ़ रखने को अपराध बनाने वाले पहले कानून 2015 में ही आए थे (महाराष्ट्र और हरियाणा में बीजेपी सरकारों द्वारा)। ये कानून और इनके बारे में होने वाली चर्चाओं ने हिंसा की एक नई कैटेगरी पैदा कर दी, और वह है ‘बीफ़ लिंचिंग’। एक पत्रकार के तौर पर अपने दशकों के करियर में मैंने इससे पहले बीफ़ लिंचिंग जैसी कोई चीज़ नहीं सुनी थी, लेकिन अब यह इतनी आम हो गई है कि नॉर्मल लगने लगी है।
हमारे चारों ओर लगातार हत्याएं हो रही हैं और लोग इसके आदी हो गए हैं, जिससे इरादों को जगह मिल रही है। कभी प्रयोगशाला रहा गुजरात अब एक फैक्ट्री बन गया है। गुजरात ने ही 2017 में एक कानून पास किया था जिसके तहत मवेशियों को मारने पर उम्रकैद की सज़ा हो सकती है। यह एक आर्थिक अपराध है, लेकिन किसी भी व्हाइट कॉलर क्राइम यानी आर्थिक अपराध जैसे मामलों में उम्रकैद नहीं होती। धारणा यही है कि जो लोग अरबों रुपये चुराते हैं या गबन करते हैं, उन्हें सुधारा जा सकता है, जैसा कि हम अपनी आंखों के सामने होते हुए देख रहे हैं।
कुछ सप्ताह पहले, उत्तर प्रदेश सरकार ने कहा था कि वह सितंबर 2015 में हुए पहले कुख्यात लिंचिंग के आरोपियों के खिलाफ़ केस वापस लेना चाहता है, क्योंकि न्याय देना गलत है। शुक्र है कि जज ने बहादुरी के साथ इससे इनकार कर दिया और दस साल पुराना मुकदमा जारी रहेगा, लेकिन हमें ऐसे देश में व्यक्तिगत हिम्मत के ऐसे मामलों पर ध्यान देना होगा, जहां आम तौर पर लोग बेपरवाह या उदासीन रहते हैं। केंद्र में 20 करोड़ भारतीय मुसलमानों को सत्ता से पूरी तरह बाहर रखना आज उतना ही सामान्य है, जितना कि किसी ऐसे देश में हो सकता है जहां भेदभाव कानूनी हो। लेकिन इस सब पर भारतीय पल्ला झाड़ लेते हैं।
उनका इरादा ईसाइयों के सालाना त्योहार क्रिसमस में हिंसक रूप से रुकवाटें पैदा करना है, और हम बाकी लोग इसे देखते रहेंगे। असहमति कार्रवाई के बराबर नहीं होती और इरादा हिंसक कार्रवाई करता है जबकि बेपरवाही या उदासीनता अपना मोबाइल फोन निकालकर इस सबको रिकॉर्ड करती रह जाती है।
सिर्फ़ एक धर्म के तलाक़ को अपराध बनाने वाला कानून 2019 में आया, और बाकी सभी के लिए यह एक सिविल अपराध बना हुआ है। नागरिकता संशोधन अधिनियम से सिर्फ़ एक धर्म को बाहर रखने वाला कानून भी 2019 में आया। एक ऐसा कानून जो एक धर्म के भारतीयों को गुजरात में संपत्ति खरीदने और किराए पर लेने से रोकता है, जहां विदेशी भी ऐसा कर सकते हैं, उसे 2019 में और सख्त किया गया।
हमें बताया जाता है कि भारत दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ लड़ाई में सबसे आगे था, लेकिन आज हम अपने देश में इसे होते हुए देखकर आराम से बैठे हैं। अगर हम आराम से नहीं होते, अगर हम गुस्से में होते, तो हम इसके बारे में कुछ करते। कश्मीरी कालीन बेचने वाले की लिंचिंग और बांग्लादेशी वेंडर की लिंचिंग अब बीफ़ लिंचिंग में शामिल हो गई है और हम चुपचाप बैठे हैं।
खतरनाक इरादे पीछे नहीं हटेंगे, क्योंकि उनका इरादा कुछ हासिल करना चाहता है; जबकि बेपरवाही या उदासीनता चाहती है कि आखिर इस सबसे क्यों परेशान हुआ जाए।
यह नया साल एक बार फिर इरादे और बेपरवाही दोनों को दोहराने ही आएगा, शायद..।