नियम-कायदे ताक पर रख अडानी की झोली में डाली जा रहीं जमीनें
पूरे देश में अडानी समूह से जुड़ी कंपनियों को बेशकीमती शहरी जमीन से लेकर जंगल की संवेदनशील जमीनें आवंटित की गई हैं।

पिछले चंद सालों के दौरान अडानी समूह ने कितनी जमीन हासिल की है, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है। चलिए, सूची बनाते हैं!
6 अक्टूबर को 170 एकड़ में फैली सहारा सिटी को सील कर लखनऊ विकास प्राधिकरण (एलडीए) को सौंप दिया गया। यह सुब्रत रॉय की निजी टाउनशिप है, जिसमें हेलीपैड, रेस्टोरेंट और गेस्टहाउस हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह उन 88 से ज्यादा सहारा की संपत्तियों में से एक है, जिन्हें अडानी समूह खरीदने जा रहा है। इनमें महाराष्ट्र में 8,810 एकड़ में स्थित एंबे वैली सिटी भी है।
11 सितंबर को बिहार सरकार ने भागलपुर में एक हजार एकड़ जमीन अडानी समूह को सालाना एक रुपये प्रति एकड़ की दर पर सौंप दी। यह जमीन सालों पहले एनटीपीसी के लिए अधिग्रहित की गई थी। मुंबई में अडानी समूह को पहले ही कई सार्वजनिक संपत्तियां सौंपी जा चुकी हैं। इनमें हवाई अड्डा, 180 एकड़ की एयर इंडिया कॉलोनी, देवनार डंपिंग ग्राउंड के कुछ हिस्से, भांडुप, कांजुरमार्ग, विकरोली, मालवणी में प्लॉट... यहां तक कि पारिस्थितिक रूप से महत्वपूर्ण 255 एकड़ नमक के बागान को भी नहीं छोड़ा गया। यह सब धारावी ‘पुनर्विकास’ परियोजना के नाम पर किया जा रहा है। 7 जून को कांग्रेस सांसद वर्षा गायकवाड़ ने कुर्ला में मदर डेयरी के स्वामित्व वाले भूखंडों को आवंटित किए जाने के विरोध में विशाल प्रदर्शन का नेतृत्व किया। अब, कथित तौर पर इस समूह की नजर रेलवे की जमीन पर है।
ओडिशा के कोरापुट जिले में हजारों आदिवासियों ने इसी साल मार्च में पवित्र बलदा नागेश्वर पहाड़ी को अडानी समूह को आवंटित किए जाने के खिलाफ प्रदर्शन किया। उनका कहना है कि इस पहाड़ी की नीलामी ग्राम सभाओं की सहमति के बिना की गई। अडानी समूह की सहायक कंपनी ‘मुंद्रा एल्युमीनियम’ बलदा ब्लॉक के लिए पसंदीदा बोलीदाता थी। अनुमान है कि बलदा में 2.213 करोड़ टन बॉक्साइट का भंडार है।
अडानी समूह की एक अन्य सहायक कंपनी, कलिंगा एल्युमीनियम ने भेजा मौजा में एक और परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी मांगी है। 6 मार्च को एक जन सुनवाई में ओडिशा प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों ने उचित प्रक्रिया के पालन का दावा किया, लेकिन गांव वाले और पंचायत नेता इसे गलत बताते हैं। उड़िया अखबारों ने बताया कि केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने अडानी परिवार को खुश करने के लिए वेदांता समूह को दी गई मंजूरी वापस ले ली। वेदांता ने मार्च 2023 में हुई नीलामी में यह ब्लॉक पाया था। तब बीजद के नवीन पटनायक मुख्यमंत्री थे। प्रदेश में भाजपा सरकार बनने के बाद जुलाई 2025 में इस आधार पर मंजूरी रद्द कर दी गई कि ग्राम सभा की सहमति धोखे से ली गई थी।
छत्तीसगढ़ में हसदेव अरण्य के मूल निवासी गोंड और उरांव आदिवासी सरगुजा और सूरजपुर जfलों में अडानी की परसा ओपन कास्ट खदान के लिए 841 हेक्टेयर वन भूमि आवंटित किए जाने के लिए वन सलाहकार समिति की मंजूरी का विरोध कर रहे हैं। उनका आरोप है कि उनकी सहमति वाले हस्ताक्षर जाली हैं।
महाराष्ट्र के कल्याण जिले में अडानी समूह की कंपनी अंबुजा सीमेंट द्वारा नेशनल रेयॉन कंपनी की जमीन पर सीमेंट ग्राइंडिंग संयंत्र लगाने का गांववाले विरोध कर रहे हैं। उनकी इन आपत्तियों को कि इस संयंत्र से खेती प्रभावित होगी और वायु एवं जल प्रदूषण बढ़ेगा, को नजरअंदाज कर दिया गया है। दरअसल, सरकार ने नियम बदल दिए हैं जिससे पर्यावरणीय मंजूरी बेमानी हो गई है।
महाराष्ट्र के चंद्रपुर जिले की जमीन कोयला, लौह अयस्क और चूना पत्थर के भंडार के लिए जानी जाती है। अगस्त 2022 में अंबुजा सीमेंट और अन्य कारखानों के गढ़- घड़चंदूर- को पर्यावरणीय मंजूरी मिल गई। इसके फौरन बाद अडानी समूह ने अंबुजा सीमेंट का अधिग्रहण कर लिया। 2024 में, ‘कंपनी के लोग’ आए और किसानों पर अपनी जमीन 35 लाख रुपये प्रति एकड़ के हिसाब से बेचने का दबाव डाला गया। पता चला कि उनके प्लॉट किसी एक कंपनी (अंबुजा) को नहीं, बल्कि 13 अलग-अलग कंपनियों को बेचे गए थे। लेकिन सभी एक ही पते पर रजिस्टर्ड थीं: 104 रामसुख हाउस, शिवाजी नगर, पुणे। ये सभी 13 कंपनियां रुचा समूह की हैं। हालांकि अंबुजा सीमेंट की पर्यावरणीय मंजूरी में किसानों के लिए मुआवजा और सहायता - वैकल्पिक जमीन, व्यावसायिक प्रशिक्षण और प्रति परिवार 5 लाख रुपये की एकमुश्त आजीविका भुगतान - शामिल थी, लेकिन 2024 में रुचा समूह द्वारा जमीन खरीदने पर ये शर्तें रद्द कर दी गईं। 2025 में अंबुजा ने कथित तौर पर रुचा को 298.61 करोड़ रुपये में खरीद लिया।
केन्द्र लद्दाख में अशांति के लिए विदेशी ताकतों - पाकिस्तानी और चीनी - को दोषी ठहराता है, लेकिन स्थानीय लोग अलग ही कहानी बताते हैं। 26 सितंबर को शांतिपूर्ण भूख हड़ताल के दौरान गिरफ्तार किए गए ऐक्टिविस्ट सोनम वांगचुक ने कहा कि लद्दाख के लोगों ने 2019 में केन्द्र शासित प्रदेश के दर्जे का स्वागत किया था, लेकिन उन्हें डर था कि यह क्षेत्र भूमि और संसाधनों के कॉरपोरेट शोषण के लिए असुरक्षित हो जाएगा। सोनम ने एक इंटरव्यू में कहा- ‘यही वजह है कि हम चाहते थे कि केन्द्र हमें अपनी भूमि, संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए छठी अनुसूची में डाले’। लेकिन सरकार नहीं मानी। वांगचुक ने हालांकि किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन माना कि अडानी समूह को अक्सर इस क्षेत्र में प्रस्तावित नवीकरणीय ऊर्जा परियोजनाओं से जोड़ा गया है।
2023 में लद्दाख दौरे पर गए राहुल गांधी ने एक जनसभा में कहा था- ‘भाजपा जानती है कि अगर आपको प्रतिनिधित्व दिया गया, तो वे आपकी जमीन नहीं छीन पाएंगे। यह सब जमीन के लिए है। वे आपकी जमीन छीनकर अडानी को देना चाहते हैं ताकि अपनी परियोजनाएं लगा सकें, लेकिन आपको फायदा नहीं पहुंचाएंगे…’
खैर, मध्य प्रदेश में हसदेव के जंगलों की रक्षा पांचवीं अनुसूची भी नहीं कर पाई। 2023 में जब अडानी समूह को धिरौली कोयला खनन परियोजना के लिए मंजूरी मिली- जिसमें पांच गांवों की लगभग 3,500 एकड़ वन भूमि का हस्तांतरण शामिल था- तो कोयला मंत्रालय ने लोकसभा को बताया कि यह क्षेत्र संविधान की पांचवीं अनुसूची और आदिवासी आबादी वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत संरक्षित है। लेकिन आदिवासी अधिकारों और संवैधानिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार कर दिया गया।
इस साल अगस्त में गुवाहाटी हाईकोर्ट के जज संजय कुमार मेधी का एक वीडियो क्लिप वायरल हुआ था जिसमें वह असम के एक पूरे जिले (दीमा हसाओ) जिसमें 3 हजार बीघा जमीन थी, को एक निजी सीमेंट कंपनी को आवंटित किए जाने पर खफा थे। इसके बाद अडानी समूह ने औपचारिक खंडन जारी करते हुए साफ किया कि बोली जीतने वाली महाबल सीमेंट से उसका कोई नाता नहीं। जैसा कि न्यूजलॉन्ड्री ने बताया, यह दरअसल ‘वायरल क्लिप से भी पुराना विवाद’ था।
अंबुजा सीमेंट को चूना पत्थर खनन के लिए 1,200 बीघा से ज्यादा जमीन आवंटित की गई, जबकि अंबुजा की सहायक कंपनी महाबल सीमेंट को उमरंगसो में जमीन मिली। दिसंबर 2024 में 22 ग्रामीणों ने इस आवंटन को गुवाहाटी हाईकोर्ट में चुनौती दी और आरोप लगाया कि दीमा हसाओ स्वायत्त परिषद ने उचित प्रक्रिया को दरकिनार कर दिया है। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि यह जमीन आदिवासी रीति-रिवाजों के तहत सामुदायिक स्वामित्व वाली है और पारंपरिक रूप से गांव के बुजुर्गों द्वारा आवंटित की जाती रही है। मामले की सुनवाई अभी गुवाहाटी हाईकोर्ट में चल रही है।
इस बीच, कोकराझार में बीटीआर सरकार द्वारा जनता से सलाह लिए बिना जून 2025 में अडानी ताप विद्युत परियोजना के लिए 3,400 बीघा जमीन आवंटित करने के बाद तनाव चरम पर है।
अडानी पोर्ट और मुंद्रा एसईजेड को 3,585 हेक्टेयर जमीन एक रुपये से 32 रुपये प्रति वर्ग मीटर की दर से खरीदने की अनुमति दी गई, जबकि बाजार भाव 1,500 रुपये प्रति वर्ग मीटर से भी ज्यादा था। फोर्ब्स की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अडानी ने यह जमीन 30 साल के रिन्यू होने वाले पट्टे पर एक अमेरिकी सेंट प्रति वर्ग मीटर की दर से हासिल की। इसके बाद अडानी ने इस जमीन को इंडियन ऑयल जैसी कंपनियों को 11 डॉलर प्रति वर्ग मीटर की दर से सबलेट कर दिया।
2009 के वाइब्रेंट गुजरात सम्मेलन में राज्य सरकार ने अडानी समूह को पांच साल के लिए 32 अरब रुपये से अधिक की कर छूट प्रदान की थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, अडानी एसईजेड बंदरगाह और बिजली संयंत्र में 1.32 खरब रुपये के निवेश के बावजूद इनसे केवल 38,875 नौकरियां पैदा हुईं। यानी प्रति नौकरी 3.38 करोड़ रुपये जो संभवतः अब तक का सबसे महंगा रोजगार है।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia