खरी-खरी: विश्व राजनीति में खत्म होने लगा है मंडल-कमंडल का दौर, समरसता के नए युग की शुरुआत के संकेत

इस समय दुनिया में जो प्रतिक्रियावादी राजनीति का जोर है, वह खत्म होगा। बीजेपी अथवा इटली की ब्रदर्स ऑफ इटली जैसी पार्टियों का जोर आज नहीं तो कल टूटेगा और नस्लवाद के विरुद्ध एक नई राजनीति फूटकर रहेगी

(बाएं) ब्राजील के नए राष्ट्रपति लूला डि सिल्वा और (दाएं) ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनाक (फोटो- Getty Images)
(बाएं) ब्राजील के नए राष्ट्रपति लूला डि सिल्वा और (दाएं) ब्रिटेन के नए प्रधानमंत्री ऋषि सुनाक (फोटो- Getty Images)
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ज़फ़र आग़ा

संसार एक अत्यंत विचित्र स्थिति में पहुंच गया है। एक ही समय में विश्व के विभिन्न हिस्सों में सामाजिक और राजनीतिक स्तर पर विपरीत बातें हो रही हैं। लगता है, मानवता एक नए मोड़ पर है। जरा ब्रिटेन पर नजर डालिए। लगता है कि वहां इतिहास ने प्रगतिशील दिशा में एक नया कदम उठाया है। किसी समय संसार का सबसे बड़ा साम्राज्य रहे इंग्लैंड का प्रधानमंत्री इस समय एक गैर गोरा भारतीय मूल का व्यक्ति है। ऋषि सुनक का ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बन जाना निःसंदेह एक ऐतिहासिक बात ही नहीं है बल्कि इतिहास का एक नया रूप और मोड़ भी है।

ब्रिटिश साम्राज्यवाद की बुनियाद ही नस्लवाद पर थी। आज उसी देश में एक गैर गोरा प्रधानमंत्री है, इसको इतिहास का एक मोड़ नहीं तो और क्या कहेंगे। ब्रिटेन में नस्ली भेदभाव की दीवार टूट रही है। यह एक अत्यंत प्रगतिशील कदम है। लेकिन उसी यूरोप में मुड़कर इटली को देखें, तो वहां इसके विपरीत नस्लवाद का जोर है। अभी कुछ सप्ताह पूर्व इटली में जॉर्जिया मेलोनी विदेश से आए इटली में बसे नागरिकों के विरुद्ध नस्ल एवं रंग के आधार पर नफरत फैलाकर चुनाव जीतीं। अब उनकी ब्रदर्स ऑफ इटली नामक पार्टी सत्ता में है और मेलोनी फासीवाद के आधार पर इटली की प्रधानमंत्री हैं।

इटली ही क्या, सारे संसार में पहचान की राजनीति का बोलबाला है। स्वयं भारत में मुस्लिम विरोधी राजनीति का जोर है। ऐसे ही तुर्की एवं रूस में कट्टर राष्ट्रवाद का बोलबाला है। कुछ समय पूर्व अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप नस्लवाद के आधार पर ही राष्ट्रपति चुने गए थे। अभी भी ट्रंप अमेरिकी राजनीति का एक बड़ा केन्द्र हैं। यूरोप में इटली जैसा हाल और भी कई देशों का है।

आखिर यह क्या हो रहा है। एक तरफ नस्लवाद टूट रहा है, तो दूसरी ओर नस्ल के आधार पर दुनिया भर में नफरत की राजनीति का जोर है। एक ही समय में यह दो विपरीत धाराएं चल रही हैं। इसका क्या कारण है? बात यह है कि मानवता एक करवट ले रही है। मानव इतिहास एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां से मानवता का एक नया प्रगतिशील युग आरंभ होना है। और वह करवट सामाजिक समानता एवं सामाजिक न्याय की है।

दरअसल, औद्योगिक क्रांति के कारण जब सामंतवाद का अंत हुआ, तो सबसे पहले पश्चिमी देशों में सामाजिक एवं राजनीतिक क्रांति उत्पन्न हुई। उस क्रांति से जनता को अपनी सरकार चुनने का अधिकार प्राप्त हुआ। इस प्रकार यूरोप एवं अमेरिका में मानव बराबरी एवं मानव अधिकार की लहर चली। लेकिन अभी हाल तक यूरोप एवं अमेरिका में गोरों का वर्चस्व था। यह बराबरी आपस में गोरों की बराबरी थी। लेकिन इस परिवर्तन में सदियों से चल और पनप रहे नस्लवाद में कोई परिवर्तन नहीं हुआ बल्कि इसी नस्लवाद के आधार पर गोरों ने एशिया एवं अफ्रीकी देशों को गुलाम बनाया। इस प्रकार साम्राज्यवाद का एक नया दौर शुरू हुआ जिसका आधार श्वेत नस्लपरस्ती था।


मध्य 20वीं शताब्दी में मानवता ने एक और करवट बदली और धीरे-धीरे साम्राज्यवाद का अंत आरंभ हो गया। एशिया के लगभग सभी देश स्वतंत्र हुए और अब इन देशों में भी राजनीतिक बराबरी के आधार पर नई सरकारें बनीं। लेकिन इस क्रांति से राजनीतिक बराबरी तो उत्पन्न हुई, पर समाज में नस्ल, धर्म अथवा जाति के आधार पर जो सामाजिक असमानता चली आ रही थी, वह सामाजिक स्तर पर वैसे ही पनपती रही। 

पर मार्केट इकोनॉमी से संसार में एक नई आर्थिक क्रांति उत्पन्न हुई। इस आर्थिक क्रांति के कारण दुनिया की सरहदें टूटने लगीं। इस आर्थिक क्रांति के साथ आईटी की औद्योगिक क्रांति भी उत्पन्न हुई। पश्चिमी देशों में बड़ी संख्या में नए रोजगार उत्पन्न हुए। इससे सारे संसार में विस्थापन (माइग्रेशन) का एक नया सैलाब उत्पन्न हुआ। स्वयं भारत से स्किल्ड लेबर एवं आईटी क्षेत्र का टैलेंट बड़ी संख्या में पश्चिमी देशों में जा बसा।

हर औद्योगिक क्रांति की कोख से एक राजनीतिक एवं सामाजिक क्रांति भी जन्म लेती है। भारी संख्या में आए अनिवासियों ने धीरे-धीरे अपने नए देशों की राजनीति पर भी प्रभाव डालना आरंभ किया। यह प्रवासियों की नई पीढ़ी अपने को गोरों से किसी प्रकार कमतर मानने को तैयार नहीं थी। बाहर से आए प्रवासियों के बढ़ते प्रभाव से पश्चिमी देशों की गोरी जनसंख्या में एक उल्टी प्रतिक्रिया पैदा हुई जिससे नस्लवाद का सैलाब उत्पन्न हुआ।

यह कुछ वैसी ही राजनीतिक एवं सामाजिक क्रांति थी जैसे भारत में मंडल लागू होने के बाद उच्च जातीय प्रतिघात (बैकलैश) उत्पन्न हुआ। जिस प्रकार भारतीय जनता पार्टी ने देश में मुस्लिम शत्रु के आधार पर घृणा की राजनीति को मजबूती प्रदान किया, उसी प्रकार पश्चिम में प्रवासियों को श्वेत शत्रु की छवि देकर विभिन्न देशों में श्वेत नस्लवाद की प्रतिक्रियावादी राजनीति का सैलाब उत्पन्न कर दिया।  

वह इटली की मेलोनी हों अथवा अमेरिका के डोनाल्ड ट्रंप या स्वयं भारत में नरेन्द्र मोदी- ये सब प्रतिक्रियावादी नेता हैं जो संसार में नई सामाजिक समता को रोकने की राजनीति करते हैं। लेकिन मानवता सामाजिक समता की दिशा में आगे बढ़ चुकी है। इस परिवर्तन को टाला तो जा सकता है लेकिन सदा के लिए रोका नहीं जा सकता है। यह बात ठीक उसी प्रकार है जैसे इंग्लैंड में मजबूर होकर एक भारतीय मूल के निवासी को प्रधानमंत्री मानना पड़ा। ऋषि सुनक संसार में उत्पन्न होने वाली उसी सामाजिक क्रांति के प्रतीक हैं।

यह मानवता का एक नया रूप है। इस परिवर्तन को पूरी तौर पर कामयाब होने में समय तो लगेगा लेकिन इस समय संसार में जो प्रतिक्रियावादी राजनीति का जोर है, वह समाप्त होकर रहेगा।  बीजेपी अथवा इटली की ब्रदर्स ऑफ इटली जैसी पार्टियों का जोर आज नहीं तो कल टूटेगा और सारे संसार में नस्लवाद के विरुद्ध एक नई राजनीति फूटकर रहेगी। 

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