विष्णु नागर का व्यंग्यः किसान आतंकवादी हैं तो देश की सत्तर फीसद आबादी आतंकवादी, बहुमत भी उनका हो जाएगा!

मोदी जी तो वैसे इस देश के सबसे बड़े स्वयंभू राष्ट्रवादी हैं। अंबानी-अडाणी सामने बैठे हों तो पहले एक कौर उनके मुंह में डालते हैं, फिर दूसरा कौर उनकी अनुमति से खुद खा लेते हैं। कभी इतने अधिक आनंदविभोर हो जाते हैं कि खुद खाना भूलकर उन्हें खिलाते जाते हैं।

फोटोः नवजीवन
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विष्णु नागर

अब तो एक तरह से अदालत ने भी सरकार और गोदी मीडिया को इजाजत दे दी है कि वे किसानों को खुशी-खुशी 'आतंकवादी' कह सकते हैं! इसका मतलब यह हुआ कि सिद्धांतत: तो अर्णब समेत सभी राष्ट्रवादियों को इन 'आतंकवादियों' का उगाया अनाज, सब्जी और फल आदि खाना बंद कर देना चाहिए था। अगर ये राणाप्रताप के असली वंशज होते, तो ये आज हवा खा रहे होते, पानी, घास और मिट्टी खाकर,कंटीली झाड़ियां और सूखे पत्ते चबा कर पेट भर रहे होते, मगर ऐसा नहीं हुआ।यहां तक कि इनका उगाया अभी तक जितना खा-पी चुके हैं, उसके लिए भी ईश्वर से क्षमा मांग रहे होते। ऐसा भी नहीं हुआ। अगर इनसे अनाज, फल, सब्जी के बगैर जिया नहीं जाता तो इन्हें देहत्याग देना चाहिए था मगर ऐसा हुआ क्या? नहीं हुआ।

ऐसा होगा क्या? नहीं होगा। ये रोज आज भी होटलों में परिवार या दोस्तों के साथ खा-पी रहे हैं, मस्ती छान रहे हैं। इनके मुंह से आज तक यह भी नहीं निकला कि अच्छा चलो, आज तो खा लेते हैं, मगर कल से किसी ने मेरा राष्ट्रवादी ईमान डिगाने की कोशिश की, तो फिर उसका इस दुनिया में मुझसे बुरा कोई नहीं होगा। उनके ईमान का भूकंप रिक्टर स्केल पर 9.5 की गति से डोलता रहता तो भी मानते कि ये फिर भी राष्ट्रवादी हैं, मगर ऐसा हुआ क्या? नहीं हुआ। सच्चे हिंदू राष्ट्रवाद के ये कुछ अनिवार्य लक्षण हैं। इन लक्षणों के बिना हिंदू राष्ट्रवाद का इतना, इतनी जल्दी विकास संभव भी नहीं था!

मोदी जी तो वैसे इस देश के सबसे बड़े स्वयंभू राष्ट्रवादी हैं। भक्तों के इस एकमात्र आदर्श पुरुष और देवता ने ऐसा सोचने की गलती की? नहीं की। करेंगे? नहीं करेंगे। इसका भी कारण है। उन्होंने देश सेवा का व्रत लिया है और प्रधानसेवक का पद स्वेच्छा से ग्रहण किया है तो उन्हें तो अपने कर्तव्यों के ठीक से निर्वहन के लिए सुस्वादु और पौष्टिक भोजन करना ही पड़ता है। नहीं करते तो देश रसातल में चला जाता। वैसे भी अटल जी से ज्यादा खाने-पीने में उनका विश्वास अटल है!

अंबानी-अडाणी सामने बैठे हों तो पहले एक कौर उनके मुंह में डालते हैं, फिर दूसरा कौर उनकी अनुमति से खुद खा लेते हैं। कभी इतने अधिक आनंदविभोर हो जाते हैं कि खुद खाना भूलकर उन्हें खिलाते जाते हैं। बीच-बीच में अपने मोबाइल से सेल्फी भी लेते रहते हैं, जिसका शीर्षक होता है- 'दो महान हस्तियों को भोजन करवाता- देश का यह 'ओरिजनल प्रधानसेवक'। आप चाहें तो इसमें आगे यह भी जोड़ सकते हैं कि उतना ही ओरिजिन और उतना ही 'प्रधानसेवक', जितनी ओरिजिनल उनकी बीए और एमए की मार्कशीट है!

अब रही किसानोंं के आतंकवादी होने की बात तो उनके आतंकवादी होने का अर्थ यह हुआ कि देश की सत्तर फीसदी आबादी आज आतंकवादी हो चुकी है। यानी बहुमत यहां आतंकियों का हो चुका है। फर्क यह है कि पहले के आतंकवादी बम और गोलियां चलाते थे, ये आतंकवादी खेती करते हैं और अपने विरुद्ध लाए गए काले कानूनों का शांतिपूर्ण विरोध करने दिल्ली आते हैं। फर्क यह भी है कि दिल्ली आने के रास्ते में हरियाणा की सरकार आंसू गैस के गोले छोड़कर, भयानक ठंड में ठंडे पानी की बौछारों से इन्हें भींगा कर इनका 'स्वागत' करती है तो ऐसा स्वागत भी करवा लेते हैं।

ये इतने 'खूंख्वार आतंकवादी' हैं कि अपनी मांग मंगवाने के लिए छह महीने तक धरना देने का संकल्प लेकर आते हैं। ठंड में ठिठुरते हैं, बरसात में कीचड़ में धंसते हैं। आतंकवादी हैं मगर जान किसी की लेते नहीं, अपनी जान ये और इनके बच्चे देश के लिए दे देते हैं।और कुछ युवा अति उत्साह में आकर लालकिले पर सिख धर्म का झंडा फहरा देते हैं तो हमारी परम लोकतांत्रिक सरकार इन्हें सजा देने के लिए इनके ठिकानों पर गहरी खाइयां खुदवा देती है, बैरीकेड्स खड़े करवा देती है, सड़क पर कांटेदार कीलें ठुकवा देती है, सांसदों और पत्रकारों तक को उनके पास पहुंचने नहीं देती है, उन्हें चीन और पाकिस्तान से भी बड़ा शत्रु समझती है तो भी ये शांति और संयम रखते हैं।

भारत के नये राजनीतिक शब्दकोश के अनुसार लोकतंत्र में तानाशाही सहने वाले आतंकवादी और मौज से बैठकर खाने-पीने वाले राष्ट्रवादी होते हैं। खून-पसीना बहानेवाले आतंकवादी और धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले राष्ट्रवादी होते हैं। कितने अच्छे होते हैं ये राष्ट्रवादी और ये आतंकवादी भी! हमारा राष्ट्रवाद भले विदेशी हो, मगर यह वाला आतंकवाद परम स्वदेशी है। इसे 'स्वावलंबी भारत' का आतंकवाद की उपलब्धि भी मान सकते हैं। इसका श्रेय अगर मोदी जी लूटना चाहें तो सहर्ष लूट ले सकते हैं!

हां तो देश के 70 प्रतिशत लोग तो आतंकवादी हो चुके हैं। बचते हैं बाकी तीस फीसदी। इनमें से भी हमारे जैसे अघोषित देशद्रोही-धर्मनिरपेक्ष, आतंकवादी कम से कम दस प्रतिशत होंगे। हम तो भाई इन 'आतंकवादियों' की उगाई चीजें मस्ती से खाते हैं। अब बचे बीस फीसदी। इनमें से 17 प्रतिशत पक्के तौर पर पेटू होंगे। सच्चा पेटू ही सच्चा हिंदू राष्ट्रवादी भी हो सकता है। ये खाएंगे, पीएंगे और किसानों को 'आतंकवादी' कहने में सबसे आगे भी रहेंगे। बचे केवल तीन प्रतिशत। इससे ज्यादा तो वैसे भी रोज भूखे मरते हैं और भूखे लोग न तो राष्ट्रवादी होते हैं और न देशद्रोही। अभी तक तो यही स्थिति है। वैसे अगर देश इसी प्रकार हमारा आगे बढ़ता रहा तो ये भी जल्दी ही आतंकवादी का पद पाने के योग्य माने जाएंगे!

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