विष्णु नागर का व्यंग्यः अगर मोदीजी 2019 में भी प्रधानमंत्री बन गए तो देश का रहा-सहा बंटाधार करके ही जाएंगे

वैसे बेचारे मोदी जी भी क्या करें, उनकी चार साल की ‘उपलब्धियां’ ही इतनी ज्यादा हैं कि उन्हें भी याद नहीं रहतीं। कागज देख-देखकर उन्हें पढ़ना पड़ता है। इसलिए वे प्वाइंट तो छूट ही गये जिनका संबंध उनकी उन ‘उपलब्धियों’ से है, जो मुंहजबानी याद हैं, इसलिए डेढ़ घंटा तो बहुत कम था।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

मोदीजी, शुक्रवार को अविश्वास प्रस्ताव पर लोकसभा में आपका डेढ़ घंटे का भाषण इतना ‘सुंदर’ था, इतना अधिक ‘सुंदर’ कि अगले दिन अनिद्रा के रोगी एक मित्र ने फोन किया। कहा, कुछ भी कहो बंधु प्रधानमंत्री का भाषण इतना ‘उम्दा’ था, इतना ‘उम्दा’ कि यार जाने कितने महीनों के बाद उनका भाषण सुनते-सुनते, मां कसम, रात को ऐसी बढ़िया नींद आई कि सोफे पर ही सो गया और सुबह भी आंख खुल ही नहीं रही थी। कसम से अगर बीवी ने जबर्दस्ती उठाकर बैठा न दिया होता तो आज कम से कम शाम चार बजे तक सोता रहता। इसके लिए मैं प्रधानमंत्री को धन्यवाद देना चाहता हूं। कैसे दूं? तुम दे दोगे क्या मेरी ओर से? और सुनो बदमाशी मत करना, धन्यवाद मेरी ओर से देना,अपनी ओर से नहीं! जरा कर देना ये मेरा काम, तुम मेरे अच्छे और सदियों पुराने दोस्त हो।’ मैंने कहा, सॉरी यह काम मैं कतई नहीं करनेवाला। मैं न देश का चौकीदार हूं, न पूंजीपतियों का भागीदार हूं और न ठेकेदार हूं। और यह भी सुन लो, मुझ पर इसका उल्टा ही असर हुआ। मुझे रोज रात को बहुत बढ़िया नींद आती है। बरसों बाद पहली बार ऐसा हुआ कि उनका भाषण सुनते, सुनते. सुनते, सुनते मेरी तो वाट ही लग गई। मोदी जी ने इतना ज्यादा बोर कर दिया, इतना ज्यादा कि यह सोच-सोचकर मैं रात भर परेशान होता रहा कि अगर मोदीजी 2019 में भी प्रधानमंत्री बन गए तो देश का रहा-सहा बंटाधार करके ही जाएंगे। साथ ही इतना बोर भी करेंगे कि जिसका कोई हिसाब नहीं।  यही सोचते-सोचते रात भर नींद नहीं आई। प्रभु से प्रार्थना किया कि सबकुछ करना मगर मोदीजी को 2019 के बाद न झेलवाना मगर फिर भी नींद न आई। मैं अब जा रहा हूं सोने। मेरी गुडनाइट शुरू होती है अब!

एक दोस्त ने मुझे गहरी नींद से उठा दिया कि ‘साले, तेरा दोस्त तकलीफ में है और तू सो रहा है? मैंने कहा, सोने दे यार, इतनी दया तो करा कर कभी-कभी! उसने कहा, दया करूं तुझ पर? किस बात की दया करूं? अरे मैं कल मस्त चार पैग लगाकर आया था। तूने फोन किया कि अबे बेवड़े, तूने ये जीवन पाया है तो कुछ ढंग के काम भी कराकर कभी-कभी। मैंने कहा, यार चार पैग के बाद सोने के अलावा मुझे कुछ नहीं सूझता। तूने कहा, अबे मोदीजी का भाषण टीवी पर ‘लाइव’ आ रहा है, उनका भक्त होकर भी उसे तू नहीं सुनेगा? इतना ‘सुमधुर’ भाषण छोड़ देगा तो सीधे नरक में जाएगा! तुझे जनता कभी माफ नहीं करनेवाली। मैं बहकावे में आ गया। तेरे कहने पर सुना तो यार सारा नशा उतर गया। चार सौ रुपये नाली में चले गए। शराब का भी और मोदीजी का भी नशा एकदम से उतर गया। इस नुकसान की भरपाई अब कौन करेगा? तू करेगा, समझा! खैर किसी तरह उससे पीछा छुड़ाया। साले को मोदीजी की तरह इधर-उधर  ऐसा भटकाया कि पीने की बात ही फिलहाल भूल गया है मगर ‘दुष्ट’ है, मुझे छोड़ेगा नहीं।

मैं दुआ कर रहा हूं कि एक और फर्जीकल स्ट्राइक करते हुए शनिवार से मोदीजी रोज देश में ऐसे ही भाषण देते रहेंं तो देश का बिगड़ता भविष्य सुधर जाएगा। दुख यही रहेगा कि भक्तों का वर्तमान और भविष्य चौपट हो जाएगा। एक बार मूर्ति खंडित हो जाती है तो पीढ़ियों से चली आ रही मूर्ति को भी भक्तलोग बाहर का रास्ता दिखा देते हैं। चलो दुख-सुख की तो जोड़ी है- कभी खुशी,कभी गम।दूसरी मूर्ति किसकी लाएं, कहां स्थापित करें, यह चुनौती उनके सामने रहेगी। खैर, मैं और कुछ तो उनके दुख निवारण के  लिए नहीं कर सकता। भक्तों की झप्पी तो ले ही सकता हूं। हद से हद ये करूंगा कि ऐसा करने के बाद किसी दोस्त को कैमरे के सामने आंख न मारूं! कैमरा जब ऑफ होगा, तब ये काम करूंगा।

वैसे बेचारे मोदी जी भी क्या करें, उनकी चार साल की ‘उपलब्धियां’ ही इतनी ज्यादा हैं कि उन्हें भी याद नहीं रहतीं। कागज देख-देखकर उन्हें पढ़ना पड़ता है। इसलिए वे प्वाइंट तो छूट ही गये जिनका संबंध उनकी उन ‘उपलब्धियों’ से है, जो मुंहजबानी याद हैं, इसलिए डेढ़ घंटा तो बहुत कम था। चार घंटे भी बोलते तो सब बता न पाते। वह तो इतना कम बोलकर उन्होंने अपने पर और देशवासियों पर बहुत किरपा की। बहुत से प्वाइंट छूट गये। जैसे सबसे ताजा उपलब्धि थी, स्वामी अग्निवेश को पिटाई करवाना। सारा देश उनकी इस ‘उपलब्धि’ की थू-थू करके ‘गर्व’ कर रहा है।सोचा होगा कि लिंचिंग की इस बीच हासिल तमाम बड़ी ‘उपलब्धियों’ में इसे भी गिनवा देंगे मगर नहीं गिनवा पाए।

राम मंदिर की दिशा में और प्रगति करने की इच्छा और संकल्प को व्यक्त नहीं कर पाए। लेकिन भारत की सवा सौ करोड़ जनता इतनी समझदार और जागरूक है कि जिन ‘उपलब्धियों’ की तरफ उनका ध्यान नहीं जा पाया, उसके ध्यान में वे हैं। जनता जानती है कि मोदी जी बेहद संकोची स्वभाव के हैं। 2002 की अपनी अब तक कि सबसे बड़ी उपलब्धि गिनाने तक में उन्हें संकोच घेर लेता है तो बाकी की बात क्या! इतने अधिक संकोची हैं वह कि नेहरू जी, इंदिरा जी, राजीव जी, सोनिया जी सबकी ‘उपलब्धियां’ वह गिनवा देते हैंं मगर सिर्फ अपनी ही नहीं गिनवाते। ऐसे निस्पृह, ऐसे वीतराग, ऐसे संकोची जीव को देश की सवा सौ करोड़ जनता अच्छी तरह जानती है। वह उन्हें 2019 क्या 2024, 2029 और 2034 में भी वोट देगी क्योंकि राजनीति में तो क्या साहित्य में ऐसे संकोची लोग आजकल कभी-कभी ही मिलते हैं- सदियों में एक!

(यह लेखक के निजी विचार हैं। नवजीवन का उनके विचारों से सहमत होना अनिवार्य नहीं है)

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