विकास नियोजन में महिलाओं के दृष्टिकोण की अनदेखी जारी रही तो समस्याएं और गहराएंगी

जब महिलाएं समाज में आगे आती हैं तो इससे महिलाओं का तो भला होता ही है पर इसके साथ पूरे समाज की भी भलाई होती है, पुरुषों की भी भलाई होती है। इस सच्चाई के महत्त्व को अधिक व्यापक स्तर पर समझना जरूरी है।

फोटो : Getty Images
फोटो : Getty Images
user

भारत डोगरा

मानव समाज की सबसे पुरानी और सबसे व्यापक गलतियों में से एक मुख्य गलती यह रही है कि महिलाओं व लड़कियों से समानता व न्याय का व्यवहार नहीं हुआ है। आधी दुनिया तो महिलाओं से ही बनी है। अतः यदि महिलाओं को न्याय नहीं मिलता है तो आधी दुनिया अन्याय से पीड़ित है। इतना ही नहीं मां, बेटी, बहन, पत्नी व अन्य नजदीकी स्तरों पर पुरुषों के महिलाओं से संबंध हैं, अतः यदि महिलाओं का कोई गहरा दुख है तो पुरुषों पर भी असर पड़ता ही है। सच बात तो यह है कि पुरुषों की अपनी भलाई के लिए भी महिलाओं की भलाई जरुरी है।

हो सकता है कि समाज में महिलाओं को न्याय न मिलने की स्थिति का लाभ उठाकर कोई पुरुष किसी महिला के साथ अन्याय करे, पर यदि कल कोई अन्य व्यक्ति इस स्थिति का लाभ उठाकर उसी पुरुष की बहन या बेटी से अन्याय करे तो उस पुरुष को दुख होगा कि नहीं? दहेज-प्रथा को महिलाओं से एक अन्याय माना जाता है, यह सही है, पर इसका बोझ बूढ़े पिता व जवान भाई को भी उठाना पड़ता है कि नहीं? यदि किसी समाज में महिलाओं के प्रति अन्याय बढ़ेंगे तो उस समाज के पुरुष भी बेहद तनावग्रस्त होंगे कि नहीं?

वास्तव में मानव समाज पुरूष और नारी के इतने नजदीकी और बहुपक्षीय संबंधों पर आधारित हैं कि उनमें प्रेम, समता और न्याय के आपसी संबंधों से ही समाज तरक्की कर सकता है। अनेक पुरुषों ने यह बहुत बड़ा भ्रम पाल रखा है कि वे अपनी पत्नी को जितना अपने दबाव व नियंत्रण में रख सकेंगे उतना ही सुख व आराम उन्हें मिलेगा। वे यह भूल जाते हैं कि जबरदस्ती पर आधारित किसी संबंध से वह सुख मिल ही नहीं सकता है जो गहरे प्रेम, दिल से महसूस किए गए सम्मान व हर सुख-दुख की हिस्सेदारी से मिल सकता है। आदेश व रोबदाब से सुख प्राप्त करने वाले पुरुष उस कोमल प्रेम और गहरे सुख से तो वंचित ही रह जाते हैं जो गहरी संवेदनाओं के उमड़ने से मिलते हैं। अपनी जीवन-संगिनी को हैरान व परेशान कर स्वयं सुख व आराम हथियाने वाले पुरुष यह भूल जाते हैं कि कल उनकी बहन या बेटी को भी यह अन्याय सहना पड़े तो उन्हें कितना दुख होगा।

अतः साफ दिल से सोचने पर पुरुष इस बात को अवश्य मानेंगे कि महिलाओं से हो रहे अन्याय को हटाना न केवल महिलाओं की भलाई और सुख के लिए जरूरी है अपितु उनकी अपनी भलाई और सुख के लिए जरूरी है। पूरे समाज की मजबूत प्रगति के लिए जरूरी है कि समाज के सभी सदस्यों को बिना किसी भेदभाव के अपनी क्षमताओं और प्रतिभाओं के भरपूर विकास का अवसर मिले। महिलाओं को अपनी क्षमताओं को विकसित करने और तरह-तरह के नए कार्यों में आगे आने के भरपूर अवसर नहीं मिल पाए, इसके अनेक कारण हैं। इनमें से एक चर्चित कारण यह है कि घर-गृहस्थी व देखभाल की अत्यधिक जिम्मेदारी केवल महिलाओं को सौंप दी जाती है व इस कारण उन्हें अपनी अन्य क्षमताओं को विकसित करने का समुचित अवसर नहीं मिल पाता है।


हाल ही में ऑक्सफैम संस्था व इससे जुड़े कुछ अनुसंधानकर्ताओं ने इस बारे में असरदार ढंग से आंकड़ों व सर्वेक्षणों की मदद से बताया है कि महिलाओं के अनेक क्षेत्रों में आगे न आने का यह एक मुख्य कारण है। दूसरी ओर यदि घर-गृहस्थी व देखभाल के कार्यों की जिम्मेदारी में यथासंभव पुरुष अधिक सहयोग करें तो महिलाओं को विविध क्षेत्रों में अपनी क्षमताएं विकसित करने और आगे आने के अवसर मिलेंगे।

ऑॅक्सफैम के हाल के अध्ययनों के अनुसार यदि विभिन्न सरकारें चाहें तो अनुकूल नीतियां अपनाकर ऐसा माहौल बनाने में बहुत मदद कर सकती हैं। यदि पेयजल घर में या घर के बहुत पास सहज उपलब्ध हो, यदि छोटे बच्चों के लिए क्रेच की सुविधा हो, ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को सुरक्षित व आरामदायक यातायात सुविधा उपलब्ध हो तो महिलाओं की सक्रियता विभिन्न क्षेत्रों में तेजी से बढ़ सकती है।

ऑक्सफैम की वर्ष 2020 की विषमता रिपोर्ट के अनुसार चूंकि अवैतनिक देखरेख कार्य महिलाओं की पहचान का एक मुख्य पक्ष है, अतः केवल इस कार्य के महिलाओं और पुरुषों में बेहतर पुनर्वितरण की पैरवी पर्याप्त नहीं है, इसके लिए अधिक गहरे, व्यापक, सामूहिक विमर्श की जरूरत है जिसमें लैंगिक संबंधों व सामाजिक मान्यताओं को जहां जरूरत हो वहां चुनौती दी जा सके। प्रचलित मान्यताओं और उनसे जुड़े व्यवहार में व्यापक बदलाव की जरूरत है। यह बदलाव धीरे-धीरे महिलाओं और पुरुषों के जीवन में आना चाहिए व सामुदायिक स्तर की सोच में भी जिससे यह व्यवहर निर्धारित या प्रभावित होता है।

यह रिपोर्ट रेखांकित करती है कि इस तरह के बदलाव लाने के लिए अनुकूल माहौल बनाने में राज्य को अपनी भूमिका निभानी चाहिए। महिलाओं के लिए ऐसी सार्वजनिक सुविधाएं (उदाहरण के लिए पानी, गैस स्टोव व शौचालय) व सेवाएं (ग्रामीण क्षेत्रों में सुरक्षित व बेहतर यातायात, बच्चों के रख-रखाव की सुविधा जैसे क्रेच) ताकि वे श्रम-क्षेत्र में समान भागेदारी, आराम व फुरसत के अधिकारों को प्राप्त कर सकें।

एक जरूरी सवाल यह भी है कि जब इतने समय से महिलाओं को शिक्षा व अन्य तरह की प्रगति के अवसरों से वंचित रखा गया तो इससे मानव-समाज को कितनी प्रतिभाओं का लाभ नहीं मिल सका व कितनी क्षमताओं का उचित उपयोग नहीं हो सका। यदि इस प्रतिभा और क्षमता का उचित उपयोग होता तो मानव समाज कितनी प्रगति और कर सकता था। जब हम मानव इतिहास के प्रख्यात और प्रेरणादायक व्यक्तित्वों की बात करते हैं तो महापुरूषों के ही इतने अध्कि नाम क्यों आते हैं, महानारियों के नाम इतने कम क्यों आते हैं। इसका मुख्य कारण यही है कि महिलाओं को दबाकर रखा गया, उन्हे समान अवसर नहीं दिए गए जिसके कारण बहुत सी प्रगति से, बहुत से प्रेरणादायक व्यक्तित्वों से मानव-समाज वंचित रह गया।

अतः इस बारे में तो कोई सवाल ही नहीं है कि पूरे समाज की भलाई और प्रगति के लिए महिलाओं को न्याय और समता मिलना बहुत जरूरी है। सवाल तो केवल यह है कि इस प्रयास में, इस आंदोलन में किन बातों पर जोर दिया जाए और किन बातों के प्रति सावधान रहा जाए।

इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि जिस विकास के रास्ते पर हम चल रहे हैं उस पर चलते हुये अपने आप ही महिलाओं की उपेक्षा और भेदभाव व उनसे हो रहा अन्याय दूर हो जायेंगे। दूसरी ओर यह संभावना भी बनी हुई है कि विकास के नियोजन में महिलाओं की समस्याओं और उनके दृष्टिकोण का विशेष ध्यान न रखा गया तो उनकी कुछ समस्यायें पहले से और विकट भी हो सकती हैं।

जरूरत इस बात की है कि एक ओर तो महिलाओं से हो रहे भेदभाव व अन्याय को दूर करने के सीधे प्रयास करें तथा दूसरी ओर पूरे विकास नियोजन में विभिन्न परियोजनाओं और कार्यक्रम में इस बात का पूरा ध्यान रखें कि इनका महिलाओं पर क्या असर होगा। यदि विभिन्न योजनाओं, परियोजनाओं और कार्यक्रमों को बनाते समय महिलाओं से पूरा संवाद हो सके, इस बारे में उनकी जानकारी व सलाह अच्छी तरह से ली जाये तो इन योजनाओं को बेहतर बनाने में, इनके अच्छे परिणाम प्राप्त करने में बड़ी सफलता मिलेगी। विशेषकर जिन कामों में महिलायें सीधे-सीधे लगी हुई हैं, उनके बारे में उनकी राय लेना तो बहुत जरूरी है।


हरित क्रान्ति व इससे जुड़े मशीनीकरण, कम्बाईन हारवेस्टर जैसी कई नई तकनीकों के गांव में व्यापक प्रसार का महिलाओं के रोजगार पर प्रतिकूल असर पड़ा। उनसे सलाह लिये बिना ही ऐसे कार्यो में बड़ा बदलाव आ गया जो परंपरागत तौर पर उन्होंने ही किये थे। बाद में इनमें से अनेक नई तकनीकों की कमजोरियां भी पता चली, उनके कई नुकसान भी सामने आये। यदि पहले ही इस बारे में खुली बहस होती और महिलाआंे के विचारों को अधिक ध्यान से सुना जाता तो शायद कुछ ऐसी गलतियों से हम बच जाते जो बाद में बहुत महंगी सिद्ध हुई।

कोई भी ऐसी परियोजना जिसमें वनों का नुकसान होता हो महिलाओं को पसंद नहीं आयेगी क्योंकि चारे, ईंधन, पानी लाने का संकट जो बढ़ जायेगा। शराब का ठेका गांव के पास खोलने की बात हो तो सबसे महत्वपूर्ण विरोध तो महिलाओं की ओर से ही उठेगा क्योंकि शराब का चलन बढ़ने के सबसे भयंकर परिणाम उनको ही भुगतने पड़ते हैं।

विभिन्न अध्ययनों में यह बात भी सामने आई है कि परिवार की आय का जो हिस्सा महिलायें कमाती हैं व जिस पर उनका नियंत्रण होता है वह प्रायः अधिक जरूरी खर्चो जैसे पोषण, स्वास्थ्य, शिक्षा आदि पर खर्च होता है जबकि जिस पैसे पर पुरुषों का नियंत्रण होता है, उसके गैर जरूरी खर्चे में लगने की संभावना अधिक होती है।

महिलाओं की बात सुनी जाये, उनके रोजगार की रक्षा हो, उनका आमदनी पर नियंत्रण हो-तो यह संभावना बढ़ जाती है कि उपलब्ध आय का उपयोग ठीक से होगा, बच्चों के पोषण और शिक्षा की आवश्यकतायें पूरी होंगी व शराब, जुए आदि पर फिजूलखर्ची नहीं होगी। अतः महिलाओं को परिवार व समाज में उचित स्थान मिलेगा तो उससे न केवल महिलाओं का भला होगा अपितु पूरे परिवार का भला होगा, पूरे समाज का भला होगा।

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia