मोदी सरकार में आंकड़ों में मर कर जिंदा होते लोग, बीजेपी राज में सरकारी डेटा बना मजाक

एक बड़ी उपलब्धि मोदी सरकार के नाम है, जिसकी कोई चर्चा नहीं करता- यह उपलब्धि है सरकार के पास अधिकतर विषय के आंकड़े नदारद हैं और जिन विषयों के आंकड़े हैं, वे भी वक्ता, समय और परिस्थिति के अनुसार कभी भी बदल सकते हैं।

मोदी सरकार में आंकड़ों में मर कर जिंदा होते लोग, बीजेपी राज में सरकारी डेटा बना मजाक
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महेन्द्र पांडे

मोदी सरकार के 11 वर्ष पूरे होने का जश्न जारी है, तमाम मंत्री-संतरी उपलब्धियां गिनाने में व्यस्त हैं। एक बड़ी उपलब्धि मोदी सरकार के नाम है, जिसकी कोई चर्चा नहीं करता- यह उपलब्धि है सरकार के पास अधिकतर विषय के आंकड़े नदारद हैं और जिन विषयों के आंकड़े हैं, वे भी वक्ता, समय और परिस्थिति के अनुसार कभी भी बदल सकते हैं। यह किसी एक विषय का हाल नहीं है, बल्कि हरेक विषय का हाल है। हाल में ही अंतराष्ट्रीय स्तर पर यह तय हो गया कि भारत इस समय दुनिया में चौथी नहीं बल्कि पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, पर बीजेपी अध्यक्ष से लेकर छुटभैया नेता तक सत्ता में 11 वर्ष की उपलब्धि में शामिल कर रहे हैं। अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी यही कहा है। यह तो सत्ता की नजर में एक बड़ी उपलब्धि है, पर छोटे-छोटे विषयों पर भी वही आंकड़ों की बाजीगरी नजर आती है।

जनवरी 2025 के शुरू में ही भारतीय मौसम विभाग ने वर्ष 2024 के संदर्भ में वार्षिक क्लाइमेट समरी प्रकाशित किया था, जिसके अनुसार वर्ष 2024 में चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण देश में 3200 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। इसमें सबसे अधिक 1374 मौतें बिजली गिरने के कारण, 1287 मौतें बाढ़ के कारण और 459 मौतें लू लगने के कारण या अत्यधिक तापमान के कारण दर्ज की गईं। चरम प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों के संदर्भ में सबसे अधिक प्रभावित राज्य बिहार, केरल, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र थे।

इसके बाद 5 जून 2025 को भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय ने पर्यावरण से संबंधित विषयों का सांख्यिकीय विश्लेषण, एनवीस्टैट इंडिया 2025, प्रस्तुत किया। इसके अनुसार वर्ष 2024 में चरम प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से देश में 3080 मौतें हुई हैं। इस रिपोर्ट से इतना तो स्पष्ट है कि जनवरी तक जिन 3200 लोगों की मौत हुई थी, जून आते-आते उनमें से कम से कम 120 लोग वापस जिंदा हो गए। यही मोदी सरकार के 11 वर्षों की सबसे बड़ी उपलब्धि है। वैसे कोविड 19 के आंकड़े, कुम्भ के भगदड़ में मौत के आंकड़े भी ऐसे ही चमत्कारी हैं।


आंकड़ों की बाजीगरी हरेक जगह नजर आती है। इसी विषय पर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के स्वतंत्र प्रभार राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने भी लोकसभा में 11 दिसम्बर 2024 को एक लिखित जवाब दिया था। इसके अनुसार चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण वर्ष 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 में क्रमशः 3017, 2514, 1944, 2767 और 2483 व्यक्तियों की मृत्यु हुई। इन आंकड़ों का और सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों में कोई तालमेल नहीं है। सांख्यिकी मंत्रालय की 5 जून को जारी रिपोर्ट, एनवीस्टैट इंडिया 2025, के अनुसार वर्ष 2019, 2020, 2021, 2022 और 2023 में चरम प्राकृतिक आपदाओं में क्रमशः 2422, 1989, 1593, 1586 और 2616 व्यक्तियों की मृत्यु हुई।

सांख्यिकी मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2019 से 2023 के बीच के 5 वर्षों के दौरान चरम प्राकृतिक आपदाओं के कारण केवल 10206 लोगों की मौत हुई, यानि प्रति वर्ष मौत का औसत 2041 रहा। दूसरी तरफ लोक सभा में डॉ जितेंद्र सिंह के लिखित वक्तव्य के अनुसार इन्हीं 5 वर्षों के दौरान प्राकृतिक आपदाओं में जान गवाने वालों की कुल संख्या 12725 रही, यानि सांख्यिकी  मंत्रालय के आंकड़ों से 2519 अधिक, और प्रति वर्ष औसत रहा 2545।

इन आंकड़ों से एक और तथ्य स्पष्ट होता है- प्रधानमंत्री मोदी भले ही लगातार क्लाइमेट चेंज नियंत्रण और क्लाइमेट रिजिएन्स के संदर्भ में अपने आप को विश्वगुरु बताते हों पर उनसे पहले की सरकारों के दौरान भी चरम प्राकृतिक आपदाओं में मौतों का आंकड़ा बहुत अधिक नहीं था। सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2001 से 2013 के बीच चरम प्राकृतिक आपदाओं में मरने वालों का वार्षिक औसत 2318 था, जबकि वर्ष 2014 से 2014 के बीच यह औसत 2001 है, यानि हरेक वर्ष औसतन 317 मौतें कम दर्ज की गईं हैं।

पर, एक बड़ा अंतर यह है कि मोदी काल से पहले के आंकड़े भरोसे लायक थे जो इस दौर में नहीं हैं। अब तो मोदी सरकार के दो मंत्रालयों में ही मौत के आंकड़ों में प्रतिवर्ष औसतन 500 से अधिक का अंतर होने लगा है। मोदी काल से पहले आपदा प्रबंधन, एनडीआरफ़ और एसडीआरफ़ का शुरुआती दौर था, पर अब तो यह एक विकसित क्षेत्र है, पर मौत की संख्या में अधिक असर नहीं आया।


मोदी सरकार में भी ऐसी मौतों के आंकड़े बढ़ते जा रहे हैं। सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट में बताया गया है कि प्राकृतिक आपदाओं के संदर्भ में वर्ष 2023 की तुलना में वर्ष 2024 में 18 प्रतिशत अधिक मौतें हुईं और यह संख्या पिछले 11 वर्षों में सर्वाधिक है। इन आंकड़ों के अतिरिक्त गृह मंत्रालय के अंतर्गत नेशनल क्राइम रेकॉर्ड्स ब्युरो भी वर्ष 2022 तक के पर्यावरण आपदाओं में मृत्यु से संबंधित आंकड़े प्रस्तुत करता रहा है। इसके आंकड़े सांख्यिकी मंत्रालय और आइएमडी की तुलना में कई गुना अधिक होते हैं। यदि वर्ष 2019, 2020, 2021 और 2022 की बात करें तो इन वर्षों में एनसीआरबी के आंकड़े क्रमशः 8145, 7405, 7126 और 8060 हैं।

ग्यारह वर्षों के दौरान मोदी सरकार ने आंकड़ों को एक मजाक बना डाला है। संसद के एक ही सत्र में भी एक ही विषय पर दो मंत्रालय बिल्कुल अलग आंकड़े प्रस्तुत करते हैं। हरेक भाषण में कपड़ों के साथ ही आंकड़े भी बदलते हैं और मेनस्ट्रीम मीडिया इन्हीं आंकड़ों के बल पर जनता को विकास की परिभाषा बता रहा है।

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