मनोरंजन कारोबार के कुछ हिस्सों में चहलकदमी तो कुछ में छा रही है मायूसी

केपीएमजी मीडिया एंड एंटरटेनमेंट की रिपोर्ट यही बताती है कि अखबार पढ़ने से भारतीय जन ऊब रहा है, टीवी के आंसू छलकाते, खींसे निपोरते धारावाहिकों से भी अब हमारा जी नहीं बहलता अब हमने मनोरंजन के नए ठिकाने ढूंढने शुरू कर दिए हैं।

फोटो: सोशल मीडिया
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प्रगति सक्सेना

मनोरंजन की दुनिया दिलकश है। इसका कारोबार और भी दिलचस्प। हाल में ही जारी केपीएमजी मीडिया एंड एंटरटेनमेंट की रिपोर्ट से पता चलता है कि एंटरटेनमेंट के कुछ हलके सिमट रहे हैं तो कुछ तेज़ी से फ़ैल रहे हैं। अखबार,पत्रिकाओं की तो हालत ऐसे बूढ़े मां-बाप की तरह है जिनकी कोई सुन ही नहीं रहा। मनोरंजन की दुनिया का बादशाह सिनेमा और उसका छोटा भाई टीवी कारोबार के लिहाज़ से ज़रा सिमटे हैं, कमज़ोर हुए हैं। लेकिन इनके नए और नन्हे बंधु डिजिटल प्लेटफार्म ने अपना कद तेज़ी से बढ़ाया है और उसके इस बढ़ते कद का फायदा सिनेमा और टीवी दोनों को हुआ है।

हालांकि नोटबंदी और जीएसटी का असर मनोरंजन के उद्योग पर भी पड़ा और इसकी विकास दर धीमी पड़ गई, लेकिन फिर भी 2017-2018 में ये उद्योग लगभग 1,500 बिलियन के करीब पहुंच गया।

इसका लगभग सारा श्रेय जाता है बढ़ते डिजिटल उपभोक्ताओं बेस को। आज डिजिटल कंटेंट के उपभोक्ता तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं और डिजिटल विज्ञापन का बाज़ार भी। यही वजह है कि मनोरंजन के कारोबार ने डिमोनीटाईज़ेशन और जीएसटी के सदमे को झेल कर भी 2018 के वित्तीय वर्ष में 10.9% का इज़ाफा दर्ज किया।

अलग-अलग श्रेणी में देखें तो प्रिंट का कारोबार सबसे मंदा रहा। आर्थिक झटकों का विपरीत असर सबसे ज्यादा इसी सेक्टर में दिखाई दिया और यहां वर्ष 2018 में विकास दर मात्र 3.4% दर्ज की गई। मज़े की बात ये कि यहां विकास का सेहरा बंधा हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं के अख़बारों के सिर। अंग्रेजी के अखबार 1.5% विकास दर पर सिमट गए। डिजिटल बाज़ार के बढ़ते दायरे और अंग्रेजी अखबार के सिमटते कारोबार के बीच उम्मीद है कि प्रिंट सेक्टर की विकास दर 5.9% रहेगी।

टीवी विज्ञापन से मिलने वाली आय कम हुई है लेकिन फिर भी वित्तीय वर्ष 2018 में टीवी ने 10.3% बढ़त दर्ज की और 224 बिलियन तक पहुंचा।

मनोरंजन कारोबार के कुछ हिस्सों में चहलकदमी तो कुछ में छा रही है मायूसी

कुछ सालों की मंदी के बाद सिनेमा जगत के कारोबार में एक बार फिर बढ़त के लक्षण दिखाई दिए। लेकिन यहां भी सबसे ज्यादा इज़ाफा दिखा क्षेत्रीय सिनेमा के बाज़ार में (खासकर तमिल, तेलुगु और मलयालम सिनेमा में), जबकि बॉलीवुड बॉक्स ऑफिस की आय लगभग फ्लैट रही। इस सेक्टर में 9.6 फ़ीसदी बढ़त दिखाई दी।

अब आते हैं सबसे नए और ताज़ा तरीन डिजिटल क्षेत्र पर। इस सेक्टर की विकास दर 35% रही और इसकी आय 116.3 बिलियन पर पहुंचा। इसमें आई तेज़ रफ़्तार बढ़त की वजह है मोबाइल फोन का गैर शहरी उपभोक्ताओं तक पहुंचना और मोबाइल फोन के अनुकूल वेब कंटेंट में बढ़ोतरी। ज़्यादातर उपभोक्ता धीरे-धीरे नाटकों और धारावाहिकों को देखने के लिए टीवी की बनिस्पत फोन और वेब कंटेंट की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। इसलिए डिजिटल विज्ञापन का बाज़ार भी बढ़ रहा है। उम्मीद है कि ये क्षेत्र 30.2% की दर से बढ़ेगा। देखा जाए तो मनोरंजन उद्योग की लाज इसी सेक्टर ने बचा ली वर्ना मामला यहां भी फीका ही था।

मनोरंजन कारोबार के कुछ हिस्सों में चहलकदमी तो कुछ में छा रही है मायूसी

ज़रा ठहरिये, एक सेक्टर और है जिसने मनोरंजन उद्योग को सहारा दिया, वो है गेमिंग का। स्मार्ट फोन डेटा के सस्ते दाम के कारण गेमिंग में भी भारतीयों ने तेज़ी से हिस्सा लेना शुरू किया है। इस क्षेत्र में भी 35% बढ़ोतरी हुयी और इसकी आय जा पहुंची 43.8 बिलियन। इसमें 89 फ़ीसदी आय आई मोबाइल फोन गेमिंग से।

केपीएमजी मीडिया एंड एंटरटेनमेंट की रिपोर्ट तो यही बताती है कि अखबार पढ़ने से भारतीय जन ऊब रहा है, टीवी के आंसू छलकाते, खींसे निपोरते धारावाहिकों से भी अब हमारा जी नहीं बहलता अब हमने मनोरंजन के नए ठिकाने ढूंढने शुरू कर दिए हैं।

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